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Hindi Section ( 6 May 2021, NewAgeIslam.Com)

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The Boy Said: ‘Kill Them, All Those Muslims Who Are Not Ahl-e-Hadees’ उस लड़के ने कहा जो अहले हदीस नहीं हैं उन सबको मार डालो

सुलतान शाहीन, संस्थापक संपादक न्यू एज इस्लाम

(उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम)

नई दिल्ली निवासी सीनियर पत्रकार सुलतान शाहीन इस्लामी और मुस्लिम मामलों के एक प्रतिष्ठित टिप्पणीकार हैं। वह लोकप्रिय वेबसाईट मैगज़ीन न्यू एज इस्लाम चलाते हैं। योगेन्द्र सिकंदर के साथ इस इंटरव्यू में वह आधुनिक भारत में मुसलमानों के समस्याओं और अपने काम के संबंध में बता रहे हैं।

प्रश्न: अपने बारे में संक्षेप में बताएं?

उत्तर: मैं १९४९ में औरंगाबाद, बिहार के एक गाँव में पैदा हुआ। मेरे पिता एक मौलवी थे एक सरकारी मिडिल स्कूल में टीचर थे। हमारा खानदान मौलवियों का था और मेरे पिता खानदान के परम्परा के अनुसार एक स्थानीय मस्जिद में इमामत का फरीज़ा भी निभाते थे और मदरसे में भी पढ़ाते थे।

शुरू के सालों में मैंने घर में ही शिक्षा प्राप्त की फिर ग्यारहवीं जमात तक मैंने एक स्थानीय हिंदी स्कूल में पढ़ाई की। मेरे पिता मुझे कालिज नहीं भेज पाए इसलिए इसके बाद मैंने घर के कामों में हाथ बटाना शुरू कर दिया। मैं बकरियां चराता और लकड़ियाँ काट कर लाता एक दिन एक दोस्त के साथ इस बात पर बहस हुई कि दुनिया का सबसे कठिन कार्य कौन सा है। काफी गौर के बाद हम लोग इस नतीजे पर पहुंचे कि अंग्रेजी सीखना सबसे कठिन कार्य है। उसी दिन मैंने यह निर्णय किया कि मैं अंग्रेजी सीखूंगा। मेरे पिता ने मुझे एक डिक्सनरी खरीद दी और मैं खुद अंग्रेजी सीखने लगा।

कुछ वर्षो बाद मेरा कुंबा औरंगाबाद शहर स्थानांतरित हो गया जहां मैंने ट्यूशन देना शुरू किया जिससे मुझे हर छात्र पर दस रूपये मांसिक मिल जाते थे। मैंने पटना यूनिवर्सिटी में बीए में दाखिला लिया और १९७२ में दिल्ली आ गया। पटना में एक अखबार सर्च लाईट के लिए लिखता था जो छात्रों के समस्याओं पर प्रकाश डालता था। दिल्ली आकर मैंने जमाते इस्लामी के तर्जुमान रिसाले रेडियंस (Radiance) में नौकरी कर ली यहीं से मेरा पत्रकारिता कैरियर और मुस्लिम मामलों पर मेरी लेखों की शुरुआत हुई।

प्रश्न: इसके बाद आप किस तरह आगे बढ़े?

