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The Holy Quran Does Not Approve Of Forced Religious Conversion कुरआन जबरन धर्म परिवर्तन को मान्यता नहीं देता

कुरआन की स्थिति धर्म परिवर्तन के आधुनिक अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार है

प्रमुख बिंदु:

1. कुरआन अपने अनुयायियों को शांति से अपना संदेश फैलाने के लिए कहता है

2. कुरआन के अनुसार लोगों को अपना धर्म घोषित करने की पूरी आजादी है

3. कुरआन कहता है कि मुसलमानों को धार्मिक पुलिस की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए

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न्यू एज इस्लाम संवाददाता

25 सितंबर, 2021

धर्मांतरण आधुनिक समय में एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है। धार्मिक संगठनों और कार्यकर्ताओं पर अक्सर जबरन धर्म परिवर्तन का आरोप लगाया जाता है। उन पर गरीब या अनपढ़ लोगों को अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर करने का आरोप है। कुछ चरमपंथी समूह लोगों का अपहरण करने के बाद उनका जबरन धर्म परिवर्तन करते हैं। ये संगठन और व्यक्ति अपने धर्म को बढ़ावा देने के लिए ऐसा करते हैं।

जबरन धर्मांतरण की इस प्रवृत्ति ने आधुनिक सरकारों को ऐसे लोगों और संगठनों को जबरन धर्मांतरित करने से रोकने के लिए कानून बनाने के लिए मजबूर किया है। नागरिकों के अधिकारों को मानवाधिकारों और धार्मिक अधिकारों के तहत संरक्षित किया जाता है और वे किसी भी धर्म में विश्वास करने या अपनी अंतरात्मा की आवाज पर किसी भी धर्म को अपनाने के लिए स्वतंत्र हैं।

जब हम कुरआन का अध्ययन करते हैं और धर्मांतरण पर कुरआन की स्थिति को समझने की कोशिश करते हैं, तो हमें इस मुद्दे पर स्पष्ट निर्देश और आदेश मिलते हैं। यद्यपि कुरआन लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए नाज़िल हुआ है और अपने अनुयायियों को अपना संदेश फैलाने के लिए आदेश देता है, यह उन्हें सख्ती से निर्देश भी देता है कि किसी को भी अपने धर्म को स्वीकार करने के लिए मजबूर न करें। कुरआन उन्हें दूसरे धर्मों के अनुयायियों के बारे में बुरा न बोलने के लिए भी कहता है। खुदा ने लोगों को अच्छे कर्मों के पुरस्कार और बुरे कामों की चेतावनी के साथ मार्गदर्शन करने के लिए रसूल भेजे। उन्हें लोगों को अपने धर्म को स्वीकार करने के लिए मजबूर करने की आज्ञा नहीं दी गई। इसलिए, अंबिया के अनुयायियों को उसी मार्ग पर चलने की आज्ञा दी गई है।

और हम तो पैग़म्बरों को सिर्फ इसलिए भेजते हैं कि (अच्छों को निजात की) खुशख़बरी सुनाएंऔर (बदों को अज़ाब से) डराएंऔर जो लोग काफिर हैं झूटी झूटी बातों का सहारा पकड़ के झगड़ा करते है ताकि उसकी बदौलत हक़ को (उसकी जगह से उखाड़ फेकें और उन लोगों ने मेरी आयतों को जिस (अज़ाब से) ये लोग डराए गए हॅसी ठ्ठ्ठा (मज़ाक) बना रखा है (18:56)

कुरआन धार्मिक संदेश फैलाने के नाम पर हिंसा और रक्तपात नहीं चाहता:

ये वह (मज़लूम हैं जो बेचारे) सिर्फ इतनी बात कहने पर कि हमारा परवरदिगार खुदा है (नाहक़) अपने-अपने घरों से निकाल दिए गये और अगर खुदा लोगों को एक दूसरे से दूर दफा न करता रहता तो गिरजे और यहूदियों के इबादत ख़ाने और मजूस के इबादतख़ाने और मस्जिद जिनमें कसरत से खुदा का नाम लिया जाता है कब के कब ढहा दिए गए होते और जो शख्स खुदा की मदद करेगा खुदा भी अलबत्ता उसकी मदद ज़रूर करेगा बेशक खुदा ज़रूर ज़बरदस्त ग़ालिब है (22:40)

कुरआन इस्लाम के अनुयायियों को केवल खुदा के मार्ग में प्रयास करने और लोगों को ईश्वर का संदेश देने की आज्ञा देता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। संदेश को स्वीकार करना लोगों की जिम्मेदारी है। खुदा कहता है कि पृथ्वी पर कई धर्म होने में हिकमत है और अगर वह चाहता तो वे सभी एक ही धर्म का पालन करते। इसलिए खुदा केवल यह देखना चाहता है कि क्या उसके अनुयायी उसके संदेश को फैलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं या नहीं। कुरआन कहता है:

