तुर्की का भूकंप, संदेहजनक विचार और कुरआन करीम की रौशनी
गुलाम गौस सिद्दीकी, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
23 फरवरी 2023
भूकंप के विषय पर लिखने का निर्णय लेने का कारण यह है कि कुछ लोग तुर्की में हाल ही में आए भूकंप के बारे में तरह-तरह की अटकलें लगा रहे हैं। कुछ कह रहे हैं कि यह भूकंप आया है क्योंकि क़यामत का समय निकट है। भूकंप बेशक अल्लाह की निशानी है। पवित्र कुरआन में एक सूरह भी है जिसे ज़लज़ला कहा जाता है। इस सूरह की पहली आयत में अल्लाह तआला ने भूकंप का ज़िक्र किया है। अल्लाह ताला फ़रमाता है: "जब ज़मीन अपनी पूरी ताक़त से हिलाई जाएगी।" इस आयत की व्याख्या में तफसीर करने वाले लिखते हैं कि इस आयत में वर्णित भूकंप ऐसा है कि पूरी पृथ्वी हिल जाएगी और कोई हिस्सा नहीं रहेगा और परिणामस्वरूप पूरी पृथ्वी को सपाट कर दिया जाएगा और यह घटना नफख सानी के बाद होगा।
हदीस की किताबों में यह भी बयान किया जाता है कि इस भूकंप से
पहले दुनिया में छोटे छोटे भूकंप आते रहेंगे और यह भूकंप कयामत के करीब होने के समय
होंगे। इमाम बुखारी ने एक मशहूर सहाबी हज़रत अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहु अन्हु की रिवायत
में ज़िक्र किया है कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: لا تقوم الساعۃ حتی یقبض العلم و تکثر الزلازل
अर्थात कयामत उस समय
तक कायम नहीं होगी जब तक कि इल्म को उठा लिया जाए और जलजले बहुत अधिक होने लगें। (सहीह
बुखारी, किताबुल इस्तिसका,
बाब माकब्ल फिल ज़लाज़िल वल आयह)
मौजूदा जमाने में भूकंप की अधिकता को देख कर आम मुसलमान अब यह सोचने लगे हैं कि ज़लज़लों की बहुत कसरत हो चुकी है। कहीं न कहीं ज़लज़ले की खबर रहती हैं। कयामत से करीब ज़माना आ चुका है। इसलिए, इस बात को याद करते हुए वह अपने आमाल पर गौर करना शुरू कर देते हैं और दूसरों को भी यह कहते नज़र आते हैं आइये मिलकर अपना मुहासबा करें, अपने आमाल को सहीह करें और अल्लाह पाक के फरमाबरदार बन जाएं। इसके उलट कुछ लोग यह समझते हैं कि उनको इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ऐसे ज़लज़ले आते रहेंगे और यह कि यह ज़िन्दगी ऐश व मस्ती का नाम है और गुनाह करो या सवाब कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसे मुकाम पर यकीनन एक मोमिन बंदे को चाहिए कि वह अपने बुरे आमाल को सामने रखते हुए अल्लाह पाक के सामने इखलास और आजज़ी व इन्किसारी करे और मगफिरत व बख्शिस का तलबगार हो जाए।
लेकिन कुछ मुसलमान ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि भूकंप अल्लाह के प्रकोप और क्रोध की निशानी है। इसके द्वारा अल्लाह हमें शिक्षा दे रहा है कि ऐ मेरे बंदों, तुमने बहुत अवज्ञा की है, अब बहुत हो गया, अब पछताओ और मेरे पास आओ, मुझसे क्षमा मांगो, मैं तुम्हें क्षमा कर दूंगा। क्या यह संदेश है कि अपने खुदा की सजा से डरते हुए अपने आमाल में सुधार कर लो, क्योंकि तुम्हारा रब तुमको इस दुनिया में एक अस्थायी सजा से डराकर सुधारना चाहता है ताकि तुम आखिरत की शाश्वत सजा से बच सको? यह एक बहुत ही शिक्षाप्रद प्रश्न है क्योंकि यहाँ प्रश्न यह है कि क्या अल्लाह पाक की रहमत के लिए इस तथ्य की आवश्यकता है कि वह इस संसार में आप पर एक अस्थायी विपत्ति भेजकर रहमत की बारिश कर रहा है ताकि तुम आखिरत न ख़त्म होने वाली अज़ाब से महफूज़ रह सको। इस मौके पर तुर्की में आए भूकंप में इमारतों और घरों से बच निकले छोटे-छोटे बच्चों के दृश्यों को ध्यान में रखें कि कैसे वे घंटों मलबे में दबे होने के बावजूद जिंदा और सुरक्षित हैं। निश्चय ही वह जिसे चाहता है उसे मृत्यु देता है और जिसे चाहता है जीवित रखता है।
