डॉक्टर ज़ीशान अहमद मिस्बाही, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
क़िस्त-3
19 जनवरी 2023
अब तक की बात चीत से स्पष्ट हो गया कि अइम्मा सलासा हनफिया (हनफी फिकह के तीन बड़े इमाम) के यहाँ गिना का जवाज़ साबित है। मजकुरा शवाहिद के सिवा मज़ीद कुछ शवाहिद मुलाहेज़ा कीजिये:
1- तज़किरा हम्द व सना में फिकह पर गुफ्तगू करते समय इमाम अबू हनीफा के गुनगुनाने का ज़िक्र है।
2- अल्लामा इब्ने जौज़ी ने “बहरुद दुमुअ” में, अब्दुल वाहिद मराकशी ने “अल मोअजब फि तल्खीसे अख्बारील मगरिब” में, इत्लिदी ने “नवादेरुल खुलफा” में, अब्दुर्रहमान मक्द्सी ने “अल तारीख अल मोअतबर में, हुसैन सीमरी ने “अखबारे अबी हनीफा व असहाबिही” में, खतीब बगदादी ने “तारीख ए बग़दाद” में, इब्ने खलकान ने “वाफियातुल आयान” में ({FR 3545}) और दुसरे बेशुमार तज़किरा निगारों ने लिखा है कि कूफा में इमाम अबू हनीफा का एक जूता बनाने वाला पड़ोसी था, सारा दिन काम करता था और रात को जब घर आता तो गोश्त या मछली ले कर आता, उसे पकाता और उसके साथ शराब पीने लगता, जब मस्त हो जाता तो बुलंद आवाज़ से गाना शुरू कर देता:
اَضَاعُونِی وَاَیَّ فَتًی اَضَاعُوا
لِیَومِ کَرِیھَۃٍ وَسَدَادِ ثَغرٍ
(अनुवाद: उन्होंने मुझे बर्बाद कर दिया और सच यह है कि एक ऐसे जवां को बर्बाद कर दिया जो जंग में उनके काम आता और सरहद की हिफाज़त करता।)
इसी शेअर की तकरार करते करते सो जाता। इमाम अबू हनीफा रात भर तहज्जुद पढ़ते। एक रात जब उसकी आवाज़ नहीं आई तो उसके बारे में लोगों से पूछा। लोगों ने बताया कि उसे पुलिस वाले गिरफ्तार कर के ले गए और अभी वह कैद खाने में है। इमाम साहब दूसरी सुबह अमीरे शहर के घर गए और अमीरे शहर से उसकी आज़ादी की सिफारिश की। अमिर ने इमाम साहब के इकराम में उन तमाम कैदियों को आज़ाद कर दिया जो उस रात गिरफ्तार हुए थे जिस रात वह जूता साज़ गिरफ्तार हुआ था। (मदारिजे नबूववत:446, 1,/445)
इन तमाम शवाहिद से परे कुछ अहले इल्म इमामें आज़म से गिना से संबंधित यह भी नकल करते हैं कि इमाम साहब गिना को गुनाहे कबीरा (यानी बड़े गुनाह) में शुमार करते थे। अल्लामा इब्ने कय्यिम अल जौज़िया लिखते हैं:
قال[الطرطوشی]: وأما أبو حنيفة فإنه يكره الغناء، ويجعله من الذنوب، وكذلك مذهب أهل الكوفة: سفيان، وحماد، وإبراهيم، والشعبي، وغيرهم، لا اختلاف بينهم في ذلك، ولا نعلم خلافًا أيضًا بين أهل البصرة في المنع منه.
