मुल्लाओं का दावा है कि केवल हम ही कुरआन को समझ और समझा सकते
हैं, हालांकि इसकी आयतें सीधे सातवीं शताब्दी ईस्वी के अनपढ़ अरब बद्दुओं को पढ़ने और
समझने के लिए थे। इसके अलावा, कुरआन एक उम्मी पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल
हुआ था, और आपने ही इसके संदेश को समझा और इसे लोगों तक पहुंचाया।
प्रमुख बिंदु:
1. यूपी में मुल्लाओं का एक वर्ग यह विचार फैला रहा है
कि मुसलमानों को कुरआन नहीं दी जानी चाहिए
2. इन दिनों मुस्लिम धार्मिक सभाओं और मस्जिदों में कुरआन
का पढ़ा या पढ़ाया नहीं जाता है
3. इस्लाम पर अन्य माध्यमिक पुस्तकें पढ़ी और प्रसारित
की जा रही हैं
4. ये मौलवी और मुल्ला सांप्रदायिक मान्यताओं को फैलाने
वाली किताबें प्रकाशित करते हैं।
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न्यू एज इस्लाम स्टाफ राइटर
29 अक्टूबर, 2021
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Representational
Photo
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उर्दू दैनिक राष्ट्रीय सहारा में 27 अक्टूबर, 2021 में बारा बांकी, उत्तर प्रदेश, भारत के हाफिज अब्दुल हई का एक पत्र प्रकाशित हुआ है। इससे पहले कि हम इसकी सामग्री के बारे में बात करें, आइए पत्र पर एक नज़र डालें।
"हम देखते हैं कि हमारे अधिकांश मुस्लिम भाई कुरआन के
अध्ययन से अनजान हैं और इसकी शिक्षाओं से अनजान और अपरिचित हैं। अन्य किताबें उनके
धार्मिक सभाओं और मस्जिदों में बहुत एहतिमाम से पढ़ी और पढ़ाई जाती हैं। मगर कुरआन की
तफसीर और तर्जुमा पढ़ने का कोई एहतिमाम नहीं है। गैर-मुस्लिम भाइयों तक जीवन के इस
अनमोल नुस्खे और साड़ी दुनिया के और सभी मनुष्यों के रब का यह संदेश पहुंचाने के अलग
रहा, वे खुद इसका इस्तेमाल
करना गलत मानते हैं। न जाने उनके दिल में यह ख्याल बैठ गया है कि पवित्र कुरआन को गैर-मुसलमानों
को अध्ययन के लिए नहीं देना चाहिए, जबकि दुनिया में मौजूद किसी भी नेअमत के उपयोग पर कोई प्रतिबंध नहीं है। फिर आखिर
खुदा के सबसे बड़े नेअमत, पवित्र कुरआन का उपयोग करना क्यों मना है? किसी को क्या हक़ पहुंचता है कि वह इस हिदायत नामे से
दुसरे इंसानों को वंचित रखे जो सारे इंसानों के लिए रब की तरफ से नाज़िल हुआ है?
उर्दू दैनिक राष्ट्रीय सहारा, दिनांक 27 अक्टूबर 2021
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पत्र के लेखक ने इस तथ्य पर शोक व्यक्त किया कि मुसलमानों ने कुरआन को त्याग दिया है और इसके बजाय अन्य सभी माध्यमिक पुस्तकों को अपनी मस्जिदों और अपने धार्मिक समारोहों में पढ़ते और पढ़ाते है। कुरआन, जो इस्लामी कानून का प्राथमिक स्रोत है, जिसमें मुसलमानों के लिए दिशानिर्देश हैं। इसलिए, मुसलमानों को पवित्र कुरआन की नियमित शिक्षा दी जानी चाहिए और उन्हें पवित्र कुरआन की शिक्षाओं से अवगत कराया जाना चाहिए। लेकिन इसके विपरीत, मुसलमानों ने कुरआन को ताकों की ज़ीनत बना दिया है और इस्लाम की माध्यमिक पुस्तकें पढ़ी और सिखाई जा रही हैं, जैसे कुरआन की व्याख्या पर आधारित किताबें और एक मुसलमानों के किसी एक फिरके में विश्वास रखने वाले इस्लामी विद्वानों के विचारों पर आधारित किताबें।
पत्र लेखक द्वारा उठाया गया दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि मुल्लाओं का एक वर्ग सोचता है कि कुरआन गैर-मुसलमानों को नहीं दिया जाना चाहिए ताकि उन्हें कुरआन की शिक्षाओं से लाभ न हो। पत्र मुसलमानों के बीच एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है। जाहिर है, संकीर्ण दिमाग और अज्ञानी मुल्लाओं का एक वर्ग गैर-कुरआनी दृष्टिकोण को फैला रहा है कि गैर-मुसलमानों को कुरआन पढ़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ये मुल्ला कौन हैं? उनकी पहचान की जानी चाहिए और उन्हें प्रकाश में लाया जाना चाहिए ताकि मुसलमानों को अपनी सफों में गद्दारों का पता चल सके।