‘‘قل یا عبادی الذین اسرفوا علی انفسہم لا تقنطوا من رحمۃ اللہ ان الله یغفر الذنوب جمیعا انه هو الغفور الرحیم)
“(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ मेरे (ईमानदार) बंदों जिन्होने (गुनाह करके) अपनी जानों पर ज्यादतियाँ की हैं तुम लोग ख़ुदा की रहमत से नाउम्मीद न होना बेशक ख़ुदा (तुम्हारे) कुल गुनाहों को बख्श देगा वह बेशक बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है” (सुरह ज़ुमर 39, आयत 53)
इन विचारों को कुरआन करीम की आयत के साथ बयान करने के बाद मुसलमान यह भी कहते हैं कि अब आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने अल्लाह के हुजूर तौबा व इस्तिग्फार करें और अल्लाह को राज़ी करने वाले आमाल करना शुरू कर दें, सदका व खैरात की कसरत करें, क्योंकि यह अल्लाह पाक को बहुत अधिक पसंद है और ग़रीबों और मिसकीनों के बीच सदका करने से अल्लाह की नाराजगी दूर होती है।
एक हदीस के अलफ़ाज़ इस तरह हैं: فان الصدقۃ تطفئی غضب الرب۔ अर्थात सदका रब्बुल आलमीन के गज़ब को बुझा देता है। और इस तरह वह मुसलमान दुआ में अलग जाता है कि या अल्लाह, तू हमारे गुनाहों को माफ़ फरमा दे और हमें नेक आमाल करने की तौफीक अता फरमा। (आमीन बिजाह सय्य्दुल मुरसलीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)
एक रिवायत यह भी पेश की जाती है कि एक बार हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह अलैह ने अपने गवर्नरों को पैगाम भेजा कि “सुनो! अच्छी तरह जान लो कि ज़लज़ले के झटके सज़ा के तौर पर आते हैं। तुम लोग सदका खैरात करते रहा करो और इस्तिग्फार में लगे रहो। इसके अलावा तुम सब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की दुआ (ربنا ظلمنا انفسنا وان لم تغفر لنا و ترحمنا لنکونن من الخٰسرین) (उर्दू अनुवाद’ ऐ परवरदिगार! हमने अपनी जानों पर (नाफरमानी और बुरे आमाल कर के) ज़ुल्म किया है। अगर तू हमें माफ़ न फरमाए गा और हम पर रहम न फरमाए गा तो हम तबाह हो जाएंगे) कसरत के साथ पढ़ा करो।“ (بحوالہ ‘‘الجواب الکافی لمن سال عن الدواء الشافی: 54-53)
यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि पवित्र कुरआन में वर्णित भूकंप कयामत के समय होगा और हमें इस पर विश्वास है क्योंकि यह कुरआन का संदेश है। लेकिन हदीसों के आख्यान से यह निष्कर्ष निकालना थोड़ा मुश्किल है कि कयामत के दिन से पहले आने वाले छोटे भूकंप भूकंप पीड़ितों में से प्रत्येक के बुरे कार्यों के कारण होंगे। हो सकता है कि हदीसों का अर्थ यह हो कि क़यामत के दिन से पहले जितने भी छोटे भूकम्प होंगे उनमें से अधिकांश बंदों के बुरे आमाल के कारण होंगे और यह भी हो सकता है कि नेक बंदों पर भी आए। ताकि उनके धैर्य और कृतज्ञता की बड़ी परीक्षा हो जाए। कुरआन और हदीस के शब्दों के अर्थ को दिल और दिमाग से