बदरुद्दूजा रज़वी मिस्बाही, न्यू एज इस्लाम
भाग-७
२० अप्रैल २०२१
{8} واقْتُلُوْهُمْ حَیْثُ ثَقِفْتُمُوْهُمْ وَ اَخْرِجُوْهُمْ مِّنْ
حَیْثُ اَخْرَجُوْكُمْ وَ الْفِتْنَةُ اَشَدُّ مِنَ الْقَتْلِۚ وَ لَا
تُقٰتِلُوْهُمْ عِنْدَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ حَتّٰى یُقٰتِلُوْكُمْ
فِیْهِۚ-فَاِنْ قٰتَلُوْكُمْ فَاقْتُلُوْهُمْؕ-كَذٰلِكَ جَزَآءُ الْكٰفِرِیْنَ(البقرہ:
۱۹۱)
“और तुम उन (मुशरिकों) को जहाँ पाओ मार ही डालो और उन लोगों ने जहाँ (मक्का) से
तुम्हें शहर बदर किया है तुम भी उन्हें निकाल बाहर करो और फितना परदाज़ी (शिर्क)
खूँरेज़ी से भी बढ़ के है और जब तक वह लोग (कुफ्फ़ार) मस्ज़िद हराम (काबा) के पास तुम
से न लडे तुम भी उन से उस जगह न लड़ों पस अगर वह तुम से लड़े तो बेखटके तुम भी उन को
क़त्ल करो काफ़िरों की यही सज़ा है।“ (२:१९१)
{9} وَدُّوْا لَوْ تَكْفُرُوْنَ كَمَا كَفَرُوْا فَتَكُوْنُوْنَ سَوَآءً
فَلَا تَتَّخِذُوْا مِنْهُمْ اَوْلِیَآءَ حَتّٰى یُهَاجِرُوْا فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِؕ-فَاِنْ
تَوَلَّوْا فَخُذُوْهُمْ وَ اقْتُلُوْهُمْ حَیْثُ وَجَدْتُّمُوْهُمْ وَ لَا
تَتَّخِذُوْا مِنْهُمْ وَلِیًّا وَّ لَا نَصِیْرًاۙ( النسا:۸٩)
“उन लोगों की ख्वाहिश तो ये है कि जिस तरह वह काफ़िर हो गए तुम भी काफ़िर हो जाओ
ताकि तुम उनके बराबर हो जाओ पस जब तक वह ख़ुदा की राह में हिजरत न करें तो उनमें से
किसी को दोस्त न बनाओ फिर अगर वह उससे भी मुंह मोड़ें तो उन्हें गिरफ्तार करो और
जहॉ पाओ उनको क़त्ल करो और उनमें से किसी को न अपना दोस्त बनाओ न मददगार। (४:८९)
{10} اِنَّ اللّٰهَ اشْتَرٰى مِنَ الْمُؤْمِنِیْنَ اَنْفُسَهُمْ وَ
اَمْوَالَهُمْ بِاَنَّ لَهُمُ الْجَنَّةَؕ یُقَاتِلُوْنَ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ
فَیَقْتُلُوْنَ وَ یُقْتَلُوْنَ،وَعْدًا عَلَیْهِ حَقًّا فِی التَّوْرٰىةِ وَ
الْاِنْجِیْلِ وَ الْقُرْاٰنِؕ،وَ مَنْ اَوْفٰى بِعَهْدِهٖ مِنَ اللّٰهِ
فَاسْتَبْشِرُوْا بِبَیْعِكُمُ الَّذِیْ بَایَعْتُمْ بِهٖؕ،وَ ذٰلِكَ هُوَ
الْفَوْزُ الْعَظِیْمُ(التوبہ:۱۱۱)
“इसमें तो शक़ ही नहीं कि ख़ुदा ने मोमिनीन से उनकी जानें और
उनके माल इस बात पर ख़रीद लिए हैं कि (उनकी क़ीमत) उनके लिए बेहश्त है (इसी वजह से)
ये लोग ख़ुदा की राह में लड़ते हैं तो (कुफ्फ़ार को) मारते हैं और ख़ुद (भी) मारे
जाते हैं (ये) पक्का वायदा है (जिसका पूरा करना) ख़ुदा पर लाज़िम है और ऐसा पक्का
है कि तौरैत और इन्जील और क़ुरान (सब) में (लिखा हुआ है) और अपने एहद का पूरा करने
