कनीज़ फातमा, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम
हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जो हक़ और बातिल को नज़र अंदाज़ करते हुए केवल मोहब्बत और नफरत को अहमियत देते हैं; वह जिनसे मोहब्बत करते हैं उनकी प्रशंसा में बिना सोचे समझे गलत और बे बुनियाद और निरर्थक बात करने से भी नहीं झिझकते बल्कि बातिल और मन गढ़त बातों को बड़े यकीन के साथ फैलाते हैं और उसी के उलट अगर किसी से नफरत हो तो फिर उनके बारे में तथ्यों से कोसों दूर बातें भी शौक से फैलाते हैं बल्कि उनकी पाकीज़ा ज़ात पर अपनी तरफ से आरोप लगाते हैं और तथ्य जानने की कोशिश नहीं करते, हक़ तो यह है कि हकीकत जानना ही नहीं चाहते और नफरत का तो यह आलम है कि हकीकत से वाकिफ होने के बावजूद भी नफरत का नशा उन्हें हकीकत समझने नहीं देता।
संक्षेप में...........ऐसे ही नफरत पसंद लोगों में से बड़े शिद्दत पसंद वह लोग हैं जो दुनिया की सबसे पवित्र ज़ात और सबसे अख़लाक़ वाली और सम्मान वाली अर्थात अल्लाह के रसूल हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर बेसोचे समझे आरोप लगाते हैं, हालांकि नफरत करने वाले के लिए भी यह अनिवार्य है कि जब भी ऐसी अज़ीम ज़ात के बारे में कोई मामूली बात मालुम हो तो उसे आगे पहुंचाने से पहले उसकी हकीकत जानने और समझने की कोशिश करें!
आइए इसी हकीकत को समझाने के लिए नफरत पसंद लोगों की तरफ से किये गए एक बातिल व मन गढ़त आरोप का तथ्यों की रौशनी में जवाब देने की कोशिश करते हैं।
वह बातिल एतेराज़ और बे बुनियाद आरोप यह है कि अल्लाह के रसूल हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक ऐसी खातून से जिसके बाप, भाई और शौहर को जंग में आप [सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम] के लश्कर के हाथों क़त्ल कर दिया गया हो, उसी दिन के आखरी हिस्से में वह अपने आपको उन सबके कातिल के साथ पाए तो उसके दिल पर क्या गुज़रती होगी? जिससे इशारा सफिया बिन्ते हई [रज़ीअल्लाहु अन्हुमा] की तरफ है! अब उसी गम की हालत में आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उस खातून (हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा) को शादी पर मजबूर किया अर्थात आपने अपनी ख़ुशी के लिए जबरन निकाह किया। (मआज़ अल्लाह)
और इसी खुद साख्ता प्रोपेगेंडे की बुनियाद पर दुसरा एतेराज़ यह उठाते हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा की इद्दत से पहले ही खिलवत इख्तियार फरमाया।
अब आइये इन बातिल आरोपों का जवाब तथ्य की रौशनी में जानिये और इंसाफ के साथ दुनिया की सबसे मुअज्जम ज़ात की ताज़ीम अपने सीने में बसाइए!
