सुमित पाल, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
3 जून 2022
अब जबकि अधिक से अधिक देश संवैधानिक तौर पर या तो धर्म से गैर
जानिबदार या कम से कम एक ज़ाहिरी पहचान के तौर पर गैर मज़हबी बन रहे हैं, भारत का हिन्दू राष्ट्र बनना
एक प्रतिगामी कदम होगा।
Turning
and turning in the widening gyre
The
falcon cannot hear the falconer;
Things
fall apart; the centre cannot hold;
Mere
anarchy is loosed upon the world,
The
blood-dimmed tide is loosed, and everywhere
The
ceremony of innocence is drowned;
The
best lack all conviction, while the worst
Are
full of passionate intensity.
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हम अक्सर फ़ारसी में कहते हैं कि ‘सुखनवरी पयंबरी अस्त’ (शायरी नबूवत है)। आयरश शायर और नोबल पुरस्कार विजेता वीलियम यीट्स की अत्यंत लोकप्रिय नज़म ‘दी सेकेण्ड कमिंग’ की उपर्युक्त पंक्तियाँ मौजूदा मंजर नामे की एक सच्ची पेशन गोई मालुम होती हैं कि जब हिन्दू मुस्लिम मतभेद निचली सतह तक पहुँच चुके हैं और बेचैनी की कैफियत को जन्म दे रहे हैं, जो कि अराजकता से भी बदतर है।
यह इतना बदतर हो चुका है कि ग़ालिब का यह शेअर याद आता है, ‘कोई उम्मीद बर नहीं आती, कोई सूरत नज़र नहीं आती’। तो ऐसी मायूस कुन सूरते हाल में इसका हल क्या हो सकता है? हाल ही में, ब्रिटेन के मुस्लिम कलमकार हसन सरवर ने टी ओ आई में लिखा कि भारत को हिन्दू राष्ट्र करार दिया जाना चाहिए जिस तरह इंग्लैण्ड एक ईसाई राज्य है लेकिन इसकी बुनियाद सेकुलर है।
मुझे डर है क्योंकि भारत के संदर्भ में यह कोई समझदार मशवरा नहीं हो सकता। सबसे पहले तो शब्द ‘सेकुलर’ को बदलना और उसकी जगह ‘हिन्दू’ लगाना संभव नहीं है। मैं मानता हूँ कि मौजूदा स्थिति में ‘सेकुलर’ एक गलत नाम है। यह सरासर दिखावा और धोका देना है, लेकिन हिन्दू राष्ट्र का एलान करने में फ्रांसीसी दार्शनिक माइकल फोको के अनुसार ‘नाम की गलत फहमी’ के नुक्सान भी हैं। आप याद रखें, ब्रिटेन हमेशा से संवैधानिक तौर पर एक ईसाई देश रहा है और इस पहचान को कभी बदला नहीं गया। लेकिन यहाँ भारत में, भारत को हिन्दू राष्ट्र करार दे कर, आप इसके किरदार, ताने बाने और कई दशकों की रूह को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। आप खुद को सेकुलर’ होने से ‘मज़हबी’ हिन्दू होने की तरफ ले जा रहे हैं। ‘सेकुलर’ तरक्की का रास्ता दिखाता है, जब कि भारत पतन की तरफ जाएगा।
अगर भारत को हिन्दू राष्ट्र का नाम दे दिया जाता है, तो इसे अल्पसंख्यकों और ख़ास तौर पर मुसलमानों के लिए राज्य के स्टैंड की खुली तौसीक के तौर पर देखा जाएगा। उन्हें (मुसलमानों को) जो कुछ भी थोड़ा बहुत यहाँ के संविधान पर भरोसा है वह उसे भी खो देंगे। सरकारी तौर पर हिन्दू राष्ट्र के एलान को बहुसंख्यक फिरके की मजबूत करने और मुसलमानों को कमज़ोर करने के इकदाम के तौर पर देखा जाएगा। रियासती बराबरी का उद्देश्य समाप्त हो जाएगा। मुसलमान खुद को धोका खाया हुआ और ज़लील व ख्वार महसूस करेंगे। लोकतंत्र की अवधारणा समाप्त हो जाएगी। तो फिर, भारत और उसके पड़ोसी करप्ट रीपब्लिकमें क्या अंतर रह जाएगा?
पूरी दुनिया पूछे गी कि आज़ादी के 75 साल बाद भी भारतीय समाज शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का आधार क्यों नहीं कायम रख सका।
क्या हिन्दू की नै पहचान केवल हिंदुओं के ही नहीं बल्कि तमाम हिंदुस्तानियों के गले का एक फंदा नहीं बन जाएगी?
एक ऐसे दौर में कि जब अधिक से अधिक देश संवैधानिक तौर पर या तो धर्म से गैर जानिबदार या कम से कम एक ज़ाहिरी पहचान के तौर पर गैर मज़हबी बन रहे हैं, भारत का हिन्दू राष्ट्र बनना एक प्रतिगामी कदम होगा। मैं एक अत्यंत सकारात्मक सोच का इंसान हूँ और मुझे विश्वास है कि सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ है। हालात बेहतर हो जाएंगे, चाहे धीरे धीरे ही सही।
हिन्दू और मुसलमान शताब्दियों से एक साथ रह रहे हैं। दोनों धर्मों के कुछ बेकार तत्व देश को बंधक बना सकते हैं। यह पुरजोश मज़हबी जुनून आखिर खत्म हो जाएगा। ‘अभी भी उदास दिल रहो, पेच व ताब खाना बंद करो/बादलों के पीछे सूरज है, जो अभी चमक रहा है। ‘इस मरहले पर हमें जिस चीज की जरूरत है वह दो बिरादरियों के बीच उस अजनबी रिश्ते को दुबारा बहाल करना है। हमें मोहब्बत की जरूरत है, झगड़े की नहीं। अतीत में जो कुछ हुआ उसे गुज़रे हुए दौर के साथ दफन कर देना चाहिए। आगे देखो और बिना किसी रंजिश के आगे देखो। अकीदों की हुरमत और तकद्दुस का तहफ्फुज़ जरूरी है।
उर्दू के अज़ीम शायर फैज़ अहमद फैज़ के अलफ़ाज़ याद रखें, “रात कितना भी करे अपनी फसीलों को बुलंद/ सुबह तो हर घर में उजाला होगा”)। अभी भी उम्मीद और मेल जोल की गुंजाइश बाकी है। क्या आप मुझसे सहमत नहीं हैं?
English Article: Don't Declare India a Hindu Rashtra: That Will Be a
Fallacy of Nomenclature
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