कमाल मुस्तफा अजहरी, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
१० मई ३०२१
(अल्लाह के नाम से शुरू जो निहायत मेहरबान, रहम वाला है)
संदेह नंबर ६: क्या हजरत उस्मान गनी रज़ी अल्लाहु अन्हु ने कुरआन जमा करने के समय कुछ सूरतें हज्फ़ कर दीं थीं?!!!
कुछ शक करने वाले यह शक पैदा करते हैं (ख़ास तौर पर वसीम राफजी इस पर बहुत जोर दे रहा है) कि हज़रत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु ने कुरआन पाक से कुछ उन सूरतों को हज्फ़ कर दिया जो हज़रत अली और हज़रत उबई रज़ीअल्लाहु अन्हुमा के सहिफे में थीं और जब कुरआन से हज्फ़ किया जा सकता है तो दाखिल भी किया जा सकता है, इसलिए जिहाद की आयतें इसी ज्यादती का नतीजा हैं इसी वजह से जो कुरआन पाक आज हमारे सामने है इस पर कैसे विश्वास किया जा सकता है?
और इस शक की आड़ में अल्लाह पाक के कुरआन और इसके हिफाजत के वादे में शक डालने की नापाक कोशिश करते हैं।
आइए इस फासिद शक का ऐसा दन्दान शिकन जवाब दें कि फिर बातिल बिना दांतों के मुंह खोलने में शर्म महसूस करें।
इस तश्कीक मुशक्कक का कुछ कारणों से इब्ताल किया जाता है।
अल्लाह पाक ने अपनी किताब की हिफाज़त का वादा फरमाया है जिसकी हिफाज़त व किताबत सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पाक ज़माने में की गई और हज़रत अबू बकर सिद्दीक रज़ीअल्लाहु अन्हु के ज़माने खिलाफत में जमा किया गया और हज़रत उस्मान गनी रज़ीअल्लाहु अन्हु के ज़माने में बिना किसी तहरीफ़ व नुक्सान के एक किया गया।
जमा क्यों और कैसे किया गया?
सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तो अल्लाह पाक ने निस्यान (भूलने) से पाक फरमाया है { سَنُقرِئُكَ فَلَا تَنسَىٰۤ ، إِلَّا مَا شَاۤءَ ٱللَّهُۚ إِنَّهُۥ یَعلَمُ ٱلجَهرَ وَمَا یَخفَىٰ } अनुवाद: अब हम तुम्हें पढाएंगे कि तुम ना भूलो गे मगर जो अल्लाह बेशक वह जानता है हर खुले और छिपे को”।
मगर आपके अलावा सहाबा कराम और उनके बाद के ज़माने में भूलने का इमकान था।
और खुद कुरआन पाक ने भी लिखने का इशारा दिया है क्योंकि कुरआन मजीद के नामों में से एक नाम “अलकिताब” है जो अल किताबत से लिया गया है जिसका तकाजा है कि यह मकतूब हो।
इसलिए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा की एक जमात को इस अजीम काम के लिए नियुक्त फरमाया जो लिखना जानते थे ताकि जो कुरआन पाक आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाजिल हुआ उसको लिख कर महफूज़ करें।
और किताबते कुरआन में हद दर्जा एहतियात रखी गई ताकि कुरआन व हदीस का इख्तिलात ना हो सके इसलिए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी हदीस लिखने से मना फरमा दिया था: " لا تكتبوا عني و مَن كتب غير القرآن فليمحه " [सहीह मुस्लिम: ७७०२] अर्थात “मेरी हदीसें ना लिखो और जिसने कुरआन के अलावा लिखा हुआ से मिटा दे” (लेकिन बाद में जब यह इख्तिलात ना रहा कि इसको सुदूरे किताबत में महफूज़ कर लिया तो साधारणतः किताबते अहादीस का आगाज़ हो और किताबते अहादीस के इज्ने आम ना होने की वजह भी यही थी कि कहीं गैर कुरआन कुरआन में दाखिल ना हो जाए)।
फिर हजरत अबुबकर सिद्दीक रज़ीअल्लाहु अन्हु का दौरे खिलाफत आया जब हुफ्फाज़ सहाबा दुनिया से तशरीफ ले जाने लगे तो कुरआन पाक महफूज़ करने की फ़िक्र बढ़ने लगी जिसका अंदाजा हज़रत उमर फारूक रज़ीअल्लाहु अन्हु के कलाम से लगाया जा सकता है, बुखारी शरीफ में हजरत ज़ैद बिन साबित रज़ीअल्लाहु अन्हु से हदीस मरवी है: आप (हज़रत उमर रज़ीअल्लाहु अन्हु) ने हजरत सीद्दिक अकबर रज़ीअल्लाहु अन्हु से गुजारिश की: وَإِنِّي أَخْشَى أَنْ يَسْتَحِرَّ الْقَتْلُ بِالْقُرَّاءِ فِي الْمَوَاطِنِ ؛ فَيَذْهَبَ كَثِيرٌ مِنَ الْقُرْآنِ إِلَّا أَنْ تَجْمَعُوهُ، وَإِنِّي لَأَرَى أَنْ تَجْمَعَ الْقُرْآنَ.