उन नफरत पसंद लोगों का यह कहना कि जिस दिन हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा के बाप और शौहर को कत्ल किया गया उसी रात को वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हमराह आपके बिस्तर पर थीं सरासर बोहतान है जब कि वास्तविकता यह है कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आप रज़ीअल्लाहु अन्हा से उस समय तक हमबिस्तरी नहीं की जब तक उनकी इद्दत पुरी नहीं हो गई; जैसा कि आपको दिन रात देखने वाले सहाबी हज़रत अनस बिन मालिक रज़ीअल्लाहु अन्हु ने बयान किया है:
قَدِمَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ خَيْبَرَ، فَلَمَّا فَتَحَ اللَّهُ عَلَيْهِ الْحِصْنَ ذُكِرَ لَهُ جَمَالُ صَفِيَّةَ بِنْتِ حُيَيِّ بْنِ أَخْطَبَ وَقَدْ قُتِلَ زَوْجُهَا، وَكَانَتْ عَرُوسًا، فَاصْطَفَاهَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ لِنَفْسِهِ، فَخَرَجَ بِهَا حَتَّى بَلَغْنَا سَدَّ الرَّوْحَاءِ حَلَّتْ، فَبَنَى بِهَا، ثُمَّ صَنَعَ حَيْسًا فِي نِطَعٍ صَغِيرٍ، ثُمَّ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : " آذِنْ مَنْ حَوْلَكَ ". فَكَانَتْ تِلْكَ وَلِيمَةَ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ عَلَى صَفِيَّةَ، ثُمَّ خَرَجْنَا إِلَى الْمَدِينَةِ، قَالَ : فَرَأَيْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يُحَوِّي لَهَا وَرَاءَهُ بِعَبَاءَةٍ، ثُمَّ يَجْلِسُ عِنْدَ بَعِيرِهِ فَيَضَعُ رُكْبَتَهُ، فَتَضَعُ صَفِيَّةُ رِجْلَهَا عَلَى رُكْبَتِهِ حَتَّى تَرْكَبَ. (صحيح البخاري، كِتَابٌ : الْبُيُوعُ، بَابٌ : هَلْ يُسَافِرُ بِالْجَارِيَةِف قَبْلَ أَنْ يَسْتَبْرِئَهَا ؟)
अल्लामा इब्ने हजर अस्कलानी रहमतुल्लाह अलैह फ़तहुल बारी शरह सहीह बुखारी में *"حَتَّى بَلَغْنَا سَدَّ الرَّوْحَاءِ حَلَّتْ، فَبَنَى بِهَا"* की व्याख्या में फरमाते हैं: “हिल्लत” अर्थात: तुहरत मिन हैज़ुहा अर्थात अपने हैज़ से पाक हो गईं।
यह बात स्पष्ट होनी चहिये की इद्दत की तहदीद शरीअत ने हैज़ के जरिये की है।
इसी तरह मुस्लिम शरीफ की रिवायत में हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा के निकाह के बारे में तफसील से बयान है जिसका अहम हिस्सा यह है:
فَجَاءَ رَجُلٌ إِلَى نَبِيِّ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَقَالَ : يَا نَبِيَّ اللَّهِ، أَعْطَيْتَ دِحْيَةَ صَفِيَّةَ بِنْتَ حُيَيٍّ سَيِّدِ قُرَيْظَةَ، وَالنَّضِيرِ، مَا تَصْلُحُ إِلَّا لَكَ ؟ قَالَ : " ادْعُوهُ بِهَا ". قَالَ : فَجَاءَ بِهَا، فَلَمَّا نَظَرَ إِلَيْهَا النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قَالَ : " خُذْ جَارِيَةً مِنَ السَّبْيِ غَيْرَهَا ". قَالَ : وَأَعْتَقَهَا وَتَزَوَّجَهَا، فَقَالَ لَهُ ثَابِتٌ : يَا أَبَا حَمْزَةَ، مَا أَصْدَقَهَا ؟ قَالَ : نَفْسَهَا ؛ أَعْتَقَهَا وَتَزَوَّجَهَا حَتَّى إِذَا كَانَ بِالطَّرِيقِ ؛ جَهَّزَتْهَا لَهُ أُمُّ سُلَيْمٍ، فَأَهْدَتْهَا لَهُ مِنَ اللَّيْلِ، فَأَصْبَحَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ عَرُوسًا، (كِتَابٌ : النِّكَاحُ، بَابٌ : فَضِيلَةُ إِعْتَاقِهِ أَمَتَهُ، ثُمَّ يَتَزَوَّجُهَا)
अर्थात; आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: दहिया को बुलाओ, पस वह हज़रत सफिया को हमराह लेते हुए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुआ, पस आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: सफिया के अलावा कैदियों से कोई और लौंडी को पसंद कर लो। पस आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा को गुलामी से आज़ाद किया और उसे अपने निकाह में लाए और उसकी आज़ादी को ही उसका महर मुकर्रर किया। यहाँ तक कि जिस समय रास्ते ही में थे, हज़रत उम्मे सलेम रज़ीअल्लाहु अन्हा ने हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा को रात के वक्त आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास भेज दिया। पस हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सुबह के वक्त शादी शुदा मालुम हुए, [पस इसके बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वलीमा भी किया।
