बदरुद्दूजा
रिज़वी मिस्बाही
(उर्दू
से अनुवाद: न्यू एज इस्लाम)
भाग-१
३०
मार्च,
२०२१
आपत्तिजनक
आयतों का सहीह अर्थ और मफहूम की पृष्ठभूमि और शाने नुज़ूल से पहले जिहाद का शाब्दिक
और शरई मफहूम और इसके प्रकार की वजाहत बहुत आवश्यक है।
जिहाद: जुह्द से मुश्तक है जो बहुत से अर्थों के
लिए मौजुअ है जैसे: मुशक्कत,
इन्तेहा, गुंजाइश,
ताकत, बहुत प्रयास। और कायदा यह है कि मुश्तक में माखज़ इश्तकाक का
अर्थ व मफहूम माखूज़ होता है इसलिए जिहाद के शाब्दिक अर्थ में भी यह सब अर्थ लिए गए
होंगे और शरअ में दीने हक़ के फरोग और इसकी सरबुलंदी के लिए अत्यंत संघर्ष का नाम “जिहाद”
है जिसकी कई सूरतें हैं, जिहाद हम जुबान से भी कर सकते हैं और माल से भी कर सकते हैं
कलम से भी कर सकते हैं,
अपने इल्म से भी कर सकते
हैं और जरूरत पड़ने पर अपनी जान को खतरे में डाल कर भी कर सकते हैं।
शरअ
में जिहाद केवल क़त्ल और क़िताल और जंग व जिदाल का नाम नहीं है जैसा कि आम तौर पर
जिहाद का यही अर्थ बता कर वसीम रिज़वी जैसे लोग बिरादराने वतन के दिमाग को गंदा
करने और इस्लाम धर्म के खिलाफ गैर इस्लामी दुनिया को भड़काने का काम करते हैं। हाँ
यह अवश्य है कि वक्त और जरूरत पड़ने पर विशेष शर्तों के साथ गैर ज़िम्मी कुफ्फार से
जंग करने का नाम भी जिहाद है,
लेकिन यह कहना कि “जिहाद”
केवल इसी अर्थ में प्रयोग
है; यह नफ्सुल अम्र के सरीह खिलाफ है कुरआन व
हदीसों में बहुत से जगहों पर इस अर्थ के अलावा दुसरे अर्थ पर जिहाद का इतलाक हुआ
है जैसे: कुरआन मजीद की आयते मुबारका: (وَ مَن جَاہَدَ فَاِنَّمَا یُجَاہِدُ لِنَفسِہٖ اِنَّ
اللّٰہَ لَغَنِیٌّ عَنِ العٰلَمِینَ) (अल अनकबूत,
आयत:६) और जो अल्लाह की
राह में कोशिश करे तो अपने ही भले को कोशिश करता है बेशक अल्लाह बेपरवाह है सारे
जहान से। (कंज़ुल ईमान)
इस
आयते मुबारका में जिहाद का इतलाक कई मानी पर हुआ है, जैसे: अल्लाह की इताअत पर, सब्र व तहम्मुल, जिहाद
बिल नफ्स, शैतान की मुखालिफत और दीन के दुश्मनों के साथ
जंग (खजाइनुल उरफा)
इसी
तरह कुरआन पाक की यह आयत मुबारका: وَ
الَّذِینَ جَاہَدُوا فِینَا لَنَھْدِیَنَّھُم سُبُلَنَا وَ اِنَّ اللّٰہَ
لَمَعَ المُحسِنِینَ (अल अनकबूत, आयत:६९)
अनुवाद:
और जिन्होंने हमारी राह में कोशिश की अवश्य हम उन्हें अपने रास्ते दिखा देंगे और
बेशक अल्लाह नेकियों के साथ है (कंज़ुल ईमान)
इस
आयते मुबारका में मुजाहेदा [पर जिहाद का इतलाक हुआ है अर्थात तमाम ज़ाहिरी और
बातिनी आमाल और आदात ए इतवार में रजाए इलाही के लिए हवा ए नफ्स और शैतानी वस्वसों
के खिलाफ संघर्ष करने का नाम जिहाद है बल्कि हदीसों में इस जिहादे अकबर के नाम से
ताबीर किया गया है। साहबे तफ़सीर अबी सउद इस आयत की तफसीर में फरमाते हैं: “اطلق المجاھدۃ لیعم جھاد الاعادی الظاھرۃ والباطنۃ” (तफसीर अबी सउद, जिल्द:७
, पृष्ठ: ४८)
इसी
तरह कुरआन मजीद की आयत मुबारका: (وَّ جَاھدُوۡا بِاَمۡوَالِکُمۡ وَ اَنۡفُسِکُمۡ فِیۡ سَبِیۡلِ
