बदरुद्दूजा रिज़वी मिस्बाही, न्यू एज इस्लाम
भाग-४
(3) يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا قَاتِلُوا الَّذِينَ
يَلُونَكُم مِّنَ الْكُفَّارِ وَلْيَجِدُوا فِيكُمْ غِلْظَةً ۚ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ
مَعَ الْمُتَّقِينَ (۹: ۱۲۳)
{ऐ ईमान वालों! उन काफिरों से जिहाद करो जो तुम्हारे करीब हैं
और वह तुममें सख्ती पाएं और जान रखो की अल्लाह परहेज़गारों के साथ है।}
अभी हाल ही में वसीम रिज़वी का नया वीडियो वायरल हुआ है उसमें
उसने सुप्रीम कोर्ट में पेश किये हुए छब्बीस आयतों में से ६/ आयतों का उलटा सीधा अनुवाद
अत्यंत गेज़ व गज़ब और दीदा दिलेरी के साथ पढ़ कर सुनाया है जिसमें से पहली आयत: फ इज़ं
सलखल अश्हुरुल हरम अल अख का जवाब हम अपनी दूसरी क़िस्त में दे चुके हैं। इस आयत में
“अश्हुरे हरम” का अनुवाद उस नाखल्फ ने रमजान
के महीने से किया है, जब कि “अश्हुरे हरम” से जुल कायदा, जुल हिज्जा, मुहर्रम और रजब के महीने मुराद हैं हैरत बालाए हैरत है कि जिसकी कुरआन फहमी का
यह आलम है कि उसे यह तक नहीं पता है कि “अश्हुरे हरम” से क्या मुराद है? वह कुरआन की छब्बीस आयतों को सुप्रीम कोर्ट में चैलेन्ज करने
चला है और बार बार मीडिया में इसको रिपीट करके यह ज़ाहिर कर रहा है कि खतमल्लाहू अला
कुलुबिहीम व अला समइहीम व अला अब्सारिहीम गिशावह वलहुम अजाबुन अजीम (अल बकरा ७) अर्थात
अल्लाह ने उनके दिलों पर और उनके कानों पर मुहर लगा दी है और उनकी आँखों पर पर्दा पड़ा
हुआ है उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब है। (कन्जुल ईमान) के मिसदाक अभी नापैद (ख़त्म) नहीं
हुए हैं।
सुरह तौबा की आयत नम्बर: १२३ को उसने वायरल वीडियो में ज़िक्र
किया है और उसे अपनी पेटीशन में दाखिल किया है उसके बारे में आप को यह बताया जा चुका
है कि सुरह तौबा की बेशतर आयतों में वह कुफ्फार व मुशरेकीने अरब मुराद हैं जिन्होंने
मुआहेदे अमन की ना केवल यह कि खिलाफ वर्जी की बल्कि मुसलामानों पर अत्यंत जारहीयत का
मुजाहिरा करते हुए बद्र, उहद और खंदक जैसी भयानक जंगों से उन्हें दोचार कर दिया जिनमें उहद में खुद पैगम्बरे
इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर हमला करके दन्दाने मुबारक शहीद कर दिए बल्कि अम्र
बिन कमिया ने एक पत्थर इस जोर से मारा कि सरकारे दो आलम अलैहिस्सलाम के खूद की कड़ियाँ
रुख्सारे मुबारक में चुभ (धंस) गईं जिस से लबहाए मुबारक और रूखे अनवर ज़ख्मी हो गए और
शदीद जारहिय्यत का मुजाहेरा करते हुए १०८ मुहाजेरीन व अंसार सहाबा को शहीद कर दिया, और इस पर भी उन्हें तसल्ली नहीं
हुई तो रिवायत के खिलाफ दस हज़ार या चौबीस हज़ार की भारी नफरी ले कर तमाम कबाइले अरब
के साथ मदीना पर हमला कर दिया जिस का बचाव सहाबा ने खंदक खोद कर किया फिर जब मुआहेदा
ए हुदैबिया की करार दाद पास हुई तो उन्हें भी अपने पैरों तले रौंद डाला, सुरह तौबा की आयतों में ऐसे शरीर
कुफ्फार व मुशरेकीने अरब के साथ जिहाद करने का आदेश दिया गया है ना कि भारत के अमन
पसंद शहरियों और बिरादराने वतन के साथ।
