प्रोफेसर अतीक अहमद फारूकी
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
12 सितंबर 2022
लगभग एक हजार वर्ष पूर्व सन् ग्यारह सौ ईसवी में इस्लाम धर्म विज्ञान के स्वर्ण युग से गुजर रहा था। यह वह दौर था जब बगदाद विज्ञान और आधुनिक तकनीक का केंद्र हुआ करता था। दुनिया भर से छात्र उन्नत विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने के लिए बगदाद आते थे। इस काल में शिक्षा के मामले में यूरोप अंधकार में था। विज्ञान को मुसलमानों का प्रतीक माना जाता था। यह वह दौर था जब सांसारिक शिक्षा, बीजगणित, एल्गोरिथम, कृषि, चिकित्सा, नौवहन, रसायन विज्ञान, भौतिकी और सार्वभौमिक और मनोविज्ञान आदि के हर क्षेत्र में मुसलमानों को एक पहचान माना जाता था। फिर ये सारी गतिविधियां अचानक बंद हो गईं। मुसलमानों के बीच से दर्शन, आविष्कार और ज्ञान का युग अचानक गायब हो गया। इसका मुख्य कारण अपने समय के एक धार्मिक आलिम इमाम अल-ग़ज़ाली (1058-1111) द्वारा अपनी प्रसिद्ध पुस्तक तहाफतुल फलसफा के माध्यम से जारी किया गया एक फतवा था। पुस्तक की इस व्याख्या के अनुसार, संख्याओं के साथ खेलना शैतान का काम है। इसलिए मुसलमानों को अंकगणित की प्रथा से दूर रहना चाहिए।
इमाम ग़ज़ाली का जन्म ईरान के खुरासान के तबारन प्रांत में हुआ था। उस समय के मुसलमानों में उनका इतना ऊँचा स्थान था कि लोग उन्हें मुजद्दिद और हुज्जतुल इस्लाम कहते थे। जाहिर है, उस समय के मुसलमान इस फतवे के खिलाफ जाने को इस्लाम के खिलाफ जाना मानते थे। नतीजतन, मुसलमानों ने सभी वैज्ञानिक आविष्कारों और शोधों से मुंह मोड़ लिया, जिसमें किसी भी तरह की गणितीय प्रक्रिया शामिल थी और हम सभी जानते हैं कि गणितीय प्रक्रिया के बिना, किसी भी तरह की आधुनिक तकनीक में सफलता नहीं मिल सकती है। मुस्लिम विज्ञान से दूर हो गए। अमेरिका के नील डी ग्रास टायसन के अनुसार, यह इमाम ग़ज़ाली की मुख्य गलती साबित हुई और मुसलमान हर तरह के ज्ञान से दूर हो गए। इमाम ग़ज़ाली के इस फतवे के बाद सब कुछ थम गया। किसी ने जैसे उसे अपंग बना दिया। उनकी गलत व्याख्या के कारण यह मुस्लिम कौम आज तक उभर नहीं पाई और सदियों पहले जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई आज तक नहीं हो सकी है।
दूसरा बड़ा झटका तब लगा जब प्रिंटिंग प्रेस का अविष्कार हुआ और इसे हराम करार दिया गया। तुर्की के ओटोमन खलीफा (1922-1299) के दौरान, जब 1455 में जर्मनी में प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किया गया था, उस समय के सुल्तान सलीम (I) ने खिलाफत के शेख उल हदीस के अनुरोध पर किसी भी तरह की किताब की छपाई पर प्रतिबंध लगा दिया था। और यह घोषणा की गई कि जो कोई भी प्रिंटिंग प्रेस का उपयोग करते हुए पाया जाएगा उसे मौत की सजा दी जाएगी। उस समय, खिलाफत तुर्की से दक्षिण-पूर्वी यूरोप, मध्य यूरोप के कुछ हिस्सों, पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका तक फैली हुई थी। इस फतवे का दूरगामी प्रभाव पड़ा और उस समय के मुसलमानों की प्रगति अचानक थम गई। अन्य कौमों ने इसे