बदरुद्दूजा रज़वी मिस्बाही, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम
भाग-१०
१७ मई २०२१
(14) وَمِنْهُم مَّن يَلْمِزُكَ فِي الصَّدَقَاتِ فَإِنْ أُعْطُوا مِنْهَا رَضُوا وَإِن لَّمْ يُعْطَوْا مِنْهَا إِذَا هُمْ يَسْخَطُونَ (التوبہ ۵۸)
अनुवाद: “और उनमें कोई वह है कि सदके बांटने में तुम पर आलोचना करता है तो अगर उनमें से कुछ तो राज़ी हो जाएं और ना मिले तो जभी वह नाराज़ हैं।“ (कंज़ुल ईमान)
इस आयत के शाने नुज़ूल, अर्थ व मफहूम के बयान करने से पहले आएं एक नजर गजवा ए हुनैन की तारीख पर डाल लेते हैं
हालांकि फ़तहे मक्का से तमाम अरब कबीलों के दिलों में मुसलमानों की धाक बैठ चुकी थी और वह खुद बढ़ बढ़ कर इस्लाम कुबूल कर रहे थे लेकिन अभी भी कुछ सरकश कबीले ऐसे थे जो इस्लाम कुबूल करने पर आमादा नजर नहीं आ रहे थे और वह मुसलमानों से जंग के लिए बेताब थे जिनमें हवाजिन और सकीफ के बड़े विशिष्ट और लड़ाका कबीले थे इस्लाम की लगातार विजय और कब्ज़े व सत्ता से उनका तश्ख्खुस और इम्तियाज़ ख़त्म होता दिखाई दे रहा था इसलिए उन दोनों कबीलों के आदरणीय और प्रिय ने इत्तेफाक राय से यह तय किया कि मुसलमानों से पुरी कुव्वत के साथ जंग की जाए और अब तक मुसलमानों को जिन कबीलों से सामना पड़ा था वह इस मैदान के मर्द ना थे और इसके पहले कि वह खुद हमारी तरफ पेशकदमी करें हमें खुद बढ़ कर उन पर पुरी कुव्वत से हमला कर देना चाहिए इस सहमती पर इत्तेफाक के बाद वह मुकाबले के लिए उठ खड़े हुए जोश व खरोश का आलम यह था कि यह लोग कबीला हवाजिन के सरदार मालिक बिन औफ़ अल नुसरा (उन्होंने बाद में इस्लाम कुबूल कर लिया और शर्फे सहाबियत से मुशर्रफ हुए) के हुक्म से अपने माल व असबाब और बाल बच्चों को भी अपने साथ कर लिया था ताकि जंगजू मैदान में डटे रहें और उनकी पामर्दी को शक्ति पहुंचे। हुजुर सैयदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी उनकी तरफ से गाफिल नहीं थे आपने हजरत अब्दुल्लाह बिन हदर्द असलमी को हवाजिन और सकीफ के इरादों और जंगी तैयारियों और हर मामले के संबंध में सहीह और विस्तृत मालूमात हासिल करने के लिए हुनैन रवाना फरमाया जिसका एक उद्देश्य यह भी था कि अगर मुनासिब तरीके से सुलह व समझौते की कोई सुरत निकल आए तो इससे फायदा उठाया जाए ताकि क़त्ल व किताल की नौबत ना आने पाए। हजरत अब्दुल्लाह बिन हद्रद ने अच्छे तरीके से खुफिया तहकीकाते हाल कर के आप की खिदमत में कबीला हावाजिन और सकीफ की पुर जोश जंगी तैयारियों की ख़बरों की तफसील पेश कर दी सूरते हाल की तहकीक हो जाने के बाद आप मक्का के हरम में बैठ कर हमले का इंतज़ार नहीं कर सकते थे क्योंकि इससे हुदूदे हरम का तकद्दुस पामाल होता इसलिए आपने इससे पहले की वह हमला आवर हों आगे बढ़ कर खुद उन पर हमला करने का मंसूबा बनाया और इसके लिए जोर व शोर से तैयारी शुरू कर दी। अब्दुल्लाह बिन रबिया से तीस हज़ार दिरहम