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Hindi Section ( 15 Jun 2021, NewAgeIslam.Com)

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Removing Doubts Concerning Verses of Jihad in Quran: Did Hazrat Usman delete some Verses While Compiling the Quran? Part 7 आयाते जिहाद पर शुकुक का खात्मा: क्या हज़रत उस्मान ने कुरआन जमा करते वक्त कुछ सूरतें हज्फ़ कर दीं थीं?

कमाल मुस्तफा अजहरी, न्यू एज इस्लाम

उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम

१० जून २०२१

संदेह नंबर ६: क्या हज़रत उस्मान गनी रज़ीअल्लाहु अन्हु ने कुरआन जमा होने के समय (ख़ास कर हज़रत अली रज़ीअल्लाहु अन्हु के सहिफे की) कुछ सूरतें हज्फ़ कर दीं थीं (नउज़ुबिल्लाह मिन ज़ालिक)?!

इससे पहले के क़िस्त में यह बयान हुआ कि कुरआन पाक हज़रत सिद्दीक अकबर रज़ीअल्लाहु अन्हु के ज़माने में क्यों और किस तरह जमा किया गया और इस क़िस्त में अल्लाह के फज़ल से हम निम्नलिखित मामलों पर रौशनी डाल कर शक करने वालों के मकरूह फरेब का तहकीकी जवाब पेश करेंगे:

·         हज़रत उस्मान बिन अफ्फान रज़ीअल्लाहु अन्हु के खिलाफत में वहदते कुरआन (कुरआन पाक को एक मूसहफ में जमा करना) क्यों और कैसे हुआ?

·         यह काम हजरत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु ने अकेले अपनी मर्जी से किया या सहाबा के मशवरे और इत्तेफाक से हुआ?

·         क्या इस मामले में किसी ने उनकी राय से इनकार किया?

·         खुद मौला अली का इस अमल पर क्या स्टैंड है?

अब तरतीब से हर नुक्ते को तफसील से बयान करते हैं।

१- कुरआन पाक को एक मसहफ में क्यों और कैसे जमा किया गया

हजरत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु ने इन जमा शुदा सहिफों को एक किया ताकि किराअत के मतभेद के कारण कुरआन करीम में लोग मतभेद का शिकार ना हो जाएं।

जैसा कि बुखारी शरीफ में हज़रत अनस रज़ीअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ैफा बिन यमान रज़ीअल्लाहु अन्हु अमीरुल मोमिनीन हजरत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु के पास आए उस वक्त हजरत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु आर्मीनिया और आज़रबेजान की फतह के सिलसिले में शाम के गाजियों के लिए जंग की तैयारियों में मसरूफ थे, ताकि वह अहले ईराक को साथ ले कर जंग करें। हज़रत हुज़ैफा रज़ीअल्लाहु अन्हु कुरआन की किराअत के मतभेद की वजह से बहुत परेशान थे। आपने हज़रत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु से गुजारिश की कि अमीरुल मोमिनीन इससे पहले कि यह उम्मत (मुसलेमा) भी यहूदियों और नसरानियों की तरह किताबुल्लाह में मतभेद करने लगे, आप इसकी खबर लीजिये। इसलिए हज़रत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु ने हज़रत हफ्सा रज़ीअल्लाहु अन्हा के यहाँ कहलाया कि सहिफे (जिन्हें हज़रत ज़ैद रज़ीअल्लाहु अन्हु ने हजरत अबू बकर रज़ीअल्लाहु अन्हु के हुक्म से जमा किया था और जिन पर मुकम्मल कुरआन मजीद लिखा हुआ था) हमें दे दिया ताकि हम उन्हें मसहफ में (किताबी शकल में) नक़ल करवा लें फिर असल हम आपको लौटा देंगे, हजरत हफ्सा रज़ीअल्लाहु अन्हा ने वह सहिफे हजरत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु के पास भेज दिए और आप ने ज़ैद बिन साबित, अब्दुल्लाह बिन जुबैर, साद बिन आस, अब्दुर्रहमान बिन हारिस बिन हश्शाम रज़ीअल्लाहु अन्हुम को हुक्म दिया कि वह इन सहिफों को मूसहफ़ों  में नक़ल कर लें। हज़रत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु ने इस जमात के तीन कुरैशी सहाबियों से कहा कि अगर आप लोगों का कुरआन मजीद के किसी शब्द के सिलसिले में हज़रत ज़ैद रज़ीअल्लाहु अन्हु से मतभेद हो तो उसे कुरैश ही की जुबान के मुताबिक़ लिख लें क्योंकि कुरआन मजीद भी कुरैश ही की जुबान में नाज़िल हुआ था। इसलिए उन लोगों ने ऐसा ही किया और जब तमाम सहिफे विभिन्न नुस्खों में नकल कर लिए गए तो हज़रत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु ने उन सहिफों को वापस लौटा दिया और अपनी सलतनत के हर इलाके में नकल शुदा मसहफ का एक एक नुस्खा भिजवा दिया और हुक्म दिया कि इसके सिवा कोई चीज अगर कुरआन की तरफ मंसूब की जाती है चाहे वह किसी सहीफे यह मसहफ में हो तो उसे जला दिया जाए। [बुखारी शरीफ, किताब फजाइलुल कुरआन, बाब जमउल कुरआन, हदीस: ४९८६]

