बदरुद्दूजा रज़वी मिस्बाही, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
भाग-13
رَبَّنَا آتِهِمْ ضِعْفَيْنِ مِنَ الْعَذَابِ وَالْعَنْهُمْ لَعْنًا كَبِيرًا ( الأحزاب۔68
अनुवाद: ऐ हमारे रब उन्हें आग का दूना अज़ाब दे और उन पर बड़ी लानत कर! (कंज़ुल ईमान)
وَ مَنْ اَظْلَمُ مِمَّنْ ذُكِّرَ بِاٰیٰتِ رَبِّهٖ ثُمَّ اَعْرَضَ عَنْهَاؕ-اِنَّا مِنَ الْمُجْرِمِیْنَ مُنْتَقِمُوْنَ۠۔ (السجدة22)۔
अनुवाद: और उससे बढ़ कर ज़ालिम कौन जिसे उसके रब की आयतों से नसीहत की गई फिर उसने उनसे मुंह फेर लिया बेशक हम मुजरिमों से बदला लेने वाले हैं (कंज़ुल ईमान)
اِنَّكُمْ وَ مَا تَعْبُدُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ حَصَبُ جَهَنَّمَؕ-اَنْتُمْ لَهَا وٰرِدُوْنَ (الأنبیاء 98
अनुवाद: बेशक तुम और जो कुछ अल्लाह के सिवा पूजते हो सब जहन्नम के इंधन हैं तुम्हें उसमें जाना है (कंज़ुल ईमान)
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(1) सुरह अहज़ाब की आयत 68 का संबंध उससे पहले की आयत से है इसलिए हम यहाँ पर सुरह अहज़ाब की आयत 66, 67 के साथ इसकी व्याख्या करते हैं।
जब कयामत के दिन तौहीद और रिसालत का इनकार करने वालों को सख्त अज़ाब से दोचार किया जाएगा और जहन्नम में उनके शरीर उलट पलट दिए जाएंगे अर्थात उन्हें जहन्नम की आग में उपर नीचे हर तरफ से भून दिया जाएगा जैसे कि आग या हांडी में गोश्त उलट पलट कर भूना जाता है उस समय अपने अपराधों का एहसास होगा और वह बहुत हसरत व अफ़सोस से कहेंगे ऐ काश! कि हमने अल्लाह व रसूल की इताअत और फरमाबरदारी की होती तो आज हम इस अज़ाब में मुब्तिला नहीं किये जाते और हमें यह दिन न देखने पड़ते और अपने उज्र की ताईद और तकवियत के लिए वह रब्बे जुलजलाल से फरियाद करेंगे कि हमारे बड़ों ने झूट पर सच और बातिल पर हक़ की मुलम्मा साज़ी करके हमें गुमराह कर दिया और हम उनके झांसे में आ गए इसलिए हमारे गुनाहों और गलतियों के असल जिम्मेदार ऐ हमारे रब! वही लोग हैं। हमारा कुसूर जरुर यह है कि हम उनकी बातों में आ गए और हमने तेरे रसूल की इताअत से मुंह मोड़ लिया लेकिन यह सब उन्हीं के कहने पर हुआ इसलिए हम अगर इस सज़ा के हकदार हैं तो वह इस लायक हैं कि उन्हें दोहरी सज़ा दी जाए इसलिए कि वह खुद भी गुमराह हुए और हमें भी गुमराही की दलदल में धकेल दिया इसलिए ऐ हमारे रब! तू उन पर शदीद लानत फरमा!
उपर्युक्त वजाहत से यह साफ़ हो गया कि सुरह अहज़ाब की आयत 68 में अल्लाह पाक से जो फरियाद की गई है उसमें फरियादी मोमिनीन नहीं होंगे बल्कि वह इनकार करने वाले और शिर्क करने वाले होंगे जिन्होंने दुनिया में अपने बड़ों की फरमाबरदारी की और उनके कहे पर चले और बार बार वाज़ व तज़कीर के बावजूद वह तौहीद व रिसालत पर ईमान नहीं लाए।
(2) सुरह सजदा की आयत 22 से पहले की आयतों में ईमान और कुफ्र की जड़ और सज़ा को बयान किया गया है और यह बताया गया है कि हम अज़ाबे अकबर अर्थात अज़ाबे आखिरत से पहले दुनिया ही में उन्हें अजाब का कुछ मज़ा चखाएंगे ताकि यह सचेत हो जाएं और अपनी आँखों से अंजामे बद देख कर कुफ्र व शिर्क से तौबा कर लें। और ऐसा ही हुआ हिजरत से पहले मक्का के कुरैश बीमारी व तकलीफ में गिरफ्तार हुए और हिजरत के बाद बद्र में कुरैश के रईसों को कत्ल किया गया और सात साल तक सूखे की ऐसी सख्त मुसीबत में मुब्तिला रहे कि हड्डियां, मुरदार और कुत्ते तक खा गए (खज़ाईनुल इरफ़ान मा तहतुल आयह)
