साकिब सलीम, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
15 अप्रैल 2023
आप क्या कहेंगे अगर मैं आपको बताऊँ कि देवबंद में दारुल उलूम
के बानी मौलाना कासिम नानौत्वी असल में अंग्रेजी और जदीद उलूम पढ़ने के ख्याल के हामी
थे? क्या यह आम रुझान के
खिलाफ नहीं होगा अगर मैं आपको बताऊँ कि देवबंद के सबसे अधिक काबिले एहतेराम उलमा में
से एक मौलाना अशरफ अली थानवी, और देवबंदी उलमा के एक वालिद बुजुर्गवार शाह अब्दुल अज़ीज़ ने यह ख्वाहिश ज़ाहिर की
थी कि मुसलमान अंग्रेजी और जदीद तालीम सीखें? असल में, 150 साल पहले मौजूदा मदरसा का निज़ाम शुरू करने वाले अधिकतर
सम्मानित उलमा भी इसी तरह के ख्यालात रखते थे।
आप पूछेंगे और बजा तौर पर कि अगर ऐसा है तो फिर हम क्यों जानते हैं कि उलमा बहैसियत तबका जदीद अंग्रेजी शिक्षा के मुखालिफ रहे हैं। इसका जवाब दारुल उलूम के मोहम्मदुल्लाह खलीली कासमी ने अपनी किताब Madrasa Education: Its Strength and Weakness में बयान किया है, जहां वह लिखते हैं, और मैं नक़ल करता हूँ कि “एक बहुत मशहूर मुहावरा है ‘बुरी खबर तेज़ी से फैलती है’। यह स्पष्ट तौर पर उस प्रोपेगेंड के लिए उचित है कि उलमा कराम ने अंग्रेजी और जदीद उलूम सीखने से मना किया है। गोबल्ज़ के कौल की तरह कि ‘झूट को इतना दुहराओ कि वह सच हो जाए’ कुछ लोगों ने इस ख्याल को हवा में उड़ा दिया और यह फैलता ही गया। बहुत से लोग अब भी मानते हैं और अवाम में बयान भी करते हैं कि उलमा ने मुसलमानों को अंग्रेजी और जदीद उलूम से परहेज़ करने के लिए कहा है....अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद का फतवा देने वाले उलमा ने कभी भी लोगों को अंग्रेजी सीखने से मना नहीं किया।
मदरसा का निज़ाम जैसा कि हम आज समझते हैं कि उलमा ने 1857 की पहली जंग आज़ादी में भारतीय इंकलाबियों की शिकस्त के बाद कायम किया था। मौलाना कासिम नानौत्वी, रशीद अहमद गंगोही और दुसरे जिन्होंने 1857 में अंग्रेजों से जंग की, उन्होंने देवबंद में दारुल उलूम की बुनियाद रखी। आने वाले सालों में इसी तर्ज़ पर देवबंदी के हज़ारों मदरसे कायम हुए। मकसद यह था कि शिक्षित भारतीय हिन्दुस्तानी मुसलमानों का एक वर्ग इस शिक्षा की आलूदगी से पाक हो जिसको थामस मैकाले ने सल्तनत के वफादार नौकर पैदा करने के लिए मुरत्तब किया था। दारुल उलूम के इब्तिदाई तालिब इल्मों में से एक और वहाँ के एक नामवर उस्ताद और मुजाहिद आज़ादी, मौलाना महमूद हसन ने कहा था, और मैं नक़ल करता हूँ, “क्या मौलाना (कासिम नानौत्वी) ने यह मदरसा केवल सीखने और सिखाने के लिए बनाया था? मदरसा मेरी आँखों के सामने कायम हुआ था। मैं जानता हूँ कि यह इदारा 1857 की शिकस्त के बाद कायम किया गया था ताकि कुछ लोगों को 1857 के नुक्सान से निकलने के लिए तैयार किया जा सके।
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Article: Ulema Never Opposed Modern Sciences & Education
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