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Hindi Section ( 26 Dec 2022, NewAgeIslam.Com)

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Do Muslim Women Who Are Not Grateful For Their Husbands' Favours Become Kaafirs? क्या पतियों की नाशुक्री से महिलाएं काफिरा बन जाती हैं?

कनीज़ फातमा, न्यू एज इस्लाम

उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम

प्रमुख बिंदु:

कुफराने अशीर का अर्थ

कुफ्र के दरजात व मानी

कुफ्र का एक अर्थ नाशुक्री अर्थात एहसान फरामोशी के भी हैं

औरतें जिस वजह से अधिक तर जहन्नम में होंगी उसकी वजह पतियों के एहसानात की नाशुक्री होगी।

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सुधार का दायरा काफी विस्तृत है जो वैवाहिक जीवन में केवल मर्दों तक सीमित नहीं बल्कि औरतों पर भी लाज़िम है कि वह अपनी कोताहियों की इस्लाह करें। कुरआन व सुन्नत की शिक्षाओं जहां एक तरफ मर्दों को औरतों के मुकम्मल अधिकारों का ख्याल रखने की शिक्षा दी गई वहीँ औरतों को भी आदेश दिया गया है कि वह अपने पति के अधिकार का ख्याल रखें। एक सफल और खुशगवार वैवाहिक जीवन के लिए यह अम्र लाज़मी है कि मर्द व औरत दोनों अपनी जिम्मेदारियों का ख्याल रखे। मगर हमारे समाज में आज कल औरतों के अधिकारों और इख्तियारों की बातें बहुत होती हैं जो कि दुरुस्त बात है मगर दूसरी जानिब औरतों की इस्लाह पर ध्यान बहुत कम होती जा रही है जिसका नतीजा यह होता है कि वैवाहिक जीवन में कडवाहट शुरू होने लगती हैं। वैवाहिक जीवन में यह आवश्यक नहीं कि हमेशा मर्द ही गलतियों का जिम्मेदार हो बल्कि कभी कभी महिलाएं भी जिम्मेदार होती हैं। लेकिन चेतना से इतनी खाली होती हैं कि उन्हें अपनी गलतियों का एहसास तक नहीं होता। आज इस संक्षिप्त मकाले में एक ख़ास विषय पर बात चीत करें गे जिस पर महिलाओं को गौर व फ़िक्र करने की बहुत आवश्यकता है। इस ख़ास विषय का नाम है कुफराने अशीर यानी शौहर के एहसान की नाशुक्री या एहसान फरामोशी।

कुफराने अशीर एक ऐसी खराबी है जिसकी इस्लाह की शिक्षा नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ताकीद शिद्दत के साथ दी। हदीस पाक में है:

عن ابن عباس رضي الله عنه قال قال النبي صلى الله تعالى عليه وسلم أريت النار، فإذا أكثر أهلها النساء يكفرن . قيل : أ يكفرن بالله ؟ قال (صلى الله عليه وسلم) يكفرن العشير ويكفرن الإحسان، لو أحسنت إلى إحداهن الدهر ثم رأت منك شيئا قالت ما رأيت منك خيرا قط. (صحيح البخاري ، كتاب الإيمان، رقم الحديث 27)

हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहु अन्हु से मरवी है कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मुझे जहन्नम दिखाई गई तो जहन्नम में अधिकतर औरतों को देखा (क्योंकि) वह कुफ्र (नाशुक्री) करती हैं। अर्ज़ किया गया क्या वह अल्लाह के साथ कुफ्र करती हैं? तो नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि नहीं बल्कि वह पतियों की नाशुक्री करती हैं और एहसान नहीं मानती अगर तुम उनमें से किसी एक एक साथ ज़माना भर एहसान करो फिर अगर वह तुमसे कोई बात नापसंद देखे तो कह दे गी मैं ने तुमसे कभी कोई भलाई नहीं देखी।

शब्दकोष में अशीर उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसके साथ जीवन गुजारी जाए और मेल जोल रखा जाए। उपर्युक्त हदीस में अशीर से मुराद शौहर है जो अपनी बीवी के हक़ में अधिक मेल जो रखता है। कुफ्रान के लफ्ज़ी मानी नाशुक्री के हैं, इसलिए कुफराने अशीर के माना हैं शौहर की नाशुक्री।

मुफ़्ती शरीफुल हक़ ने सहीह बुखारी की शरह में लिखा है कि कुफ्र के असल अर्थ छिपाने के हैं। यहाँ एहसान छिपाना मुराद है, अर्थात नाशुक्री करना नीज कुफ्र के अर्थ बराअत और बेजारी के भी हैं। यहाँ मुराद नाशुक्री है। इस हदीस से मालुम हुआ कि नाशुक्री गुनाह है। लुजूमन साबित हुआ कि एहसान शनासी वाजिब है। (नुज्हतुल कारी शरह सहीह बुखारी, तहतुल हदीस अल मज़कूर)