मसारिफ जंग के लिए कर्ज़ लिए सफवान बिन उमय्या (फतह हुनैन के बाद इस्लाम लाए) जिन्होंने कुबुले इस्लाम के लिए मोहलत ले रखी थी उनसे एक जिरहें उधार लीं और दस हज़ार अंसार व मुहाजिरीन सहाबा और एक हज़ार की संख्या में नौमुस्लिम और एक हज़ार की संख्या में गैर मुस्लिम अहले मक्का को भी साथ ले कर आप हुनैन की तरफ रवाना हो गए इस भारी नफरी को देख कर कुछ की जुबान से बेसाख्ता निकल गया कि आज हम पर कौन ग़ालिब आ सकता है? जो रब तबारक व ताला को पसंद नहीं आया। हदीसों में हुनैन की जो रिवायात नक़ल की गई हैं उससे अंदाजा होता है कि दुश्मनों को यह अंदाजा हो चुका था कि इस्लामी फौज किस रास्ते से आ रही हैं इसलिए उन्होंने जंगी दृष्टिकोण से हुनैन के घाटी के इर्द गिर्द इधर उधर सुरक्षित स्थानों पर रहने की जगह बना कर अपने माहिर तीर अंदाज़ जवानों को उनमें बिठा दिया था अभी पुरी तरह उजाला भी नहीं फैला था कि इस्लामी फ़ौज का मुकदमतूल जैश वहाँ पहुँच गया फिर हर दिशा से कबीले हवाजिन और सकीफ के जवानों ने उन पर तीरों की बौछार कर दी। अल्लामा इब्ने हश्शाम लिखते हैं: जब वादी हुनैन सामने आई तो हमने तिहामा की तरफ जाने वाली वादियों में से एक नशीबी ढलान और बड़े घाटी में उतरना शुरू कर दिया हम उतरे जा रहे थे रात की तारीकी अभी ख़त्म नहीं हुई थी कि दुश्मन हम से पहले वादी में आ गए थे उन्होंने हर तंग घाटी, हर दुर्रे और हर खुफिया रास्ते से हम पर हमला कर दिया(इब्ने हिशाम, अल किस्मूस्सानी, पृष्ठ ४४२)
फिर यह हुआ कि पहले बनू सलीम पलटे फिर पुरे लश्कर में अबतरी फ़ैल गई जिसकी समझ में जिधर आया वह जान बचाने के लिए उधर भाग खड़ा हुआ कोई इस पोजीशन में भी नहीं रहा कि सूरते हाल का सहीह अंदाजा कर सके और बदहवासी का आलम यह था कि पीछे मुड़ कर देखने की भी किसी में ताब नहीं रही। कुरआन मुकद्दस ने इसकी मंजर कशी की है:- وَّ یَوْمَ حُنَیْنٍۙ اِذْ اَعْجَبَتْكُمْ كَثْرَتُكُمْ فَلَمْ تُغْنِ عَنْكُمْ شَیْــٴًـا وَّ ضَاقَتْ عَلَیْكُمُ الْاَرْضُ بِمَا رَحُبَتْ ثُمَّ وَلَّیْتُمْ مُّدْبِرِیْنَۚ (२५)
और हुनैन के दिन जब तुम अपनी कसरत पर इतरा गए थे तो वह तुम्हारे कुछ काम ना आई और ज़मीन इतनी वसीअ हो कर तुम पर तंग हो गई फिर तुम पीठ दे कर फिर गए (कंज़ुल ईमान)
लेकिन इस नागहानी अफरा तफरी में भी हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने कुछ फिदाकारों के साथ मैदान में डटे रहे जिनके नाम यह हैं: हज़रत अबू बकर, हज़रत उमर, हज़रत अली, हज़रत अब्बास, हज़रत फुजैल बिन अब्बास, हज़रत कुसुम बिन अब्बास, हज़रत उसामा बिन ज़ैद, हज़रत एमन बिन उबैद, हज़रत मुगैय्यरा बिन हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब, उनके फ़र्ज़न्द हज़रत जाफर व रबिया रज़ीअल्लाहु अन्हुम। मशहूर सहाबी रसूल हजरत अनस बिन मालिक रज़ीअल्लाहु अन्हु की वालिदा हज़रत उम्मे सलीम रज़ीअल्लाहु ताला अन्हा