قلت: مذهب أبى حنيفة في ذلك من أشد المذاهب، وقوله فيه أغلظُ الأقوال، وقد صرح أصحابه بتحريم سماع الملاهي كلها، كالمِزْمار، والدّف، حتى الضرب بالقَضيب، وصرحوا بأنه معصية، يوجب الفسق، وتُرَدُّ به الشهادة.وأبلغ من ذلك أنهم قالوا: إن السماع فسقٌ، والتلذذ به كفرٌ.(اغاثۃ اللہفان من مصائد الشیطان،ج:۱،باب: ۱۳، ص:۲۷۷)
तर्तुशी ने कहा कि इमाम अबू हनीफा गिना को नाजायज़ समझते हैं और इसे गुनाह शुमार करते हैं। अहले कूफा; हज़रते सुफियान, हम्माद, इब्राहीम, शअबी आदि का भी यही मज़हब है। इस सिलसिले में उनका कोई मतभेद नहीं। इसी तरह इससे मनाही के संबंध में अहले बसरा के किसी मतभेद से भी हम नावाकिफ हैं।
मैं समझता हूँ कि इस ताल्लुक से इमाम अबू हनीफा का मज़हब सबसे अधिक सख्त है और उनके कौल में सबसे अधिक शिद्दत है। उनके असहाब ने तमाम लहव व लाअब जैसी कि बांसुरी, दफ, यहाँ तक कि ढोल पीटने को भी साफ़ तौर पर हराम कहा है और इस बात को स्पष्ट किया है कि यह सब गुनाह है, जो मोजिबे फिस्क और बाईसे तरदीद ए शहादत है। इससे भी अधिक वजाहत के साथ उन्होंने यह कहा कि गिना सुनना फिस्क है और लज्ज़त हासिल करना कुफ्र है।
अल मौसूअतुल मुयस्सरा ने तो यहाँ तक लिख दिया:
کَرِہَ اَبُو حَنِیفَۃَ الغِنَاءَ وَعَدَّہ مِنَ الذُّنوبِ؛ قَالَ الغِنَاءُ مِن اَکبرِ الذُّنوبِ الَّتِی یَجِبُ تَرکُھَا فَورًا۔
इमाम अबू हनीफा ने नगमा को नाजायज़ कहा और इसे गुनाह बताया। फरमाते हैं कि नगमा सुनना उन कबाएर (बड़े गुनाहों) में से है जिनको फ़ौरन तर्क कर देना वाजिब है।
अल्लामा इब्ने कय्यिम की बहुत सी बातें सहीह हैं मगर यह कहना कि इमाम साहब के असहाब ने तमाम मलाही की तहरीम की सराहत ई है और खुद नगमा सुनने को फिस्क कहा है, इसे अलल इतलाक समझना काबिले गौर और हवाला तलब है। इसी तरह मौसूआ मज़कूरा की बात जब तक किसी साबिक मोअतबर हवाले से साबित न हो जाए, इसकी कोई इल्मी हैसियत नहीं है। इसी तरह गिना की मुखालिफत करने वालों ने यहाँ तक लिख दिया कि इमाम साहब का फरमान है: नगमा तमाम दीनों में हराम है।
बहर कैफ! इसमें शक नहीं कि गिना की हुरमत का कौल सरीह अइम्मा सलासा हनफिया से नहीं मिलता, बल्कि उनके अक्वाल व आमाल से गिना की इबाहत साबित होती है, या अधिक से अधिक कराहत, अलबत्ता उनके बाद अकाबिर उलमा ए हनफिया और शारहीने मज़हबे हनफी ने इस कराहत को कराहते शदीद, फिर हुरमत पर महमूल कर दिया।
इस सियाक में इमाम सरखसी (484 हिजरी), अल्लामा कासानी (587), साहबे हिदाया अल्लामा मरगेनानी (593) अल्लामा बुरहानुद्दीन, इब्ने माज़ा (616 हिजरी) और अल्लामा ऐनी (855 हिजरी) के इरशाद व इबारात उपर मजकुर हो चुके।
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Urdu Article: Listening to Songs in the Light of the Hanafi School
of Jurisprudence – Part 1 سماع نغمہ-مذہب حنفی کی روشنی میں
Urdu Article: Listening to Songs [Naghma] in the Light of the
Hanafi School of Jurisprudence – Part 2 سماع نغمہ-مذہب حنفی کی روشنی میں
Urdu Article: Listening to Songs [Naghma] in the Light of the
Hanafi School of Jurisprudence – Part 3 سماع نغمہ-مذہب حنفی کی روشنی میں
Hindi Article: Listening to Songs in the Light of the Hanafi School
of Jurisprudence – Part 1 नगमा सुनना - मज़हब ए हनफी की रौशनी में
Hindi Article: Listening to Songs [Naghma] in the Light of the
Hanafi School of Jurisprudence – Part 2 नगमा सुनना - मज़हब ए हनफी की रौशनी में
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