उपर्युक्त हदीस में पति की नाशुक्री को कुफ्र खा गया है। यहाँ कुफ्र से मुराद वह कुफ्र नहीं जिसकी बुनियाद पर एक इंसान ईमान से बाहर हो जाता है। जिस तरह ईमान के विभिन्न दर्जे होते हैं उसी तरह कुफ्र के भी विभिन्न दर्जे होते हैं। अल्लाह पाक उसके तमाम रसूलों, नबियों, फरिश्तों, किताबों, हशर व नशर, बास बादल मौत, आदि पर ईमान लाने से इंसान मोमिन बन जाता है। मगर जब वह मोमिन अपने ईमान के साथ साथ अच्छे आमाल अंजाम दे तो हदीस में ऐसे व्यक्ति के बारे में कहा गया है कि उसने अपने ईमान को कामिल कर लिया अर्थात उसका ईमान मजबूत हो गया। इसी तरह कुफ्र के भी कई दर्जे हैं। कुफ्र का सबसे बड़ा दर्जा यह है कि कोई अल्लाह पाक उसके तमाम रसूलों, नबियों, फरिश्तों, किताबों, हशर व नशर, बास बादल मौत, आदि पर ईमान लाने से इनकार करे। ऐसा शख्स गैर मोमिन होता है। इसके अलावा कुफ्र का इतलाक गुनाहों पर भी होता है। जो गुनाह बहुत बड़ा होता है और अल्लाह पाक के नज़दीक काफी नापसंद होता है उस पर कभी कुफ्र का इतलाक किया जाता है। जैसे एक हदीस में कहा गया है कि मुसलमानों को गाली देना फिस्क है और उनसे किताल करना कुफ्र है तो यहाँ यह मतलब नहीं कि किताल करने वाला काफिर हो जाएगा बल्कि मतलब यह है कि मोमिन से किताल करने वाला बहुत बड़ा गुनाह गार है। चूँकि मोमिन से किताल उमुमन कुफ्फार करते थे इसलिए यह उनका अलामती काम बन गया और मजाज़न कह दिया गया कि यह काम कुफ्र है, मगर इस काम से एक मोमिन काफिर नहीं होता

तो मालुम हुआ कि एक कुफ्र वह है जिसके करने से इंसान ईमान से बाहर होता है और एक कुफ्र वह है जिससे ईमान से बाहर नहीं होता बल्कि बड़ा गुनाह गार होता है। ज़ेरे बहस हदीस कुफाराने अशीर को कुफ्र कहा गया है तो इससे मुराद पतियों की नाशुक्री है जो कि ऐसा गुनाहे अज़ीम है जो अल्लाह को बहुत नापसंद है और जो इस बात की तरफ इशारा है कि पहली फुर्सत में इस काम से तौबा कर के बाज़ रहा जाए क्योंकि इस पर जहन्नम में सज़ा की वईद आई है।

इस तकरीर से यह मालुम होगया कि कुफ्र के कई अर्थ और दर्जे हैं जिनमें से एक अर्थ नाशुक्री करने के हैं। अगर औरत यह नाशुक्री शौहर के हक़ में करे तो वह काफिरा नहीं कहलाएगी बल्कि वह मोमिना ही रहेगी बल्कि वह गुनाहे अज़ीम की मुर्तकब कहलाएगी।

कुफराने अशीर वाली हदीस के ताल्लुक से दो कौल हैं एक कौल के मुताबिक़ यह है कि कयामत तक की तमाम औरतें नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दिखाई गईं और दूसरा कौल यह है कि इसमें केवल नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाने की औरतें दिखलाई गईं। दोनों सूरतों में यह बात यकीनी है कि इसमें तमाम औरतें शामिल नहीं हैं बल्कि यह बतलाना मकसूद है कि औरतों में अधिकतर शौहरों की नाशुक्री की वजह से जहन्नम में सज़ा पाएंगी। यह भी मालुम हुआ कि तमाम औरतें नाशुक्री नहीं करती। इसलिए जिनके अंदर नाशुक्री की बुराई है उन पर लाज़िम है पहली फुर्सत में अपनी इस्लाह करे। इस हदीस में इस्लाह का पैगाम दिया गया है इसमें यह इजाज़त नहीं कि ज़ेरे बहस मसला पर मर्द व औरत के मवाजना पर इतनी तवज्जोह दी जाए कि इस्लाह का मकसद मफकूद हो जाए।

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कनीज़ फातमा न्यू एज इस्लाम की नियमित कालम निगार और आलमा व फाज़ला हैं।

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Urdu Article: Do Muslim Women Who Are Not Grateful For Their Husbands' Favours Become Kaafirs? کیا شوہروں کی ناشکری سے عورتیں کافرہ بن جاتی ہیں ؟

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/muslim-women-grateful-husbands-kaafirs/d/128716

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