वाला ख़ुदा से बढ़कर कौन है तुम तो अपनी ख़रीद फरोख्त से जो तुमने ख़ुदा से की है
खुशियाँ मनाओ यही तो बड़ी कामयाबी है।“ (९:१११)
{11} قَاتِلُوْهُمْ
یُعَذِّبْهُمُ اللّٰهُ بِاَیْدِیْكُمْ وَ یُخْزِهِمْ وَ یَنْصُرْكُمْ عَلَیْهِمْ
وَ یَشْفِ صُدُوْرَ قَوْمٍ مُّؤْمِنِیْنَۙ(التوبہ:١٤)
“इनसे (बेख़ौफ (ख़तर) लड़ो ख़ुदा तुम्हारे हाथों उनकी सज़ा करेगा
और उन्हें रूसवा करेगा और तुम्हें उन पर फतेह अता करेगा और ईमानदार लोगों के कलेजे
ठंडे करेगा।“
(९:१४)
इन चार आयतों पर भी हिंसा और नफरत को भड़काने का आरोप है। अल
इयाज़ बिल्लाह। चूँकि इन चारों आयतों में कदरे मुश्तरक किताल है इसलिए हम ने
संक्षेप के लिए इन सारी आयतों को इस क़िस्त के अंतर्वस्तुमें जमा कर दिया है। इन
आयतों के खद्दो खाल, माला वमा अलैह पर रौशनी डालने से पहले हम बिरादराने वतन और
फर्ज़न्दाने इस्लाम पर यह स्पष्ट कर दें कि जब आप इन आयतों के मानी व मफहूम,
शाने नुज़ूल, स्याक व सबाक पर अस्बियत से परे हट कर दयानत दारी के
साथ नजर डालेंगे तो आप पर अच्छी तरह स्पष्ट हो जाएगा कि यह आयतें या तो दुश्मन के
खिलाफ बचाव या नक्ज़ मुआहेदा की वजह से कुफ्फार व मुशरेकीन के सबक सिखाने के मफहूम
पर आधारित हैं उनमें से किसी भी आयत में अहले ईमान को बिलावजह अपने मद्दे मुक़ाबिल
और दुश्मन के खिलाफ आक्रामक कार्यवाही, क़त्ल व गारत गरी और नाजायज इकदाम की इजाज़त
नहीं दी गई है।
कुरआन पाक में बहुत सारी आयतें ऐसी हैं जिनका अपने माकबल व
माबाद (अपने पहले और बाद के) प्रसंग के साथ इतना गहरा रब्त व ज़ब्त है कि जब तक
उनको पेश नहीं रख लिया जाता उनका मफहूम समझना अत्यंत कठिन है बल्कि बहुत सी आयतें
ऐसी हैं कि अगर उनके माकबल और माबाद को उनके साथ नहीं जोड़ लिया जाता तो अक्स
मत्लुबे लाजिम आएगा। तकरीब फहम के लिए मैं इसकी एक स्पष्ट मिसाल पेश करता हूँ:
यह कौन नहीं जानता कि हर आकिल व बालिग़ मुसलमान पर नमाज़ फर्ज़
है? कुरआन व हदीस में इसका ताकीद के साथ हुक्म दिया गया है जैसे:
وَ اَقِیمُوا الصَّلٰوۃَ(البقرہ: 43)
اَقِمِ الصَّلٰوۃَ(بنی اسرائیل :78)
حٰفِظُوا عَلَی الصَّلَوٰتِ(البقرہ: 238)
इसी
तरह हदीसों में भी इसकी फजीलत व इफादियत पर रौशनी डाली गई है यहाँ तक कि इसे शराए
दीन में से करार दिया गया है। अब अगर वसीम रिज़वी जैसे लोग कुरआन के खिलाफ एलाने
जंग करते हुए यह कहें कि यह गलत है अल्लाह का मैसेज दो तरह का नहीं हो सकता है
इसलिए कुरआन से इन आयतों को डिलीट कर दिया जाए क्योंकि कुरआन में साफ़ शब्दों में
आया है: ییاَیُّھَاالَّذِیۡنَاٰمَنُوۡالَاتَقۡرَبُواالصَّلٰوۃَ (النساء 43) ऐ ईमान
