बदरुद्दूजा रज़वी मिस्बाही, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
भाग-12
فَلَنُذِیْقَنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا عَذَابًا شَدِیْدًاۙ-وَّ لَنَجْزِیَنَّهُمْ اَسْوَاَ الَّذِیْ كَانُوْا یَعْمَلُوْنَ(۲۷)ذٰلِكَ جَزَآءُ اَعْدَآءِ اللّٰهِ النَّارُۚ-لَهُمْ فِیْهَا دَارُ الْخُلْدِؕ-جَزَآءًۢ بِمَا كَانُوْا بِاٰیٰتِنَا یَجْحَدُوْنَ(۲۸)
अनुवाद: “तो बेशक अवश्य हम काफिरों को सख्त अज़ाब चखाएंगे और बेशक हम उनके बुरे से बुरे काम का बदला देंगे (27) यह है अल्लाह के दुश्मनों का बदला आग उन्हें इसमें हमेशा रहना है सज़ा इसकी कि हमारी आयतों का इनकार करते थे(28)” (कुरआन, सुरह हामीम सजदह, अनुवाद कंज़ुल ईमान से)।
सुरह “हा मीम सजदा” की 26,27,28 आयातों में अल्लाह पाक ने जुर्म और सज़ा दोनों को आशकार फरमा दिया है लेकिन एतेराज़ करने वालों ने अपने मकसद को पूरा करने के लिए केवल आयत 27 और 28 को पेश किया है और आयत 26 को गोल कर गए हैं जिसमें अपराधियों के अपराध का पर्दा फाश किया गया है।
असल बात यह है कि कुरआन खुदा की नाज़िल की हुई किताब है जिसमें दुनिया भर के उलूम को अल्लाह पाक ने जमा कर दिया है जैसा कि इब्ने सुराका किताबुल एजाज़ में हज़रत अबू बकर बिन मुजाहिद से रिवायत करते हैं: वह फरमाते हैं "ما من شئی فی العالم الا وھو فی کتاب اللہ" (अल इत्कान, अल जुज़उल सानी सफहा 160) और इब्ने बुरहान से मरवी है: अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं: "ما من شئیً فھو فی القرآن أو فیہ اصلہ قرب او بعد" (अल इत्कान सफहा 160) कोई ऐसी चीज नहीं है जो कुरआन में न हो या उसकी असल कुरआन में न हो चाहे वह करीब हो या दूर। इस हदीस का भी हासिल यही है कि कुरआन में हर चीज का इल्म मौजूद है अब अगर अल्लाह ने फहम व इदराक की सलाहियत दी है तो तालिब अपनी समझ के अनुसार कुरआन से किसी भी चीज के इल्म का इस्तिखराज कर सकता है। हज़रत इमाम शाफई रहमतुल्लाह अलैह ने एक बार मक्का में फरमाया: "سلونی عما شئتم أخبرکم عنہ فی کتاب اللہ" (अल इत्कान सफहा 160) अनुवाद: “तुम मुझसे जिस चीज के बारे में पूछोगे मैं तुम्हें बताऊंगा कि वह कुरआन में है अर्थात कुरआन पाक से मैं इसका जवाब दूंगा”। इस प्रकार के और सुबूत आप “अल इत्कान” में देख सकते हैं
जबान व बयान के एतिबार से भी कुरआन एक मुअजीज़ किताब और कलामे इलाही है। फसाहत व बलागत में यकता ए ज़माना होने के बावजूद फुसहाए अरब इसका जवाब नहीं पेश कर सके। अल्लाह पाक ने कई जगहों पर उन्हें चैलेंज किया कि अगर तुम अपने इस वादे में सच्चे हो कि कुरआन आसमानी किताब नहीं है तो तुम इस जैसा कलाम पेश करो! अल्लाह फरमाता है: فَلْيَأْتُوا بِحَدِيثٍ مِثْلِهِ إِنْ كَانُوا صَادِقِينَ (अल तूर,34) तो इस जैसी बात तो ले आएं अगर सच्चे हैं (कंज़ुल ईमान) फिर अल्लाह पाक ने उन्हें चैलेंज किया कि अगर तुम पुरे कुरआन का जवाब नहीं ला सकते तो इसकी किसी दस सूरत का ही जवाब ले आओ! अल्लाह फरमाता है: اَمْ یَقُوْلُوْنَ افْتَرٰىهُؕ-قُلْ فَاْتُوْا