गुलाम गौस सिद्दीकी, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
16 जनवरी 2023
न्यू एज इस्लाम की वेबसाइट पर "भारत-पाक में खुला के बढ़ते मामले" शीर्षक से एक लेख प्रकाशित हुआ था। लेखक के लेख के विचारों से हमें यह आभास होता है कि भारत व पाक में रहने वाली बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं अपने पतियों से खुला लेने पर मजबूर हैं। इसकी वजह बताते हुए लेख लिखने वाले उम्मीद है कि हरगिज़ ये विचार नहीं देना चाहते होंगे कि मुस्लिम औरतें ऐसा करने पर इसलिए मजबूर हैं कि उनके पति ज़ालिम हैं और इसकी वजह यह है कि वह मुसलमान हैं।
जब लेख पर निगाह डाली तो फ़ौरन ज़हन में यह ख्याल आया कि इस तूफानी बला बशक्ले खुला (यानी खुला की शक्ल में तूफानी बला) में उन लोगों की आज़माइश है जिनके दिल ईमान के नूर से रौशन हैं कि कहीं ज़लालत व गुमराही के दलदल में फंसे अफ्कार व ख्यालात से प्रभावित हो कर अल्लाह के पसंदीदा दीन ए इस्लाम के खिलाफ सफ आरा हो जाएं और अपनी दुनिया व आखिरत की इज्जत तबाह न कर दें। लेकिन रौशनी साफ़ दिखती है कि अल्लाह पाक जिसे चाहे सिराते मुस्तकीम की दौलत से नवाज़ दे। (कुरआन: अल्लाह पाक जिसे चाहता है सीधे रास्ते की तरफ हिदायत देता है: मुलाहेज़ा फरमाएं सुरह नूर की आयत 46) और यकीनन जिनके दिल ईमान से रौशन हैं वह कभी शर पसंदों की तारीकी व गुमराही का शिकार कभी नहीं होते और मियाँ बीवी में बिला उज्र शरई तफरीक करने वाली शैतानी अमल से दूर रहते हैं।
थोड़ी देर सोचता रहा कि ख्याल आया कि पाकिस्तान और भारत में खुला के बढ़ते घटनाओं कि असल वजह दीने इस्लाम और शरीअत से बेराह रवी का नतीजा है। आज मुसलमान कहे जाने वाले ईमान रखने का दावा तो करते हैं मगर इल्ला माशाअल्लाह केवल जुमा और इदैन (इदुल फ़ित्र और इदुल अजहा) में नज़र तो आते हैं मगर उनकी ज़िन्दगी की सुबह व शाम दुनियावी जिम्मेदारियों के बोझ तले इस कदर दब चुकी है कि रब तबारक व तआला के कलाम को बाअदब बैठ कर निगाहे हकीकत और फैजाने इलाही की शमा जला कर समझने की सआदत से महरूम रहते हैं, और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँखों कि ठंढक नमाज़ जैसी हसीन व नुरानी इबादत की लाज्ज़तों से ना आश्ना रहते हैं। अगर भरपूर समय मिलता है तो सीनेमा, सीरियल, गाने बाजे, और फुजूल बातों और कामों में मसरूफ रहने का। अजी खूब समय मिलता है! लेकिन नमाज़ के लिए बड़ा साफ़ और आम बहाना कि समय ही नहीं मिलता! अजी शैतानी वसवसों ने ज़हनों पर इस तरह कब्ज़ा कर लिया है कि रौशन तथ्य भी नज़र नहीं आते। आज के इस पुर फितन दौर में गैर जरूरी कामों और बेकार बातों में मियाँ बीवी इतने व्यस्त हैं कि इस्लाम ने जो अधिकार एक दुसरे के लिए तय किये हैं उनको सहीह से समझने और उन पर अमल करने का जज़्बा बेदार करने का समय भी नहीं निकाल पाते। गफलत का अँधेरा इस जोर से हमला कर रहा है कि शऊर व बेदारी की रौशनी भी उन्हें नज़र नहीं आती।