इस जरूरी वजाहत के बाद अब हम आपको यह बताना चाहते हैं कि सुरह
तौबा की आयत: १२३ में जो करीबी कुफ्फार से अहले ईमान को जिहाद करने का हुक्म दिया गया
है उससे कौन से कुफ्फार मुराद हैं? लेकिन इससे पहले हम इसकी वजाहत करना चाहते हैं कि कुरआने मुकद्दस में विभिन्न जगहों
पर जो लफ्ज़ “कुफ्र” या उसके मुश्तकात जैसे काफिर, कुफ्फार, काफिरीन और काफिरून आदि का ज़िक्र आया है उससे क्या मुराद है? क्या शब्द काफिर सब्ब व शितम
(गाली) है जैसा कि वसीम रिज़वी जैसा नाखल्फ यह समझ और समझा रहा है, इसलिए हम यहाँ फ़रज़न्दाने इस्लाम
और बिरादराने वतन पर यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि काफिर कोई ऐसा शब्द नहीं है जो बिरादराने
वतन के अज़ार, तजहीक, तजलील या तकलीफ का कारण हो बल्कि यह शब्द मुस्लिम के मुकाबले में केवल एक इस्तिलाह
है। अल्लाह पाक की वहदानियत हुजुर अलैहि सलवातु वस्सलाम और दुसरे अम्बिया व रुसुल की
नबूवत व रिसालत और तमाम शराए दीन की दिल से तस्दीक और जुबान से इकरार करने और मानने
वाले को मुस्लिम कहते हैं और जो इसका मुनकिर हो उसे ना मानता हो उसे काफिर कहते हैं
जैसा कि अल्लाह पाक फरमाता है: كَیْفَ
تَكْفُرُوْنَ بِاللّٰهِ وَ كُنْتُمْ اَمْوَاتًا فَاَحْیَاكُمْۚ(البقرہ ٢٨)
तुम कैसे अल्लाह के मुनकिर हो सकते हो हालांकि तुम मुर्दा थे तो उसने तुम्हें पैदा
किया (कन्जुल ईमान) इसी तरह एक मुकाम पर फरमाता है:
وَ مَنْ یَّكْفُرْ بِاللّٰهِ وَ مَلٰٓىٕكَتِهٖ وَ كُتُبِهٖ
وَ رُسُلِهٖ وَ الْیَوْمِ الْاٰخِرِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلٰلا بَعِیْدًا(النساء ١٣٦)
और जो अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों
और कयामत को ना माने तो वह जरुर दूर की गुमराही में जा पड़ा। (कन्जुल ईमान)
और बोला जाता है: कुफ्र बिल्लाह, अव बीनिअमतिल्लाह । उसने अल्लाह
या उसकी नेमत का इनकार किया (अल मोअजमुल वसीत काफ फ र पृष्ठ ९५६
मैंने अरबी, उर्दू, इंग्लिश की कई लुगात (शब्दकोष) में देखा और दिखवाया लेकिन किसी भी लुगत में शब्द
काफिर का ऐसा अर्थ तलाश बिस्यार के बाद भी नहीं मिला जिससे किसी भी ज़ाविये से इस शब्द
से गाली,
सब्ब व शितम का मफहूम
विकल्प हो इसलिए किसी को यह गलत फहमी दूर कर लेनी चाहिए कि शब्द काफिर बिरादाराने वतन
के लिए गाली है, इससे भी आसान शब्दों में आपको बता दूँ कि एक है मुस्लिम और एक है नान मुस्लिम और
जो नान मुस्लिम है उन्हीं को कुरआन में काफिर या कुफ्फार से ताबीर किया गया है जैसा
कि सुरह तौबा की इस आयत में है।
मुस्लिम और काफिर के मुआनी व मुफाहीम की वजाहत के बाद सुरह तौबा
की इस आयत: (१२३) में अल अकरब फल अकरब के फार्मूले के तहत अहले ईमान को पहले करीबी
कुफ्फार से जिहाद करने का हुक्म दिया गया है जैसा कि हुजुर अलैहिस्सलातु वस्सलाम को
सबसे पहले उन लोगों तक इस्लाम की तबलीग व इन्जार का हुक्म दिया गया जो आपके बहुत करीब
थे और जिन पर आपको काफी भरोसा था क्यों कि जो बहुत करीब होता है वह सबसे पहले खैर व
फलाह और इस्लाहे हाल का मुस्तहिक होता है।
