बदरुद्दूजा रज़वी मिस्बाही
भाग-५
१३ अप्रैल २०२१
(4) إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِنَا سَوْفَ
نُصْلِيهِمْ نَارًا كُلَّمَا نَضِجَتْ جُلُودُهُم بَدَّلْنَاهُمْ جُلُودًا غَيْرَهَا
لِيَذُوقُوا الْعَذَابَ ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَزِيزًا حَكِيمًا [ النساء، آیت:56]
अनुवाद: “जिन्होंने हमारी आयतों का इनकार किया जल्द ही हम उनको आग में दाखिल करेंगे, जब कभी उनकी खालें पाक जाएंगी हम उनके सिवा और खालें उन्हें बदल देंगे कि अज़ाब का मज़ा लें, बेशक अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है” (कन्जुल ईमान)
सुरह निसा की यह आयत वईद की आयतों में से है जिसमें अल्लाह पाक
ने मुन्किरीने आयाते इलाही पर वईद कायम करते हुए फरमाया है कि हम उन्हें जहन्नम में
दाखिल करेंगे।
इसकी व्याख्या से पहले हम आपको यह बता दें कि इसका संबंध पहले
की आयतों से है इसलिए हम इससे पहले की आयतों पर एक सरसरी नजर डाल लेते हैं।
इससे पहले आयत नम्बर: ५१ है, जिसका शाने नुज़ूल यह बताया गया है कि सत्तर लोगों
पर आधारित यहूदियों का एक वफद कुरैशे मक्का से मुलाक़ात के लिए मदीने से मक्का पहुंचा
जिसकी कयादत हई बिन अख्तब और काब बिन अशरफ जैसे सरकरदा उलेमा ए यहूद कर रहे थे इस वफद
का उद्देश्य हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खिलाफ जंग में कुरैशे मक्का को अपना
हलीफ बनाना और उस मुआहेदे को पामाल करना था जो हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और यहूद
के बीच तय पाया था जिस पर हम ने अपनी चौथी क़िस्त में राशनी डाली है, जब उनके बीच बात चीत
शुरू हुई तो कुरैशे मक्का ने उनसे कहा कि तुम अहले किताब हो और हमारे लिहाज़ से मोहम्मद
(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के अधिक करीब हो इसलिए हम तुम्हारी बातों पर आसानी से भरोसा
नहीं कर सकते, हाँ अगर तुम हमारे माबुदों को सजदा करके हमें इत्मीनान
दिला दो तो हम तुम पर भरोसा कर सकते हैं और मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के खिलाफ
जंग में तुम्हें अपना हलीफ बना सकते हैं।
नतीजा यह हुआ कि उद्देश्य पूरा करने के लिए यहूद बुतों के आगे
सर बा सजूद हो गए, अय्यारी व मक्कारी उनकी सरीश्त में दाखिल थी; इसलिए उन्हें इब्लीस
की इताअत करने में देर नहीं लगी, फिर अबू सुफियान जो उस वक्त इस्लाम नहीं लाए थे; उनसे मुखातिब हुए
और काब बिन अशरफ से सवाल किया कि तुम तो अहले किताब और साहबे इल्म हो और हम तुम्हारे
मुकाबले में गंवार हैं तुम बताओ कि हम सीधी राह पर हैं या मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि
वसल्लम) और उनके असहाब? काब बिन अशरफ ने कहा: मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तुम्हें
किस बात का हुक्म देते हैं? अबू सुफियान ने कहा कि: वह हमें केवल एक खुदा की इबादत का आदेश
देते हैं और सैंकड़ों खुदाओं की इबादत से मना करते हैं काब बिन अशरफ ने अबू सुफियान
से पुछा कि: तुम्हारा दीन क्या है? जिसके जवाब में अबु सुफियान ने अपने दीन और मामुलात बताए।
काब बिन अशरफ ने बरजस्ता कहा:” अन्तुम अहदा सबीला” [तफसीर अबी सउद, जिल्द: २, पृष्ठ: १८९] यानी तुम ही सीधी राह पर हो