वालों नमाज़ के करीब ना जाओतो बिरादराने वतन या हमारे देश की अदालते आलिया(सुप्रीम
कोर्ट) वसीम रिज़वी की शातिराना चाल को नहीं समझेगी? और आँख बंद कर के उसकी बात का
यकीन कर लेगी? और यह फैसला सूना देगी कि मुसलमान अब आज से नमाज़ के करीब ना जाएं और
वसीम रिज़वी के कतर बेवंत (कांटछांट) का पर्दा यह कह कर चाक नहीं करेगी कि वसीम
रिज़वी दुनिया की आँखों में धुल झोंक रहा है उसने “ला तक्रबुस्सलात” के बाद “व अन्तुम सुकारा” को छोड़ दिया है और पुरी
आयत यह है: یٰۤاَیُّهَاالَّذِیْنَاٰمَنُوْالَاتَقْرَبُواالصَّلٰوةَوَاَنْتُمْسُكٰرٰىحَتّٰىتَعْلَمُوْامَاتَقُوْلُوْنَ (النساء: 43)
ऐ
ईमान वालों नशे की हालत में नमाज़ के पास ना जाओ जब तक इतना होश ना हो कि जो कहो
उसे समझो (कन्जुल ईमान)
कुरआन
फहमी कोई आसान काम नहीं है इसके लिए तौफीके इलाही दरकार है।
मेरी
इन बातों से आप यक़ीनन समझ गए होंगे कि यहाँ पर दयानत दारी को बालाए ताक रख कर बड़ी
चाबुक दस्ती से काम लेते हुए अपने मतलब का मज़मून अख्ज़ कर लिया गया है और जहां पर
आयत के प्रसंग को पेश करना बेहद जरूरी था वहाँ पर कमाल होशियारी का मुजाहेरा करते
हुए कता व बुरीद (कांट छांट) से काम लिया गया है जो दयानतदारी के तकाज़े के सख्त
खिलाफ है। इतनी वजाहत के बाद हम प्रसंग के साथ इन आयतों का सहीह माना व मफहूम
प्रमाणिक तफसीरों की रौशनी में आपके रूबरू करते हैं ताकि बिरादराने वतन के ज़हन में
इन आयतों के ताल्लुक से अगर कोई खिल्जान पैदा हो रहा है तो बा आसानी दूर हो जाए।
इस
क़िस्त में शामिल सुरह बकरा की आयत (१९१) जो इस सातवीं क़िस्त में सबसे पहले नम्बर
पर है वह माकबल की आयत:१९० से जुड़ी है इसे जब तक मुतमहे नज़र नहीं रखा जाएगा इस आयत
का मफहूम सहीह तरह नहीं समझा जा सकता है; इसलिए आयत १९१ का मफहूम समझाने के लिए हम
आपके सामने आयत: १९० और उसका मानी व मफहूम, शाने नुज़ूल रखते हैं।
आयते
मुबारका: वक्तुलुहुम हैसु सकिफ्तुमुहुम (१९१) से मुत्तसिल पहले कुरआन पाक की यह
आयते मुबारका है: وَ قَاتِلُوۡا فِیۡ
سَبِیۡلِ اللّٰہِ الَّذِیۡنَ یُقَاتِلُوۡنَکُمۡ وَ لَا تَعۡتَدُوۡا ؕ اِنَّ
اللّٰہَ لَا یُحِبُّ الۡمُعۡتَدِیۡنَ
﴿البقرۃ:۱۹۰﴾
और
अल्लाह की राह में लड़ो उनसे जो तुम से लड़ते हैं और हद से ना बढ़ो अल्लाह पसंद नहीं
रखता है हद से बढ़ने वालों को (कन्जुल ईमान)
अब
आप इसके बाद आयत: १९१ को इसके साथ जोड़ कर पढ़ें तो वसीम रिज़वी जो खिल्जान पैदा कर
रहा है वह खुद बखुद दूर हो जाएगा और आप पर यह स्पष्ट हो जाएगा कि इस आयत में
दुश्मन के खिलाफ आक्रामकता का आदेश नहीं दिया गया है बल्कि दुश्मन की आक्रामकता के
