विशेष संवाददाता, न्यू एज इस्लाम
१ फरवरी २०२१
आखिर ‘यौमे यकजेहती’ पाकिस्तानी अवाम के किस काम का है?
५ फरवरी एक ऐसा मौक़ा है जिसे एक ऐसे दिन के तौर पर देखा जाना
चाहिए जब कश्मीर घाटी में सीमा पार से होने वाली आतंकवाद और पाकिस्तान के ज़ेरे साया
होने वाली गारतगिरी शुरू हुई। लेकिन हैरत है
कि पाकिस्तान में हर साल इसको पूरी तरह से विरोधाभासी अंदाज़ में “यौमे यकजेहती कश्मीर” के तौर पर मनाया जाता है, हालांकि विश्व स्तर पर दक्षिण एशिया की कुछ अतिवादी
जमातों के अलावा इस बेतुके बयानिये का कोई पूछने वाला नहीं है।
जहां तक उम्मते मुस्लिमा की बात है तो, कश्मीर के मसले के बारे में अरब और गैर अरब मुस्लिम
ब्लाक्स पाकिस्तानी तखरीबी एजेंडे पर संयुक्त या सहमत नहीं हैं। बे शर्मी की हद यह
है कि अब पाकिस्तान इलज़ाम तराशी का खेल खेल रहा है, और अपनी राजनयिक असफलता को ओआईसी (तंजीम ताउने इस्लामी) के
जिम्मे डाल रहा है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर कश्मीर मसले के हल के हवाले से भारत से अधिक पाकिस्तान को आलोचना का निशाना
बनना पड़ रहा है।
खाड़ी देशों की तरफ से कश्मीर से संबंधित अपनी बयान बाज़ी पर कोई
स्पष्ट हिमायत हासिल ना होने के बाद, पाक राजनीतिज्ञों ने यह एहसास किया कि ओआईसी में सऊदी अरब और संयुक्त इमारात के
असर व नुफुज़ की वजह से उनका भला नहीं हुआ, बात यह है कि कश्मीर मसले पर कोई विशेष इजलास नहीं बुलाया गया। प्रसिद्ध पाकिस्तानी
राजनीतिज्ञों और मुस्लिम लीग नवाज़ के रहनुमा ख्वाजा आसिफ ने इस सिलसिले में यहाँ तक
कह दिया कि कश्मीर की बात आते ही ५७ मुस्लिम देशों का मजमुई बलाक एक “बे रूह जिस्म” बन जाता है।
पाकिस्तान में हिज्बे इख्तिलाफ पार्टी के एक रहनुमा यह एतेराफ
करते हुए नज़र आए कि यह केवल राजनीतिक असफलता को छिपाने की एक चाल है, जो आर्टिकिल ३७ खात्मे के बाद अपने स्टैंड को हासिल
करने में पाकिस्तान की सिफारती नाकामी को ज़ाहिर करता है जिसको अंतर्राष्ट्रीय स्तर
पर केवल तीन देशों चीन, तुर्की और मलेशिया
की हिमायत हासिल है। संयुक्त राष्ट्र में बाकी दुनिया को भारत के कश्मीर इकदाम से कोई
परेशानी नहीं है।
ओआईसी समेत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान दस्ते कोचक और
नक़्शे फरियादी बन कर रह गया है, लेकिन फिर भी मामूल
के मुताबिक़ अपने दाखली अतिवादी गिरोहों और बुनियाद परस्त संगठनों की सर बराही करते
हुए पाकिस्तान इस मौके पर गैर मुतज़लज़ल तौर पर “यौमे यकजेहती” मनाता हुआ नज़र आता है। दिलचस्प बात यह है कि इस
बार, मरहूम मौलाना खादिम हुसैन
रिज़वी के कायम किये हुए हिंसक पॉलिटिकल ऑर्गनाइजेशन और दुनिया भर में मुसलमानों की
बदनामी का कारण बनने वाली धार्मिक राजनीतिक जमात “तहरीके लब्बैक” और इस जैसी संगठनों ने, जिसमें “तहरीके सिराते मुस्तफा” भी शामिल है,
