गुलाम गौस सिद्दीकी, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
सीरते रसूल इंसानी हुकूक की शिक्षाओं का दर्पण
प्रमुख बिंदु:
1. सीरते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सिसकती हुई इंसानियत
के लिए शाफी इलाज, और इंसानी जीवन को मोअतदिल व संतुलित, खुशहाल, पाकीज़ा और बाबरकत बनाने के लिए एक अज़ीम वसीला है।
2. हर घर के गार्जियन को एक व्यापक सीरते रसूल की किताब
रखना, उसके लिए रोज़ाना एक घंटा निकाल कर अपने अहल व अयाल के सामने पढ़ना और उसमें गौर
व फ़िक्र करना बहुत आवश्यक है ताकि उम्दा अख़लाक़, इल्म व मारफत, रूश्द व हिदायत, खैर व बरकत और दुनिया व आखिरत की सआदतों में इज़ाफा हो।
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आज इंसानी दुनिया ने विज्ञान व तकनीक में लगातार सफलता, असबाब व संसाधन और दौलत की फ्रावानी तो हासिल कर ली मगर नैतिक पतन का शिकार होती जा रही है। माद्दी विकास की दुनिया ने लोगों को इतना व्यस्त कर दिया कि कल्बी व रूहानी सुकून की तरफ उनका ध्यान न रहा। इसलिए आज कुछ लोगों की हालत ऐसी है कि वह खुद भी बेचैन हैं और नित नए और ज़हरीले प्रोपेगेंड से दुनिया को भी बेचैन करने में मसरूफ हैं। इस तरह इंसानी जीवन ऐश के सामान की ज़्यादती के बावजूद कलबी सुकून से महरूम हो कर गुमराही और तारीकी की दलदल में फंस कर रह गई है जहां उसे अच्छे बुरे की तमीज़ नज़र नहीं आ रही है। इस कर्बनाक हालत में कहीं उम्मीद की किरण नज़र आती है तो वह सरवरे कायनात फ़खरे मौजुदात मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हयाते तय्यबा और सीरते पाक है जो सिसकती हुई मानवता के लिए शाफी इलाज और इंसानी जीवन को मोअतदिल व संतुलित, खुशहाल और बा बरकत बनाने के लिए एक अज़ीम वसीला भी है। आज भी अगर दुनिया, विशेषतः मुस्लिम दुनिया को उच्च नैतिकता और सामाजिक शांति हासिल करना है और मायूसियों के दलदल से आज़ाद होना है तो घृणा और संकीर्ण मानसिकता की ऐनक निकाल कर सीरते रसूल का अध्धयन करना ही होगा।
अरब के प्रसिद्ध आलिम शैख़ अली तंतावी ने अपनी किताब “रिजाल मिन तारीख” के पेज 21 पर लिखा है कि हर घर के गार्जियन को एक व्यापक सीरत की किताब रखना, उसके लिए रोज़ाना एक घंटा निकाल कर अपने घर वालों के सामने पढ़ना और उस में गौर व फ़िक्र करना बहुत जरूरी है ताकि उम्दा अख़लाक़, इल्म व मारफत, रूश्द व हिदायत, खैर व बरकत और दुनिया व आखिरत की सआदतों में इज़ाफा हो।
चौदा सौ साल का लम्बा समय गुज़र जाने के बाद भी सीरते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अहमियत आज भी सुरक्षित है। इस मुद्दत में कई क्रांतियाँ हुईं, कई तरह की तहरिकें ज़ाहिर हुईं, विभिन्न सभ्यताओं की छाप मानव जीवन पर पड़ती रही, अक्सर मज़हबी पेशवाओं की जिंदगियां उनके इंतकाल के कुछ साल बाद बदल दी गईं, मगर प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सीरते तय्यबा जूं का तूं आज भी महफूज़ व मामून है। सीरते रसूल खुद नहीं बदली बल्कि बिगड़े हुए इंसानों के ज़ाहिर व बातिन को बदल दिया।
सीरते रसूल से मिलने वाला दर्स हर शख्स के लिए बहुत अहमियत का हामिल है, खुद बादशाह हो या प्रजा, अमीर हो या गरीब, मर्द हो या औरत, बूढा हो या जवान, शहरी हो या देहाती, सय्यद हो या शैख़ सिद्दीकी, पठान हो या किसी भी नस्ल या ज़ात से हो। सीरते रसूल से मिलने वाली शिक्षाओं ने ही ज़ात पात, अमीर व गरीब, काले गोर्वे, अरबी व अजमी और शुऊब व कबायल की अस्बियत को तबाही व बर्बादी का कारण करार दे कर उखुवत और आपसी उल्फत को एक महान नेमत करार दिया जिसके नतीजे में अरबों के बीच कदीम जमाने से चली आ रही कबायली जंगों का खात्मा हो गया और फिर राहत व इत्मीनान की फिज़ा कायम हुई।
प्यारे रसूल ने हज्जतुल विदा के खुतबे में कई अहम बिंदु बयान फरमाए जिनमें इंसानियत की अज़मत, एहतिराम और हुकूक पर आधारित अबदी शिक्षा काबिले गौर हैं मगर ख्याल रहे कि सीरत में हुकूक ए इंसानी से संबंधित वाहिद दस्तावेज़ नहीं बल्कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पुरी जिंदगी उम्दा अख़लाक़, तकरीम ए इंसानियत का आइना है।
हज्जतुल विदा के मौके पर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कई अहम बिंदु फयां फरमाए जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