समझना महत्वपूर्ण है। यह निष्कर्ष निकालना भी सही नहीं है कि हम कुरआन पर विश्वास करेंगे और हदीसों पर विश्वास नहीं करेंगे। हालाँकि मुतवातिर हदीसों को छोड़कर सभी हदीसों से प्राप्त जानकारी ज़न्नी होती है और पवित्र कुरआन की तरह निश्चित नहीं होती है, लेकिन ज़न्नी विज्ञानों में दो पक्ष हैं, एक संभव है और दूसरा असंभव है। हदीस जितनी प्रामाणिक है, उतनी ही विश्वसनीय है। इसलिए हम यह नहीं कह सकते कि सभी छोटे-छोटे भूकम्प उनके लिए केवल उनके बुरे कर्मों का परिणाम होते हैं, परन्तु एक और सम्भावना है कि ये भूकम्प उनके धैर्य की परीक्षा हों। इस बिंदु को अगले पाठ में स्पष्ट रूप से समझा जाएगा
निस्संदेह भूकंप अल्लाह की नाज़िल की हुई निशानियों में से एक है, जिन्हें वह धरती में एक महान हिकमत के तहत बरपा करता है, और आदि से अंत तक केवल अल्लाह ही का आदेश चलता है। वह मालिक है जो चाहे करे। सब कुछ उसकी मर्जी से होता है। अल्लाह अपने बंदों पर बहुत मेहरबान भी है। उसकी दया (रहमत) उसके क्रोध (गुस्से) पर ग़ालिब है। उसकी रहमत हर चीज को घेरे हुए है। मोमिन हो या काफिर, मुसलमान हो या गैरमुस्लिम, किसी भी समुदाय और जाति से हो और किसी भी देश से हो, अल्लाह की रहमत इस दुनिया में सब पर है। लेकिन इसका उद्देश्य ये नहीं कि उसकी दया (रहमत) पर ही भरोसा कर लिया जाए और उसकी सांसारिक और उखरवी अज़ाब को भूल जाया जाए, उसके इनाम और सवाब पर भरोसा कर लिया जाए और उसकी सजा से बेखबर हो जाएं। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि उसकी रहमत और क्षमा की आशा करते हुए सभी बुरे विश्वासों (अकीदों) और कार्यों को अपना लिया जाए।
जैसे मुसलमान बंदे के लिए अल्लाह की रहमत को याद करना इबादत है वैसे ही उसके अज़ाब को याद करना भी उसके लिए इबादत है। रहमत को याद करने से बन्दा अपने अच्छे ईमान और कर्मो पर खुश होता है और अल्लाह का शुक्र अदा करता है और अल्लाह की उस अज़ाब को याद करके बुरे काम करने से भी डरता है कि कहीं उसका रब उससे नाराज़ न हो जाए।
कुरआन मजीद में अल्लाह पाक ने कई मौकों पर अपने अज़ाब का डर सुनाया है। अल्लाह पाक इरशाद फरमाता है:
أَفَأَمِنَ أَهْلُ الْقُرَىٰ أَن يَأْتِيَهُم بَأْسُنَا بَيَاتًا وَهُمْ نَائِمُونَ ﴿٩٧﴾ أَوَأَمِنَ أَهْلُ الْقُرَىٰ أَن يَأْتِيَهُم بَأْسُنَا ضُحًى وَهُمْ يَلْعَبُونَ ﴿٩٨﴾ أَفَأَمِنُوا مَكْرَ اللَّهِ ۚ فَلَا يَأْمَنُ مَكْرَ اللَّهِ إِلَّا الْقَوْمُ الْخَاسِرُونَ ﴿٩٩﴾
“(उन) बस्तियों के रहने वाले उस बात से बेख़ौफ हैं कि उन पर हमारा अज़ाब रातों रात आ जाए जब कि वह पड़े बेख़बर सोते हों (97) या उन बस्तियों वाले इससे बेख़ौफ हैं कि उन पर दिन दहाड़े हमारा अज़ाब आ पहुँचे जब वह खेल कूद (में मशग़ूल हो) (98) तो क्या ये लोग ख़ुदा की तद्बीर से ढीट हो गए हैं तो (याद रहे कि) ख़ुदा के दॉव से घाटा उठाने वाले ही निडर हो बैठे हैं (99)” (सुरह आराफ 7,97,98,99)