उत्तर: मैं रेडियंस के साथ कुछ महीने ही जुड़ा रहा। किसी वैचारिक समूह के साथ काम करने का यह पहला मौक़ा था और जल्द ही मैं दिक्कतें महसूस करने लगा हालांकि रेडियंस दफ्तर के बहुत सारे लोग अत्यंत अच्छे इंसान थे। फिर भी मुझे उनका रवय्या मिसाल के तौर पर औरतों के लिए बहुत तंग ज़हनी पर आधारित बल्कि इस्लामी दृष्टिकोण से भी निरर्थक और बकवास था। धीरे धीरे मुझ पर यह अकीदा खुला कि रेडियंस जिस एजेंडे को लेकर जमाते इस्लामी के साथ चल रहा है मैं उसकी हिमायत नहीं कर सकता इसलिए मैंने उस रिसाले को छोड़ दिया और फिर कई वर्षों तक विभिन्न अखबारों और न्यूज़ एजेंसियों के लिए काम करता रहा और फ्रीलांस पत्रकार की हैसियत से लंदन में भी काम किया। मैं सन १९९० के शुरू में दिल्ली वापस आया जहां मैंने एक साल के लिए वेनीन एंड वर्ल्डके लिए काम किया जो सामान्य रूप से प्रगतिशील मुस्लिम समूह के द्वारा स्थापित किया गया था लेकिन एक ही साल के अंदर मुझे नौकरी छोड़ देनी पड़ी क्योंकि इसके प्रशासन ने इस हकीकत को स्वीकार नहीं किया कि मेरी अहलिया, मेरे बच्चों की मां एक हिन्दू हैं और उन्होंने इस्लाम स्वीकार नहीं किया है। उन्होंने मुझे इस बात पर राज़ी करने की कोशिश की कि मैं उसे मुसलमान बनने पर मजबूर करूँ लेकिन मैंने इससे इनकार कर दिया क्योंकि मैं समझता हूँ कि धर्म किसी का व्यक्तिगत मामला है। मेरे इनकार पर मुझे नौकरी से निकाल दिया गया।

प्रश्न: आप लम्बे समय से इस्लामी अतिवाद और असहिष्णुता के खिलाफ लिख रहे हैं। इसकी शुरुआत कैसे हुई?

उत्तर: मैं मुस्लिम मामलों पर १९७३ में अपने पत्रकारिता कैरियर की शुरुआत से ही लिख रहा हूँ लेकिन इस्लामी कट्टरवादियों से पैदा होने वाले खतरों का एहसास आगे चल कर हुआ। १९८० के मध्य में जब मैंने ब्रिटेन के नाटिंघम में एक पाकिस्तानी दोस्त के मकान पर ठहरा हुआ था, जो अहले हदीस फिरके से जुड़ा था और जो सऊदी वहाबियत से बहुत समान है और अपनी कट्टरता के लिए प्रसिद्ध है। यह फिरका पेट्रो डॉलर की सहायता से तेज़ी से फल फूल रहा है इसलिए उसे पेट्रो डॉलर इस्लाम भी कहा जाता है। मैंने उसे बच्चों से यह कहते सूना कि केवल अहले हदीस ही सच्चे मुसलमान हैं और ना केवल यह कि बाकी सभी दुसरे फिरकों से जुड़े मुसलमान गैर मुस्लिम हैं बल्कि इस्लाम के सबसे बड़े दुश्मन हैं। मैंने उससे पूछा कि वह इस्लाम के उन बड़े दुश्मनों या निन्यानवे प्रतिशत मुसलमानों के लिए जो अहले हदीस नहीं हैं, क्या सज़ा तजवीज़ करता है। उसने कहा उन्हें कत्ल कर दोयह सुन कर आप मेरी ज़हनी कैफियत का अंदाजा लगा सकते हैं। तो यह पाकिस्तानी नवयुवकों का एक हल्का था जो यहाँ नाटिंघम यूनिवर्सिटी में अपना शानदार भविष्य निर्माण कर सकते थे लेकिन इसके बजाए वह लोग नफरत, कत्ल और इस तरह की दूसरी चीजों की बात कर रहे थे। यह बच्चे। निश्चित रूप से नहीं थे। उस समय ब्रिटिश के अनेकों मस्जिदों से जुड़े वर्गों और बरतानवी युनिवर्सिटियों और मुस्लिम अन्जुमानों को वहाबियों और दुसरे अतिवादी समूहों ने अरबों पेट्रो डॉलर की मदद से कट्टर पसंद बना दिया था। अपनी तकरीरों के माध्यम से अपनी नफरत का ज़हर उगलने वाला शातिर इस्लामी आलिम बकरी मोहम्मद जहां भी तकरीर करता ब्रिटिश मुसलमानों की एक बड़ी संख्या उसे सुनने के लिए पहुँच जाती। मुस्लिम पुस्तकालय वाहाबियत से प्रभावित और सऊदीयों के द्वारा प्रकाशित किताबों से भरी हुई थी जिनमें गैर मुस्लिमों के लिए घृणा भरी हुई थीं।