२- क्या यह अज़ीम काम अकेले हजरत उस्मान गनी रज़ीअल्लाहु अन्हु ने अपनी मर्जी से किया?

यह शानदार काम उन्होंने अकेले अपनी मर्ज़ी से नहीं किया, बल्कि अजिल्ला जमाते हुफ्फाज़ व कुत्ताब सहाबा के मशवरे और गौर व खौज़ से हुआ।

इमाम कुर्तुबी ने अपनी तफसीर में फरमाया: " وكان هذا من عثمان رضي الله عنه بعد أن جمع المهاجرين والأنصار، وجلَّة أهل الإسلام، وشاورهم في ذلك، فاتَّفقوا على جمعه بما صحَّ، وثبت من القراءة المشهورة عن النَّبيّ صلى الله عليه وسلم ، واطِّراح ما سواها، واستصوبوا رأيه، وكان رأياً سديداً موفَّقاً. [ تفسیر القرطبی : 52/1 ]

और कुरआन जमा करने के मामले में हजरत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु ने मुहाजिरीन व अंसार व अजिल्ला सहाबा को जमा फरमा कर उनसे मशवरा किया, जो मशहूर किराअत आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से साबित थी उस पर सबने इत्तेफाक किया और इसके अलावा को छोड़ दिया और सब ने हजरत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु की राय को सहीह बताया और आप की राय मवाफिक थी।

इसके अम्र के लिए हजरत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु ने कुरैश व अंसार से १२ सहाबा को जमा फरमाया था,

عن محمد بن سيرين " أن عثمان بن عفان جمع اثني عشر رجلا من قريش و الأنصار فيهم أبي بن كعب و زيد بن ثابت، و سعيد بن العاص " [ المصاحف لابن أبي داؤد : 105 ]

उन सहाबा में उबई बिन काब, ज़ैद बिन साबित, सईद बिन आस और कसीर बिन अफलह का नाम भी मिलता है और उन हज़रात के मददगार में कसीर बिन अफलह, मालिक बिन आमिर, अनस बिन मालिक, अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ीअल्लाहु अन्हुम अजमईन रहे हैं।

और खुद हजरत उस्मान गनी रज़ीअल्लाहु अन्हु ने कुरआन जमा करने में बेहद संघर्ष की है तो यह कैसे हो सकता है कि आप रज़ीअल्लाहु अन्हु कुछ सूरतों को ह्ज्फ़ कर दें?

और फिर सवाल यह है कि अगर तुम्हारे मुताबिक़ ह्ज्फ़ की है तो यही सूरतें क्यों उनके अलावा क्यों नहीं?

३- क्या इस मामले में किसी ने आपसे राय में मतभेद किया?

