काबुल में पिछले शाम एक मस्जिद के अंदर आत्मघाती हमले में 20 से अधिक हलाकतों का खदशा
प्रमुख बिंदु:
1. इस हमले में आइएसआइएस का हाथ होने से इनकार नहीं किया
जा सकता
2. पिछले हफ्ते तालिबान के समर्थक एक आलिम को आइएसआइएस
ने मदरसे में क़त्ल कर दिया था
3. 5 अगस्त को काबुल के एक शिया मोहल्ले के अंदर बम धमाके
में 2 लोग हालाक हुए थे
4. हाल ही में तालिबान ने अपने एक वाहिद शिया रुक्न मेहदी
मुजाहिद को मार डाला क्योंकि वह खिलाफ हो गया था
5. अमेरिका ने अमेरीकी और यूरोपी बैंकों में जमा 3.5 बीलियन डालर जारी करने से इनकार
कर दिया है
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न्यू एज इस्लाम स्टाफ राइटर
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
18 अगस्त 2022
Victims'
relatives have gathered outside a hospital where their loved ones are being
treated
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हालांकि तालिबान ने तीन दिन पहले अपनी हुकूमत की पहली सालगिरह मनाई लेकिन उनके पास गर्व करने के लिए कुछ नहीं था। इसके और आइएसआइएस के बीच दुश्मनी शिद्दत इख्तियार कर गई है और बाद में उल्लेखित तालिबान के कौमी और अंतर्राष्ट्रीय हितों को निशाना बनाने में लगा हुआ है। पिछले शाम उत्तर पश्चिम काबुल के क्षेत्र खैर खाना में स्थित सिद्दिकिया मस्जिद में आत्मघाती धमाका हुआ। जान बहक होने वाले 20 लोगों में मस्जिद के इमाम अमीर मोहम्मद काबुली भी शामिल हैं। पुलिस के मुताबिक़ हलाकतों में इज़ाफा हो सकता है। मरने वालों में 7 साल की उम्र के बच्चे भी शामिल हैं। 40 से अधिक लोग ज़ख़्मी हुए जिन्हें अस्पताल में दाखिल कर दिया गया है।
आलांकी किसी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी कुबूल नहीं की है लेकिन इसमें आइएसआइएस का हाथ साफ़ तौर पर देखा जा सकता है। अमीर मोहम्मद काबुली ने सूफी नजरिये के हामिल थे जो आइएसआइएस के मुताबिक़ इल्हाद है। 2014-15 में इराक और सीरिया में अपनी सरकार के दौरान, उन्होंने सूफिया के मज़ारों को तबाह किया और सूफी मानसिकता के हामिल मुसलमानों को क़त्ल किया। पिछले हफ्ते तालिबान के समर्थक मौलवी रहीमुल्लाह हक्कानी को एक मदरसे में हमले में हालाक कर दिया गया था। इस हमले की जिम्मेदारी आइएसआइएस ने स्वीकार की थी। पिछले महीने के दौरान सशस्त्र लोगों ने कम से कम तीन उलमा पर हमला किया है।
5 अगस्त को काबुल के एक शिया मोहल्ले में होने वाले धमाके में 2 लोग हालाक हुए थे। इससे पहले आइएसआइएस काबुल में मैटर्निटी सेंटरों, स्कूलों और शियों के शहरी इलाकों पर हमला कर चुका है। वह तालिबान की तरह हज़ारा शियों को काफिर समझते हैं।
जून में आइएसआइएस ने गुरुद्वारा कारते परवान पर हमला किया था जिसमें तालिबान के सेक्युरिटी अधिकारियों सहित 2 लोग मारे गए थे।
उन सब के पेशे नज़र तालिबान सरकार को अफगानिस्तान में एक मुश्किल मरहले का सामना है। वह हमेशा समस्याओं के हल के लिए हिंसा का सहारा लेने पर यकीन रखते थे और आइएसआइएस उन्हें उन्हीं के अंदाज़ में मज़ा चखा रहा है। पिछले 20 सालों के दौरान, तालिबान ने नैटो से लड़ाई के बहाने अफगानिस्तान में नागरिकों, शियों और दुसरे अल्पसंख्यकों पर अनगिनत हमले किये हैं। उन्होंने शरीअत के निफाज़ के नाम पर अफगानिस्तान के बेबस मुसलमानों को सताया है। वह मासूम अफगान लड़की शरबत गुल जिसकी नाक तालिबान ने सुसराल से भागने पर काट दी थी, वह अभी तक जिन्दा है। उन्होंने आपसी रज़ामंदी से शादी करने वाले एक जोड़े को संगसार करके क़त्ल कर दिया था। तालिबान के दौर में धार्मिक अत्याचार की ऐसी मिसालें उरूज पर थीं। सबसे अधिक महिलाएं उनके ज़ुल्म व सितम का शिकार हुई थीं।