उपर्युक्त हदीस रोज़े रौशन की तरह इस बात की वजाहत कर रही है कि अल्लाह के रसूल ने हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा को हज़रत दहिया से खरीद कर आज़ाद किया और उसी आज़ादी को उसका महर मुकर्रर कर के उनसे निकाह किया। इसके बाद उन्हें उम्मे सलेम रज़ीअल्लाहु अन्हा के हवाले किया। इस हदीस के साथ ही मुस्लिम की दूसरी रिवायत में उल्लेख है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत सफिया रज़िअल्लाहु अन्हा को हज़रत दहिया रज़ीअल्लाहु अन्हु से खरीद कर इसके बदले में उसे सात नफीस लौंडियाँ अता कीं और उम्मे सलेम रज़ीअल्लाहु अन्हा को इस लिए उसे सपुर्द किया कि उनके घर में उनकी इद्दत पूरी हो।
उपर्युक्त हदीस ने मतला साफ़ कर दिया नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा से इद्दत से पहले हक़ जौजियत अदा नहीं किया। चूँकि हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा लूट में लौंडी बन कर आई थीं। हालांकि उन्हें आज़ाद कर के उनसे निकाह किया, मगर तथापि उनकी इद्दत लौंडी जैसी थी, अर्थात एक हैज़। चूँकि इस्लाम में इद्दत गुजरने से पहले मुजामेअत हराम है, इसलिए हमें यकीन है कि हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इद्दत गुजरने के बाद उनसे हक़ जौजियत अदा किया था, जैसा कि उपर्युक्त हदीस की व्याख्या से भी स्पष्ट है।
इसी तरह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस समय तक हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा से सोहबत नहीं की जब तक कि उन्होंने अपने इस्लाम का एलान नहीं कर दिया, और फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें आज़ाद करने के बाद [उनसे निकाह किया, तब जाकर] ही उनके साथ शब बाशी फरमाई। [और यह इस्लाम और यह निकाह सब ज़ाहिर है कि शरीअत के ऐन मुताबिक़ अर्थात बरज़ा व रगबत हुआ]।
इसलिए जिस वक्त आपने उनसे जमाअ किया उस वक्त वह न तो यहूदिया थीं न ही कोई बांदी! बल्कि वह आपकी बीवी थीं, जिन्हें आपने महर दिया था, और उनकी आज़ादी ही उनका महर थी और यही नहीं बल्कि उनकी शादी के वलीमे का भी एहतिमाम किया था____
यह तमाम व्याख्या तो उनके लिए हैं जिन्होंने यह बेहूदा एतेराज़ कर के अपनी आखिरत खराब कर ली है वरना हमारा तो यह ईमान है कि हुजुर ने जैसा भी किया वह उनके लिए मुख्तस और हमारे लिए शरीअत है।
यह तो इद्दत से पहले क्या खिलवत किये थे या नहीं उसकी वजाहत थी। अब यह मुलाहेज़ा करें कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस वक्त उनसे निकाह करके हज़रत सफिया पर जब्र किया या फज़ल?
इसके जवाब में कुछ ऐसे मुफीद तथ्य मुलाहेज़ा करें जो उम्मुल मोमिनीन हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा के किस्से से संबंधित है:
हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा ने अपने कैद किये जाने से बहुत लाभ हासिल किया, यही क्या कम था कि आप ईमान की दौलत से सम्मानित हुईं और गुलामी के जरिये अल्लाह ने आपको कुफ्र से निजात बख्शी। इस्लाम के बाद आप के शरफ व फजीलत के लिए इससे बढ़ कर और क्या बात होगी कि आप नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जौजियत से मुशर्रफ हो कर पुरी उम्मत की मां करार पाईं।
यह तो वह फजीलातें थीं जो उन्हें इस गुलामी से मिली थी लेकिन ऐसा हगिज़ नहीं था जैसा कि कुछ बदनीयत और मुफाद परस्तों ने बना कर पेश किया है कि हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा अपने शौहर और बाप के क़त्ल के बाद आपसे नाराज़ थीं और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसी हालत में उनसे निकाह किया हालांकि हकीकत इसके खिलाफ है क्योंकि हुजुर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को और इस्लाम को हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा के बाप की जानिब से जो कुछ (तकलीफ या नुक्सान) पहुंचा था, आपने सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा को इससे बाखबर कर दिया था, फिर आप लगातार उन्हें इसकी खबर देते रहे, और माजरत भी करते रहे, यहाँ तक कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खिलाफ जो कुछ (गम गुस्सा) उनके दिल में था वह जाता रहा और जो (गम गुस्सा) उनके दिल में था उसके दूर होने के बाद ही आपने उनको जीवन साथी बनाया, यहाँ तक कि आप मुसलमानों की मां के दर्जे और मुकाम की हकदार हुईं।
जिसकी दलील में हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहु अन्हु की निम्नलिखित हदीस ही काफी है-
"قالت: وكان رسولُ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم مِن أبغضِ النَّاسِ إليَّ قتَل زوجي وأبي وأخي فما زال يعتذرُ إليَّ ويقولُ: ( إنَّ أباك ألَّب عليَّ العربَ وفعَل وفعَل ) حتَّى ذهَب ذلك مِن نفسي........ الخ" (ابن حبان (ت ٣٥٤)، صحيح ابن حبان ٥١٩٩ أخرجه في صحيحه.)