अल्लाह ने इन आयतों को अपने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर उतारा और मक्का के मुशरिकीन को सिखाया कि क्या वे अल्लाह की सजा से निडर हो गए हैं। शिर्क और कुफ्र को अपनाने से क्या वे धरती पर सबसे बुरे कामों और फसाद फैलाने में इतने मशगूल हो गए हैं कि अब उन्हें ख़ुदा के अज़ाब का डर नहीं रहा। इन आयतों में, उन्हें चेतावनी दी जा रही है कि ऐसा न हो कि उनकी लापरवाही के समय में, जैसे कि जब वे रात में सो रहे हों या जब वे दिन के दौरान खेल रहे हों, और अल्लाह की सजा उन पर आ जाए, और उन्हें तौबा और माफ़ी का मौक़ा भी न मिल सके क्योंकि अज़ाबे इलाही प्राय: गफलत के समय आता है और लापरवाही अधिकांशत: रात में सोते समय तथा दिन में व्यस्त कार्यों के दौरान होती है।
इन आयतों से पहले अल्लाह पाक ने कौमे नूह, कौमे समूद और कौमे मदयन आदि के कुफ्फार का विस्तृत और इजमाली वाकया बयान फरमाया। इन घटनाओं को अल्लाह पाक ने कुरआन में इस सुरह के अलावा दुसरे सूरतों में अलग अलग जगहों पर भी बयान फरमाया है। कौमे नूह का संक्षिप्त वाकया यह है कि जब हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने अपनी कौम को एक खुदा पर ईमान लाने और एक खुदा की इबादत करने और अपनी रिसालत की तस्दीक करने की दावत दी तो उनकी कौम के कुछ लोगों ने हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की तकज़ीब की। उसके नतीजे में अल्लाह पाक ने उन पर सैलाब का अज़ाब नाज़िल फरमा कर उन्हें हालाक कर दिया।
कौमे समूद का वाकया यह है कि हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने भी अपनी कौम को एक खुदा की इबादत करने और ज़मीन पर फसाद करने से बाज़ रहने की दावत दी लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया और फिर लगातार तरह तरह के अपराध में मशगूल रहे यहाँ तक की अल्लाह पाक ने उन पर अज़ाब नाज़िल फरमा कर उन्हें हालाक कर दिया।
इसी तरह कौमे लूत और फिरऔनियों के वाकेयात भी पेशे नज़र रखें। इन वाकेयात को अल्लाह पाक ने अपने प्यारे नबी अलैहिस्सलाम के जरिये से तमाम बस्ती वालों के लिए बयान किया ताकि वह पिछली उम्मतों के वाकेयात पर गौर कर के इबरत हासिल करें और अपने अकीदों के साथ साथ अपने आमाल भी सहीह करें।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ
अनुवाद: ऐ ईमान वालों! अल्लाह से डरो जैसा कि उससे डरने का हक़ है और ज़रूर तुम्हें मौत सिर्फ इस्लाम की हालत में आए”
कुरआन मजीद में जहां कहीं भी अज़ाब वगैरा का ज़िक्र आया है वहाँ इस ज़िक्र का मकसद नुफूसे इन्सानिया के अकाएद और आमाल की इस्लाह मकसूद होता है।
हम भूकंप के बारे में बात कर रहे थे। पवित्र कुरआन की रोशनी में इस बात को समझना बहुत आसान हो गया है कि भूकंप भी अल्लाह की निशानियों में से एक है ताकि लोग इससे सीख सकें और अपने अकीदे और कार्यों को सुधार सकें। यहां यह याद रखना बहुत जरूरी है कि अगर किसी देश विशेष में भूकंप आता है तो उससे जो सीख मिलती है वह सिर्फ उस देश विशेष के लिए नहीं होती, बल्कि वह सीख उस जमाने में रहने वाले सभी लोगों के लिए होती है। यहां यह सीख भी याद रखनी चाहिए कि अगर किसी पर कोई मुसीबत आ जाए तो उसका मजाक उड़ाने के बजाय इस घटना को अपने लिए एक सबक के तौर पर लें, तौबा और माफी मांगकर अपनी अकाएद और कार्यों को सही करें और अल्लाह के हक़ के साथ साथ इंसानी हुकूक का भी ख्याल रखें।