५ फरवरी को “यौमे यकजेहती कश्मीर” के तौर पर मनाने का एलान किया है। उन्होंने २४ जनवरी
को एक एग्ज़िक्युटिव कमेटी का इजलास आयोजित किया और इस मौके पर वर्कशाप, ऑन लाइन सेमीनार, बच्चों के मुकाबला जाती प्रोग्राम, एहतिजाज और बड़े जलसे आयोजित करने का मंसूबा बनाया।
५ फरवरी को “यौमे यकजेहती कश्मीर” के तौर पर मनाने से
अधिक हैरत की बात तो यह है कि पाकिस्तान में सुन्नी और शिया उलेमा के बीच इस इजलास
में सबका इत्तेफाक भी है। “तहरीके लब्बैक या
रसूलुल्लाह” की सियासी विंग “तहरीके लब्बैक इस्लाम” के चेयरमैन डॉक्टर
मोहम्मद अशरफ आसिफ जलाली ने कुछ शिया उलेमा और लाहौर व कराची में विभिन्न स्थानों से
दुसरे सुन्नी अकाबिर जैसे मुफ़्ती मुजद्दीदी और डॉक्टर आसिफ बिलाली की मौजुदगी में डॉक्टर
जलाली ने इस दहाड़ के साथ इस इज्तिमा में सुन्नी और शिया दोनों ही गिरोहों के उलेमा
को सक्रिय करने की कोशिश की है और यह कहा है कि “भारत ग्रेटर इस्राइल के नक़्शे कदम पर चलते हुए महाभारत के एजेंडे
पर आगे बढ़ रहा है, अब केवल तलवार ही
कश्मीर मसले का हल है”।
इस तरह की फलक शिगाफ दहाड़ें यह ज़ाहिर करती हैं कि मुकामी अतिवादी
मौलवियों के भेस में, पाकिस्तानी सत्ता
अपनी मायूसी और गुस्से को काबू नहीं कर पा रहा है। इसके बाद से कई इज्तिमात,
एह्तिजाजात, कान्फ्रेंसें और यहाँ तक कि सख्त अलफ़ाज़ में करारदादें अंतर्राष्ट्रीय
मीडिया और प्लेटफ़ॉर्म से नशर की गईं। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ना तो उनका कोई
वज़न है और ना ही उनका मुकामी तौर पर ज़मीनी असर है। यहाँ तक कि पाकिस्तान में एक आम
आदमी भी इस हकीकत से बखूबी वाकिफ है कि अय्यूब खान के १९६५ के बयान से क्या ज़ाहिर हुआ
था। सरहद के उस पार, कश्मीरी बाशिंदे भी
अब बेदार हो चुके हैं। वह खूब समझते हैं कि पाकिस्तान कभी भी पांच मिलियन कश्मीरियों
के लिए एक सौ मिलियन पाकिस्तानियों का खतरा मोल नहीं लेगा।
फिर आखिर “यौमे यकजेहती कश्मीर” पाकिस्तानी अवाम के
किस काम आएगा? एक आम पाकिस्तानी
शहरी के लिए ५ फरवरी को इस तौर पर मनाया जाना चाहिए कि यह हफ्ते के मध्य में एक छुट्टी
का दिन है! एक ऐसा दिन जो “कश्मीर की आज़ादी” के धमाका खेज टेलीफोनी
संदेश से भरपूर है, और जो रात गए सोने
से ले कर, दोपर खाने के समय जागने के
बाद तक और फिर “यूमे कश्मीर” के लिए शापिंग और
नई नई खरीदारी तक फुर्सत और ऐश का सामान प्रदान करता रहा है!!!
तो क्या हुआ जो आप को कश्मीर “आज़ाद” नहीं मिला? आपके पास कम से कम एक ‘कश्मीरी एहसास’ से लबरेज़ एक छुट्टी का दिन तो है जिसके सदके गोया आप कश्मीर की जन्नत में ‘आज़ादाना तौर पर’ घूम रहे हैं!
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