اللّٰہِ ذٰلِکُمۡ خَیۡرٌ لَّکُمۡ اِنۡ کُنۡتُمۡ تَعۡلَمُوۡنَ) (अल तौबा, आयत:४१) अनुवाद: और अल्लाह की राह में लड़ो अपने माल और जान
से (कंज़ुल ईमान)
इस
आयत में अगर संभव हो तो माल और जान दोनों से और अगर संभव ना हो तो दोनों में से
जिससे संभव हो उससे जिहाद का हुक्म दिया गया है। और एक कौल के अनुसार इस आयत में
केवल एक प्रकार (जिहाद बिल माल) का हुक्म है। (तफसीर अबी सउद, जिल्द:४ पृष्ठ:६७)
इसी
तरह हदीस में ज़ालिम व जाबिर फरमाँ रवा के सामने हक़ बात कहने को अफज़ल जिहाद से
ताबीर किया गया है। हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं: “अफज़लुल जिहादी कलिम्तु इन्दा सुल्तानु जाईर “[शोअबुल ईमान लिल बेहकी, जिल्द:६,
पृष्ठ: ९३, अल हदीस: ७५८१, दारुल
क़ुतुब अल इल्मिया बैरुत लेबनान]
जिहाद
का मफहूम इतना वसीअ है कि वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक और उनकी खिदमत गुजारी पर भी
जिहाद का इतलाक किया गया है जैसा कि हदीस में है: “جَاء رَجُلٌ اِلَی رَسُوْلُ اللّٰہِ ﷺ فاستأذنہ فی
الجہاد۔ قَالَ احیٌّ والداک؟ قال: نَعَمْ۔ قَالَ ففیھما فجاھد” [सहीह बुखारी, पृष्ठ
७३३, अल हदीस: ३००४, किताबुल जिहाद वल सैर दारुल फ़िक्र, बैरुत,
लेबनान]
अनुवाद:
एक शख्स बारगाहे रिसालत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में आया और उसने आप सल्लल्लाहु
अलैहि वसल्लम से जिहाद में जाने की इजाज़त मांगी तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने
उससे पूछा: क्या तेरे वालिदैन ज़िंदा हैं? उसने
कहा: हाँ। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: बस उन्हीं की खिदमत कर।
यहाँ
पर हमने केवल कुछ आयतें और हदीसें पेश की हैं वरना कुरआन और हदीस की किताबों में
बहुत से आयतें और हदीसें हैं जिन में जिहाद का इतलाक हर्ब व जर्ब के अलावा दुसरे
अर्थ पर हुआ है इससे यह अच्छी तरह मुबरहन हो गया कि “जिहाद”
का शब्द केवल कुफ्फार व
मुशरेकीन, यहूद व नसारा और दुसरे इस्लाम दुश्मन ताकतों
से लड़ने तक महदूद नहीं है बल्की यह चार हरफी शब्द अपने आप में बड़ी वुसअत रखता है।
इतनी
वजाहत के बाद अब हम आपकी तवज्जोह उन जिहाद की आयतों की तरफ दिलाना चाहते हैं, जिनके बारे में यह कहा जाता है कि कुरआन की यह आयतें दुनिया
में “आतंक” फैला रही हैं और आतंकवाद को हवा दे रही हैं, लेकिन इससे पहले हम यहाँ आपको यह बताते हुए चलें कि एलाने
नबूवत के आगाज़ से ले कर १३/ साल तक मक्का मुकर्रमा में हुजुर अलैहिस्सलाम और आपके
मुट्ठी भर जां निसारों के साथ वह ज़ालिमाना सुलूक किया गया जिसके कल्पना मात्र से
रूह काँप जाती हैं।
गरीब
और मफ्लुकुल हाल मुसलमानों को मुसलसल ज़ुल्म व तशद्दुद का निशाना बनाया जाता रहा, हजरत बिलाल रज़ीअल्लाहु अन्हु की गर्दन में रस्सी डाल कर
मक्का की गर्म पहाड़ियों और संग्लाख वादियों में घसीटा जाता, दोपहर के वक्त जब कि सूरज अंगारे उगल रहा होता उन्हें ज़मीन
पर लिटा कर सीने पर वज़नी सीलें रख दी जातीं, मशकें बाँध कर लाठी और डंडों से पीटा जाता, धुप में देर तक बिठाया जाता। हज़रत खबाब बिन अरत रज़ीअल्लाहु
