फहीम अनवर आज़मी वलीदपूरी
१७ दिसंबर २०२०
लंबे सफ़र के बाद दिल में यह खयाल आया कि
कुछ मिनट आराम करने के बाद बच्चों को खिलौने दिलाने की चाहत का सम्मान करते हुए
उनकी उंगली पकड़ कर उर्स के मेले की ओर चलूँ,
जब उर्स के खुले मैदान में पहुंचा तो एक
टोपी वाला एक छाते में रख कर टोपियाँ बेच रहा था,
उसके छाते में अलग-अलग प्रकार की टोपियाँ
थीं जब मेरे भतीजे ने रंग बिरंग टोपियाँ देखी तो उसने कहा कि क्या बेहतर होता कि
चचा जान मुझे एक टोपी दिला देते,
जब मैंने टोपी बेचने वाले से कहा कि मुझे एक टोपी दे दो,
टोपी बेचने वाले ने मुझ से कहा कि आपको
कौन सी टोपी चाहिए? मैं टोपी बेचने वाले
की जुबान से निकलने वाले वाक्य को सुनकर चिंतित हो गया मैंने टोपी बेचने वाले से
सवाल किया, भाई आपने जो सवाल किया उसका
क्या अर्थ है? तो टोपी बेचने वाले ने
जवाब दिया कि हमारे पास हर मसलक और हर फिरके की टोपियाँ उपलब्ध हैं,
देवबंदी बरेलवी, शिया सुन्नी,
वहाबी और बोहरे, आप जिस मसलक और जिस
फिरके से समबन्ध रखते हैं आप अपने मन पसंद की टोपी खरीद सकते हैं।
टोपी बेचने वाले की जुबान से निकलने वाले
वाक्यों ने मेरे आखों में पानी भर दिए और मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई और मैं
सोचने पर मजबूर हो गया फिर मैंने टोपी बेचने वाले से कहा कि कौन सी टोपी किस मसलक
की है। टोपी बेचने वाले ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया अगर आप अहले सुन्नत वल जमाअत
से संबंध रखते हैं, हरी टोपी तबलीगी जमात
से जुड़े हैं तो जाली वाली टोपी आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह से संबंध रखते हैं तो
लम्बी टोपी शोकेश में ज़रदोज़ी के काम से सुसज्जित टोपी बोहरे जमाअत की है और हमारे
पास हर मसलक और हर फिरके की टोपियाँ उपलब्ध हैं। टोपी बेचने वाले की बात से
संतुष्ट हो कर मैंनें कहा कि मुझे मोमिन वाली टोपी देदो टोपी फरोश ने जैसे ही मेरी
बातों को सूना उसके चेहरे पर मुस्कराहट आई,
उसने क्षमा चाहते हुए कहा कि मेरे पास
मोमिन वाली टोपी नहीं है मैनें पूछा क्यों? उसने
जवाब दिया कि मेरे पास कोई मोमिन वाली टोपी खरीदने ही नहीं आता,
इसलिए मैं रखता भी नहीं,
टोपी बेचने वाले की बात सुनकर मैं दुविधा
में पड़ गया कि टोपी खरीदूं या वापस चलूँ,
टोपी बेचने वाले की बात सुनकर अपने भतीजे को दिलासा दे कर मैं वहाँ से अपने घर की
ओर चल दिया,
रास्ते में मेरा हाल अजीब था टोपी फरोश की
अजीब व गरीब बातें मेरे सामने इस्लामी मिल्लत के फूट की खूबियाँ बयान कर रही थीं
काश आज मिल्लत के बीच मतभेद और फूट ना होते तो आज एक नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
के मानने वाली कौम अलग अलग खानों में बटी नहीं होती और आज एक नबी और एक कुरआन के
मानने वालों की बाज़ार में अलग अलग तरह की टोपियाँ हमारे मतभेद को बयान नहीं करतीं
आज अफ़सोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि जिस मज़हब ने इत्तेहाद व इत्तेफाक की अहमियत व
अफादियत पर ज़ोर दिया आज वही उम्मत अलग खानों में सितारों की तरह बिखरी हुई है,
आज वही उम्मत मुसीबतों के कठिन स्थिति से
जूझ रही हैं कुरआन के अंदर ईमान वालों को समझाया गया कि अल्लाह की रस्सी को मजबूती
के साथ थाम लो और आपस में भेद ना डालो फिरका फिरका में मत बटो मगर कुरआन में समझाए
जाने के बावजूद भी एक कुरआन और एक नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मानने वाली
उम्मत दुनियावी उसूल व ज़वाबित को ले कर अलग अलग खानों में बटी हुई है जिसका परिणाम
यह हो रहा है कि दुनिया के अलग अलग हिस्से में इस उम्मत को अपमान का जीवन जीने पर