आयत नम्बर: ५२,५३ में अल्लाह पाक ने इस कार्य पर यहूदियों की तौबीख
की है और फरमाया है कि: अगर ज़मीन पर उनका इक्तेदार और फरमान रवाई हासिल हो जाए और यह
जमीन के काले व सफ़ेद के मालिक बन जाएं; तो दुसरे लोगों को यह बे दखल कर दें और उन्हें रिहाइश
और सुकूनत के लिए एक तिल के बराबर भी जगह ना दें, आज फिलिस्तीनियों के साथ यहूदी जो जालिमाना सुलूक
कर रहे हैं वह दुनिया की निगाहों से छुपा नहीं है।
आयत नम्बर: ५४, में यहूदियों की गन्दी जिबिल्लत और सरीश्त पर रौशनी
डाली गई है और बताया गया है कि यह लोग उन लोगों पर हसद करते हैं; जिन पर अल्लाह पाक
ने अपने फज़ल व करम की बारिश की है, विशेषतः यह हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और दुसरे अहले ईमान
से कुढ़ते हैं और उनसे कलबी रंजिश और अदावत रखते हैं और अल्लाह पाक ने उन्हें जो नबूवत
व नुसरत, गलबा और इज्जत अता
फरमाई है इससे यह जलते हैं।
फिर आयत नम्बर:५५ में फरमाया गया कि: फिर यहूद में से कुछ लोगों
ने ईमान व इस्लाम की तरफ पेश कदमी की और अकीदा ए तौहीद और हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
की नबूवत व रिसालत पर ईमान ले आए जैसे: हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम और उनके साथ वाले
रज़ीअल्लाहु अन्हुम और कुछ लोगों ने मुंह फेर लिया जैसे: काब बिन अशरफ और हई बिन अख्तब
वगैरा।
अब इसके बाद हम सुरह निसा की आयत: ५६ की तरफ आते हैं जिस पर
वसीम रिज़वी ने एतेराज़ किया है और इसे अपनी पेटीशन में दाखिल किया है और वायरल वीडियो
में उसने इसका अनुवाद पेश किया है।
आयते मुबारका: “इन्नल लज़ीना कफरु बि आयातिना” में दो एह्तिमाल हैं:
१ इससे अहदे रिसालत के कुफ्फार मुराद हैं जैसे: यहूद व नसारा
और दुसरे कुफ्फार व मुशरेकीने अरब
२ अव्वलीन व आखेरीन कुफ्फार मुराद हैं जैसे: रिसालत के दौर से
पहले, रिसालत के दौर के
बाद
पहली तकदिर पर आयतों से आयते
कुरआन, हुजुर सल्लल्लाहु
अलैहि वसल्लम के जूमला मोजजात, आप से सादिर तमाम इरशाद, अह्काम व कानून मुराद हैं और दूसरी सूरत में आयतों
से चार मशहूर आसमानी किताबें जैसे: तौरेत, इंजील, जबूर, कुरआन और एक सौ की संख्या में गैर मशहूर सहीफे मुराद
हैं हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पर दस, हज़रात शीस अलैहिस्सलाम पर पचास हजर इदरीस अलैहिस्सलाम पर तीस
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर दस जैसा कि मिर्कातुल मफातीह में है:
"الکتب المنزلۃ مأۃ و اربع کتب، منھا: عشر
صحائف نزلت علی آدم و خمسون علی شیث و ثلاثون علی ادریس و عشرۃ علی ابراھیم و الاربعۃ
السابقۃ و افضلھا القرآن۔ [ مرقاۃ المفاتیح، ج: 1، ص: 117]
और वह तमाम मोजज़ात शवाहिद व अहकाम मुराद हैं जो पिछले तमाम नबियों
और रसूलों को अता किये गए हैं जैसा कि तफसीर अबी सउद में इस आयत के तहत है:
"ان ارید بھم الذین کفروا برسول اللہ ﷺ فالمراد بالآیات إما القرآن أو ما يهم كله و بعضه
أو ما يعم سائر معجزاته أيضا الخ" [تفسیر ابی سعود ج: 2،ص: 191]
इस तौजीह व तशरीह के बाद अब हम आपको यह बताते हैं कि अल्लाह
पाक ने इस आयते मुबारका में तमाम मुन्किरीने आयात की ज़ज्र व तौबीख की है और उन पर वईद
की है और यह फरमाया है कि: जिन्होंने हमारी आयतों का इनकार किया जल्द ही हम उनको आग