अचानक मुझे यह एहसास हुआ कि इस्लाम के नाम पर यह घृणा आसानी से अन्य स्थानों पर भी फैल सकती है। और यदि इसे प्रभावी ढंग से और तुरंत काउंटर नहीं किया जाता है, तो यह नफरत भारत में भी हमारे दरवाजे पर है और दस्तक दे सकती है। और हमारे घरों में दाखिल हो सकती है। यह दूसरों के मुकाबले खुद मुसलमानों में अधिक आतंक और विनाश का कारण बन सकती है।

इसलिए मैंने इन विषयों पर लिखना शुरू किया ताकि मैं इस्लाम की सबसे लोकप्रिय व्याख्या का मुकाबला कर सकूं और अपने विचार से धर्म की सही शिक्षाओं को प्रस्तुत कर सकूं। मुझे डर था कि अगर चरमपंथी शिक्षाओं को फैलने दिया गया, तो यह खुद मुसलमानों पर कहर बरपाएगा और उन्हें नफरत और हिंसा की आग में झोंक देगा। यह केवल इस्लाम की छवि को बचाने का एक प्रयास नहीं था, बल्कि मैं ऐसा कर रहा था ताकि माता-पिता अपने बच्चों को सच्चे इस्लाम के नाम पर नफ़रत फैलाने वालों और विचारधाराओं से नष्ट होने से बचा सकें। दुनिया भर में मुसलमानों को भड़काने के लिए पहले से ही पर्याप्त घटनाएं हैं, इसलिए इस्लाम की इन गलत और अतिवादी व्याख्याओं की मदद से उन्हें और भड़काना उचित नहीं था।

1991 में द नेशन एंड वर्ल्ड से निकाल दिए जाने के बाद, मैं गंभीर अवसाद और मायूसी से पीड़ित हो गया। यह मेरे लिए कुछ दर्दनाक था कि इस पत्रिका के पीछे के लोग स्पष्ट रूप से भारतीय मुसलमानों के प्रगतिशील सर्कल के "क्रीम" थे। यदि वही लोग इस तरह की संप्रदायवाद और संकीर्णता और इस्लामी शिक्षाओं की समझ की कमी दिखाते हैं, तो भविष्य में हमारे राष्ट्र का क्या होगा।

मैं लगभग छः महीने बिस्तर पर रहा। यह समय मेरे लिए आत्मचिंतन का रहा। अंततः जब मैं बिस्तर से उठा तो यह पक्का इरादा ले कर उठा कि मैं इस्लाम के नाम पर अतिवाद और घृणा के प्रचार का मुकाबला करने के लिए जो भी करना होगा करूँगा और वर्तमान संदर्भ में इस्लाम की बेहतर समझ पेश करूँगा। तब से मैं इन समस्याओं और विषयों पर विभिन्न अखबारों जैसे टाइम्स ऑफ़ इण्डिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, इन्डियन एक्सप्रेस, एशियन एज और दुसरे वेबसाईट के लिए लिखता रहा हूँ।

अपने इस मिशन को जारी रखने का मेरा इरादा हर रोज़ मजबूत तर होता है जब मैं अपने आस पास इंटरनेट पर अखबारों और टीवी पर देखता हूँ कि किस तरह धार्मिक सिद्धांतकार इस्लाम के नाम पर ज़हर उगलते हैं और इस तरह इसे बद नाम करते हैं और मैं जब यह देखता हूँ कि दिल्ली में भारत के एक महान सूफी हज़रत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैहि के आस पास में ही अहले हदीस के मुल्लाओं और जाकिर नाइक जैसे इस्लामिक जातिवादीयों की किताबें बिकती हैं जिन में सूफियों को काफिर और तसव्वुफ़ को कुफ्र करार दिया गया है। कोई भी इस ज़हरीले प्रोपेगेंडे का तोड़ नहीं कर रहा है।

प्रश्न: न्यू एज इस्लाम के जारी करने के पीछे कौन सी प्रेरणा थी?