खिलाफ अहले ईमान को अपने बचाव का आदेश दिया गया है जैसा कि इस आयत में साफ़ साफ़ कहा
गया है कि तुम अल्लाह की राह में उनसे लड़ो जो तुमसे लड़ते हैं और इसी के साथ इस पर
तम्बीह की जा रही है कि तुम हद से आगे ना बढ़ो अर्थात तुम जंग में पहल करके या किसी
मुआहिद को क़त्ल करके या अचानक हमला करके और हमला करने की सूरत में मकतुल का मुसला
(शरीर के अंग को काट कर अलग कर देना) करके और लड़ाई में इस्लाम ने जिन के क़त्ल से
बाज़ रहने का हुक्म दिया है जैसे औरतें, बूढ़े, राहिब (दुनिया को छोड़ देने वाला) आदि को कत्ल करके तुम
इंसानी हुकुक की खिलाफवर्जी ना करो और फिर मजीद तम्बीह करते हुए फरमाया गया कि
मुसलमानों! तुम यह बात ज़ेहन में बैठा लो कि अल्लाह हद से आगे बढ़ने वालों को पसंद
नहीं करता है। जैसा कि तफसीर अबी सउदमें “و
قاتلوا فی سبیل اللہ الذین یقاتلونکم” की तफसीर में है:
"معناہ الذین یناصبونکم القتال و یتوقع منھم
ذلک دون غیرھم من المشائخ والصبیان و الرھبانۃ والنساء"
अर्थात
तुम अल्लाह की राह में उनसे लड़ो जो तुम से लड़ाई करते हैं उनसे लड़ाई ना करो जो
तुमसे लड़ाई नहीं करते हैं जैसे फुलां फुलां,
और
“वला तातदु” की तफसीर में है: ولا تعتدوا بابتداء القتال او بقتال المعاھد
والمفاجاۃ من غیر دعوۃ او بالمثلۃ و قتل من نھیتم عن قتلہ من النساء والصبیان و من
یجری مجراھم۔(تفسیر ابی سعود ج 1 ص 204)
और
मदारक में भी इसकी यही तफसीर की गई है। अब इसके बाद अल्लाह फरमाता है कि अगर
तुम्हारे हरीफ तुमसे जंग में पहल करते हैं, मुआहेदा के बाद जो अहद शिकनी करते हैं
और तुमसे बरसरे पैकार होना चाहते हैं और किये हुए अहद को बालाए ताक रख कर तुम से
जंग पर आमादा हैं तो तुम अपने बचाव में “واقتلوھم
حیث ثقفتموھم” जहां पाओ उन्हें मारो और जैसे उन्होंने तुम्हें
तुम्हारे घरों (मक्का मुकर्रमा) से
निकाल दिया था तुम भी उन्हें उनके घरों से दर बदर कर दो, इसके
अलावा। इससे यह ज़ाहिर हो गया कि इस आयत में मुसलमानों को आक्रामकता और मानवाधिकार
की अवहेलना करने वालों के खिलाफ जम कर मुकाबला करने और अपने बचाव का आदेश दिया गया
है जो हक़ आजकी दुनिया में भी हर किसी को हासिल है और सारी दुनिया की हुकूमतें इसी
की दाई और इसी पर अमल पैरा हैं और हम आप को यह भी बता दें कि सुरह बकरा की आयत १९०,१९१ का नुज़ूल इस मुआहेदे के बाद हुआ जो ६ हिजरी में हुजुर
अलैहिस्सलातु वस्सलाम और कुफ्फार व मुशरेकीन मक्का के बीच हुदैबिया के मुकाम पर
हुआ जिसे आज कल “शमीसी” कहा जाता है जो मक्का मुकर्रमा से २२ या २३ किलोमीटर के