क़ुरआन क़यामत के दिन तक पूरी मानवता के लिए है, क्योंकि क़यामत के दिन तक दुनिया में कोई नया नबी या आसमानी किताब नहीं भेजी जाएगी। कुरआन में, खुदा ने कई मौकों पर लोगों को "हे मानव जाति" कहकर संबोधित किया है। इसका मतलब यह है कि कुरआन केवल मुसलमानों तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरी मानवता के लिए नाजिल किया गया है।
मुसलमानों को पहले से ही सीधे कुरआन पढ़ने से हतोत्साहित किया गया है, यह तर्क देते हुए कि यदि वे स्वयं कुरआन पढ़ते हैं तो वह गुमराह हो सकते हैं। यह अकीदा इस उद्देश्य से फैलाया गया है कि मुसलमानों को धार्मिक और सामाजिक मुद्दों में मार्गदर्शन के लिए मुल्लाओं पर भरोसा करना चाहिए। अगर मुसलमान खुद कुरआन को पढ़ना और समझना शुरू कर दें, तो उन्हें कुरआन की सच्ची शिक्षा और इस्लाम की सच्ची रूह का पता चल जाएगा। कुरआन में सांप्रदायिक मान्यताओं का कोई आधार नहीं है लेकिन संप्रदायवादी मुल्लाओं ने बड़ी ताकत से सांप्रदायिक अकीदों को फैलाया है जो अज्ञानी मुसलमानों और विशेष रूप से मुस्लिम युवाओं द्वारा अज्ञानता के कारण अपनाया जाता है क्योंकि वे संप्रदायवाद पर कुरआन की स्थिति से अवगत नहीं होते हैं। कुरान इस्लाम के भीतर अलगाववाद और संप्रदायवाद की निंदा करता है और मुसलमानों को इस दुनिया और आखिरत में कड़ी सजा की चेतावनी देता है।
अल्लाह पाक मुसलमानों को कुरआन की आयतों को पढ़ने और इस पर गौर करने के लिए कहता है:
"तो क्या लोग क़ुरआन में (ज़रा भी) ग़ौर नहीं करते या (उनके) दिलों पर ताले लगे हुए हैं"?(मुहम्मद: 24)
"और हमने तो इसी क़ुरआन में तरह तरह से बयान कर दिया ताकि लोग किसी तरह समझें मगर उससे तो उनकी नफरत ही बढ़ती गई।" (अल-इसरा ': 41)
"और हमने तो लोगों (के समझाने) के वास्ते इस क़ुरआन में हर क़िस्म की मसलें अदल बदल के बयान कर दीं उस पर भी अक्सर लोग बग़ैर नाशुक्री किए नहीं रहते" (अल-इसरा ': 89)
कोई आश्चर्य होता है कि मुसलमान मार्गदर्शन और हिकमत के लिए कुरआन का अध्ययन और गौर व फ़िक्र क्यों नहीं करते हैं। अल्लाह पाक ने पवित्र कुरआन में हिकमत के जवाहिर रखे हैं और इसमें मानवता का हर दर्स शामिल है। फिर भी लोग खुदा की नसीहत को नहीं मानते और कुरआन की अवहेलना करते हैं।
उलमा को इस अस्वास्थ्यकर और गैर-इस्लामी प्रवृत्ति पर ध्यान देना चाहिए और कुरआन के बारे में इस कुफ्र को मिटाने के लिए गंभीर प्रयास करना चाहिए और मुसलमानों को कुरआन की सही शिक्षाओं से परिचित कराने के लिए एक अभियान शुरू करना चाहिए। मुस्लिमों के बीच फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए इस्लामिक संगठनों और गैर सरकारी संगठनों को स्व-अध्ययन अभियान शुरू करना चाहिए। मुस्लिम समाज में जो भी बुराइयाँ और कुकर्म आम हो गए हैं, उनका कारण कुरआन की शिक्षाओं के बारे में आम मुसलमानों की अज्ञानता है। हमारे उलमा कुरआन की चर्चा करते हुए केवल दारुल हर्ब और दारुल अमन के मुद्दे पर चर्चा करते हैं। इससे मुसलमानों और गैर-मुसलमानों में यह धारणा बन गई है कि कुरआन केवल युद्ध और हिंसा की बात करता है। कुरआन 114 सूरह या अध्याय पर आधारित जिस में 700 से अधिक पृष्ठ हैं और यह कुरआन समाज की सभी सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। मुसलमानों को कुरआन की सच्ची शिक्षाओं से अवगत होना चाहिए ताकि सांप्रदायिक मुल्ला आम मुसलमानों को गुमराह न कर सकें।
English
Article: Now Mullahs Say Quran Should Not Be Given To
Non-Muslims to Study; Earlier They Opposed Muslims Studying Quran on Their Own
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