बिलाल अहमद परे, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
9 फरवरी 2022
विश्व हिजाब दिवस का उद्देश्य महिलाओं को धर्म व कौम से परे
पर्दा पहनने और उसका तजुर्बा करने की तरगीब देना था।
प्रमुख बिंदु:
हिजाब अरबी शब्द ‘हजब’ से लिया गया है जिसका अर्थ है
किसी को किसी चीज तक पहुँच से रोकना।
इस्लाम की शिक्षा यह है कि औरत रब की एक ऐसी मखलूक है जिसे अजनबी
मर्दों से परदे में रखना आवश्यक है।
इस्लाम में परदे की कई शक्लें हैं, और औरत के लिबास के हवाले से
इस्लाम में कोई कतई उसूल नहीं है।
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एक फरवरी विश्व हिजाब दिवस के तौर पर मनाया जाता है जिसकी बुनियाद
न्यूयार्क की नाजमा खान ने 2013 में राखी थी। इस तहरीक का उद्देश्य महिलाओं को उनके मज़हबी पसेमंजर से परे पर्दा
पहनने और उसका तजुर्बा करने पर उनकी हौसला अफजाई करना था। लाफ्ज़ी तौर पर फ़ारसी में
शब्द ‘परदा’ का मतलब “निकाब या लिबास” है, और उर्फ़ में यह एक लम्बा और ढीला लिबास है जिसे बहुत सी मुस्लिम महिलाएं दुसरे
लिबास के उपर पहनती हैं। ‘हिजाब’ जो कि अरबी शब्द “हजब’ से लिया गया है जिसका अर्थ है किसी को किसी चीज तक रिसाई
से रोकना।
यहाँ एक सवाल पाठकों के मन में पैदा होता है। और वह यह कि पर्दा या हिजाब केवल महिलाओं को ही क्यों आवश्यक है? इसका जवाब देने के लिए इस्लाम अपने पैरुकारों किओ यह शिक्षा देता है कि एक औरत असल में औरत है यानी यह रब की एक ऐसी मखलूक है जिसे अजनबी मर्दों से छिपाना आवश्यक है। और दूसरी तरफ, यह एक इस्लामी अलामत है जिसके मुताबिक़ इस्लामी कैलेंडर की 4 हिजरी से महिलाओं के लिए हिजाब पहनना फर्ज़ है। यह गर्दन से ले कर पाँव तक का एहाता करता है, यहाँ तक कि पहनने वाले के जूते को भी नज़र से ढापता है, जिसकी आस्तीनें कलाइयों तक होती हैं। परदा या हिजाब एक बाजाब्ता लिबास है, जो रिवायती तौर पर स्याह रंग का होता है। परदा या अबाया पहनना खित्ते में महिलाओं की मज़हबी साल्मियत और कौमी शिनाख्त की अलामत माना जाता है।
आज हिजाब n केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि अंतर्राष्ट्रीय अकवामी स्तर पर भी गरमा गर्म बहस का विषय है। रियासत कर्नाटक में हालिया दिनों के अंदर इसके हवाले से एक नया विवाद खड़ा हुआ है। पिछले साल दिस्मबर के आखिर से, कर्नाटक में हिजाब पहनने वाले अपने स्कूल के साथियों के खिलाफ विरोध करने वाले छात्रों ने केसरिया स्कार्फ पहन कर उडुपी के एक कालिज में आना शुरु कर दिया। इसके बाद हिजाब बनाम केसरी स्कार्फ का मसला राज्य के दुसरे हिस्सों जैसे चकमग्लुरु, शिवमोगा, चकबाला पूर, मंडिया, काला बोरागी, बागुल कोट, बैलगावी और वजय पूरा के कुछ दुसरे संस्थाओं में भी फ़ैल गया। यह सुलगता हुआ मामला कर्नाटक की हाईकोर्ट में लंबित है। इस अदालत ने मंगल के रोज़ छात्रों और आम लोगों से अमन व सुकून बरकरार रखने की अपील की, क्योंकि राज्य के कुछ हिस्सों में हिजाब विवाद में इज़ाफा हुआ है।
साहिली शहर उडपी के गवर्नमेंट प्री यूनिवर्सिटी गर्ल्स कालिज में शिक्षारत कुछ छात्राओं की अर्जियों की सुनवाई के बाद। इस दरख्वास्त में अदालत से यह फैसला करने का मुतालबा किया गया है कि उन्हें “कालिज के इहाते में इस्लामी अकीदे के मुताबिक़ हिजाब पहनने समेत जरूरी मज़हबी मामूलात पर अमल करने का बुनियादी हक़ हासिल है। “जस्टिस एस दीक्षित की सिंगल बेंच ने कहा कि इस आदालत को बड़े पैमाने पर अवाम की अकलमंदी और दानिशमंदी पर पूरा भरोसा है और उम्मीद है कि इहाते में भी ऐसा ही किया जाएगा। “तथापि एस दीक्षित ने यह भी खा कि केवल कुछ शरारती लोग इस मामले को भडका रहे हैं। दरख्वास्त गुज़ार छात्रों की तरफ से पेश होने वाले एडवोकेट डी कामत ने कहा कि हिजाब की इजाज़त दी जाए।
Muskan
stood her ground as she was heckled by a large group of slogan-shouting young
men wearing saffron scarves at a Karnataka college.