इंसानी मसावात का दर्स देते हुए नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:
“ऐ इंसानों! अल्लाह पाक का इरशाद है: “ऐ लोगों! हमने तुम्हें एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और तुम्हें कौमें और कबीले बयाना ताकि तुम आपस में पहचान रखो, बेशक अल्लाह के यहाँ तुम में ज़्यादा इज्ज़त वाला वह है जो तुम में ज़्यादा परहेजगार है बेशक अल्लाह जानने वाला खबरदार है।“ (13:49) इसलिए (उपर्युक्त आयत की रौशनी में) न किसी अरबी को किसी अजमी पर कोई फज़ीलत है, न किसी अजमी को किसी अरबी पर, न कोई काला किसी गोरे व्यक्ति से अफज़ल हैम न गोरा काले से अफज़ल है। हाँ! अगर फजीलत व बरतरी का कोई मेयार है तो वह तक्वा है”।
साहबे मदारिक उपर्युक्त आयत की तफसीर में बयान करते हैं: अल्लाह पाक ने इरशाद फरमाया: ऐ लोगों! हमने तुम्हें एक मर्द हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और एक औरत हज़रत हव्वा रज़ी अल्लाहु अन्हा से पैदा किया और जब नसब के इस इन्तेहाई दर्जे पर जा कर तुम सबके सब मिल जाते हो तो नसब में एक दुसरे पर फख्र और बड़ाई का इज़हार करने की कोई वजह नहीं, सब बराबर हो एक जद्दे आला की औलाद हो (इसलिए नसब की वजह से एक दुसरे पर फख्र का इज़हार न करो) और हमने तुम्हें विभिन्न कौमें, कबीले और खानदान बनाया ताकि तुम आपस में एक दुसरे की पहचान रखो और एक शख्स दुसरे का नसब जाने और इस तरह कोई अपने बाप दादा के सिवा दुसरे की तरफ अपने आप को मंसूब न करे, न याक कि अपने नसब पर फख्र करने लग जाए और दूसरों की तहकीर करना शुरू कर दे। (तफसीरे मदारिक, अल हुजरात, आयत: 13, पेज 1156, बहवाला सिरातुल जिनान)
हुकूक की अदायगी का हुक्म देते हुए नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: “कुरैश के लोगों! ऐसा न हो कि अल्लाह के हुजूर तुम इस तरह आओ के तुम्हारी गर्दनों पर तो दुनिया का बोझ लड़ा हवा हो और दुसरे लोग सामाने आखिरत ले कर पहुंचे और अगर ऐसा हुआ तो मैं खुदा के सामने तुम्हारे कुछ काम न आ सकूँगा”
फिर नस्ली तफाखुर का खात्मा करते हुए नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: “कुरैश के लोगों! खुदा ने तुम्हारी झूटी नखुवत को ख़त्म कर डाला और बाप दादा के कारनामों पर तुम्हारे फख्र व मुबाहात की कोई गुंजाइश नहीं।“
इसके बाद इंसानी जान का हक़ और उसकी अहमियत बयान करते हुए इरशाद फरमाया: “ लोगों! तुम्हारे खून व माल और इज्ज़तें हमेशा के लिए एक दुसरे पर कतअन हराम कर दी गई हैं। इन चीजों की अहमियत ऐसी ही है जैसी इस दिन की और इस मुबारक महीने (ज़िल हिज्जा) की ख़ास कर इस शहर में है। तुम सब खुदा के हुजूर जाओगे और वह तुम से तुम्हारे आमाल की बाज़ पुरस फरमाएगा।“
फिर क़त्ल व गारत गरी से मना करते हुए इरशाद फरमाया: “देखो कहीं मेरे बाद गुमराह न हो जाना कि आपस में ही कुश्त व खून करने लगो।“
इसी तरह नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ला कानुनियत के खात्मे, माल के तहफ्फुज़ का हक़, समाज में रहने वाले तमाम अफराद के हुकूक, नौकरों के हुकूक, आर्थिक शोषण से तहफ्फुज़ का हक़, विरासत का हक़, और मियाँ बीवी के हुकूक आदि के संबंध में बहुत उम्दा शिक्षाएं दी, जिसका नतीजा यह हुआ कि पुरी दुनिया में इंसानी हुकूक और अक़दार व रिवायात की पासदारी का दौर बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ और मुसलसल तरक्की पज़ीर है। इंसानी तरक्की का सफर अभी भी जारी है लेकिन इस सिलसिले में इखलास तभी संभव है जब मौजूदा दौर का इंसान सीरते नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ठीक उसी तरह गले लगाए जिस तरह तारीक दौर में सीरते नबी को पहली बार बनी आदम ने गले से लगाया था।
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गुलाम गौस सिद्दीकी न्यू एज इस्लाम के नियमित स्तंभकार हैं।
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English Article: Seerat-e-Rasool, the Biography of the Prophet, And
Its Relevance Today
Urdu Article: Seerat-E-Rasool, the Biography of the Prophet, And
Its Relevance Today عصر
حاضر میں سیرت رسول کی اہمیت
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