मजबूर होना पड़ रहा है।
आज उम्मत के अन्दर इतनी फूट है कि हर मसलक
की अलग अलग मस्जिदें हैं और अलग अलग मदरसे हैं अल्लाह के प्यारे हबीब सल्लल्लाहु
अलैहि वसल्लम ने इस दुनिया में अपने उम्मती को यह संदेश दिया था कि मेरा उम्मती एक
जिस्म के मानिंद है अगर मेरे उम्मती को जिस्म के किसी भी हिस्से में तकलीफ हो,
उस उम्मती का दर्द दुसरे उम्मती को भी
महसूस होना चाहिए इतनी सख्त वईद होने के बावजूद भी आज उम्मत के उलेमा एक दुसरे को
नीचा दिखाने की फिराक में एक दुसरे पर बढ़त लेने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
आज के दौर में हर मसलक और हर फिरका अपने
अकीदतमंदों को जन्नत का टिकट देने में व्यस्त है मगर रसूलुल्लाह की शिक्षाओं से हर
फिरका और हर मसलक कोसों दूर है जिसके कारण इस दौर में मुस्लिम उम्मत अत्याचार का
शिकार और आज़ादी व खुद मुख्तारी से वंचित है। आज़ाद होने के बावजूद गुलामी की
जंजीरों में जकड़ी हुई है। आज पूरी इस्लामी दुनिया आपसी फूट और मतभेद के कारण कौम व
मिल्लत का शीराज़ा बिखरने की ओर बढ़ रहा है। विश्व मानवाधिकार के अलमबरदारों ने
दोहरा मेअयार अपना रखा है वह मुसलमानों के अधिकारों के हनन और उन पर हो रहे
अत्याचार पर अपनी आँखें बंद कर लेते हैं।
बर्मा के मुसलमान अपने ही देश और इलाके
में हिजरत करने पर मजबूर हैं और फिर भी अत्याचार यह है कि कोई भी देश उन्हें पनाह
देने पर राज़ी नहीं यह मुहाजेरीन मूल भूत सुविधाओं से वंचित हैं और हम कैसे मुसलमान
हैं कि उनकी दुखों का थोड़ा भी एहसास नहीं,
कितने मुहाजिरीन नदी में डूब गए और कितनी कश्तियाँ पानी में डूब गईं और कितने
शरणार्थी समुंद्र की गहराइयों में जा बसे कुछ बच्चों को पानी की लहरों ने समुंद्र
के किनारे पर डाल दिया लेकिन मुस्लिम उम्मत को उनकी बुरी हालत पर भी तरस नहीं आया
बल्कि खामोश तमाशाई बन गए, इन हालात में इस्लामी
दुनिया की जिम्मेदारी और बढ़ गई है, आज
मुस्लिम उम्मत में एकता की आवश्यकता है और मतभेद व फूट से दूर रह कर ज़मीनी सतह पर
एकता की आवश्यकता है जिससे कि हमारी ताकत का एहसास हमारे दुश्मनों और विरोधियों को
हो सके और हम खुर्शीदे मुबीन बन कर एक जिस्म के मानिंद कौम व मिल्लत के दुख को समझ
सके और एक दुसरे की मदद कर अपने रहमत वाले नबी की शिक्षाओं पर अमल कर एक दुसरे
मुसलमान के लिए दर्पण बन सकें।
आज हमारे बाहरी मतभेद ने हमें ज़मीनी सतह
पर खोखला कर दिया है आज एक उम्मत और एक नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मानने वाले
आपसी मतभेद के कारण वैश्विक स्तर पर उम्मत के मजबूत शिराज़े को पारह पारह कर चुके
हैं आज मस्लकी मतभेद ने हमें इस्लाम की असल रूहानियत और इसके लाभ से अनजान कर दिया
है जिसकी बिना पर वैश्विक स्तर पर उम्मत यलगार और दहशत के साए में जीवन व्यतीत
करने पर मजबूर है और हमारे आपसी मतभेद के कारण हमारे विरोधी हमारे सब्र व तहम्मुल
का इम्तिहान लेने के लिए इस्लामी शबीह पर उंगली उठा कर हमारे ज़िंदा ज़मीर को मजमूम
करने की तरफ चल रहे हैं जिसकी जीवित तस्वीर हम फ्रांस और दुसरे देशों के अन्दर देख
चुके हैं।
ऐसे हैरान करने वाले दौर में उलेमा की
जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि फुरुई मतभेद व फूट से हट कर कौम व मिल्लत के बीच एकता
के मकसद को सुनिश्चित करें जिससे कि भविष्य में हमारी आने वाली नस्लें इस्लाम के
असल गुण और उसकी रूहानियत से लाभान्वित हो कर अपने जीवन के बहुमूल्य समय को
इस्लामी शरीअत पर गुज़ार कर अपने ईमान व यकीन को सुरक्षा प्रदान कर सके।
१७ दिसंबर २०२०,
बशुक्रिया: इंकलाब,
नई दिल्ली
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