में दाखिल करेंगे, जब कभी उनकी खालें पाक जाएंगी हम उनके सिवा और खालें उन्हें
बदल देंगे कि अज़ाब का मजा लें, बेशक अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है। (कन्जुल ईमान)
इसका मतलब यह है कि वह जली हुई खाल से बदल दी जाएगी जो शक्ल
और सूरत में पहली खाल से अलग होगी, लेकिन अज रुए माद्दा के वही खाल होगी अर्थात केवल गुण में परिवर्तन
होगा माद्दा वही रहेगा। हज़रत इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:
"یبدلون جلودا بیضاء کامثال القراطیس۔"
(تفسیر ابی سعود ایضا)
उनकी स्याह खाल कागज़ के मानिंद सफ़ेद खाल से बदल दी जाएगी या
फिर गोश्त से ही नई खाल निकल आएगी जैसा कि दुनिया में जब जिल्द जल जाती है तो इलाज
के बाद कुछ ही दिनों में नई जिल्द निकल आती है, खाल में परिवर्तन का अमल इस लिए होगा ताकि एहसास
करने की ताकत उनके अन्दर से खत्म ना होने पाए इसलिए कि ताज़ीब व तनईम बिना एहसास के
बेमाना हैं, इस तरह वह मुसलसल आयते इलाही के इनकार का मज़ा चखते रहेंगे। अल इयाज़ बिल्लाह।
इस आयत में रब्बे जुलजलाल ने जो वईद कायम की है वह फितरत के
तकाज़े के ऐन मुताबिक़ है ज़ाहिर है जो आयाते इलाही का मुनकिर हो, उसके वजा करदा नियमों
के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करे, उसकी बताई हुई रविश पर ना चले उसके भेजे हुए नबियों और रसूलों
की तकज़ीब और उनके खिलाफ साज़िश करे उनके कत्ल के मनसूबे बनाए अल्लाह की इबादत के बाजाए
अपने हाथों के तराशे बुतों की परस्तिश करने की सूरत में अपने पुजारियों को कोई नफ़ा
नहीं दे सकते और परिस्तिश ना करने की सूरत में उन्हें कोई नुक्सान भी नहीं पहुंचा सकते
यहाँ तक कि वह खुद अपनी भी हिफाज़त नहीं कर सकते अल्लाह फरमाता है: "مَا لَا یَضُرُّهٗ وَ مَا لَا یَنْفَعُهٗ
"(الحج/١٢)
ऐसे मुन्केरीन को अल्लाह तो सजा देगा ही और यह दुनयावी हुकूमतों
का भी निजाम है जैसे हमारे ही देश में आप देख लें जजा और सज़ा का अमल जारी है जो भी
मुल्की कवानीन का सम्मान नहीं करता है उसे सजा के अमल से गुज़रना पड़ता है और जैसा अपराध
होता है उसी के एतेबार से देश की संवैधानिक धाराओं में उसकी सज़ा का इल्तेजाम भी किया
गया है, अगर कोई देश के खिलाफ
झंडा उंचा करता है और गद्दारी का मुर्तकब होता है तो हमारे संविधान में उसके लिए उम्र
कैद या फांसी की सज़ा का इल्तेजाम किया गया है जैसा जुर्म वैसी सज़ा।
और ऐसा नहीं है कि कुरआन में सिर्फ कुफ्फार व मुशरेकीन के लिए
ही वईद की गई है, बल्कि उसात (यानी गुनाहगार) मोमिनीन के लिए भी कुरआन में वईद आई हैं।
वसीम रिज़वी को यह आयतें तो कुरआन में नज़र आ गईं लेकिन इन आयतों पर उसकी नज़र नहीं पड़ी
जिनमें बे नमाज़ी मुसलमानों के दर्दनाक अज़ाब को ब्यान किया गया है और उनकी सख्त ज़ज्र
व तौबीख की गई है जैसे यह आयते मुबारका:
فَوَیْلٌ لِّلْمُصَلِّیْنَۙ(۴)الَّذِیْنَ هُمْ عَنْ صَلَاتِهِمْ سَاهُوْنَۙ(۵) الخ (الماعون ٤،٥)
अनुवाद: “तो उन नमाजियों के लिए खराबी है। जो अपनी नमाज़
से गाफिल हैं।“ (कन्जुल ईमान)
(वैल जहन्नम की उस
वादी का नाम है जिसकी सख्ती से जहन्नम भी पनाह माँगता है)
इसी तरह कुरआन पाक की यह आयत: فَخَلَفَ مِنْ بَعْدِهِمْ خَلْفٌ الخ (مریم ٥٩