उत्तर: २००५ में मेरी पत्नी सांस्कृतिक अताशी की हैसियत से सुरिनाम में नियुक्त थीं। इसलिए मैं भी वहीँ रह रहा था। हम वहीँ तीन साल रहे। मैं एक गृहस्थथा और मेरे पास काफी समय था। इसलिए मैंने मुसलमानों और इस्लाम पर विस्तृत संदर्भ में वह किताबें पढ़नी शुरू कीं जो मैं पहले खरीद चुका था मगर पूरी पढ़ नहीं पाया था। वहीँ मेरे दिमाग में वेब जरीदा शुरू करने का खयाल आया ताकि मैं इस्लाम और मुसलमानों पर विकासवादी विचारों का प्रकाशन कर सकूँ और इस्लाम के नाम पर नफरत और अतिवाद का मुकाबला कर सकूँ क्योंकि बाकायदा किसी रिसाले या अखबार का प्रकाशन अत्यंत महंगा था। और इस तरह दो साल पहले जब मैं सुरिनाम में ही था न्यू एज इस्लाम की स्थापनाअमल में आई।

प्रश्न: आपके वेब मैगज़ीन का बुनियादी उद्देश्य क्या है?

उत्तर: न्यू एज इस्लाम का उद्देश्य रिवायती मुस्लिम विषयों पर संशोधन को बढ़ावा देना ताकि वह आज की बुनियाद से संगत हो सकें। हम उन बुनियादी विषयों व समस्याओं पर बात चीत करते हैं जैसे इस्लाम असल में क्या है। या मुसलमान कौन है या एक कर्मठ मुसलमान की तारीफ़ क्या होनी चाहिए और इस्लाम असल में नारी अधिकार, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, राष्ट्रवाद, शांति, न्याय, जंग, राजनीति और राज्य के साथ संबंधों जैसे विषयों पर क्या कहता है। या वेबसाईट इस विषय पर भी बहस करता है कि मुसलमानों को अल्पसंख्यक की हैसियत से राज्य के साथ और गैर मुस्लिम बहुसंख्यक के साथ किस तरह व्यवहार रखना चाहिए। यह मुस्लिम और गैर मुस्लिम अक्सरियत वाले देशों दोनों में मानवाधिकार की पामालियों (रौंदने) को भी उठाता है।

हमारा वेबसाईट एक खुला फोरम है। जहां विभिन्न दृष्टिकोणों व विषयों पर अलग अलग राय के लोगों की बहस होती हैं। यह मुसलामानों को खुद एहतिसाबी की तलकीन करता है और उन्हें राय देता है कि वह अपनी गलतियों के लिए दूसरों को आरोप ना दें, और कथनी करनी में गलतियों को स्वीकार करें। भारत के विशेष संदर्भ में न्यू एज इस्लाम मुसलमानों को यह एहसास दिलाने की कोशिश करता है कि मुस्लिम मीडिया के माध्यम से दिए गए प्रभाव के उलट हमें बेशक दुसरे शहरियों की तरह ही अधिकार हासिल हैं। हम इस बिंदु को स्पष्ट तौर पर पेश करते हैं कि अधिकतर मुस्लिम देशों में गैर मुस्लिमों को या फिर खुद मुसलमानों को ही जितने अधिकार हासिल हैं उससे कहीं अधिक अधिकार भारत में मुसलमानों को हासिल हैं।