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एक वायरल वीडियो में यह साफ़ तौर पर देखा जा रहा है कि मंडिया जिले के पी एस कालिज आफ आर्टस, साइंस एंड कामर्स के इहाते में मुसकान खान को एक भीड़ हरासां कर रही है और “जय श्री राम” का नारा लगा रही है जिसके जवाब में मुसकान ने भी “अल्लाहु अकबर” के नारे लगाए, जिसकी वजह से पुरी रियासत में तशवीश की एक लहर फ़ैल चुकी है। तथापि कालिज के अधिकारियों ने उस लड़की की हिमायत और हिफाजत की है।
त्तापी पिछले बीस सालों में कई फैशन हाउसेज और शरारती ग्रुप्स ने एक नया रुझान पेश किया है। इस नए रुझान ने रिवायती अबाया की मकबूलियत को चैलेन्ज किया है, क्योंकि अबाया मज़हबी और कौमी शिनाख्त की अलामत है।
कुरआन करीम में दो सूरतें हैं जिनमें औरत के परदे का ज़िक्र है। सूरत नम्बर 33, (अल अहज़ाब) आयत नम्बर 53 में है, “और जब तुम उनसे बरतने की कोई चीज मांगो तो पर्दे के बाहर मांगो, इसमें ज़्यादा सुथराई है तुम्हारे दिलों और उनके दिलों की।“
बाद में इसी सूरत की आयत नम्बर 73 में है कि “ऐ नबी! अपनी बीवियों और साहबजादियों और मुसलमानों की औरतों से फरमा दो कि अपनी चादरों का एक हिस्सा अपने मुंह पर डाले रहें यह इससे नजदीक तर है कि उनकी पहचान हो तो सताई न जाएं और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है।“
उपर्युक्त सूरत की आयत 53 परदे के इतलाक में मुबहम है। असल अरबी लफ्ज़ “हिजाब” है जिसका अर्थ “परदा” है जिसे तारीखी तौर पर घर के अलग अलग हिस्सों के बीच लटकाए जाने वाले परदे से ताबीर किया जाता है। इस पर्दे का हुक्म नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियों को मोमिनीन से छिपाने के लिए दिया गया था जो दिन में पांच वक्त नमाज़ के लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घर आते थे। तथापि भुत से फुकहा इसे लफ्ज़ी परदे से भी ताबीर करते हैं जैसा कि यह लफ्ज़ आज कल बोल चाल में इस्तेमाल होता है। जैसा कि उपर की आयत नम्बर 73 में ब्यान किया गया, जब पर्दे की जरूरत पैदा करने की बात आती है तो यह सूरत ज़्यादा मुफीद है। इसमें औरतों को हुक्म है कि वह “अपनी चादरों का एक हिस्सा अपने मुंह पर डाले रहें”, जिसे अक्सर ढीले ढाले कपड़ों या चादरों से ताबीर किया जाता है।
सूरत नम्बर 24 “अल नूर” (रौशनी) में परदे के बारे में इस तरह वजाहत है, “और मुसलमान औरतों को हुक्म दो अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी पारसाई की हिफाजत करें और अपना बनाव न दिखाएं मगर जितना खुद ही ज़ाहिर है और वह दुपट्टे अपने गिरेबानों पर डाले रहे, और अपना सिंघार ज़ाहिर न करें मगर....” (अल कुरआन) । यह आयत इस्लाम में पर्दे का सबसे बड़ा जवाज़ फराहम करती है। यह पारसाई का मेयार निर्धारित करती है और सर पर स्कार्फ पहनने का ज़िक्र करता है।
बहुत से मुसलमान इस बात पर मुत्तफिक हैं की यह आयत महिलाओं को ऐसे ढीले कपड़े पहनने की तलकीन करती हैं जिनसे उनके जिस्म का कसर हिस्सा पर्दा पोश हो जाए। तथापि, इस्लाम में परदे की कई शक्लें हैं, और औरतों के लिबास के हवाले से इस्लाम में कोई कतई उसूल नहीं है, और न ही कोई ऐसा लिबास है जो तमाम चीजों से मारुज़ी तौर पर “बेहतर” या अधिक इस्लामी” हो। इसके इर्द गिर्द जो तीन उसूल बनाए गए हैं वह पारसाई के साथ लिबास पहनना (अल कुरआन; 7:26), सीनों को दुपट्टे से ढांपना (24:31) और कपड़ों को लम्बा करना (33:59)।