अब इस आयत में करीबी कुफ्फार से कौन से लोग मुराद हैं? इसमें दो कौल है: (१) मदीने के
यहूद मुराद हैं जैसे बनू कुरैज़ा, बनू नज़ीर, बनू कीनकाअ। (२) अहले रूम, क्योंकि यह शाम में रहते थे और शाम ईराक के बनिस्बत मदीना मुनव्वरा से ज़्यादा करीब
पड़ता था जैसा कि तफसीर अबी सउद में है:
قیل: ھم الیھود حوالی المدینۃ کبنی قریظۃ والنضیر و
خیبر و قیل :الروم فانھم کانوا یسکنون الشام وھو قریب من المدینۃ بالنسبۃ الی العراق
و غیرہ (تفسیر ابی سعود ج 4 ص 112)
लेकिन करीन कयास यह है कि इससे बनू कुरैज़ा, बनू नज़ीर, बनू कीनकाअ के यहूदी मुराद हैं
जो मदीने में आबाद थे और मुआशी एतेबार से इतने खुशहाल थे कि मदीने और दुसरे शहरों की
तिजारती मंडियों पर उनका कब्ज़ा था लेकिन इसी के साथ यह हर तरह की अख्लाकी बीमारियों
में भी मुब्तिला थे जैसे यह सूद खाते थे, झूट बोलते थे, रात दिन साजिशें रचा करते थे, अहकामे इलाही में जाती फायदे के लिए तहरीफ़ (रद्द व बदल) से भी
बाज़ नहीं आते थे मुसलमानों से बुग्ज़ व हसद उनकी फितरत में दाखिल था। अरब के ओस व खज़रज
जो बाद में अंसार सहाबा से मशहूर हुए यहूदियों से हमेशा दबे रहते थे क्योंकि मुआशी
बदहाली की बिना पर यह अक्सर यहूदियों के मकरूज़ रहा करते थे और कर्ज़ के लिए यह यहूद
मदीना के पास अपनी औरतों और बच्चों तक को रेहन रख देते थे यहूदे मदीना के तफव्वुक और
बाला दस्ती की एक वजह यह थी कि यह अहले किताब के साथ जरीक व दाना और अहले खिरद भी थे।
मक्का मुकर्रमा में केवल एक कौम अहले इस्लाम के सामने थी जो
बुत परस्त, जाहिल और उजड थी जब कि मदीना विभिन्न कौमों और विभिन्न धर्मों के मानने वालों का
केंद्र था इसलिए हुजुर अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने मदीना मुनव्वरा हिजरत कर जाने के बाद
अपनी पैगम्बराना बसीरत से यहुदे मदीना से एक मुआहेदा किया जो तारीख व सीरत की किताबों
में सहीफा के नाम से जाना जाता है जिसकी दफआत निहायत जामे और अमन व अमान के लिए बहुत
आवश्यक थीं जिसका मकसद यह था कि शहर के दाखली अमन व अमान में कोई खलल ना आने पाए और
बाहर से कोई खतरा पेश और नमूदार हो तो मदिने के तमाम कबीले मिल कर और मुत्तहिद हो कर
उसका मुकाबला करें यह मुआहेदा बराबरी पर आधारित था इसकी दफआत में बिला तफरीक अहले मदीना
के तमाम शहरी और मज़हबी हुकुक की हिफाज़त का नज़्म किया गया था लेकिन यहूद अपनी फितरत
से बाज़ नहीं आए और इस्लाम और अहले इस्लाम के खिलाफ दरपर्दा रिशादवानी शुरू कर दी जैसे
ओस व खजरज (अंसार सहाबा) में तफरका डाल कर खाना जंगी की वह आग दुबारा भड़काने की कोशिश
की जो हुजुर अलैहिस्सलातु वस्सलाम की हिजरत से पहले दोनों गिरोहों में पुश्तों से भड़क
रही थी और दोनों गिरोहों की हलाकत और तबाही का कारण बनी हुई थी इसी आपसी खाना जंगी
की वजह से हिजरत से पहले यह यहूदियों के दस्ते नगर बन कर रह गए थे मुआहेदे के बावजूद
यह शिर्क और बुत परस्ती को वहदानियत से बेहतर और काबिले तरजीह करार देते थे जब कि यह
खुद अहले किताब थे और यह खुद को इसके लिए भी आमादा रखते थे कि इस्लाम कुबूल करने के