हमें इन बातों पर और इस्लाम की जातिवादी, आक्रामक और कट्टरपंथी व्याख्या पर बात चीत करनी है क्योंकि सामान्यतः मीडिया इन समस्याओं पर बहस करने से बेज़ारी का प्रदर्शन करता है।

हम भारतीय मुसलमानों और भारतीय समाज में अपनी पोजीशन पर दुबारा नज़र करने की आवश्यकता है। हमें इस देश में जो कुछ हासिल है उसके लिए हमें शुक्रगुजार होना चाहिए जो कि मुस्लिम देशों में विशेषतः हमारे पड़ोसी देश में गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक से अधिक है हमें इस प्रोपेगेंडे का मुकाबला करना चाहिए कि भारत इस्लाम का दुश्मन है। और मुसलमानों का पक्का दुश्मन है, यह इमेज उर्दू प्रेस के एक हिस्से का तखलीक करदा है। हमें यह बताना चाहिए कि हम इस देश का अटूट हिस्सा हैं हालांकि हम यह भी स्वीकार करते हैं कि भारत सरकार लोकतंत्र और सहिष्णुता के लिए अपने वादे पर पूरा नहीं उतरती, इस साकारात्मक पहलुओं की प्रशंसा करना चाहिए और शुक्र गुज़ार होना चाहिए। इस्लाम हमें आजमाइशों में भी सब्र और शुक्र के साथ रहने की शिक्षा देता है। साम्प्रदायिक और आक्रामक विचार की तबलीग (प्रचार प्रसार) के पीछे पाकिस्तानी सरकार के छुपे उद्देश्यों को समझा जा सकता है। भारतीय समाज और राजनीति से पुरी तरह संगत मुस्लिम वर्ग को देख कर उनकी गैरत मजरुह होती है और उनके पाकिस्तान के स्थापना के कारण पर ही सवाल खड़ा हो जाता है। रावलपिंडी के वह जनरल जिनसे मैं कई बार इंग्लैण्ड में मिल चुका हूँ जिनका ख्वाब भारत पर विजय प्राप्त करना और लाल किले पर झंडे लहराएंगे भारत में मुसलमानों को हिंसा और अशांति में घसीटेंगे। लेकिन मुस्लिम मीडिया और बुद्धिजीवियों का एक वर्ग खुद भारतीय राज्य को उनके दुश्मन की हैसियत से पेश करता है और इसके खिलाफ झड़प का माहौल बनाता है। यह हकीकत के बिलकुल खिलाफ और अत्यंत मुर्खता पूर्ण व्यवहार है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें इस्लाम की तरक्की पसंद समझ पेश करना है जो अंतर्राष्ट्रीय मुकालमे, दोस्ती और संगतता पर आधारित हो। हमें अपने हिन्दू भाइयों के साथ सहअस्तित्व का सबक सीखने की आवश्यकता है ना कि उन्हें नापाक काफिरऔर दुश्मन समझने की, जैसा कि कुछ मुसलमान करते हैं। हमें किसी भी हालत में इस देश में जीना और मरना है और एक अल्पसंख्यक की हैसियत से हमें एक हिन्दू का दिल जितने की कोशिश करना चाहिए। किसी भी हमले की सूरत में हमारे हिन्दू भाई ही हमारी सुरक्षा करेंगे, फिरका परस्त लीडर या फिर गृह मंत्री भी नहीं। इस्लाम दोस्त के अधिकारों की बड़ी तलकीन करता है इसलिए हमें अपने हिन्दू दोस्तों के साथ दोस्ती और सहिष्णुता के संबंध कायम करने की बहुत व त्वरित आवश्यकता है। इस सिलसिले में हमें अहले किताब के संबंध में रिवायती मुस्लिम समझ की भी तजदीद करनी चाहिए। हिन्दू पवित्र सहिफों में पूरी इबारतें कुरआन की इबारतों की तरह हैं। कुरआन खुद कहता है कि अल्लाह ने हर फिरके में नबी भेजे और यह स्पष्ट है कि भारत में पैगम्बर तशरीफ लाए।

