सैयद मुनीर हुसैन गिलानी
उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम
१० अक्टूबर २०२०
पाकिस्तान में धार्मिक सद्भाव के खिलाफ लाबी सक्रिय हो चुकी है। और शासक सब अच्छा है की गरदान के नशे में चूर खामोश तमाशाई बने हुए हैं। देश में धार्मिक नफरत फैलाने और इसे शदीद बनाने की कोशिश की जा रही है। अगर इसे न रोका गया तो यह देश की सलामती और धार्मिक सद्भाव के खिलाफ अत्यंत खतरनाक है। जो फिजा इस वक्त बनी हुई है, पाकिस्तान के अवाम इससे आँखे नहीं चुरा सकते। अब तो यह सब पर अयां हो चुका है कि कुछ ताकतें यहाँ पर धार्मिक नफरत फैला कर कत्ल व गारत और अराजकता की शक्ल पैदा कर के पाकिस्तान को कमज़ोर करने की कोशिश कर रही हैं। मैं हैरान होता हूँ कि सरकार भी मज़हबी कार्ड का उपयोग करती है। जब प्रधानमंत्री इमरान खान रियासते मदीना की बात करते हैं। तो सवाल पैदा होता है कि वह धार्मिक व्यक्तित्व हैं और न ही धार्मिक सोच रखते हैं मगर रियासते मदीना की बात करते हैं। जो कि उनकी तरफ से हास्यास्पद है क्योंकि रियासते मदीना के कयाम की इब्तिदा तो घर से होती है।
अफ़सोस कि रियासते मदीना की दावेदार सरकार के दौरान मुकद्दस व्यक्तित्व की शान में तौहीन हो रही है। समस्त इस्लामी मकतबे फ़िक्र के खिलाफ तकफीर के नारे लग रहे हैं। यह कोई मुनाज़रे की बात नहीं है कि क्या सहीह और क्या गलत है? पहले भी दोनों मकातिबे फ़िक्र के बीच तय हुआ कि अपने अकीदे पर अमल करते हुए इख्तेलाफी मसलों को उछालने की बजाए, जो सब में एक जैसा हो उसको बढ़ावा दिया जाए। दोनों एक दुसरे के अकीदों पर आलोचना छोड़ कर बीच की राह चुनें। अकीदा तो हर किसी के लिए प्रिय होता है। यह हकीकत है कि पाकिस्तान के धार्मिक जलसों के श्रोता अहले सुन्नत हों या अहले तशय्यो (शिया) इतने परिपक्व नहीं हैं। महफ़िलों में धर्म की मुहब्बत में आने वालों की इल्मी सतह बहुत कम होती है। जबकी तकरीर करने वाले भड़काऊ बातें करते हैं। अपने फिरके को सच्चा और बाकियों को झुटा साबित करने की कोशिश करते हैं तो श्रोता की तरफ से नारों की सूरत में दाद वसूल कर के और पैसे बटोर कर चले जाते हैं, मगर दुसरे फिरके की तरफ से इसकी शदीद प्रतिक्रिया अमल में आना शुरू हो जाती है। और उस क्षेत्र में तनाव पैदा हो जाता है।
मेरी अपील यह है कि तमाम वर्ग संयम का प्रदर्शन करें। सरकार से भी गुजारिश है कि सोशल मीडिया पर धार्मिक खुराफात जो आना शुरू हो गई हैं, उन्हें बंद किया जाए। अगर बंद नहीं करेंगे तो हालात अराजकता की तरफ जाएंगे। जिन्हें संभालना मुश्किल हो जाएगा। अब तो एक वर्ग के लोगों को निशाना बना कर क़त्ल किया जा रहा है। हालात पर काबू न पाया गया तो मज़ीद कत्ल किये जाने का डर मौजूद है। इतिहास से सबक सीखने की आवश्यकता है, अगर यही तनाव पूर्ण हालात जारी रहे तो दुसरे वर्ग के लोग भी प्रतिक्रिया में यही शुरू कर देंगे या कौमी संगठनों से कुछ अतिवादी लोग उठ खड़े होंगे तो यह देश के लिए हानिकारक होगा। जैसा कि १९९० ई० के दशक में होता रहा है और उस दौरान हज़ारों लोग दोनों तरफ से अजल का लुकमा बन चुके हैं। इन दिनों जबकि भारत कश्मीर के हवाले से एक नई सोच को सामने रख कर आगे बढ़ रहा है। उसी खित्ते में लद्दाख के हवाले से चीन और भारत के बीच जो आग लगी हुई है, उसकी गर्मी पाकिस्तान में भी महसूस की जा रही है और होनी भी चाहिए।