तालिबान कौमी और बैनुल अक्वामी समस्याओं में घिरे हुए हैं। लाखों अफगान बच्चे खुराक के बोहरान का सामना कर रहे हैं। तालिबान के पास इतनी रकम नहीं है कि वह सरकारी नौकरों को तनख्वाह दे सके। अमेरिका ने अपने बैंकों में जमा 3,5 बीलियन डॉलर की अफगान रकम को इस बुनियाद पर जारी करने से इनकार कर दिया है कि अगर यह रकम जारी की जाती है तो वह रकम अलकायदा और पाकिस्तान में तालिबान के नजरियाती साथी आइएसआइएस या टीटीपी जैसी आतंकवादी संगठनों को जा सकती है। अपने स्टैंड को सहीह साबित करने के लिए अमेरिका ने काबुल में अलकायदा के ठिकाने पर हमला किया और अलज़वाहिरी के क़त्ल का दावा किया। अब इस दावे की बुनियाद पर अमेरिका ने अमेरिकी बैंकों में जमा अफगानिस्तान की रकम जारी करने से इनकार कर दिया है।
अब यह बात समझी जा सकती है कि अलज़वाहिरी के क़त्ल के समय का जमा रकम से कोई संबंध अवश्य था। अमेरिका तालिबान पर दोहा समझौते की खिलाफवर्जी का आरोप लगा रहा है।
यह बात भी दिलचस्प है कि आइएसआइएस को शाम से उस समय निकाला गया जब वहाँ अमेरिका के कोई मुफादात नहीं थे और आइएसआइएस ने अपनी गतिविधियाँ उस समय अफगानिस्तान हस्तानांतरित कर दी हैं जब अफगानिस्तान में अमेरिका के राजनीतिक हित हैं। अमेरिका ने पहले तालिबान को अफगानिस्तान में सत्ता में आने में मदद की और फिर उन पर अलकायदा से संबंध का आरोप लगाया। यह ऐसा ही है जैसे खजाने की चाबियाँ किसी डाकू के हवाले कर के उसे चोरी करने से मना किया जाए।
अमेरिका ने 20 साल की हिमायत के दौरान अशरफ गनी या करज़ई सरकार को मजबूत नहीं किया। इसलिए जब अमेरिका अफगानिस्तान से निकल गया तो अफगान सेना तालिबान के हमले के सामने ताश के पत्तों की तरह बिखर गईं। अमेरिका ने उग्रवादी संगठन के हिंसक नजरिये को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया है। अस्थिर सरकार अपने राजनीतिक और आर्थिक लक्ष्य पुरे नहीं करती। इसलिए अफगानिस्तान से निकलने के दौरान अमेरिका ने अशरफ गनी सरकार को मजबूत करने के बजाए तालिबान को सत्ता में आने में मदद दी क्योंकि तालिबान की सरकार कभी भी स्थिर सरकार नहीं होगी और इसकी असंवैधानिक नीतियाँ अमेरिका को देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के मौके प्रदान करेंगी।
और भविष्य में उन्हें अमेरिका तालिबान की सरकार को गिराने का बहाना बनाएगा जैसा कि 2001 में किया गया था।
अफगानिस्तान में सत्ता का स्थानांत्रण आसान नहीं था बल्कि इसे देश को अराजकता की हालत में डाल दिया जब लाखों अफगान जनता देश से बाहर निकलने के लिए इस तरह भाग रहे थे मानों खुरुज ए दज्जाल की खबर आम हो गई हो। तालिबान ने अर्थव्यवस्था को स्थिर करने, अमन कायम करने और लोगों के ज़हनों से खौफ को दूर करने की कोशिश करने के बजाए महिलाओं, दाढ़ी, लिबास और शरीअत के बारे में अपनी दिलचस्पी का इस तरह प्रदर्शन किया जिस तरह आइएसआइएस ने महिलाओं के खतना, मज़ारों के ढाने, शियों और ईसाईयों के कत्ल और औरतों को खरीद व फरोख्त के लिए गुलाम बनाने पर अपनी तवज्जोह का प्रदर्शन किया था। हालांकि तालिबान चाहते हैं कि लोग यह मानें कि वह आइएसआइएस से अलग हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। चूँकि वह सरकार में हैं इसलिए उन्हें यह एहसास हो गया है कि जंगलों और पहाड़ों से हुकूमत और शहरियों के खिलाफ हिंसक हमले करना आसान है लेकिन सरकार में रहना एक अलग बात है। यही कारण है कि उन्हें अफगानिस्तान की अल्पसंख्यक बिरादरियों को सुरक्षा का विश्वास दिलाना पड़ा और उनसे अपने वतन वापस जाने की अपील करना पड़ी। उन्होंने दावा किया था कि सेक्युरिटी के मसले हल हो गए हैं और देश में अमन कायम हो गया है। लेकिन हकीकत इसके बिलकुल विपरीत है
संक्षिप्त यह कि तालिबान का हिंसक और फिरका वाराना नजरिया और उसकी महिलाओं और शिक्षा विरोधी निति तालिबान को लोकतांत्रिक दुनिया के साथ लगातार कशमकश में मुब्तिला रखेगी और वह कभी भी अफगानिस्तान में एक स्थिर और एक अवाम दोस्त सरकार फराहम नहीं कर सकेगी।
English Article: Kabul Mosque Attack: The ISIS Gives Taliban the Taste
of Its Own Medicine
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