कनीज़ फातमा, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
10 फरवरी 2023
उलमा के लिए आतंकवाद की रोकथाम एक अपरिहार्य समस्या है
प्रमुख बिंदु
इस्लामोफोबिया भी दिन-ब-दिन बढ़ रहा है, इसे रोकने के लिए क्या किया जा
सकता है?
कुरआन और सुन्नत में उल्लिखित युद्ध मामलों से संबंधित आयतें
और हदीसें युद्ध और रक्षा के संदर्भ से संबंधित हैं।
आत्मघाती हमलावरों का पागलपन यह है कि वे अल्लाह की मस्जिदों
पर भी हमला करने से नहीं चूकते।
तथाकथित मुस्लिम संगठनों द्वारा आतंकवादी घटनाओं का कवरेज विश्व
मीडिया में सबसे अधिक है, इसलिए इस स्तर पर सुधार करना सबसे आवश्यक हो गया है।
समय-समय पर उलमा द्वारा आतंकवाद और आत्मघाती हमलों के खिलाफ
फतवे प्रकाशित किए जाते हैं, लेकिन इन सबके बावजूद आतंकवादी घटनाएं थमने का नाम नहीं लेती
हैं।
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अगर आप दुनिया के हालात और अखबारों पर नजर रखते हैं तो आपको यकीनन पता होगा कि इस्लामोफोबिया दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। कुछ देश इसे रोकने के लिए संगठित होकर काम भी कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें सफलता नहीं मिल रही है। ऐसे में अहम सवाल यह है कि इसे पूरी तरह कैसे रोका जा सकता है?
चलिए, हम मानते हैं कि आप क़ुरआन और सुन्नत में वर्णित जंगी मामलों से संबंधित आयतों और हदीसों के संबंध में कहेंगे कि वे युद्ध और रक्षा के संदर्भ से संबंधित हैं। लेकिन जब आप तथाकथित मुस्लिम देशों की स्थिति देखेंगे तो आप भ्रमित हो जाएंगे। आए दिन कहीं न कहीं कोई आतंकी हादसा या आत्मघाती हमला होता रहता है। आत्मघाती हमलावरों का पागलपन यह है कि वे अल्लाह की मस्जिदों पर भी हमला करने से बाज नहीं आते। प्रांतीय राजधानी पेशावर में एक मस्जिद पर आत्मघाती हमला इसका ताजा उदाहरण है।
अगर आपको कुरआन और सुन्नत की निश्चित और कतई समझ है तो आप आसानी से कह सकते हैं कि जो लोग इस्लाम के नाम पर आतंकवाद, आत्मघाती हमले और हिंसा कर रहे हैं वे कुरआन और सुन्नत का उल्लंघन कर रहे हैं। लेकिन उन लोगों के साथ क्या व्यवहार है जो इस तरह के हमले करते हैं और इसे कुरआन और सुन्नत के साथ सही ठहराते हैं, और इसी तरह उन लोगों के संदेह को कैसे दूर किया जाए जो मुसलमान नहीं हैं और जो इस्लाम को इन तथाकथित मुसलमानों के चरमपंथी कार्यों से जानने पहचानने की कोशिश करते है और इसी तरह उन लोगों को कैसे रोका जाए जो इन घटनाओं को लेकर इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देने में जरा सी भी लापरवाही नहीं करते हैं। ये तीन तरह के लोग हैं जिनका सुधार मौजूदा हालात में इस्लाम के सुधारकों और शांतिप्रिय उलमा के लिए एक चुनौती है।
बेशक समाज सुधार की जिम्मेदारी सभी मुसलमानों पर नहीं है समाज सुधार के लिए दीन के इल्म से परिचित होना जरूरी है। मुस्लिम समाज में दीन के इल्म का ज्ञान उलमा ही रखते हैं। आम मुसलमान सांसारिक जीविका प्राप्त करने में इतना व्यस्त है कि वह इस्लाम की मूल शिक्षाओं से भी परिचित नहीं है। इसलिए सामान्य मुसलमानों से कुरआन की आयतों की अच्छी व्याख्या और हदीसों की अच्छी व्याख्या की उम्मीद करना संभव नहीं है और पवित्र कुरआन ने भी सभी मुसलमानों को एक ही समय में उम्मत के सुधार के लिए जिम्मेदार नहीं बनाया है, लेकिन यह कहा है कि मुसलमानों के बीच एक समूह होना चाहिए, जो उम्मत के सुधार की सेवा करे।
अल्लाह पाक का फरमान है:
وَ لْتَكُنْ مِّنْكُمْ اُمَّةٌ یَّدْعُوْنَ اِلَى الْخَیْرِ وَ یَاْمُرُوْنَ بِالْمَعْرُوْفِ وَ یَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِؕ-وَ اُولٰٓىٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ( سورہ آل عمران آیت ۱۰۴)
अनुवाद: और तुम में से एक गिरोह ऐसा होना चाहिए जो भलाई की तरफ बुलाएं और अच्छी बात का हुक्म दें और बुरी बात से मना करें और यही लोग फलाह पाने वाले हैं। (सुरह आले इमरान आयत 104)
पवित्र आयत में कहा गया है कि चूंकि यह संभव नहीं है कि सभी मुसलमान एक ही काम में लगें, लेकिन यह जरूरी है कि मुसलमानों का एक समूह ऐसा हो जो लोगों को अच्छाई की ओर बुलाए, उन्हें नेकी की दावत दे अच्छी बात और अमन व सलामती का हुक्म करे और बुरी बात आतंकवाद और हिंसा से रोके। अच्छे और बुरे कर्मों का सही ज्ञान उलमा के पास ही है, इसलिए समाज को सुधारने का कर्तव्य निभाने का दायित्व उलमा का है। वर्तमान स्थिति यह है कि उलमा भी दो प्रकार के हो गए हैं: एक उलमा ए सू और उलमा ए हक़। अतः उलमा ए हक़ का यह दायित्व है कि वे प्रत्येक स्तर पर समाज का सुधार करें। नैतिक, आध्यात्मिक और धार्मिक सुधार के साथ-साथ उन लोगों को भी सुधारना जरूरी है जो इस्लाम को उग्रवादी विचारों का लिबास पहनाते नहीं थकते।
तथाकथित मुस्लिम संगठनों द्वारा आतंकवादी घटनाओं की कवरेज विश्व मीडिया में सबसे अधिक है, इसलिए इस स्तर पर सुधारात्मक कार्य करना सबसे आवश्यक हो गया है।
समय-समय पर उलमा द्वारा आतंकवाद और आत्मघाती हमलों के खिलाफ
फतवे प्रकाशित किए जाते हैं, लेकिन इन सबके बावजूद आतंकी घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। ऐसे में इस संबंध
में एक बड़े मोर्चे पर एक विशेष आंदोलन छेड़ना आवश्यक हो जाता है, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से
चरमपंथी विचारों को रोकना है, ताकि शांति और सुरक्षा का नारा कायम हो और आतंकवाद का पूरी तरह से सफाया हो।
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कनीज़ फातमा आलिमा वा फाज़िला और न्यू एज इस्लाम की नियमित स्तंभकार हैं।
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