अनुवाद: अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा ने कहा: नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे नजदीक मबगूज़ तरीन इंसानों में से थे, इसलिए कि उन्होंने मेरे शौहर, बाप और भाई को मौत के घाट उतार दिया था। लेकिन आप लगातार मुझसे इस सिलसिले में माज़रत करते और कहते रहे: “तुम्हारा बाप अरबों को मेरे खिलाफ वर्गला कर मुझ पर चढ़ा लाया [इशारा गजवा अहज़ाब की तरफ], और यह किया और यह किया” यहाँ तक कि वह (बुग्ज़) मेरे दिल से दूर हो गया।
(इसको इब्ने हिबान ने अपनी सहीह में रिवायत किया है)
यह तो जंगे खैबर का वाकिया था लेकिन हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा ने पहले से ही एक ख्वाब भी देख चुकी थी, जिसकी ताबीर उनके यहूदी शौहर ने यह बयान की थी उनकी शादी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से होने वाली है।
इसलिए अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ीअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि
ورأى رسولُ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم بعينَيْ صفيَّةَ خُضرةً فقال: ( يا صفيَّةُ ما هذه الخُضرةُ ؟ ) فقالت: كان رأسي في حَجرِ ابنِ أبي حُقيقٍ وأنا نائمةٌ فرأَيْتُ كأنَّ قمرًا وقَع في حَجري فأخبَرْتُه بذلك فلطَمني وقال: تمنَّيْنَ مُلْكَ يثربَ؟ (ابن حبان (ت ٣٥٤)، صحيح ابن حبان ٥١٩٩ أخرجه في صحيحه.)
अर्थात; रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत सफिया की आँखों पर एक हरा [चोट का] निशान देखा आप ने उनसे पुछा: सफिया! यह हरा निशान कैसा है? उन्होंने कहा: मैं इब्ने अबी हकीक की गोद में सर रख कर सो रही थी। उसी दौरान मैंने ख्वाब में देखा कि जैसे एक चाँद मेरी गोद में आकर गिर गया है। जब यह ख्वाब मैंने उसको बताया तो उसने मुझे थप्पड़ मार दिया और बोला: तू यसरब (मदीने) के बादशाह के ख्वाब देख रही है?
अलहम्दुलिल्लाह, इन तमाम तफ्सीलात ने अह्काके हक़ और अज़्हाके बातिल का हक़ अदा कर दिया और साफ़ वाजेह हो गया कि नफरत पसंद लोग अपने प्रोपेगेंडे की खातिर मन से गढ़ कर दुनिया की मुअज्ज़म तरीन ज़ात पर आरोप तराशियाँ करते हैं जिसका हकीकत से कोई संबंध नहीं होता।
हमने वाज़ेह कर दिया..............
1- उम्मुल मोमिनीन हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा से आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आप के पहले शौहर की मौत की इद्दत पुरी होने के बाद ही निकाह फरमाया।
2- हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का निकाह रज़ा व खुशनूदी के साथ हुआ था कतई जबरी निकाह नहीं था।
3- उम्मुल मोमिनीन हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बड़ी मोहब्बत फरमाया करती थीं; वालिद, पहले शौहर और दुसरे यहूदी रिश्तेदारों के क़त्ल की वजह से जो गम और तकलीफें थीं आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन सब तकलीफ को आपके दिल से दूर कर दिया और उम्मुल मोमिनीन रज़ीअल्लाहु अन्हा आपसे बे पनाह मोहब्बत करने लगीं बल्कि दुनिया में सबसे अधिक आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही से मोहब्बत फरमाने लगीं।
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