बाद मुर्तद हो जाएंगे जैसा कि आज वसीम रिज़वी का हाल है, दरपर्दा यह हुजुर अलैहिस्स्लातु
वस्सलाम के खिलाफ भी मंसूबा बंदी किया करते थे यहाँ तक कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
और सहाबा को हमेशा यहूदियों से जान का खतरा बना रहता था जिसकी मिसाल यह है कि जब हज़रत
तलहा बिन बराअ रज़ीअल्लाहु अन्हु का आखरी वक्त आया तो उन्होंने यह वसीयत कर दी कि अगर
मेरा दम रात में निकल जाए तो हुजुर सैयदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खबर ना करना
कि मुबादा वह जनाज़े में तशरीफ लाएं और यहूदी उन पर हमला कर दें।
जैसा कि “असदुल बालिगा” में है:
فقال :ادفنوني و ألحقوني بربي ،ولا تدعوا رسول اللّه
صلّى اللَّه عليه وسلم فإني أخاف عليه اليهود أن يصاب في سبيل"
(أسد الغابة في معرفة الصحابة،ج:٣.ص:٨١)
इस साज़िश में मुनाफेकीने मदीना भी पेश पेश रहते थे जिनका सरदार
अब्दुल्लाह बिन उबई था यहूदी उसके हलीफ थे मुशरेकीने मक्का भी बराबर उन्हें उकसाया
करते थे कि हमारे साहब (हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथ तुम बराबर लड़ते रहो
वरना हम तुम्हारे साथ यह करेंगे वह करेंगे। काब बिन अशरफ अलग दर्दे सर बना रहता था
हासिल यह है कि यहूदे मदीना अपने मुआहेदे पर अधिक दिनों तक कायम ना रह सके एक मुसलमान
औरत बनू कीनका के मोहल्ले में दूध बेचने गई यहूदियों ने उसके साथ इतनी शरारत की कि
उसे सरे बाज़ार नंगा कर दिया और जब हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें इस पर बात
करने के लिए तलब किया तो उन्होंने मुआहेदे का कागज़ भी वापस कर दिया और जंग व जिदाल
पर आमादा हो गए उनकी अय्यारी और शरारत इस हद तक बढ़ गई कि उन्होंने दरपर्दा हुजुर अलैहिस्सलातु
वस्सलाम के क़त्ल तक का मंसूबा बना लिया लेकिन बरवक्त वही ए इलाही से उनके जान लेवा
मनसूबे का आपको इल्म हो गया उन असबाब, वजूहात और हालात के पेशेनजर इस आयत में अहले ईमान को हुक्म दिया
गया कि पहले उन करीबी कुफ्फार की खबर लो फिर दूर वालों को देखना क्योंकि घर का भेदी
लंका ढाए मशहूर मिसाल है और निस्बतन दूर वालों से करीब वाले ज़्यादा खतरनाक और डेंजर
होते हैं यही इस आयत का मतलब है कि ईमान वाले पहले अपने करीब रहने वाले यहूदी बनू नज़ीर, बनू कुरैज़ा (यहुदे मदीना) से
जंग करें इस आयत का यह मतलब नहीं है कि मुसलमान अपने पड़ोस, मुहल्ले, गाँव, कस्बे और शहर के रहने वाले गैर
मुस्लिम बिरादराने वतन को बिला वजह गोलियों से भुन दें, जैसा कि वसीम रिज़वी यह भ्रम पैदा
कर रहा है और बिरादराने वतन में इश्तेआल पैदा कर के दोनों पक्षों को एक दुसरे के खिलाफ
सफ आरा करना चाहता है।
और सुरह तौबा आयत: (१२३) की सूफियाना तफसीर यह है कि अहले ईमान
पहले अपने करीबी कुफ्फार नफ्से अम्मारा से किताल और जिहाद करें फिर खारजी (बाहरी) और
दूर वाले काफिरों का ख्याल करें कि उनसे जिहाद आसान है लेकिन अपने करीबी काफिर नफ्से
सरकश से जिहाद मुश्किल और कठिन काम है इसलिए तुम में खूब सख्ती और गल्जत की आवश्यकता