यह कैसे हो सकता था कि हजरत उस्मान गनी रज़ीअल्लाहु अन्हु हज्फ़ करें और सहाबा खामोश रहें जो कुरआन पाक की पिछली तीन अहद हिफाजते किराअत करते रहे।

और हज़रत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु ने हजरत अली व हजरत उबई रज़ीअल्लाहु अन्हुमा के मसहफ से हज्फ़ किया और दोनों में से किसी ने आवाज़ तक नहीं उठाई??

मुसाब बिन साद रज़ीअल्लाहु अन्हु कहते हैं:

أدركت الناس متوفرين حين حرق عثمان المصاحف فأعجبهم ذلك وقال : لم ينكر ذلك منهم أحد [ التاريخ الكبير : 350/7 ]

जब हजरत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु ने मसाहिफ जलाने का हुक्म दिया तो मैंने कसीर तादाद में लोगों को मौजूद पाया और उन्होंने (अपने अच्छे काम से) सबको आश्चर्य में डाल दिया, और उनमें से किसी ने इस पर इनकार नहीं किया।

४- इस अम्र में हजरत अली रज़ीअल्लाहु अन्हु का क्या स्टैंड था?

आप इस मामले में सख्ती से दूसरों को मना भी फरमाया करते हैं:

سوید بن غفلة الجعفي ۸۰ھ بیان کرتے ہیں : والله لا أحدثكم إلا شيئا سمعته من علي بن أبي طالب - رضي الله عنه سمعته يقول : " يا أيها الناس لا تغلوا في عثمان ولا تقول إلا خيرا في المصاحف و إحراق المصاحف، فوالله ما فعل الذي فعل في المصاحف إلا عن ملأ منا جميعا [ المصاحف لابن أبي داؤد ص 96 ، كنز العمال : 583/2 ، جمع الجوامع : 717/16 ]

अल्लाह की कसम! मैं तुमसे वही बयान करूंगा जो मैंने हजरत अली रज़ीअल्लाहु अन्हु को फरमाते हुए सूना: ऐ लोगों हजरत उस्मान गनी रज़ीअल्लाहु अन्हु की शख्सियत में हद से ज़्यादा ना बढ़ो और मसाहिफ़ जमा करने और जलाने के मामले में केवल अच्छी बात बोलो, अल्लाह की कसम! मसाहिफ में आपने जो कारनामा अंजाम दिया हम सब हैरान और मूतह्य्यर हो गए।

قال علي : والله لو وليتُ لفعلت مثل الذي فعل [ المصاحف لابن أبي داؤد ص 96 ]

हज़रत अली रज़ीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: अल्लाह की कसम अगर मैं इस ओहदे पर होता तो मैं भी वही करता जो हजरत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु ने किया।

हजरत अली रज़ीअल्लाहु अन्हु खुद इस अम्रे ज़ीशान पर खराजे तहसीन पेश कर रहे हैं और लोगों को ज़ुबाने हद में रखने पर तंबीह फरमा रहे हैं, अगर उनके मूसहफ की सूरतों या आयतों को निकाला गया होता तो यह फरहत व मुसर्रत क्यों होती और हद से आगे बढ़ने वालों को मुमानियत व तंबीह क्यों फरमाते?

हजरत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु का यह काम सहीह ना होता तो हजरत अली रज़ीअल्लाहु अन्हु ने अपने खिलाफत के दौर में इसको परिवर्तित क्यों ना कर दिया? बल्की आपने तो उस वक्त यह फरमाया कि अगर मैं खिलाफत के मंसब पर होता तो यही करता जो अमीरुल मोमिनीन हजरत उस्मान बिन अफ्फान रज़ीअल्लाहु अन्हु ने किया है।

अजिल्ला सहाबा का इज्मा और खुद हजरत अली रज़ीअल्लाहु अन्हु के अकवाल इस शक के खात्मे पर रौशन दलील हैं कि हजरत उस्मान रज़ीअल्लाहु अन्हु ने सहाबा किराम से बिना किसी नुक्सान के मसहफ को एक किया है तो जिहाद की आयतों और दुसरे कुरआनी आयतें सब वह अल्लाह का कलाम हैं जो वादा हिफाज़त के संदर्भ में तहरीफ़ व तब्दील से पाक है।

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URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/doubts-concerning-jihad-quran-part-7/d/124976

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