अबू दाउद में नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक रिवायत के मुताबिक़, उपर्युक्त आयतों के नाज़िल होने के बाद, “औरतें फज्र की नमाज़ के लिए कवों की तरह चलती थीं”, जिसे कुछ उलमा ने औरतों को काले अबाया पहनने की वजह करार दिया है।
तथापि, अबाया के फैशन के बहुत सारे समर्थकों का ख्याल है कि, चूँकि लिबास आम तौर पर कानूनी अबाया की ही तरह “तमाम जिस्म को ढांपने वाला” होता है, इसलिए लिबास को ज़ेबे तन करने में कोई हर्ज नहीं है।
अबाया “फैशन के तसव्वुर को तकवा पर फौकियत देता है” और परदे के निज़ाम में खलल पैदा करता है।
शरारती तत्वों ने न केवल अबाया का ज़ाहिर बल्कि उसकी मानवी अहमियत को भी मस्ख कर दिया है। आज अबाया हिजाब (अर्थात पर्दा) से अधिक लिबास की तरह नज़र आते हैं। आज कल, कुछ अबाया असल में महिलाओं की शख्सियत को छिपाने के बजाए और ज़ाहिर करने वालोए हो चुके हैं। उनमें से कुछ कपड़े की तरह नज़र आने के लिए भी डिज़ाइन किये गए हैं।
Saffron
Shawl Vs Hijab Row Ends in Karnataka College/ Photo: This News
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दुनिया भर में हिजाब की हिमायत के साथ साथ उसके खिलाफ भी बहुत सी मिसालें मौजूद हैं। सबसे अधिक पश्चिमी देश अमेरिका में, राफिया अरशद हिजाब पहनने वाली सबसे पहली खातून जज के तौर पर नियुक्त हुई हैं। वक्त की जरूरत है कि तमाम इस्लामी फुकहा और मज़हबी तंजीमें इस्लाम के शुरूआती और सानवी माखज़ (कुरआन व हदीस) की रौशनी में हिजाब के बारे में बेदारी पैदा करने के लिए आगे आएं। और असरी अबाया के लिए इस्लामी शरीअत के मेयार के मुताबिक़ सादा नक्श व निगार निर्धारित करें। इस सुलगते हुए मसले को अंतर्धार्मिक मुकाल्मे के जरिये खुश उस्लुबी के साथ भी हल करने की जरूरत है, ताकि श्र पसंद तत्व और फैशन के नए रुझानात को हमेशा के लिए रोका जा सके।
जनाब बिलाल अहमद परे न्यू एज इस्लाम के एक नियमित स्तंभकार हैं। आप का संबंध जम्मू कश्मीर राज्य के दक्षिणी क्षेत्र तराल से है। उन्होंने कश्मीर यूनिवर्सिटी से इस्लामियात में मास्टर्स किया है। आपके अक्सर लेख इस्लामी समाजी मसाइल पर राज्य के कई रोज़नामों में अंग्रेजी व उर्दू भाषा में प्रकाशित होते रहते हैं।
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English Article: Hijab versus Saffron Shawls Row in Karnataka:
Mischief Galore
Urdu Article: Hijab versus Saffron Shawls Row in Karnataka:
Mischief Galore کرناٹک
میں حجاب بمقابلہ زعفرانی شال تنازع: فتنہ و فساد کا عروج
Malayalam Article: Hijab versus Saffron Shawls Row in Karnataka:
Mischief Galore കർണാടകയിലെ കുങ്കുമ ഷാളുകാരുടെ ഹിജാബ് കടന്നാക്രമക്രമണം: അനർത്ഥങ്ങൾ അധികമാകുന്നു
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