फिरका वारीयत की नई तनावपूर्ण लहर के संदर्भ में मुझे हुकूमती तैयारी, पेशबंदी और बसीरत कहीं नजर नहीं आ रही। मैं सरकार के जिम्मेदारों प्रधानमंत्री और आर्मी चीफ से इल्तेमास करता हूँ कि अगर सैलाब, ज़लज़ले और कराची में बारिश के बीच रिलीफ के लिए फ़ौज को उपयोग किया जा सकता है। पाकिस्तान से आइएसआइएस और तालिबान की दहशतगर्दी खत्म की जा सकती है, तो फ़ौज दोनों तरफ से अतिवादी तत्वों के खिलाफ इकदाम क्यों नहीं कर सकती कि फिरका वारीयत की भड़कती हुई आग ठंडी हो जाए। यह देश की सलामती का मसला है और यह इकदामात देश की बका के लिए आवश्यक है। और अगर जनरल कमर जावेद बाजवा यह इकदाम न कर सके तो देश में धार्मिक राजनीति तो दरकिनार पाकिस्तान में धर्म का नाम लेना भी मुश्किल हो जाएगा। इसलिए आर्मी चीफ से गुजारिश है कि जिस तरीके से उन्होंने राजनीतिक जमातों के नेताओं को बुलवा कर कहा है कि सरकार को चलने दिया जाए। आराम से बैठें। उसी तरीके से फिरका परस्त अतिवादी जमातों की लीडरशिप को बुलवा कर भी उन्हें उदारता पर रहने की तलकीन की जाए। और विदेशी फंड को बंद करवाया जाए।
मैं मिल्लते जाफरिया के युवाओं से भी कहना चाहता हूँ कि भड़कने के बजाए, तदबीर से काम लें। हुसैनी स्टेज से कुरआन व हदीस और सीरते मासूमीन को बढ़ावा देने की तरफ ध्यान दें। गैर ज़िम्मेदार और फसादी तकरीर करने वालों का बाईकाट करें और उन्हें दावत देने वालों को समझाएं कि कौमी हित, अमन और इल्मी बातचीत में है। इसी तरह से उलमा को भी चाहिए कि वह आगे बढ़ें और देश की सलामती के लिए मंडलाते खतरों का एहसास करें और एकता की फिजा पैदा करें। इस हवाले से कोई ऐसे इकदामात करने चाहिए जिनसे एकता और वहदत का प्रभाव मिल सके। जैसे मिल्ली यकजेहती काउंसिल में शामिल तमाम जमातें मिल बैठ कर इस हस्सास विषय पर एक स्टैंड इख्तियार करें। इन हालात को और खित्ते में मौजूद इकदामात को सामने रखते हुए गुजारिश की जाए कि खुदारा इस देश को बचा लें। अगर कराची के अंदर हालात खराब हुए हैं तो वह सबने देख लिया है कि किस तरह से हुए थे? बलूचिस्तान में दहशतगर्दी कैसे होती है वह भी शासक जानते हैं कि कौन शामिल होता है? अगर खैबर पख्तून ख्वाह में हालात खराब रहे हैं तो सब जानते हैं कि किस तरह वहाँ दहशतगर्दी होती रही है? और मैं आखिर में कहना चाहता हूँ। इस लड़ाई को समाप्त किया जाए। ताकि यह दो तरफा न बने
Urdu Article: Threats To Religious Harmony And Their Solutions مذہبی ہم آہنگی کو درپیش خطرات
اور ان کا حل
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