अनुवाद: “तो उनके बाद वह नालायक लोग उनकी जगह आए जिन्होंने
नमाज़ों को ज़ाए किया और और अपनी ख्वाहिशों की पैरवी की तो अनकरीब वह जहन्नम की खौफनाक
वादी गय से जा मिलेंगे” (कन्जुल ईमान)
(गय जहन्नम की एक गर्म
नहर या जहन्नम की एक वादी है)
इसी तरह कुरआन पाक की यह आयत जिसमें ज़कात ना देने वालों के लिए
निहायत सख्त वईद आई है:
وَ الَّذِیْنَ یَكْنِزُوْنَ الذَّهَبَ وَ الْفِضَّةَ
الخ (التوبہ ٣٤،٣٥)
अनुवाद: “और वह लोग जो सोना चांदी जमा कर रखते हैं और उसे
अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते उन्हें दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी सुनाओ। जिस दिन वह
माल जहन्नम की आग में तपाया जाएगा फिर उसके साथ उनकी पेशानियों और उनके पहलुओं और उनकी
पुश्तों को दागा जाएगा (और कहा जाएगा) यह वह माल है जो तुम ने अपने लिए जमा कर रखा
था अपने जमा करने का मज़ा चखो।“
इस तरह की बहुत सी आयतें हैं हमने यहाँ नमूने के तौर पर केवल तीन आयतों को ज़िक्र किया है।
इन आयतों से मालुम हुआ कि कुरआन में मोमिनीन और कुफ्फार दोनों
के लिए वईद आई है इसलिए इस्लाम दुश्मन तत्वों को इन आयतों पर भी नजर रखनी चाहिए जिनमें
मोमीनीन के लिए भी वईदों का ज़िक्र है।
कुरआन पाक में जैसा जुर्म वैसी सज़ा का फार्मूला पेश किया गया
है। (जारी)
[To be continued]
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मौलाना बदरुद्दूजा
रज़वी मिस्बाही, मदरसा अरबिया अशरफिया ज़िया-उल-उलूम खैराबाद, ज़िला मऊनाथ भंजन, उत्तरप्रदेश, के प्रधानाचार्य, एक सूफी मिजाज आलिम-ए-दिन, बेहतरीन टीचर, अच्छे लेखक, कवि और प्रिय वक्ता
हैं। उनकी कई किताबें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमे कुछ मशहूर यह हैं, 1) फजीलत-ए-रमज़ान, 2) जादूल हरमयन, 3) मुखजीन-ए-तिब, 4) तौजीहात ए अहसन, 5) मुल्ला हसन की शरह, 6) तहज़ीब अल फराइद, 7) अताईब अल तहानी फी
हल्ले मुख़तसर अल मआनी, 8) साहिह मुस्लिम हदीस की शरह
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Part: 1- The
Verses of Jihad In The Quran- Meaning And Background- Part 1 जिहाद की आयतें:
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Part: 2- The
Verses of Jihad In The Quran- Meaning And Background- Part 2 जिहाद की आयतें:
अर्थ व मफहूम, शाने नुज़ूल, पृष्ठ भूमि
Hindi
Part: 3- The
Verses of Jihad: Meaning and Context – Part 3 जिहाद की आयतें:
अर्थ व मफहूम, शाने नुजुल और
पृष्ठ भूमि
Urdu
Part: 3- The
Verses of Jihad: Meaning and Context - Part 3 آیات جہاد :معنیٰ و مفہوم ، شانِ نزول،
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Part: 4- The
Verses of Jihad: Meaning and Context - Part 4 معترضہ آیاتِ جہاد، معنیٰ و مفہوم،
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Part: 5- The
Verses of Jihad: Meaning and Context - Part 5 معترضہ آیاتِ جہاد، معنیٰ و مفہوم،
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Urdu Part: 8- The Verses of
Jihad in The Quran: Meaning and Context - Part 8 معترضہ آیاتِ جہاد، معنیٰ و مفہوم، شانِ نزول، پس منظر
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