दीने इस्लाम से दूरी ही इस बात की अलामत है कि औरतें खुला लेने पर मजबूर हैं। जहां एक तरफ मर्दों ने नमाज़ छोड़ने और दूसरी इबादतों व इताअत से गफलत बरतना शुरू कर दिया है, बीवी के हुकूक और उसकी इज्ज़त व इस्मत और इफ्फत व पाकीज़गी की हिफाज़त करने का दर्स जो इस्लाम ने दिया है इससे कोताही बरतना शुरू कर दिया है, वहीँ दूसरी तरफ औरतों ने भी दीनी शिक्षाओं में दिलचस्पी खोना शुरू कर दिया है। कुछ मियाँ बीवी पढ़े लिखे भी होते हैं मगर वह यह बात भूल जाते हैं कि अल्लाह पाक ने कुरआन मजीद में मियाँ बीवी के बीच बिला उज्र शरई तफरीक करने वाले अमल को शैतानी अमल से ताबीर फरमाया। बिला उज्र शरई तलाक देना भी अल्लाह पाक को नापसंद है। इसकी वजह यह है कि अल्लाह पाक हरगिज़ इस बात को पसंद नहीं फरमाता कि मियाँ बीवी के बीच तफरीक हो, जुदाई हो, बल्कि उसने जगह जगह कुरआन मजीद में साफ़ साफ़ लफ़्ज़ों में औरतों और मर्दों दोनों को एक दुसरे के हुकूक अदा करने और सब्र व शुक्र के साथ जीवन गुज़ारने पर बड़ा अज्र देने का फरमान जारी किया। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बीवियों के साथ हुस्ने सुलूक करने की अमली तालीमात तमाम मुसलमानों को दी है। दूसरी तरफ उम्महातुल मोमिनीन की जिंदगी में तक्वा व तहारत, इबादत व रियाज़त और शौहरों के साथ वफादारी और हुस्ने सुलूक और एहसान शनासी का दर्स तमाम मुस्लिम औरतों को मिलता है। अगर मर्द व औरत दोनों इस्लाम की इन खुबसुरत शिक्षा पर अमल पैरा हो जाएं तो बिला उज्र शरई तलाक व खुला का चलन बिलकुल बंद हो जाए। मगर पहली शर्त यह है कि दीनी शिक्षा पर अमल किया जाए। मियाँ बीवी दोनों को चाहिए कि शरीअत इस्लामिया पर अमल करें, जो यह दर्स देता है कि एक दुसरे के लिए वफादार रहें, एक दुसरे के एहसासात व जज़्बात की कद्र करें, गैर महरमों पर नाजायज़ नज़र करने से बचें क्योंकि तभी मियाँ बीवी में एक दुसरे के ताल्लुक से मोहब्बत में इज़ाफा होगा क्योंकि जब दिलचस्पी कम होगी तो नफरत का सबब बनेगी और तलाक या खुला की नौबत बन जाती है।
खुलासा यह है कि भारत व पाक में अगर वाकई तलाक व खुला का मर्ज़ बढ़ रहा है तो इस मर्ज़ का रूहानी और दीनी इलाज करना अपरिहार्य है। रूहानी और दीनी इलाज यह है कि मियाँ बीवी दोनों को चाहिए कि दीन इस्लाम की शिक्षा को सीखें और एक दुसरे के अधिकार को हुस्ने सुलूक, खुलूस व मुहब्बत के साथ रज़ा ए इलाही के लिए पूरा करें।
लेख लिखने वाले ने भी इसी बात को अपने लेख के आखरी पैराग्राफ में दो उम्दा निकात में बयान किया है कि “अज्द्वाजी ताल्लुकात को स्थिर बनाने के लिए दोनों पक्षों को सब्र व तहम्मुल और एहसास ए जिम्मेदारी का मुज़ाहेरा करना होगा.......जदीद दौर के हालात के पेशेनज़र अवाम में हुकूक व फ़राइज़ के लिए बेदारी लानी होगी......” अगर दीन इस्लाम के बताए अधिकारों और फ़राइज़ व वाजिबात पर अमल कर लिया जाए तो यकीनन खुला और तलाक के बढ़ते मामलों पर कंट्रोल पाना यकीनी है।
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गुलाम गौस सिद्दीकी न्यू एज इस्लाम के नियमित स्तंभकार, उलूम ए दीनीया के तालिब और हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू के अनुवादक हैं।
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Urdu Article: A Comment on the Rising Cases of Khula in India and
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