सुमित पाल, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
8 अगस्त 2022
कुछ साल पहले अपनी वसीअत करते हुए मैंने अपने वकील दोस्त मिस्टर असलम खान को निर्देश दिया था कि वह दो टोक अंदाज़ में यह स्पष्ट कर दें कि चूँकि मेरा कोई मज़हब नहीं है और मैं किसी खुदा को नहीं मानता, इसलिए मेरी मौत के बाद मेरा पूरा शरीर शोध उद्देश्यों के लिए करीबी मेडीकल कालेज को दे दिया जाए और मेरे शरीर के सारे अंग अगर बरकरार रहे, तो जरूरत मंदों को दान कर दिए जाएं।
मुझे याद है कि जब मेरी अरबी की प्रोफ़ेसर और सरपरस्त डॉक्टर ज़एफा अशरफ इन्तेकाल कर रही थीं तो उन्होंने लंदन के मार्सडन कैंसर हस्पताल के डॉक्टरों से अपील की थी कि मेरा पूरा शरीर दान कर दिया जाए और मज़ीद यह भी कहा कि मेरी किसी भी किस्म की कोई तज्हीज़ व तक्फीन नहीं की जाएगी क्योंकि मैं भी इंसानों के बनाए हुए तमाम धर्मों और तमाम खुदाओं से मुंह मोड़ चुकी हूँ। उसकी खुबसूरत आँखें ब्रेड फोर्ड (ब्रिटिश) की एक 16 वर्षीय लड़की को दान की गईं जो पैदाइश से नाबीना थी। उसके जिस्म के दोसरे हिस्सों ने कुछ मरीजों की जान बचाई। यह इंसानियत है, जो कि तमाम धर्मों की जड़ है।
यहाँ, मैं उन फौत होने वाले लोगों को हकीर नहीं समझ रहा हूँ, जिनके शरीर को बरकरार अंगों के साथ धार्मिक कारणों की वजह से इस्तेमाल नहीं किया जा सका। मेरा दृष्टिकोण यह है: अगर आप के अंग किसी की मदद करें तो क्या गलत है जब कि आप मर चुके हों? क्या आप किसी के जरिये मरने के बाद भी जिंदा नहीं रहते और अपनी याददाश्त को अच्छे तरीके से बरकरार नहीं रखते? ब्रेड फोर्ड की वह लड़की मेरे प्रोफ़ेसर की आँखों से पहली बार दुनिया देख कर कितनी खुश हुई होगी। यह अनुभव दिल को गरमा देने वाला है।
हालांकि आज हम सब अपने करीबी रिश्तेदारों की लाशें चिकित्सा उद्देश्यों के लिए देने से हिचकिचाते हैं, लेकिन अंगदान की कल्पना कोई नई चीज नहीं है। इसे हिन्दू मत में दधीची आदर्श के नाम से जाना जाता है। दधीची, जिसे दधींचा या दधींगा के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू मत में एक अहम किरदार है। दधीची एक ऋषि है जिसने देव और असुरों के बीच विवाद में किरदार अदा किया है। दधीची अपनी जान कुर्बान करने के लिए मशहूर है ताकि इंद्रा दधीची की हड्डियों से बने हथियार “वज्र” को चला सके। देवों को शुरू में स्वर्ग से ताकतवर असूर वरत्रा ने निकाल दिया था। वरत्रा को यह वरदान प्राप्त था कि उसे हाथों से बनाए हुए किसी भी हथियार इलाही हथियारों सहित से नुक्सान नहीं पहुंचाया जा सकता था। देवों को अपनी लड़ाई में मदद के लिए एक ताकतवर हथियार की आवश्यकता थी। बाबा दधीची की हड्डियों से बने वज्र का इस्तेमाल करते हुए, देवों के बादशाह इंद्रा ने असूर को शिकस्त दी और जन्नत पर दुबारा कब्ज़ा कर लिया। हो सकता है कि यह पूरी कहानी गैर मुस्तनद हो, लेकिन उसकी एक बड़ी अहमियत और अर्थ है क्योंकि यह अपने शरीर को दान कर के दूसरों की जान बचाने से रूपक है।
इससे बढ़ कर कोई परहेज़गारी नहीं हो सकती। यहाँ तक कि अल फुरकान, जो अंगों के दान की बात नहीं करता, सुरह 5/आयत 32 में कहता है कि “जिसने एक इंसान की जान बचाई, गोया उसने पुरी इंसानियत की जान बचाई। “मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी फरमाते हैं कि “ जो किसी की मदद करेगा अल्लाह की तरफ से उसे मदद मिलेगी।“ अंगों का दान इंसान दोस्ती के आलमगीर जज़्बे का तसलसुल है। मौत आपके शारीरिक वजूद का खात्मा हो सकता है, लेकिन आपके वह अंग जो आपने दान किये हैं, इस बात को यकीनी बनाते हैं कि आप उन लोगों की याद में हमेशा जिंदा रहें जिन्होंने नई ज़िन्दगी हासिल की है। केवल 13 अगस्त (वर्ल्ड आर्गन डोनेशन डे) को ही नहीं बल्कि हर रोज़ हम यह अहद करें कि हमारे अंग उस समय भी इस्तेमाल किये जाएंगे जब हम मौजूद न हों। वैसे मेरे दोस्त और वकील मिस्टर खान ने भी अपनी वसीयत तैयार कर ली है जिसमें सपष्ट तौर पर यह खा गया है कि मेरे शारीरिक अंगों को दान कर दिया जाए। दूसरों को भी इसकी पैरवी करना होगी।
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