फासले पर स्थित है यह मुआहेदा इतिहास में सुलह हुदैबिया के नाम से मशहूर है
मुआहेदे पर अमल करते हुए मुसलमान हुदैबिया (शमीसी) से बिना उमरा अदा किये मदीने
लौट गए और मुआहेदा के मुताबिक़ जब उन्हें आइन्दा साल उमरा के लिए मक्का आना हुआ तो
उन्हें अंदेशा हुआ कि मुशरेकीन मक्का इस मुआहेदे पर अमल नहीं करेंगे और मुसलमानों
से शहरे हराम में जंग करेंगे जो उन्हें नागवार था तो उस वक्त यह आयत नाजिल हुई और
अल्लाह ने उन्हें यह इजाज़त दी कि अगर कुफ्फार व मुशरेकीने मक्का मुआहेदे की
पासदारी नहीं करते हैं और तुमसे जंग में पहल करते हैं तो तुम जहां पाओ चाहे हल हो
या हरम वहाँ उनसे जंग करो और जैसे उन्होंने तुम्हें तुम्हारे वतन मकान से निकाल
दिया था तुम भी ग़ालिब आने के बाद वहाँ से उन्हें निकाल दो अलबत्ता तुम इतना जरुर
ख्याल रखना कि मस्जिद हराम (हराम) में उनसे उस वक्त तक जंग ना करना जब तक कि वह
तुमसे वहाँ जंग ना करें।
(आयत
नम्बर १९१ में अल्लाह पाक ने दरपर्दा मुसलमानों को फतह मक्का की बशारत दी है)
इतनी
वजाहत के बाद अब आपके ज़हन में यह बात आ गई होगी कि इस आयत में मुसलमानों को हरगिज़
हरगिज़ यह हुक्म नहीं दिया गया है कि बिरादराने वतन को बिलावजह जहां पाएं मार दें
और उन्हें उनके घरों और देश से दरबदर कर दें जैसा कि वसीम रिज़वी या इस्लाम और
मुस्लिम दुश्मन तत्व इस आयत का यही मफहूम बयान कर के देश में आग लगाने के दर पे
हैं।
(9)
وَدُّوۡا لَوۡ تَکۡفُرُوۡنَ کَمَا
کَفَرُوۡا الی آخر الآیۃ (النساء: 89)
सुरह
निसा की इस आयत का संबंध भी इससे पहले की आयत ८८ से है जो यह है: فَمَالَكُمْفِیالْمُنٰفِقِیْنَفِئَتَیْنِوَاللّٰهُاَرْكَسَهُمْبِمَاكَسَبُوْاؕ،اَتُرِیْدُوْنَاَنْتَهْدُوْامَنْاَضَلَّاللّٰهُؕ،وَمَنْیُّضْلِلِاللّٰهُفَلَنْتَجِدَلَهٗسَبِیْلًا(النساء:۸۸)
“(मुसलमानों) फिर तुमको
क्या हो गया है कि तुम मुनाफ़िक़ों के बारे में दो फ़रीक़ हो गए हो (एक मुवाफ़िक़ एक
मुख़ालिफ़) हालॉकि ख़ुद ख़ुदा ने उनके करतूतों की बदौलत उनकी अक्लों को उलट पुलट दिया
है क्या तुम ये चाहते हो कि जिसको ख़ुदा ने गुमराही में छोड़ दिया है तुम उसे राहे रास्त
पर ले आओ हालॉकि ख़ुदा ने जिसको गुमराही में छोड़ दिया है उसके लिए तुममें से कोई
शख्स रास्ता निकाल ही नहीं सकता।“
इसका
शाने नुज़ूल यह है कि मुनाफेकीन की एक जमात हुजुर अलैहिस्सलातु वस्सलाम की इजाज़त से
जिहाद के लिए निकली और अभी कुछ ही दूर गई थी कि गद्दारी करते हुए मुशरेकीन से जा
मिली उनके बारे में मुसलमानों के बीच मतभेद हो गया कुछ लोगों ने कहा कि यह काफिर