بِعَشْرِ سُوَرٍ مِّثْلِهٖ (ھود،13 क्या यह कहते हैं कि उन्होंने इसे जी से बना लिया; तुम फरमाओ तुम ऐसी बनाई हुई दस सूरतें ले आओ! (कंज़ुल ईमान) फिर अल्लाह पाक ने चैलेंज दिया कि दस सूरत का जवाब तो बड़ी बात है तुम इसकी किसी एक सूरत का ही जवाब पेश कर दो!! अल्लाह फरमाता है: اَمْ یَقُوْلُوْنَ افْتَرٰىهُؕ-قُلْ فَاْتُوْا بِسُوْرَةٍ مِّثْلِهٖ (یونس، 38) अनुवाद: “क्या यह कहते हैं कि उन्होंने इसे बना लिया है तुम फरमाओ तो इस जैसी एक सूरत ले आओ” (कंज़ुल ईमान)। इस तरह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के हुक्म से अहले मक्का को अलग अलग लब व लहजे में बराबर चैलेंज करते रहे लेकिन वह एक सूरत तो क्या इसकी एक आयत का भी जवाब नहीं ला सके और यह चैलेंज आज भी बरकरार है। अगर वसीम रिज़वी या इस्लाम दुश्मन तत्वों का यह दावा है कि कुरआन खुदा की किताब नहीं है या इसकी कुछ आयतों में इंसानी कलाम की मिलावट हो गई है तो वह पुरे कुरआन का जवाब नहीं बल्कि वह केवल इन्हीं जैसी आयतें पेश करें जिनके बारे में वह यह दावा करते हैं।
हासिल यह है कि फुसहा ए अरब कुरआन को दरकिनार करने और उसके नूर को बुझाने के बहुत हरीस होने के बावजूद कुरआन की किसी आयत का जवाब न ला सके। अगर उनके अंदर कुरआन का जवाब लाने की ताकत होती तो अवश्य उसका जवाब पेश करते बल्की हकीकत यह है कि वह खुद दरपर्दा कुरआनी प्रभाव से प्रभावित थे जैसा कि हज़रत इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहु अन्हु से मरवी है कि वलीद बिन मुगिरा बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुआ आपने उसे कुरआन की आयतें सुनाई जिसे सुन कर वलीद बिन मुगिरा पर रिक्कत तारी हो गई और वह आबदीदा हो गया। धीरे धीरे यह खबर अबू जहल तक पहुंची वह वलीद बिन मुगिरा के पास आया और कहा: ऐ चचा! आपकी कौम आपके लिए कुछ माल जमा करना चाहती है। वलीद ने पुछा किस लिए? अबू जहल ने कहा: वह तुझे देना चाहते हैं क्योंकि तुम मोहम्मद की खिदमत में जाते हो उसने कहा कुरैश को यह बात अच्छी तरह मालूम है कि मैं उनमें सबसे बड़ा मालदार हूँ अबू जहल ने कहा: फिर आप मोहम्मद के बारे में कोई ऐसी बात कहें जिससे यह ज़ाहिर हो कि आप उसे नापसंद करते हैं। वलीद ने हकीकत का इज़हार करते हुए कहा: "فواللہ ما فیکم رجل اعلم بالشعر منی و لا برجزہ و لا بقصیدہ و لا بأشعار الجن واللہ ما یشبہ الذی یقول شیئا من ھذا واللہ أن لقولہ الذی یقول حلاوة و أن علیہ لطلاوة و أنہ لمثمر أعلاہ مغدق أسفلہ و أنہ یعلو و لا یعلیٰ علیہ و أنہ یحطم ما تحتہ (الاتقان، الجزء الثانی ص 140، 150) वलीद ने कहा वल्लाह तुम्हें खूब इल्म है कि तुममें से कोई मुझसे ज़्यादा शेअर [अरबिक शायरी] का जानने वाला नहीं है मैं अशआर की अक्साम, रज्म और कसीदे से खूब वाकिफ हूँ इसी तरह अजिन्ना के अशआर का भी खूब इल्म रखता हूँ अल्लाह गवाह है कि उनका कलाम इन सबसे निराला है वल्लाह उनके कलाम में शीरीनी और हुस्न व आराइश है और बेशक उनके कलाम का बालाई हिस्सा लज़ीज़ फलों से लदा हुआ है और उसका निचला हिस्सा सुखी पत्तियों और शाखों से दूर है उनका कलाम बुलंद होने वाला है उसे कोई पस्त नहीं कर सकता यह जिस पर पढ़ा जाएगा उसे रौंद कर रेज़ा रेज़ा कर देगा।