है कि किसी भी वक्त नफ्स तुम में नरमी ना पाए कि तुम पर ग़ालिब आ जाए, इसी लिए कहा गया है कि कुफ्फार
से जिहाद जिहादे असगर है और नफ्स से जिहाद जिहादे अकबर जिहादे असगर के लिए तीर व तलवार
बाज़ार से खरीदे जा सकते हैं मगर नफ्स से लड़ने के हथियार कूचा व बाज़ार में नहीं बिकते
हैं उसके लिए दिल व दिमाग में इश्के नबी की शमा जलानी पड़ती है और नफ्स नफ्सकशी और इन्तेहाई
सख्त मुजाहेदे से गुजरना पड़ता है जो बड़ा मुश्किल काम है।
जारी.......................
[To be continued]
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मौलाना बदरुद्दूजा रिज़वी
मिस्बाही, मदरसा अरबिया अशरफिया ज़िया-उल-उलूम खैराबाद, ज़िला मऊनाथ भंजन, उत्तरप्रदेश,
के प्रधानाचार्य, एक सूफी मिजाज आलिम-ए-दिन, बेहतरीन टीचर,
अच्छे लेखक,
कवि और प्रिय वक्ता हैं। उनकी कई किताबें अब तक प्रकाशित
हो चुकी हैं जिनमे कुछ मशहूर यह हैं,
1) फजीलत-ए-रमज़ान, 2) जादूल हरमयन, 3) मुखजीन-ए-तिब, 4) तौजीहात ए अहसन, 5) मुल्ला हसन की शरह, 6) तहज़ीब अल फराइद, 7) अताईब अल तहानी फी हल्ले मुख़तसर
अल मआनी, 8) साहिह मुस्लिम हदीस की शरह
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Hindi
Part: 1- The Verses of
Jihad In The Quran- Meaning And Background- Part 1 जिहाद की आयतें: अर्थ व मफहूम, शाने नुज़ूल, पृष्ठ भूमि
Hindi
Part: 2- The Verses of
Jihad In The Quran- Meaning And Background- Part 2 जिहाद की आयतें: अर्थ व मफहूम, शाने नुज़ूल, पृष्ठ भूमि
Hindi
Part: 3- The Verses of
Jihad: Meaning and Context – Part 3 जिहाद की
आयतें: अर्थ व मफहूम, शाने नुजुल और पृष्ठ भूमि
Urdu
Part: 3- The Verses of
Jihad: Meaning and Context - Part 3 آیات
جہاد :معنیٰ و مفہوم ، شانِ نزول، پس منظر
Urdu
Part: 4- The Verses of
Jihad: Meaning and Context - Part 4 معترضہ
آیاتِ جہاد، معنیٰ و مفہوم، شانِ نزول، پس منظر
Urdu
Part: 5- The Verses of
Jihad: Meaning and Context - Part 5 معترضہ
آیاتِ جہاد، معنیٰ و مفہوم، شانِ نزول، پس منظر
Urdu
Part: 6- The Verses of
Jihad in Quran: Meaning and Context - Part 6 معترضہ
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Urdu Part: 7- The Verses of Jihad in Quran: Meaning and Context - Part 7 معترضہ آیاتِ جہاد، معنیٰ و مفہوم، شانِ نزول، پس منظر
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Part: 1 - The Verses of
Jihad: Meaning, Denotation, Reason of Revelation and Background- Part 1
English
Part: 2 - The Verses of
Jihad: Meaning, Denotation, Reason of Revelation and Background- Part 2
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Jihad: Meaning, Denotation, Reason of Revelation and Background- Part 3
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Jihad- Meaning, Denotation, Reason of Revelation and Background- Part 4
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