भी साबित कदम असहाब में शामिल थीं उन्होंने अपनी चादर अपनी कमर से कस कर बाँध रखी थी और ऊंट की नकेल खींच कर उसके नथनों में अपने हाथ की उंगलियाँ डाल राखी थीं और खंजर हाथ में लिए हुए थीं कि कोई दुश्मन करीब आए तो इसका पेट चाक कर दें ऐसे मौके पर हुजुर सैयद आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अब्बास को हुक्म दिया कि अंसार व मुहाजेरीन सहाबा को बुलंद आवाज़ से पुकारो। हजरत अब्बास रज़ीअल्लाहु अन्हु ने बुलंद आवाज़ से पुकारना शुरू किया “या मुआशेरुल अंसार” “या मुआशेरुल असहाब अल समरा” ऐ अंसार के गिरोह! ऐ हुदैबिया में जेरे साया दरख्त बैत करने वालों! हज़रत अब्बास रज़ीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: فواللہ لکان عطفتھم حین سمعوا صوتی عطفة البقر علی اولادھا فقالوا یا لبیک یا لبیک" الی آخر الحدیث (مسلم، الجلد الثانی، کتاب الجھاد والسیر، باب غزوۃ حنین، ص 100) वल्लाह यह पुकार सुनते ही वह इस तरह पलटे जैसे कि गाए अपने बच्चों की तरफ पलटती है, वह या लब्बैक, या लब्बैक, की सदा बुलंद करते हुए दौड़ पड़े और दुश्मनों से भिड़ गए, और अंसार को यह कह कर बुलाया ऐ अंसार के गिरोह! ऐ अंसार के गिरोह! फिर बनु हारिस बिन खजरज को पुकार लगाओ और कहा: ऐ बनू हारिस बिन खजरज! फिर हुजुर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस हाल में कि आप खच्चर पर सवार थे उनकी तरफ गर्दन उठा कर देखा, आपने उनकी लड़ाई का मंजर देखा और फरमाया: इस वक्त तन्नुर गर्म है, फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुछ कंकड़ीयान उठाएँ और कुफ्फार के चेहरों की तरफ फेकें और फरमाया कि मोहम्मद के रब की कसम यह हार गए, हजरत अब्बास कहते हैं देख रहा था कि लड़ाई उसी तेज़ी के साथ जारी थी में उसी तरह देख रहा था कि अचानक आपने कंकरियाँ फेकें बखुदा! मैंने देखा कि उनका जोर टूट गया और वह पीठ फेर कर भागने लगे।
फिर नतीजा यह हुआ कि मैदान में केवल उनके माल व असबाब, साजों सामान, औरतें और बच्चे ही रह गए अल्लाह फरमाता है: ثُمَّ اَنْزَلَ اللّٰهُ سَكِیْنَتَهٗ عَلٰى رَسُوْلِهٖ وَ عَلَى الْمُؤْمِنِیْنَ وَ اَنْزَلَ جُنُوْدًا لَّمْ تَرَوْهَا وَ عَذَّبَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْاؕ-وَ ذٰلِكَ جَزَآءُ الْكٰفِرِیْنَ(التوبہ 26)
फिर अल्लाह ने अपनी तस्कीन उतारी अपने रसूल पर और मुसलमानों पर और वह लश्कर उतारे जो तुमने ना देखे और काफिरों को अज़ाब दिया और मुन्किरों की यही सज़ा है। (कन्जुल ईमान)
इस जंग में मुसलमानों के हाथ जो माले गनीमत आया उसकी तफसील यह है। ६ हज़ार औरतें और बच्चे, २४ हज़ार ऊंट, ४० हज़ार भेड़ और बकरियां, ४ हज़ार उकिया चांदी
हुजुर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह सारा माल गनीमत “ जाअराना” भिजवा दिया जहां से बड़े उमरा के लिए एहराम बांधा जाता है।