मुझे लगता है कि यहां यह बताना जरूरी है कि हाल ही में तुर्की में हुई इस दर्दनाक घटना से मैं यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकता कि तुर्क और सीरियाई लोगों ने कोई बड़ा पाप किया होगा तभी निश्चित रूप से यह भूकंप उन पर आया है। मुझे इस बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है, लेकिन अल्लाह वास्तविकता को बेहतर जानता है। कुरआन और सुन्नत के अध्ययन से हमें जो समझ में आता है वह यह है कि कभी इंसान पर मुसीबतें उसके बुरे कर्मों के कारण होती हैं और कभी-कभी वे आपदाएं सब्र की परीक्षा होती हैं। हम ऊपर देख चुके हैं कि इस्लाम के आने से पहले पिछली कौमों को जो सज़ाएँ मिलीं, वे उनके बुरे अकाएद और कार्यों के कारण थीं, और इसके अलावा पवित्र क़ुरआन की अन्य आयतों में भी हमें यह शिक्षा मिलती है कि कभी कभी मुश्किलें अल्लाह के नेक बंदों पर नाज़िल होती हैं, लेकिन इस वक्त इन मुसीबतों में सब्र की बड़ी इम्तिहान होती है।
अल्लाह पाक का इरशाद है: وَلَنَبْلُوَنَّکُمْ بِشَيْئٍ مِّنَ الْخَوْفِ وَالْجُوْعِ وَ نَقْصٍ مِّنَ الْاَمْوَالِ وَالْاَنْفُسِ وَالثَّمَرٰتِ ط وَ بَشِّرِ الصّٰبِرِيْنَ
अनुवाद: “और हम ज़रूर बिल ज़रूर तुम्हें आजमाएंगे थोड़ा खौफ दे कर, कुछ भूक के जरिये से, कुछ मालों और जानों और फलों को कम कर के (आजमाएंगे, और ऐ हबीब!) तुम खुशखबरी सूना दो उन लोगों को जो (आज़माइश पर) सब्र करने वाले हैं। (सुरह बकरा, आयत 155)
अगर सब्र की फज़ीलत देखनी है तो हमें सब्र ए अय्यूब के वाकये को पेशे नज़र रख लेना चाहिए कि अल्लाह पाक ने हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम को एक बहुत दर्दनाक बीमारी में मुब्तिला किया, उनकी साड़ी दौलत छीन ली, लेकिन हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम के सब्र का हाल यह है कि वह हमेशा यही कहते रहे कि मुसीबत और खुशहाली का मालिक अल्लाह है, अल्लाह पाक सबका मालिक है और मालिक को यह पूरा इख्तियार है कि वह अपने बंदों को जो चाहे दे और उससे जो चाहे ले। सूफिया ए कराम की तालीमात का अंदाजा लगाएं तो मालुम होगा कि मुसीबत भी एक तरह से अल्लाह की नेमत है क्योंकि यह अल्लाह की मर्ज़ी से आती है और जिस चीज में रब्बुल आलमीन की मर्ज़ी हो उससे अल्लाह के महबूब बंदे हमेशा राज़ी रहते हैं, बल्कि शुक्र बजा लाते हैं। लगभग अठारह सालों तक हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम इस मर्ज़ में मुब्तिला रहे और फिर अल्लाह पाक ने उनके एक लम्बे इम्तेहान के बाद उन्हें फिर से वह साड़ी चीजें अता कीं जो उनसे ले ली गई थी, अर्थात उनकी औलाद, उनकी जवानी और सेहत और उनके बागात आदि।
तुर्की में जो ज़लज़ला आया उनके ताल्लुक से हम यकीनी तौर पर कुछ नहीं कह सकते कि यह ज़लज़ला उनके बुरे आमाल की वजह से आया यह कि उनमें नेक बंदे भी हैं जिन्हें इस मुसीबत पर सब्र स शुक्र के कड़े इम्तेहान में आजमाया गया है। वल्लाहु आलम बिस्सवाब।
अल्लाह पाक हम इंसानों पर रहम फरमाए और हमें ईमान की दुरुस्तगी के साथ साथ आमाल की इस्लाह करने की तौफीक अता फरमाए।
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Urdu Article: The Earthquake in Turkey: A Sign of God's Wrath or
Mercy? ترکی
کا زلزلہ: اللہ تعالی کا عذاب یا اللہ پاک کی رحمت
English Article: The Earthquake in Turkey: A Sign of God's Wrath,
Mercy or a Test of Patience?
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