अनुवाद: जितनी तेज़ी से कुर्रा ए इजाम शहीद हो रहे हैं मुझे कसीर कुरआन के जाने का डर है मगर यह कि इस को जमा करा दें और मेरी राय यह है कि आप कुरआन अजीम को जमा फरमा दें”
हज़रत सिद्दीके अकबर रज़ीअल्लाहु अन्हु ने फरमाया: كَيْفَ أَفْعَلُ شَيْئًا لَمْ يَفْعَلْهُ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ؟ فَقَالَ عُمَرُ : هُوَ وَاللَّهِ، خَيْرٌ. अनुवाद: “मैं वह कोई भी काम कैसे करूँ जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नहीं किया हज़रत उमर फारुक रज़ीअल्लाहु अन्हु कहते हैं: अल्लाह की कसम वह अच्छा काम है।
فَلَمْ يَزَلْ عُمَرُ يُرَاجِعُنِي فِيهِ حَتَّى شَرَحَ اللَّهُ لِذَلِكَ صَدْرِي، وَرَأَيْتُ الَّذِي رَأَى عُمَرُ. قَالَ زَيْدُ بْنُ ثَابِتٍ : وَعُمَرُ عِنْدَهُ جَالِسٌ لَا يَتَكَلَّمُ.
अनुवाद: हजरत उमर रज़ीअल्लाहु अन्हु ने अभी अपनी बात दोहराई नहीं कि अल्लाह पाक ने इस मामले में मेरे सीने को कुशादा फरमा दिया तो मुझे भी वही सहीह लगा जो उमर को लगा। हजरत ज़ैद बिन साबित रज़ीअल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि हज़रत उमर रज़ीअल्लाहु अन्हु खामोश बैठे हुए थे।
فَقَالَ أَبُو بَكْرٍ : إِنَّكَ رَجُلٌ شَابٌّ عَاقِلٌ، وَلَا نَتَّهِمُكَ، كُنْتَ تَكْتُبُ الْوَحْيَ لِرَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَتَتَبَّعِ الْقُرْآنَ فَاجْمَعْهُ. فَوَاللَّهِ لَوْ كَلَّفَنِي نَقْلَ جَبَلٍ مِنَ الْجِبَالِ مَا كَانَ أَثْقَلَ عَلَيَّ مِمَّا أَمَرَنِي بِهِ مِنْ جَمْعِ الْقُرْآنِ
अनुवाद: हजरत अबूबकर सिद्दीक रज़ीअल्लाहु अन्हु ने फरमाया तुम ज़ी होश नौजवान हो और हमें तुम में शक नहीं तुम हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कातिबे वही थे। कुरआन पाक में गौर व खौज़ करो और इसे महफूज़ करो। कहते हैं अल्लाह की कसम! कुरआन के जमा करने का हुक्म देने के बजाए अगर वह मुझे पहाड़ों में से कोई पहाड़ नकल करने का मुकल्लफ़ बनाते वह मुझ पर इतना दुश्वार ना होता।
قُلْتُ : كَيْفَ تَفْعَلَانِ شَيْئًا لَمْ يَفْعَلْهُ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ؟ فَقَالَ أَبُو بَكْرٍ : هُوَ وَاللَّهِ خَيْرٌ.
अनुवाद: मैंने अर्ज़ किया आप हजरात वह काम कैसे करेंगे जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नहीं किया?
فَلَمْ أَزَلْ أُرَاجِعُهُ حَتَّى شَرَحَ اللَّهُ صَدْرِي لِلَّذِي شَرَحَ اللَّهُ لَهُ صَدْرَ أَبِي بَكْرٍ وَعُمَرَ،
अनुवाद: मैंने अभी अपनी बात दुहराई नहीं थी कि जिसके लिए अल्लाह पाक ने हज़रत अबुबकर व उमर रज़ीअल्लाहु अन्हुमा के सीनों को कुशादा फरमाया इसी तरह मेरा सीना भी खोल दिया।
فَقُمْتُ، فَتَتَبَّعْتُ الْقُرْآنَ أَجْمَعُهُ مِنَ الرِّقَاعِ، وَالْأَكْتَافِ، وَالْعُسُبِ ، وَصُدُورِ الرِّجَالِ حَتَّى وَجَدْتُ مِنْ سُورَةِ التَّوْبَةِ آيَتَيْنِ مَعَ خُزَيْمَةَ الْأَنْصَارِيِّ لَمْ أَجِدْهُمَا مَعَ أَحَدٍ غَيْرِهِ : { لَقَدْ جَاءَكُمْ رَسُولٌ مِنْ أَنْفُسِكُمْ عَزِيزٌ عَلَيْهِ مَا عَنِتُّمْ حَرِيصٌ عَلَيْكُمْ }. إِلَى آخِرِهِمَا،
अनुवाद: तो मैं तैयार हो गया और कुरआन को वर्कों, खालों, पाक हड्डियों और लोगों के सीनों से जमा किया यहाँ तक कि सुरह तौबा की दो आयतें मुझे खजीमा अंसारी के पास मिलीं और उनके अलावा किसी के पास (लिखी हुई) नहीं मिल पाई थीं।
وَكَانَتِ الصُّحُفُ الَّتِي جُمِعَ فِيهَا الْقُرْآنُ عِنْدَ أَبِي بَكْرٍ حَتَّى تَوَفَّاهُ اللَّهُ، ثُمَّ عِنْدَ عُمَرَ حَتَّى تَوَفَّاهُ اللَّهُ، ثُمَّ عِنْدَ حَفْصَةَ بِنْتِ عُمَرَ.
अनुवाद: और जिन सहिफों में कुरआन पाक जमा किया गया वह हज़रत अबू बकर रज़ीअल्लाहु अन्हु के पास रहे जब तक आप बजाहिर हयात रहे और फिर हज़रत उमर रज़ीअल्लाहु अन्हु के पास उनके विसाल तक रहे और फिर हज़रत हफ्सा रज़ीअल्लाहु अन्हा के पास रहे। [बुखारी शरीफ: ४६७९]
इंशाअल्लाह हम अगले क़िस्त में गंभीर दलीलों के साथ इसका खंडन करेंगे।
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