यहाँ पर असीराने हुनैन की एक कैदी की वारदात से आपका दिल भर आएगा। असीराने हुनैन में हुजुर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रिजाई बहन “शीमा बिन्ते हारिस” भी थीं (रज़ीअल्लाहु अन्हा) जिनके साथ हुजुर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत हलीमा सादिया के यहाँ रिज़ाअत का ज़माना गुज़ारा था जब यह पकड़ी गईं तो उन्होंने आते ही कहा या रसूलुल्लाह! (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मैं आपकी रिजाई बहन “शीमा” हूँ और इसके साबुत में उन्होंने अपनी पीठ खोल कर दिखाई कि बचपन में आपने एक दफा यहाँ दांत से काटा था और वह निशान बाकी था मुहब्बत के जज्बे से आपकी आँखों में आंसू भर आए आपने उनके बैठने के लिए अपनी रिदा ए मुबारक बिछाई मुहब्बत की बातें कीं कुछ ऊंट और बकरियां भी इनायत फरमाएं और इरशाद फरमाया: अगर जी चाहे तो मेरे घर में चल कर रहो और अगर अपने घर जाना चाहो तो वहाँ पहुंचा दिया जाए। हज़रत शीमा जो उस वक्त ईमान से मुशर्रफ नहीं थीं घर खानदान की मुहब्बत में घर जाना चाहा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इज्जत व एहतिराम के साथ उन्हें उनके घर पहुंचवा दिया (सीरतुन्नबी, जिल्द १, पृष्ठ ४९०)
हुनैन की फतह के बाद आप ने ताएफ का घेराव किया यह घेराव २० दिन तक जारी रहा लेकिन कामयाबी नहीं मिली चूंकी इस घेराव से केवल बचाव मकसूद थी इसलिए आपने २० दिन के बाद घेराव उठा लिया और माले गनाएम की तकसीम के लिए “जाअराना” तशरीफ लाए जाअराना में आप को असीराने जंग की रिहाई के लिए वफद हवाज़िन का इंतज़ार था जिसकी एक शाख बनू साद से आपकी रिजाई वालिदा हज़रत हलीमा सदिया भी थीं आपके पहुँचने के बाद वह वफद के रईस ने रिज़ाअत के रिश्ते के हवाले से कहा कि असीर औरतों में आपकी फुफियाँ और खालाएं भी हैं अगर सलातीन अरब में से किसी ने हमारे खानदान का दूध पिया होता तो उससे भी उम्मीदें होतीं और आपसे तो बहुत ज़्यादा उम्मीदें हैं। सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: मुझे केवल अपने खानदान पर इख्तियार है लेकिन आम मुसलमानों से मैं इसके लिए सिफारिश करता हूँ यह सुन कर मुहाजेरीन व अंसार ने अपने अपने हिस्से छोड़ दिए यूँ सारी औरतें और बच्चे रिहा हो गए।
माले गनीमत (जंग से हासिल होने वाला माल) की तकसीम
माले गनीमत की तकसीम में हुजुर सैय्यदे आलाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तालीफे कल्ब की गरज से नौ मुस्लिमों के साथ ना केवल यह की तरजीही सुलूक किया बल्कि निस्बतन उन्हें अधिक माले गनीमत अता फरमाया जिसकी तफसील यह है। अबू सुफियान और उनकी औलाद को ३०० ऊंट, हकीम बिन हजाम को २०० ऊंट, इनके अलावा आठ अफराद को एक एक सौ ऊंट, बहुत से लोगों को पचास पचास ऊंट दिए और फ़ौज में से हर फर्द को फीकस चार ऊंट चालीस बकरियां दीं जिसमें सवारों का हिसा अधिक था।
