सुमित पाल. न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
1 जुलाई 2022
“बहुत विकसित, रुमियों के सिर पर भी खून खराबे और ज़ुल्म का जुनून सवार था। दो ग्लेडीएटरों का उस समय लड़ना जब तक कि उनमें से एक मर न जाए और गुलामों और अपराधियों को भूके शेरों के आगे फेंकना निश्चित रूप से एक बहुत ही अच्छी कौम के निर्णायक पतन के कुछ लक्षण थे, क्योंकि जब लोग खून खराबे, क़त्ल व गारत गरी और मार पीट के तमाशाई बन जाते हैं तो उस कौम का पतन साफ़ हो जाता है। इंसान अधिक देर तक न तो अत्याचार बर्दाश्त कर सकता है और न ही उस पर कायम रह सकता है।“
सर एडवर्ड गबन, ‘(Rise and Fall of Roman Empire) रोमन सलतनत का उत्थान और पतन’
“खून के प्यासे रुमियों ने अपनी कब्र खुद खोदीं।“
प्रोफ़ेसर ब्लोर लैटिन, ‘(Last Days of Pompeii) पोम्पी के आखरी दिन’ में उपर्युक्त बयान को खूनी वीडियो के साथ अपने जुनून से जोड़ना चाहता हूँ। जब किसी ने कन्हैया लाल का सिर कलम करने की वीडियो भेजी तो मैंने उसे फ़ौरन डिलीट कर दिया और इतना असंवेदनशील होने पर इसकी सर्ज़िंश भी की। लोग ऐसे खून आलूद तमाशे कैसे देख सकते हैं यह मेरी समझ से बाहर है। लेकिन बात यही है कि इंसान हमेशा से बहुत बेहिस रहे हैं।
सऊदी अरब के राज्य और कुछ अन्य मुस्लिम देशों में जहां शरिया अभी भी लागू है, मैंने लोगों को शाम की नमाज़ के तुरंत बाद (आमतौर पर असर और मग़रिब के बीच) एक अपराधी का सिर कलम करते देखा है। पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं (जिन्हें पुरुषों की तुलना में आनुवंशिक रूप से अधिक संवेदनशील माना जाता है) एक गरीब अपराधी के खूनी सिर को रेत पर लुढ़कते हुए देखना पसंद करते हैं। यह खूनी और भयानक नजारा उन 'अच्छे' लोगों को किस तरह का आनंद देता है जो एक आदमी के सिर काटने का इंतजार कर रहे हैं, यह एक ऐसा सवाल है जो मुझे हमेशा सताता है।
मनोवैज्ञानिक और न्यूरोलॉजिस्ट मानते हैं कि इससे उन्हें कामुक आनंद मिलता है। आखिर कोई इंसान इंसान की हत्या को कैसे देख सकता है? यह मानवीय गरिमा का अपमान है, भले ही व्यक्ति गंभीर अपराधी ही क्यों न हो। याद रखें, इस अजीब और पशुवत व्यवहार के लिए अकेले सऊदी अरब और अन्य देशों के मुसलमानों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। यह घृणित गुण कमोबेश सभी मनुष्यों में पाया जाता है। हम खून के प्यासे जैली इंसान हैं और निएंडरथल (पाषाण युग के इंसान) से भी बदतर हैं। मैंने युवाओं को ISIS के गुंडों को लोगों का सिर कलम करते हुए देखते हैं।
हमारे जीवन और समाज के प्रति संवेदनशीलता के पूर्ण अभाव ने हमें इन सभी घटनाओं से बेनियाज़ कर दिया है। सदियों पहले निजामी ने फारसी में लिखा था कि "हर तरफ खून देखकर और उसकी बदबू से प्यार करते हुए लोग फूलों की खुशबू को भूल गए हैं।" "बिल्कुल सच है। उर्दू शायर फ़ाज़िल अल्ताफ़ लिखते हैं, "मुझे ख़ून की एक बूँद नहीं दिखती / ख़ून के समंदर में लोग डुबकी लगाते हैं"।
उदयपुर में सिर काटने वालों की तरह ये सभी अपराधी जानते हैं कि इस तरह का दिल दहला देने वाला वीडियो न केवल लोगों को हैरान करेगा, बल्कि उनकी पशु प्रवृत्ति को भी अपनी ओर आकर्षित करेगा। यह उन्हें (अपराधियों को) निराधार समर्थन का आनंद देता है और ऐसे वीडियो देखने वाले हजारों लोगों से जीत का एहसास हासिल होता है। दूसरे शब्दों में, उन्होंने जो अपलोड किया है उसे देख कर हम उन बदमाशों को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
वास्तव में, दो तर्कहीन धार्मिक गुंडों की निंदा करने से पहले, हमें अपने स्वयं के निंदनीय व्यवहार और घोर उदासीनता की निंदा करनी चाहिए, जो इस तरह की अकल्पनीय क्रूरता और बर्बरता को बढ़ावा देने के लिए उत्प्रेरक है। हमें खुद से पूछना चाहिए कि हम कहाँ जा रहे हैं? क्या हम भी इन बेरहम हत्यारों और दिलेर अपराधियों की तरह नहीं हैं? अगर यह अभी भी हमारे अंदर जीवित है, तो हम अपने विवेक के प्रति जवाबदेह हैं।
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English Article: Our Obsession with Blood and Gore Also Contributes to
Acts like Beheadings
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