हासिल यह है कि जब कुरैश ए मक्का कुरआन का जवाब पेश करने से आजिज़ आ गए और उन्होंने देखा कि कुरआनी प्रभाव का दायरा फैलता जा रहा है और कुरैश के रईस और मक्का के सम्मानित लोग भी इस्लाम में आते जा रहे हैं तो दुश्मनी पर उतर आए और कुरआन का मजाक उड़ाने लगे, कभी कहते कि यह जादू है कभी इसे शेअर बताते और कभी कहते कि यह पहले वाले लोगों के किस्से कहानियां हैं और जब इससे भी बात नहीं बनी तो वह हर्ब व ज़र्ब, क़त्ल व किताल पर आमादा हो गए। गरीब सहाबा पर सितम ढाने लगे और उन्हें कैदी बनाने लगे, उनके जान व माल को मुबाह कर लिया और इस पर भी जब बात नहीं बनी तो उन्होंने अपने लोगों को भड़काना शुरू कर दिया कि जब मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कुरआन पढ़ें तो तुम उस पर खामोश न रहो बल्कि तुम जोर जोर से खूब शोर और हंगामा करो, चीखो चिल्लाओ, तालियाँ और सीटियाँ बजाओ ताकि कुरआन के कलमात तुम्हारे कानों से न टकराएं और कुरआन शोर और हंगामे की नज़र हो जाए जैसा कि सुरह “हा मीम सजदा” की आयत 26 इस पर गवाह है जिसे एतेराज़ करने वालों ने चालाकी दिखाते हुए अपने एतेराज़ से हज्फ़ कर दिया है। "وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَا تَسْمَعُواْ لِهَٰذَا ٱلْقُرْءَانِ وَٱلْغَوْاْ فِيهِ لَعَلَّكُمْ تَغْلِبُونَ" अनुवाद: “और काफिर बोले यह कुरआन न सुनों और इसमें बेहूदा गुल करो शायद यूँ ही तुम ग़ालिब आओ” (कंज़ुल ईमान)
यह उनकी जेहालत और खाम कयाली थी कि इस तरह वह इस्लाम के बानी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ग़ालिब आ जाएंगे और इस्लाम को मिटा देंगे इसलिए कि अल्लाह पाक अपने महबूब का मददगार है और उसकी मदद के आगे सारी रुकावटें हेच हैं। फिर अल्लाह पाक ने इस सुरह की आयत 27, 28 में उनके इस बदतरीन जुर्म और घटिया हरकत की सजा को बयान फरमाया है जिसका हासिल यह है कि नादानों! जब इसका अंजाम तुम्हारे सामने आएगा और तुम्हें इसकी सख्त सज़ा दी जाएगी फिर तुम्हें अंदाजा होगा कि हमने कौन सी हरकत की थी। کما تدینُ تُدان इलाही कानून है और उसी रविश पर दुनिया की हुकूमतें भी गामज़न हैं।
(जारी)
[To
be continued]
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मौलाना बदरुद्दूजा रज़वी मिस्बाही, मदरसा अरबिया अशरफिया ज़िया-उल-उलूम खैराबाद, ज़िला मऊनाथ भंजन, उत्तरप्रदेश, के प्रधानाचार्य, एक सूफी मिजाज आलिम-ए-दिन, बेहतरीन टीचर, अच्छे लेखक, कवि और प्रिय वक्ता हैं। उनकी कई किताबें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमे कुछ मशहूर यह हैं, 1) फजीलत-ए-रमज़ान, 2) जादूल हरमयन, 3) मुखजीन-ए-तिब, 4) तौजीहात ए अहसन, 5) मुल्ला हसन की शरह, 6) तहज़ीब अल फराइद, 7) अताईब अल तहानी फी हल्ले मुख़तसर अल मआनी, 8) साहिह मुस्लिम हदीस की शरह
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