इस बटवारे पर औरों के साथ साथ अंसार सहाबा को भी एतिराज़ हुआ जैसा कि मुस्लिम जिल्द २ में रिवायत्तें मौजूद हैं लेकिन उनका एतेराज़ आशिकाना और मुहब्बत से लबरेज़ था और उनके एतेराज़ का असल मोहरिक उनके ज़ेहन में इस डर का पैदा हो जाना था कि शायद अब हुजुर अलेहिस्सलातु वस्सलाम हमें मदीने में तन्हा छोड़ कर अपने घर खानदान के साथ दुबारा मक्का में जा बसेंगे जिसका इज़ाला हुजुर अलैहिस्स्लातु वस्सलाम ने अंसारे सहाबा को यह कह कर फरमा दिया: क्या तुम को यह पसंद नहीं कि दुसरे ऊंट और बकरियां ले कर जाएं और तुम मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को ले कर अपने घर जाओ।
लेकिन इस तकसीम पर कुछ मुनाफेकीन ने निहायत सख्त तकलीफ देने वाला और जारेहाना अंदाज़ में आप पर लब कुशाई की जिससे कल्ब मुबारक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सख्त सदमा लाहिक हुआ उस वक्त अल्लाह पाक ने सुरह तौबा की आयत ५८,५९,६० का नुज़ूल फरमाया और उनकी बदनीयती और माले दुनिया की हिर्स को ज़ाहिर करते हुए फरमाया: وَ مِنْهُمْ مَّنْ یَّلْمِزُكَ فِی الصَّدَقٰتِۚ-فَاِنْ اُعْطُوْا مِنْهَا رَضُوْا وَ اِنْ لَّمْ یُعْطَوْا مِنْهَاۤ اِذَا هُمْ یَسْخَطُوْنَ( التوبہ ۵۸)
और उनमें कोई वह है कि सदके बांटने में तुम पर तान करता है तो अगर उनमें से कुछ मिले तो राज़ी हो जाएं और ना मिले तो जभी वह नाराज़ हैं। (कंज़ुल ईमान)
यह आयते मुबारका किस के बारे में नाजिल हुई इसमें मुफ्स्सेरीन के विभिन्न कथन हैं साहबे तफसीर अबी सउद ने इस आयत की तफसीर के तहत तीन कौल पेश किये हैं और पहले कौल को “हुवल अज़हर” फरमाया है।
(१) यह आयत अबुल जवाज़ मुनाफिक के बारे में नाजिल हुई जिसने माले गनीमत की तकसीम के बारे में सहाबा से यह कहा: क्या तुम देखते नहीं कि तुम्हारे साहब तुम्हारे सदकात को बकरियों के चरवाहों में बाँट रहे हैं और गुमान यह करते हैं कि वह इन्साफ से काम ले रहे हैं। (२) यह आयत इब्ने जिल खवेसरा के बारे में नाजिल हुई जिसका असल नाम हरकुस इब्ने ज़हीर तमीमी है जो खवारिज का रईस था उसने हुनैन के माले गनीमत की तकसीम पर यह कहा: فقال ﷺ ویلک ان لم اعدل فمن یعدل؟ ऐ अल्लाह के रसूल इन्साफ से काम लीजिये आपने फरमाया: अगर मैं इन्साफ नहीं करूंगा तो फिर कौन इन्साफ करेगा? (३) इसके कायल मुवल्लफतुल कुलूब थे (तफसीर अबी सउद जिल्द ४ पृष्ठ ७५)
बुखारी शरीफ में पुरी हदीस मौजूद है जिल खवेसरा की इस बात को सुन कर हज़रत उमर ने अर्ज़ किया: اٸذن لی فلأضرب عنقہ، قال: لا إن لہ أصحابا یحقر احدکم صلاتہ مع صلاتھم و صیامھم مع صیامھم یمرقون من الدین کمروق السھم من الرمیة۔ ( بخاری جلد ثانی؛کتاب الادب، باب ما جاء فی قول الرجل ویلک، ص 910 ، مطبع مجلس برکات الجامعة الاشرفیہ مبارک پور)
मुझे इजाज़त दीजिये कि मैं उसकी गर्दन मार दूँ हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: नहीं, उसके कुछ ऐसे साथी होंगे कि उनकी नमाज़ और रोज़े के आगे तुम अपनी नमाज़ और रोज़े को हकीर समझोगे लेकिन वह दीन से इस तरह बाहर हो जाएंगे जैसे तीर शिकार से बाहर निकल जाता है। (पुरी हदीस देखें)