और अब आयत 22 में इससे पहले की आयतों में जो वईद की गई है उसकी इल्लत बताई जा रही है कि आखिर हम उन्हें अज़ाब से क्यों दोचार करें उनसे बढ़ कर ज़ालिम और मुजरिम कौन हो सकता है? जिनको हमारी आयतों के जरिये बार बार वाज़ व नसीहत की गई, बार बार उन्हें राहे हक़ दिखाई गई, नए नए प्रभावी अंदाज़ में समझाया गया कि हक़ क्या है? और बातिल क्या है? फिर भी उन्होंने रुगर्दानी की और हक़ कुबूल करने पर आमादा नहीं हुए इसलिए अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ अब कोई चीज बाकी नहीं रही सिवाए इसके कि उनसे बदला लिया जाए और उन्हें उनके जुर्मों की सज़ा दी जाए इसलिए कि अब यह यकीनन मुजरिम हैं, काबिले गर्दन ज़दनी हैं।
इन आयतों में अक्सर अलफ़ाज़ हालांकि आम हैं लेकिन इनके अव्वलीन मुखातिब कुफ्फार व मुशरिकीने मक्का ही हैं।
(3) सुरह अंबिया की आयत 98 के मुखातिब कुफ्फार व मुशरिकीने मक्का हैं। इस आयत में मुबालगा फिल इनज़ार की गर्ज़ से उनका अंजामे बद सराहत के साथ ज़िक्र किया गया है ताकि उनके लिए अब कोई उज्र बाकी न रहे। इस आयत के तहत मुफ़स्सेरीन ने यह रिवायत की है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सनादीदे कुरैश के रुबरु काबा शरीफ के पास इस आयत (अल अंबिया 98) की तिलावत फरमाई तो अब्दुल्लाह बिन ज़बअरी ने कहा: रब्बे काबा की कसम! मैं तुम्हारा मुकाबला करूँगा! क्या यहूद ने उज़ैर, नसारा ने मसीह और बनू मलीह ने मलाइका की इबादत नहीं की?
इब्ने ज़बअरी के एतिराज़ का मकसद यह था कि इस आयत के मुताबिक़ हम और हमारे माबूद सब जहन्नम में दाखिल होंगे इससे लाज़िम आता है कि हज़रत उज़ैर, हज़रत ईसा, मलाइका अलैहिमुस्सलाम भी जहन्नम का इंधन हों और यह सब भी हमारे साथ जहन्नम में दाखिल हों क्योंकि उनकी भी इबादत की गई और यह नफ्सुल अम्र के खिलाफ है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इब्ने ज़बअरी के एतिराज़ का रद्द करते हुए फरमाया: क्या तुम अपनी कौम की लानत से वाकिफ हो: और क्या तुम नहीं जानते हो कि “मा” गैर ज़विल उकूल (बेजान चीज) के लिए आता है (तफसीर इब्ने सउद, अल जुज़उल सादिस 85,86)
कुछ मुफ़स्सेरीन ने इब्ने ज़बअरी के एतिराज़ के जवाब में और भी रिवायतें नकल की हैं लेकिन साहबे तफसीर इब्ने सउद ने इनकी तरदीद की है।
कुफ्फार व मुशरिकीने मक्का गैर खुदा की परस्तिश करते थे चाहे वह उन्हें सजदे के लायक गर्दानते रहे हों या कुर्ब का ज़रिया जान कर उनकी इबादत करते रहे हों हर हाल में यह शिर्क है इसलिए इस आयत में फरमा दिया गया कि मुशरिकीन और बातिल माबूद सब जहन्नम का इंधन होंगे, सबको जहन्नम में दाखिल होना होगा।
इस आयत में “मा ताअबुदून” से मुराद मुफ़स्सेरीन ने बुतों को लिया है इसमें अल्लाह के वह नेक बंदे (हज़रत ईसा, हज़रत उज़ैर, मलाइका अलैहिमुस्सलाम) दाखिल नहीं जिनकी परस्तिश शैतान के वरगलाने से की गई है इसलिए कि “मा” इस्मे मौसूल है जो गैर ज़विल उकूल (बेजान चीज) के लिए आता है।
(जारी)
[To
be continued]
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मौलाना बदरुद्दूजा रज़वी मिस्बाही, मदरसा अरबिया अशरफिया ज़िया-उल-उलूम खैराबाद, ज़िला मऊनाथ भंजन, उत्तरप्रदेश, के प्रधानाचार्य, एक सूफी मिजाज आलिम-ए-दिन, बेहतरीन टीचर, अच्छे लेखक, कवि और प्रिय वक्ता हैं। उनकी कई किताबें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमे कुछ मशहूर यह हैं, 1) फजीलत-ए-रमज़ान, 2) जादूल हरमैन, 3) मुखज़िन-ए-तिब, 4) तौजीहात ए अहसन, 5) मुल्ला हसन की शरह, 6) तहज़ीब अल फराइद, 7) अताईब अल तहानी फी हल्ले मुख़तसर अल मआनी, 8) साहिह मुस्लिम हदीस की शरह
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