New Age Islam
Sun Jun 15 2025, 05:53 PM

Hindi Section ( 20 Aug 2021, NewAgeIslam.Com)

Comment | Comment

Muharram Religious Gatherings and Speeches मोहर्रम की मजालिस, जलसे और तकारीर

शकील शम्सी

उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम

20 अगस्त 2021

आज यौमे आशूरा है, लेकिन कोरोना महामारी के कारण आज भारत भर में जो ताजिये और अलम के जुलूस पारम्परिक अंदाज़ में निकाले जाते थे वह नहीं निकल रहे हैं, बल्कि व्यक्तिगत तौर पर लोग कर्बलाओं और इमाम बाड़ों में जा कर इमाम आली मकाम को खिराजे अकीदत पेश कर रहे हैं। मालुम होना चाहिए कि मोहर्रम शुरू होते ही पुरे भारत में मजलिसों और ज़िक्रे शहादत के जलसों का आयोजन होना शुरू हो जाता है। इन मजालिस और जलसों में भारत के नामवर उलमा और तकरीर करने वाले कर्बला के शहीदों के बारगाह में नज़राने अकीदत पेश करते हैं। इस बार मजलिस का एहतिमाम बहुत सीमित पैमाने पर अंजाम दिया गया, मगर आधुनिक तकनीक उपलब्ध होने का लाभ लोगों ने खूब उठाया और सुबह से ले कर देर रात तक यूट्यूब और फेस बुक पर मजालिस सीधे तौर पर प्रसारित होती रहीं जिसकी वजह से लोग अपने घरों में बैठ कर भी मजालिस सुन सके। वैसे इस बार कोरोना की पाबंदियां इतनी सख्त नहीं थीं जितनी पिछले साल थीं और घरों, मस्जिदों और इमाम बाड़ों में तो कम से कम पचास लोग मजलिसों में शरीक रहे। मुझे भी यूट्यूब की मेहरबानी से कई ज़ाकेरीन और उलमा की मजालिस घर बैठ कर सुनने का मौक़ा मिला और मुझे इस बात का शिद्दत के साथ एहसास हुआ कि अधिकतर लोग मिम्बर का हक़ अदा नहीं कर रहे हैं। अधिकतर लोग चौदा सौ साल पुराने मतभेद को बयान करने और अपने मसलक के हक़ पर होने की दलील देने में लगे रहे।

आज मुस्लिम उम्मत किन समस्याओं से दो चार है, आज मुसलामानों को किस प्रकार के हमलों का सामना है और आज के मुस्लिम युवाओं को किस तरह की परेशानियां झेलना पड़ रही हैं इस पर शायद ही किसी दीन के आलिम या मुबल्लिग ने बात की हो। वह एतेहासिक घटनाएं जिनको अब परिवर्तित नहीं किया जा सकता। वह अकीदत मंदों का मतभेद जो पिछले चौदा सौ साल से मुसलमानों के बीच मौजूद है उसको आज कैसे बदला जा सकता है? कुछ लोगों की कोशिश यही थी कि अकीदे को इतिहास बना दें और इतिहास को अकीदे में परिवर्तित कर दें। इस बात से सब अवगत हैं कि मोहर्रम के दिनों में मुस्लिम उलमा को अपनी बात कहने के लिए इतना बड़ा प्लेटफॉर्म मिलता है जितना साल भर नसीब नहीं होता। मोहर्रम के शुरू के दस दिनों में युवा भी बड़ी संख्या में इमाम बाड़ों, मस्जिदों और खानकाहों में होने वाले सभाओं में शरीक होते हुए नजर आते हैं, मगर इस भीड़ तक इस्लाम का सहीह संदेश पहुंचाने के बजाए अधिकतर लोग मस्लकी विवादों के बारे में बातचीत करने लगते हैं। कुछ लोगों की ख्वाहिश बस इतनी होती है कि कोई ऐसा वाक्य कह दें कि वहाँ मौजूद हाज़रीन की वाह वाह से छतें उड़ जाएं। कुछ लोगों की तमन्ना ऐसी होती है कि हाजरीन तक कोई संदेश पुरी तकरीर के बीच पहुँचने न पहुँचने, लेकिन उनके तर्ज़े खिताबत का हर शख्स कायल हो जाए। वैसे होना तो यह चाहिए था कि अल्लाह के रसूल के नवासे की शहादत और कर्बला के शहीदों की कुर्बानियों के ज़िक्र के दौरान उनकी शिक्षाओं का ज़िक्र होता, मुसलमानों को एक दुसरे से करीब करने के साथ साथ दूसरी कौमों को भी बुलाया जाता और उनको बताया जाता कि इस्लाम जंग व जिदाल का धर्म नहीं सब्र, इसार और कुर्बानी पर विश्वास रखने वालों का धर्म है।

मगर अफ़सोस की बात है कि कुछ लोग दुसरे मस्लकों पर शिर्क व बिदअत का आरोप लगाने को ही इस्लाम की तबलीग का सबसे बड़ा माध्यम समझते हैं। ऐसा महसूस होता है कि कुछ उलमा का यही मानना है कि विवादित और मतभेद वाले मसलों को उजागर करने से ही सभी मुसलमानों को राहत मिलेगी। एक साहब की तकरीर मुझे देखने और सुनने का मौका मिला उनकी पुरी तकरीर का केंद्र वह मिसरा था जो अल्लामा इकबाल के नाम से मंसूब कर दिया गया है वह तरह तरह की दलीलें पेश कर रहे थे कि हम जिंदा जावेद का मातम क्यों नहीं करते। मगर उनको नहीं मालुम कि कर्बला वालों के मातम किये जाने का जवाब चौदा सौ साल पहले इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पुत्र हजरत जैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम दे चुके हैं। उनसे जब किसी ने कहा कि “मौला शहादत तो आपकी मीरास है इस पर आप क्यों रोते हैं तो उन्होंने कहा कि रसूल के नवासे की लाश पर घोड़े दौड़ाए जाएं? क्या यह हमारी मीरास है कि हमारे खेमों में आग लगाईं जाए? क्या यह हमारी मीरास है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नवासियों और हमारे घर की मोहतरम ख्वातीन के बाजुओं में रस्सी बाँध कर उनको कूफा व शाम के बाज़ारों में घुमाया जाए? इसलिए हमारा तो यही कहना है कि जो लोग मातम करते हैं उनको करने दिया जाए जो नहीं करते वह अपनी तरह से इमाम हुसैन को याद करें और उम्मत में जो मतभेद हैं उनको हवा दे कर निफाक में परिवर्तित न करें। हम उलमा ज़ाकेरीन, वाएज़ीन और मुबल्लेगीन से इल्तिजा करते हैं कि वह अपनी तकरीरों का महवर उस नुक्ते को बनाएं कि इस पुर आशूब दौर में मुसलमानों को संगठित किया जा सके?

-----------

Urdu Article: Muharram Religious Gatherings and Speeches محرم کی مجالس، جلسے اور تقاریر

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/muharram-religious-speeches/d/125247

New Age IslamIslam OnlineIslamic WebsiteAfrican Muslim NewsArab World NewsSouth Asia NewsIndian Muslim NewsWorld Muslim NewsWomen in IslamIslamic FeminismArab WomenWomen In ArabIslamophobia in AmericaMuslim Women in WestIslam Women and Feminism


Loading..

Loading..