यहाँ पर यह जान लेना जरूरी है कि हुजुर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फतहे हुनैन के मौके पर अधिक माले गनीमत दे कर जिन लोगों की तालीफे कल्ब की वह कुरैश के इज्जतदार लोग थे और अरब के कबीलों में उनका बहुत अच्छा असर था और अभी वह नए नए इस्लाम में दाखिल हुए थे अभी इतना वक्फा नहीं हुआ था कि इस्लाम उनके दिल में रासिख होता इसलिए हुजुर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मसलेहत के पेशेनजर गनीमत की तकसीम में उनके साथ तरजीही सुलूक किया ताकि इस्लाम उनके दिल में अच्छी तरह बैठ जाए और यह हुकूमत के उद्देश्यों में से भी है कभी कभी हुकूमत का मामला ऐसे प्रभावी लोगों से पड़ता है जो पुरी तरह हुकूमत की रईयत और ताबे दार नहीं होते वह ऐसी पोजीशन में होते हैं कि अगर उन्हें ताकत के जोर पर काबू में रखने की कोशिश की गई तो अंदेशा रहता है कि वह कहीं दुश्मन से मिल कर बहुत बड़े खतरे का कारण ना बन जाएं जैसा की सरहदी इलाके में कभी कभी ऐसा मामला सामने आता है ऐसी सूरत में हुकूमत का तर्ज़े अमल उनके साथ हमदर्दाना होता है हुकूमत उनकी पुरी हमदर्दियां हासिल करने के लिए औरों की बनिस्बत उन्हें अधिक रियायतें देती है और कभी कभी उनकी माली सरपरस्ती भी करती है ताकि यह दुश्मन के करीब ना हों और हुकुमत के वफादार बन कर रहें। उन्हें मसलेहत के पेशेनजर हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन नौ मुस्लिम कुरैश के सम्मानितों के साथ तरजीहाना सुलूक किया और उन्हें रियायतें दीं लेकिन मुनाफेकीन को यह सब कुछ बर्दाश्त ना हो सका और उन्होंने अपना निफाक ज़ाहिर कर दिया जिस पर हज़रत उमर फारुक रज़ीअल्लाहु अन्हु ने सरकार अलैहिस्सलातु वस्सलाम से उनकी गर्दन उतारने की इजाज़त चाही जिससे मालुम हुआ कि अगर किसी ने शाने रिसालत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में गुस्ताखी की तो वह काबिले गर्दन ज़दनी मुजरिम है वह इसी लायक है कि उसकी गर्दन सर से उतार दी जाए।
(जारी)
[To be
continued]
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मौलाना बदरुद्दूजा रज़वी मिस्बाही, मदरसा अरबिया अशरफिया ज़िया-उल-उलूम खैराबाद, ज़िला मऊनाथ भंजन, उत्तरप्रदेश, के प्रधानाचार्य, एक सूफी मिजाज आलिम-ए-दिन, बेहतरीन टीचर, अच्छे लेखक, कवि और प्रिय वक्ता हैं। उनकी कई किताबें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमे कुछ मशहूर यह हैं, 1) फजीलत-ए-रमज़ान, 2) जादूल हरमयन, 3) मुखजीन-ए-तिब, 4) तौजीहात ए अहसन, 5) मुल्ला हसन की शरह, 6) तहज़ीब अल फराइद, 7) अताईब अल तहानी फी हल्ले मुख़तसर अल मआनी, 8) साहिह मुस्लिम हदीस की शरह
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