अन्हु को कोयला दहका कर आग पर लिटाया जाता, उनकी छाती पर एक शख्स पैर रख कर खड़ा रहता, ताकि वह करवट ना बदल सकें, और इतनी देर तक लिटाया जाता कि भदकते हुए कोयले सर्द पड़
जाते। हज़रत अम्मार रज़ीअल्लाहु अन्हु, उनके
मां बाप हज़रत यासिर और हजरत सुमैय्या रज़ीअल्लाहु अन्हुमा पर रोजाना मश्के सितम
किया जाता,
यहाँ तक कि हजरत सुमैय्या
की अंदाम निहाने पर नेज़ा मार कर उन्हें शहीद कर दिया गया, हजरत उस्मान गनी रज़ीअल्लाहु अन्हु को उनके चचा चटाई में
लपेट कर उलटा लटका देता और नीचे धुवां देता ताकि वह घुट घुट कर बे जान हो जाएं।
हज़रत
मुसअब बिन उमैर रदी अल्लाहु अन्हु को इस्लाम कुबूल करने की पादाश में उनकी मां ने
घर से निकाल दिया। सहाबा तो सहाबा खुद इस्लाम के बानी भी उनके ज़ुल्म व तशद्दुद से
नहीं बच सके,
यहाँ तक कि जब हज़रत उमर और
हजरत अमीर हमज़ा रज़ीअल्लाहु अन्हुमा ने इस्लाम कुबूल कर लिया तो कुरैश मक्का के गेज़
व गज़ब की आग इतनी तेज़ हो गई कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ पूरे बनी हाशिम
का बाईकाट कर दिया,
इसलिए नहीं कि वह इस्लाम
कुबूल कर चुके थे,
बल्कि इसलिए कि वह दरपर्दा
आपकी हिमायत कर रहे थे,
यहाँ तक कि मजबूर हो कर
पुरे साल तक आपको बनी हाशिम के साथ शोअबे अबी तालिब में पनाह गुजीं होना पड़ा।
जब
कुरैश का ज़ुल्म व सितम हद से तजावुज़ कर गया, तो आपने इस्लाम के जान निसारों को हिदायत फरमाई कि वह हबशा
की तरफ हिजरत कर जाएं,
जब वह हबशा हिजरत कर गए तो
कुरैश का एक वफद नजाशी के दरबार में तोहफा और तहाएफ ले कर पहुँच गया, ताकि बात चीत करके उन मजलूमों को वहाँ से भी निकलवा दिया
जाए, यह और बात कि नजाशी ने हज़रत सैय्यदना जाफर
तय्यार रज़ीअल्लाहु अन्हु की तकरीर से प्रभावित हो कर कुरैश के सफ़ीरों को ना केवल
यह कि नाकाम वापस कर दिया बल्कि इस्लाम भी कुबूल कर लिया, १३/ साल तक मुसलसल ज़ुल्म व तशद्दुद का निशाना बनने और
इंतेहाई कठिन और सब्र आज़मा हालात से गुजरने के बावजूद सहाबा को कुरैश से लड़ने के
लिए तलवार उठाने की इजाज़त नहीं दी गई, सहाबा
बेकसी के आलम में जब हुजुर अलैहिस्सलाम से फरियाद करते और जालिमों से अपने बचाव के
लिए तलवार उठाने की इजाज़त तलब करते तो आप फरमाते: “सब्र करो मुझे अभी जिहाद का हुक्म नहीं दिया गया “यहाँ तक कि एक दिन वह आया कि हुजुर अलैहिस्सलाम हज़रत अबू
बकर सिद्दीक रज़ीअल्लाहु अन्हु के साथ मदीना हिजरत कर गए, फिर एक के बाद एक आपके सहाबा ने भी हमेशा के लिए अपने वतन
मक्का को अलविदा कह दिया और वह भी मदीने चले गए, इतनी दूर चले जाने के बावजूद भी उन्हें शुरू के दिनों में
सुकून से रहना मयस्सर नहीं आया कुरैश मक्का ने मदीना के यहूदियों से गठजोड़ करके
मदीना की जमीन भी उन पर तंग कर दी।
मदीना
में सहाबा के शुरूआती हालात यह थे कि वह हर वक्त जंग जैसी हालत में रहते, और खुद को चौकन्ना रखते कि ना जाने कब किधर से हमला हो जाए