बहुत सारे हिन्दू ऐसे हैं जो एक निराकार भगवान को मानते हैं। इसके साथ हमें इस्लामवाद और कट्टरता की धारणा को चुनौती देने और यह समझने की आवश्यकता है कि व्यवहार में "मुसलमान" कर्मठ मुसलमान "गैर" से हमारा क्या मतलब है। कई दशकों पहले पाकिस्तान सरकार के माध्यम से कायम किये गए मेज़ कमीशन ने विभिन्न मुस्लिम फिरकों के रहनुमाओं से इंटरव्यू लिए और इस नतीजे पर पहुंचा कि कोई भी दो रहनुमा शब्द मुसलमानकी परिभाषा में एकमत नहीं हो पाया और हर एक ने दुसरे को गुमराह बल्कि इस्लाम से बाहर करार दिया। इन धार्मिक उलेमा ने ज़ाहिरी वजा कता पर इतना ज़ोर दिया कि वह शायद भूल गए कि एक खुदा में विश्वास, नेकी, और बंदों के अधिकार सच्चे मुसलमान की पहचान और इस्लाम की केन्द्रीय बुनियाद हैं।

प्रश्न: आपकी वेब पत्रिका कितनी सफल हैक्या उसने अपना कोई निशान छोड़ा है?

उत्तर: हमने इसे शुरू करने के बाद बहुत कम समय में बड़ी सफलता हासिल की है। वर्तमान में इसके दुनिया भर में 170,000 सदस्य हैं, दोनों मुस्लिम और गैर-मुस्लिम, जिन्हें हम दैनिक मेल भेजते हैं। हमारे संग्रह में 2,900 लेख हैं। उनमें से केवल कुछ ही मेरे हैं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि इसे एक निजी प्रचार साइट के रूप में देखा जाए। बल्कि, यह गंभीर और खुली चर्चा का एक रूप है। साइट की प्रारंभिक पत्रकारिता पर असहमति का भी स्वागत है। बावजूद, टिप्पणियों का एक स्तंभ है जिसमें सभी प्रकार के विचारों को स्थान दिया गया है। मैं गाली गलोच को छोड़कर सभी प्रकार की आलोचना और टिप्पणियों को जगह देता हूं।

प्रश्न: आपकी राय में धर्म (केवल इस्लाम नहीं बल्कि आम तौर पर सारे धर्म) के नाम पर नफरत और अतिवाद का मुकाबला किस तरह किया जा सकता है?

उत्तर: कट्टर इस्लामवाद या हिंदू धर्म पर प्रतिबंध लगाकर इसका विरोध नहीं किया जा सकता है। आरएसएस पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन संगठन और विचारधारा के रूप में अभी भी मजबूत है। प्रतिबंध को प्रमुखता प्राप्त करने के अलावा किसी भी उद्देश्य से पूरा नहीं किया गया। इसी तरह, भारत के सिमी आंदोलन को भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित करने से पहले बहुत कम जाना जाता था। एक विचारधारा को केवल एक विचारधारा द्वारा ही प्रतिपादित किया जा सकता है, और यही धार्मिक अतिवाद का भी सच है।

प्रश्न: आप शायद यह कहना चाहते हैं कि केवल मिडिया की सनसनी पसंदी या मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रह ही मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ गहरे पूर्वाग्रह के लिए जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि नफरत और इस्लामी जातिवाद और स्वयम्भू इस्लामी गिरोहों की हरकतें भी इसके लिए जिम्मेदार हैं?