तुम पर तो सिर्फ एहकाम का पहुचा देना फर्ज है (40) और उनसे हिसाब लेना हमारा काम है (13:40-41)

और जब किसी से कोई बुरी बात सुनी तो उससे किनारा कश रहे और साफ कह दिया कि हमारे वास्ते हमारी कारगुज़ारियाँ हैं और तुम्हारे वास्ते तुम्हारी कारस्तानियाँ (बस दूर ही से) तुम्हें सलाम है हम जाहिलो (की सोहबत) के ख्वाहॉ नहीं (28:55)

जो लोग किसी विशेष धर्म को स्वीकार करने के लिए मजबूर करते हैं और अगर वे इसे स्वीकार नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल करते हैं, वे हद से बढ़ने वाले हैं। खुदा ऐसे लोगों से नफरत करता है।

अल्लाह हद से बढ़ने वालों को पसंद नहीं करता।(3:140)

प्रचारकों (मुबल्लेगीन) के संदेश को स्वीकार करने की जिम्मेदारी लोगों पर है। वे किसी भी धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र हैं। कुरआन स्पष्ट रूप से कहता है:

और (ऐ रसूल) तुम कह दों कि सच्ची बात (कलमए तौहीद) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (नाज़िल हो चुकी है) बस जो चाहे माने और जो चाहे न माने (18:29)

तुम कुछ उन पर दरोग़ा तो हो नहीं (88:22)

और कुरआन से नसीहत दो कि कहीं कोई जान अपने किये पर पकड़ी न जाए (6:70)

और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार फसादियों को खूब जानता है और अगर वह तुम्हे झुठलाए तो तुम कह दो कि हमारे लिए हमारी कार गुजारी है और तुम्हारे लिए तुम्हारी कारस्तानी जो कुछ मै करता हूँ उसके तुम ज़िम्मेदार नहीं और जो कुछ तुम करते हो उससे मै बरी हूँ (10:41)

और (ऐ ईमानदारों) अहले किताब से मनाज़िरा न किया करो मगर उमदा और शाएस्ता अलफाज़ व उनवान से लेकिन उनमें से जिन लोगों ने तुम पर ज़ुल्म किया (उनके साथ रिआयत न करो) और साफ साफ कह दो कि जो किताब हम पर नाज़िल हुई और जो किताब तुम पर नाज़िल हुई है हम तो सब पर ईमान ला चुके और हमारा माबूद और तुम्हारा माबूद एक ही है और हम उसी के फरमाबरदार है (29:46)

आधुनिक समय में धर्मांतरण का मिशन कौमों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से प्रभावित है। अतीत में, धार्मिक आधार पर युद्ध लड़े जाते थे और धर्म के प्रसार के नाम पर हिंसा और रक्तपात का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन आधुनिक समय में धर्मांतरण के मुद्दे को मानवाधिकारों और धार्मिक अधिकारों के दायरे में ला दिया गया है। कोई किसी को धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य नहीं कर सकता।

आधुनिक युग में धर्म या अकीदे की स्वतन्त्रता की जमानत, मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 18, नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते के अनुच्छेद 18  और सभी प्रकार की असहिष्णुता और धार्मिक आधार पर भेदभाव के सभी किस्मों के खात्मे के घोषणाओं के माध्यम से दी गई है।

अनुच्छेद 18.2 किसी भी जबरदस्ती को प्रतिबंधित करता है जो किसी धर्म या अकीदे को धारण करने या अपनाने के अधिकार का उल्लंघन करता है, या मोमिनों या गैर-मोमिनों को अपना धर्म स्वीकार करने, या अपने धर्म से रुजुअ करने या इसे स्वीकार करने के लिए ताकत के इस्तेमाल या दंडात्मक प्रावधानों को लागू करने से रोकता है।

 इसलिए, धर्मांतरण पर कुरआन की स्थिति आधुनिक अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार है। यह इस्लाम के अनुयायियों को किसी को भी इस्लाम में परिवर्तित होने और इस्लाम फैलाने के नाम पर हिंसा का उपयोग करने की अनुमति नहीं देता है।

English Article: The Holy Quran Does Not Approve Of Forced Religious Conversion

Urdu Article: The Holy Quran Does Not Approve Of Forced Religious Conversion قرآن مجید جبری تبدیلی مذہب کو تسلیم نہیں کرتا

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/forced-religious-conversion-quran/d/125920

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