और रातों को वह जग जग कर पहरे देते और कड़ी निगरानी रखते, यहाँ तक कि कुदरत को उन पर तरस आही गया और सुरह हज की यह
आयत नाज़िल हुई जिसमें फिद्याने इस्लाम को पहली बार कुफ्फार व मुशरेकीने मक्का के
साथ अपने बचाव में जिहाद की इजाज़त दी गई:
اُذِنَ لِلَّذِیْنَ یُقٰتَلُوْنَ بِاَنَّهُمْ
ظُلِمُوْاوَ اِنَّ اللّٰهَ عَلٰى نَصْرِهِمْ لَقَدِیْر. (अल हज/३९)
अनुवाद:
परवानगी अता हुई उन्हें जिनसे काफिर लड़ते हैं इस बिना पर कि उन पर ज़ुल्म हुआ और
बेशक अल्लाह उनकी मदद करने पर ज़रूर कादिर है। (कंज़ुल ईमान)
इस
आयत से पहले दस बीस नहीं बल्कि सत्तर से अधिक आयतें ऐसी नाज़िल हुईं हैं जिनमें
सहाबा को जालिमों से क़िताल करने से रोक दिया गया था, सहाबा खून से लहू लुहान पिटे पिटाए जब भी सरकार अलैहिस्सलाम
से फरियाद करते तो सरकार यही जवाब देते: “اصبروا فانی لم أومر بالقتال” तुम
सब्र करो क्योंकि मुझे क़िताल का हुक्म नहीं दिया गया है जैसा कि तफसीर अबी सऊद में
है: کان المشرکون یؤوذونھم و کانوا یاتونہ ﷺ بین مضروب و مشجوح و یتظلون الیہ فیقولﷺ لھم : اصبروا فانی لم اومر بالقتال حتیٰ ھاجروا فانزلت و ھی اول آیۃ نزلت
فی القتال بعد مانھی عنہ نیف و سبعین آیۃ (तफसीर
अबी सउद, जिल्द:६, पृष्ठ: १०८)
इसके
बाद (सुरह हज की) आयत ४० में अल्लाह पाक ने मुसलमानों की मज़लूमियत को भी आशकार
फरमा दिया कि यह लोग नाहक अपने घरों से निकाले गए उनका अगर कोई जुर्म था तो सिर्फ
यह जुर्म था कि यह लोग अपने रब की रुबुबियत का एतेराफ करते थे और उठते बैठते यह
लोग कहते थे “रब्बुनल्लाह” हमारा रब अल्लाह है और इस आयत में मुत्तसेलन बाद अल्लाह पाक
ने मुसलमानों को जो रक्षात्मक जंग की इजाज़त दी उसकी वजह भी बयान कर दी कि अगर
अल्लाह आदमियों को एक दुसरे से दफा ना फरमाता तो रुए जमीन पर कोई भी ऐसा इबादत
खाना बाकी नहीं बचता जिसमें अल्लाह का बकसरत नाम लिया जाता है। जारी-----
[To be continued]
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मौलाना बदरुद्दूजा रिज़वी मिस्बाही, मदरसा
अरबिया अशरफिया ज़िया-उल-उलूम खैराबाद, ज़िला
मऊनाथ भंजन, उत्तरप्रदेश, के
प्रधानाचार्य, एक सूफी मिजाज आलिम-ए-दिन, बेहतरीन
टीचर, अच्छे लेखक, कवि
और प्रिय वक्ता हैं। उनकी कई किताबें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमे कुछ मशहूर
यह हैं, 1) फजीलत-ए-रमज़ान, 2)
जादूल हरमयन, 3) मुखजीन-ए-तिब, 4)
तौजीहात ए अहसन, 5) मुल्ला हसन की शरह, 6)
तहज़ीब अल फराइद, 7) अताईब अल तहानी फी हल्ले मुख़तसर अल मआनी, 8)
साहिह मुस्लिम हदीस की शरह
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URL for Urdu article: The Verses of Jihad: Meaning, Denotation, Reason of
Revelation And Background- Part 1 آیات جہاد :معنیٰ و مفہوم ، شانِ نزول، پس منظر
URL for English article: The Verses of Jihad: Meaning, Denotation, Reason of
Revelation and Background- Part 1
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