उत्तर: बिलकुल__मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि हम मुसलमान अपनी खराब इमेज के लिए गैर मुस्लिम मीडिया से अधिक जिम्मेदार हैं हालांकि मैं यह भी कहना चाहूँगा कि बदकिस्मती से मीडिया भी अपवादीय घटना के निर्माण और सनसनी खेज़ी को पसंद करता है। मुसलमानों की खराब शबीह के लिए बहुत हद तक उनकी इस्लामी जातिवाद जिम्मेदार है।

जिसे इस्लाम का समर्थन प्राप्त नहीं है। इस सिलसिले में एक छोटी और अहम मिसाल पेश करता हूँ हाल ही में पटना अपने एक मुस्लिम दोस्त के घर गया। मेरे दोस्त के लड़के का एक हिन्दू लड़के से झगड़ा हो गया उसने आकर मौलवी से इसकी शिकायत की। मौलवी का जवाब था। अरे वह तो काफिर है। तुमको उसे मारना चाहिए था। अपनी बात की वजाहत के लिए मैं एक दुसरा वाकिया पेश करता हूँ।

यह मुसलमानों को आत्मचिंतन की तलकीन करता है और उन्हें राय देता है कि वह अपनी कमियों और गलतियों के लिए दूसरों को आरोप ना दें, और कौल और अमल में गलतियों का एतिराफ करें। भारत के विशेष संदर्भ में न्यू एज इस्लाम मुसलमानों को यह एहसास दिलाने की कोशिश करता है कि मुस्लिम मीडिया के माध्यम से दिए गए प्रभाव के उलट हमें बेशक दुसरे नागरिकों की तरह ही अधिकार प्राप्त हैं। हम इस बिंदु को स्पष्ट तौर पर पेश करते हैं कि अधिकतर मुस्लिम देशों में गैर मुस्लिमों को या फिर मुसलमान को ही जितने अधिकार हासिल हैं उससे कहीं अधिक अधिकार भारत में मुसलमानों को हासिल हैं।

हमें इन बातों पर और इस्लाम की जातिवाद, आक्रामक व्याख्या पर भी बात चीत करनी है क्योंकि सामान्य रूप से मुस्लिम मीडिया इन समस्याओं से बहस करने से बेज़ारी का मुजाहेरा करता है।

प्रश्न: हालिया वर्षों में भारत की मुस्लिम संगठनों की एक बड़ी संख्या ने पहले सफ के मदरसों में हर तरह की दहशतगर्दी सहित मुस्लिम गिरोहों की दहशतगर्दी की निंदा की है। इसके प्रतिक्रिया को आप किस नज़र से देखते हैं?

उत्तर: मैं समझता हूँ कि यह सहीह दिशा में उठाया हुआ एक अच्छा कदम है लेकिन यह काफी नहीं है क्योंकि जैसा कि ज़ाहिर है इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। उनको उन लोगों और इस्लामी संगठनों का नाम ले कर उनकी निंदा करना चाहिए जो इस्लाम के नाम पर आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। वह आलिमाना स्तर पर इन हदीसों और कुरआनी आयतों की कट्टर पंथी और अतिवादी व्याख्या का भी विश्लेषण करें जिनका गलत इस्तेमाल यह कट्टर पंथी गिरोह आतंकवाद को जायज ठहराने और बढ़ावा देने के लिए करते हैं। यह इस बात का भी तकाजा करेगा कि उन आयतों का इतलाक केवल एक विशेष एतेहासिक पृष्ठभूमि में हुआ था। इन सबके लिए हमें और भी अधिक विकासवादी और सामाजिक तौर पर सक्रीय आलिमों की आवश्यकता है जो फिलहाल हमारे पास नहीं हैं। इस तरह के आलिमों को आगे लाना ही न्यू एज इस्लाम का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है।

URL for English article https://www.newageislam.com/interview/sultan-shahin-on-muslims-and-islam--the-boy-said--kill-them-all-those-muslims-who-are-not-ahl-e-hadees/d/2924

URL for Urdu article: http://www.newageislam.com/urdu-section/the-boy-said--“kill-them,-all-those-muslims-who-are-not-ahl-e-hadees”--اس-لڑکے-نے-کہا-جو-اہل-حدیث-نہیں-ہیں-سب-کو-مارو/d/4336

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/the-boy-said-kill-them/d/124786

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