अपने हाथों में ले लिया और विज्ञान आधारित पुस्तकें, शोध पत्र और नए आविष्कारों के बारे में लेख अखबारों में छपने लगे, दूर दूर तक ज्ञान फैलने लगा और दूसरी कौमें इससे लाभान्वित होने लगीं। प्रिंटिंग प्रेस पर मुसलमानों के इस स्व-लगाए गए प्रतिबंध को 1784 के आसपास हटा दिया गया था, लेकिन फिर भी मुस्लिम दुनिया में पहली किताब 1817 में छपी थी। यानी प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के 362 साल की लंबी अवधि के बाद, मुसलमानों में ज्ञान का श्रोत फूटा, लेकिन इन 362 वर्षों में पूरी दुनिया कहाँ पहुँच गई थी? प्रिंटिंग प्रेस के माध्यम से फैले नए आविष्कारों और ज्ञान के आलोक से मुसलमान काफी दिनों तक वंचित रहे। ये वो दो फतवे थे जिनकी वजह से आज मुसलमान वहाँ नहीं है जहां उनहें होना चाहिए था।
आज अगर हम इन फतवों के बारे में सोचते हैं, तो हमें आश्चर्य होता है कि इसमें
क्या गैर-इस्लामिक घोषित किया गया था और इसमें क्या मना किया गया था? लेकिन आज भी हम वैसे ही हैं जैसे
उस जमाने में थे आज भी अजीबोगरीब फतवे हमारी आंखों से गुजरते हैं और हम इसका विरोध
नहीं करते बल्कि उनका स्वागत करते हैं। जब हवाई जहाज का आविष्कार हुआ था तब उपमहाद्वीप
से एक फतवा जारी किया गया था कि हवाई जहाज से यात्रा करना मना है। फतवे के अनुसार इतनी
ऊंचाई पर यात्रा करना ईश्वर की शक्ति को चुनौती देने जैसा है। इस प्रकार, जब रेडियो का आविष्कार हुआ,
तो एक फतवा दिया गया कि यह शैतान
की आवाज है। कैमरा और टीवी पर फतवा आज भी जारी है। इसी तरह आज कोई ब्लड ट्रांसफ्यूजन
को हराम बता रहा है तो कोई हेयर ट्रांसप्लांट और जेनेटिक इंजीनियरिंग को हराम बता रहा
है। हम पूरे ब्रह्मांड की खोज के स्वर्ण युग में पहुंच गए हैं। ब्रह्मांड की क्वांटम
स्थिति के बारे में पता लगाया जा रहा है। मंगल की सतह पर शोध चल रहा है। मेडिकल साइंस
भी जेनेटिक इंजीनियरिंग में चला गया है, जिससे कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी बस खत्म होने वाली है और यह
सिर्फ एक झलक है कि दुनिया कहां से आई है और हम कहां हैं? हमारी समझ का स्तर ऐसा है कि हम अभी भी एक खीरे पर अल्लाह
या मुहम्मद को लिखा हुआ पाकर खुश हैं। हमारी बुद्धि का स्तर यह है कि यदि कुर्बानी
के बकरे पर मुहम्मद लिखा हुआ पाया जाता है तो हम बकरों को मुसलमान घोषित कर देते हैं।
यह आखिर है क्या और इससे हम धर्म की क्या सेवा कर रहे हैं? आज विश्व के अन्य सभी कौमों, यहूदियों, ईसाइयों, जापानी आदि ने इस समय की गति का अनुसरण करने का प्रयास किया और सफलता की नई ऊंचाइयों
को प्राप्त किया, और एक हमारी कौम है, जो अभी भी लकीर की फकीर है, और परिणामस्वरूप, आज हम दूसरे कौमों से पीछे रह गए हैं। हम लोगों को सख्त जवाबदेही की जरूरत है।
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Urdu Article: The Main Reasons for the Decline of Muslims مسلمانوں کے زوال کے بنیادی
اسباب
English Article: The Main Reasons for the Decline of Muslims
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