हैं और कुछ ने कहा मुसलमान है उस वक्त सुरह निसा की आयत ८८ का नुज़ूल हुआ जिसमें
मुसलमान को मूतनब्बे किया गया कि उनके बारे में मतभेद ना करें उनके इर्तेदाद और कुफ्फार
व मुशरेकीन के साथ जा मिलने के सबब अल्लाह ने उन्हें औंधा कर दिया है जैसा कि
मदारक में है:
ان ذلک قوما من المنافقین استاذنوا رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم فی الخروج
الی البدو معتلین باجتواء المدینۃ فلما خرجوا لم یزالوا راحلین مرحلۃ مرحلۃ حتی
لحقوا بالمشرکین فاختلف المسلمون فیھم فقال بعضھم: ھم کفار، و قال بعضھم: ھم
مسلمون
(مدارک الجزء الاول ص 241 مطبع اصح المطابع
ممبئی)
इसके
बाद ही सुरह निसा की आयत नम्बर ८९ में उन्हें मुनाफेकीन के बारे में अल्लाह पाक
फरमाता है कि जो मुनाफेकीन ईमान छोड़ कर कुफ्र व इर्तेदाद की तरफ पलट गए हैं उनकी
ख्वाहिश है जैसे वह इस्लाम से फिर गए हैं मुसलमान भी इस्लाम से फिर जाएं फिर वह और
मुसलमान कुफ्र में बराबर हो जाएं। उनके निफाक और गद्दारी की वजह से ही अल्लाह ने
मुसलमानों को इस आयत में यह हुक्म दिया कि वह उनमें से किसी को उस वक्त तक अपना
दोस्त ना बनाएं जब तक कि वह अल्लाह की राह में हिजरत ना करें और अपने ईमान कासबुत
ना दे दें कि उनका ईमान अल्लाह व रसूल की रज़ा के लिए है किसी दुनयावी फायदे के लिए
नहीं है फिर अगर वह हिजरत करने से मुंह फेरें और कुफ्र पर कायम रहने को इख्तियार
करें तो ऐ मुसलमानों! तुम उन्हें पकड़ो और जहां पाओ कत्ल करो और अगर वह तुम्हारी
दोस्ती का दावा करें और दुश्मनों के खिलाफ तुम्हारी मदद के लिए तैयार हों तो उनकी
मदद कुबूल ना करो क्योंकि यह भी तुम्हारे दुश्मन हैं।
(रुहुल
ब्यान, अल निसा’तहतुल आयह: २८९ / २५६, खाज़िन, अल निसा, तहतुल आयह: १८९ /४११, मुतलकन)
इस
आयत में पीठ पर खंजर घोंपने वाले मुनाफेकीन से मुसलमानों को जो किताल का हुक्म
दिया गया है आज सारी दुनिया उसी पर अमल पैरा है आज भी कौम और मुल्क से गद्दारी
करने वालों की यही सज़ा है कि उन्हें तख्ता ए दार पर चढ़ा दिया जाए
(१०) सुरह
तौबा की आयत:१११ में अल्लाह पाक ने निहायत नफीस पैराया बयान में
मुसलमानों को जिहाद की तरगीब दी है और इसे इस अंदाज़ से बयान किया है कि मुसलमानों
की जान व माल को मुबीअ (फरोख्त की जाने वाली चीज) और
जन्नत को समन (कीमत) से ताबीर किया है और कमाल लुत्फ़
व करम का मुजाहेरा करते हुए मुसलमानों को बाए और अपने आप को खरीदार बनाया है ऐसी
चीज का खरीदार बनाया है जो खुद उसकी अता और पैदा करदा है और इस सौदे पर मुसलमानों
से फरमाता है कि तुम ख़ुशी पर ख़ुशी मनाओ क्यों कि तुम ने फानी चीज को बाकी चीज के
बदले में फरोख्त किया है। और इस आयत में "وعدا علیہ حقا فی التوراۃ والانجیل والقرآن" इस पर दलालत करता है कि एअलाए कलिमतुल हक़ के लिए जिहाद केवल
इसी शरीअत में नहीं है बल्कि इससे पहले की शरीअतों में भी था
(11)
قاتلوھم یعذبھم اللہ الی آخر الآیۃ"
सुरह
तौबा की इस आयत में अल्लाह पाक ने अहद व पैमान की पामाली करने वाले कुफ्फार व
मुशरेकीने अरब के साथ मुसलमानों को किताल करने का हुक्म दिया है जैसा कि इससे पहले
की आयत नम्बर: १३ इस पर दलील है:اَلَا تُقَاتِلُوْنَ قَوْمًا نَّكَثُوْۤا اَیْمَانَهُمْ وَ هَمُّوْا
بِاِخْرَاجِ الرَّسُوْلِ وَ هُمْ بَدَءُوْكُمْ اَوَّلَ مَرَّةٍؕ-اَتَخْشَوْنَهُمْۚ
فَاللّٰهُ اَحَقُّ اَنْ تَخْشَوْهُ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِیْنَ(التوبہ:۱۳)
क्या
उस कौम से ना लड़ोगे जिन्होंने अपनी कसमें तोड़ीं और रसूल के निकालने का इरादा किया
हालांकि उन्हीं की तरफ से पहल हुई है क्या उनसे डरते हो तो अल्लाह इसका ज़्यादा
हकदार है कि उससे डरो अगर ईमान रखते हो (कन्जुल ईमान)
मा
कबल में बार बार इसकी वजाहत की गई है कि सुरह तौबा की ज्यादातर आयतों में
मुसलमानों को जिन कुफ्फार व मुशरेकीन से किताल का हुक्म दिया गया है वह आम कुफ्फार
व मुशरेकीन नहीं हैं बल्कि इससे वह कुफ्फार व मुशरेकीने अरब और यहूद मुराद हैं
जिन्होंने मुआहेदा ए अमन की खिलाफ वर्जी की।
[To be continued]
.......................
मौलाना बदरुद्दूजा रज़वी मिस्बाही, मदरसा अरबिया अशरफिया ज़िया-उल-उलूम खैराबाद, ज़िला मऊनाथ भंजन, उत्तरप्रदेश, के प्रधानाचार्य, एक सूफी मिजाज आलिम-ए-दिन, बेहतरीन टीचर, अच्छे लेखक, कवि और प्रिय वक्ता हैं। उनकी कई किताबें अब तक प्रकाशित हो
चुकी हैं जिनमे कुछ मशहूर यह हैं, 1) फजीलत-ए-रमज़ान, 2) जादूल हरमयन, 3) मुखजीन-ए-तिब, 4) तौजीहात ए अहसन, 5) मुल्ला हसन की शरह, 6) तहज़ीब अल फराइद, 7) अताईब अल तहानी फी हल्ले मुख़तसर अल मआनी, 8) साहिह मुस्लिम हदीस की शरह
......................
Other Parts of the Articles:
The
Verses of Jihad: Meaning and Context - Part 3 آیات جہاد :معنیٰ و مفہوم ، شانِ نزول، پس منظر
URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/the-verses-jihad-quran-meaning-part-7/d/124760
New Age Islam, Islam Online, Islamic Website, African Muslim News, Arab World News, South Asia News, Indian Muslim News, World Muslim News, Women in Islam, Islamic Feminism, Arab Women, Women In Arab, Islamophobia in America, Muslim Women in West, Islam Women and Feminism