शकील शम्सी
उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम
4 नवम्बर 2020
इस समय इस्लाम के
नाम पर आतंकवाद को अंजाम देने वाले तीन गुट हैं। एक समूह वह है जो मुसलमानों पर हो
रहे अत्याचारों का बदला लेने के लिए खून बहाता है और दूसरा समूह वह है जो रक्तपात
को अपनी तकफीरी विचारधारा के कारण सवाब की वजह मानता है और तीसरा समूह वह है जो
बिना कारण सिर्फ आतंक पैदा करने के लिए खून बहाते हैं। अपनी बात को स्पष्ट करने के
लिए मैं आपको कुछ घटनाओं की याद दिलाता हूं। भारत में आतंकवाद की पहली घटना का
श्रेय मुसलमानों को जाता है, वह थी 5 मार्च को
मुंबई में बम विस्फोट। धमाकों को बाबरी मस्जिद के विध्वंस और मुंबई दंगों में
नरसंहार के बाद अंजाम दिया गया था, और जिन लोगों ने
विस्फोटों को अंजाम दिया, उनकी राय में, उन्होंने मुंबई दंगों में मारे गए मुसलमानों के खून का बदला
लिया, हालांकि बदले के लिए
इस्लाम ने बहुत सख्त शर्तें रखी हैं।
एक हत्यारे के पाप
का बदला उसके भाई या पिता या किसी अन्य प्रियजन या रिश्तेदार से नहीं लिया जा सकता
है भला किसी राहगीर या पूरी तरह से असंबंधित व्यक्ति को मारने की अनुमति कैसे दी
जा सकती है? इसके बाद तो भारत
में बम धमाकों और आतंकवाद का ऐसा सिलसिला चला कि अभिनव भारत जैसे संगठन ने उसी लहर
में अपना जहर घोलकर मालेगांव में मक्का मस्जिद, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस और
मुस्लिम इलाकों में बम धमाके करके उनका आरोप भी उन हीं पर थोप दिया वह तो कहिये कि
हेमंत करकरे ने अभिनव भारत के आतंकवादी का समूह का पर्दाफाश किया , नहीं तो पूरा देश यही सोचता कि मुसलमान मुसलमानों को मार
रहे हैं। मुसलमानों पर हुए अत्याचारों का बदला लेने के नाम पर ही संयुक्त राज्य
अमेरिका लिए में 9/11 के हमले को अंजाम दिया गया। लेकिन क्या एक निर्दोष, निहत्थे नागरिक की हत्या को बदला लेने के रूप में देखा जा
सकता है? क्या ऐसा कृत्य
इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार उचित है? हालांकि, बेगुनाहों की हत्या या मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार का बदला
लेने की मांग करने वाले विभिन्न समूह अब दुनिया भर में सक्रिय हैं। वे किसी भी
राहगीर से फ्रांस के राष्ट्रपति की किसी भी आपत्तिजनक वाक्य का बदला लेते हैं और
अल्लाहु अकबर का नारा लगाते हैं। इस समूह के लोगों को लगता है कि पवित्र पैगंबर
सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अपमान करने की स्थिति में उन्हें किसी का भी सिर काटने
का अधिकार है। वे मुसलमानों की आहत भावनाओं पर आतंकवाद का मरहम लगाना चाहते हैं, लेकिन असल में वे तेजाब का छिड़काव कर रहे हैं। ये वही लोग
हैं जो ऑस्ट्रिया में राहगीरों को गोली मारकर मुसलमानों के साथ हुए अन्याय का बदला
लेते हैं। इसका फायदा उठाने के लिए पूरी दुनिया की इस्लाम विरोधी ताकतें मुसलमानों
पर थू थू करने खड़ी हो जाती हैं जबकि हर सच्चा मुसलमान इन हरकतों के खिलाफ बोल रहा
है। आतंकियों का दूसरा गुट वह है जो कहता है कि उसके अलावा किसी और को जीने का हक
नहीं है। यह तकफीरी समूह मुसलमानों को मसलक के नाम पर और गैर-मुसलमानों को धर्म के
नाम पर ख़ाक और खून में डुबोता है और फिर इन उत्पीड़ित लोगों के खून से नहाता है और
नमाज अदा करने के लिए कतारें लगाता है, इस समूह के लोग
स्कूल के २५० लड़कियों का अपहरण करते है और उन्हें अपना जिंसी गुलाम
बनाते हैं यह समूह खुद को बोको हराम (पश्चिमी तौर तरीके हराम) कहता है, लेकिन खून बहाने के लिए उन्हीं हथियारों का इस्तेमाल करता
है जो पश्चिमी हथियारों की फैक्ट्रियों में बनाए जाते हैं, गाड़ियां वही उपयोग करता है जो पश्चिमी देशों ने उपलब्ध कराई
हैं।
आतंकवाद में शामिल
गिरोह बहुत अलग है। कभी मदरसों में गोली मारता है, कभी स्कूल में घुसकर डेढ़ सौ बच्चों को मार डालता है।
कभी-कभी वह एक विश्वविद्यालय में प्रवेश करता है और गोलियां बरसाने लगता है या
पाकिस्तान के किसी मदरसे में बम का थैला छोड़ कर चला जाता है। क्या आपने कभी सोचा
है कि हम और मैं आप सोशल मीडिया पर इस्लाम की रक्षा में लगे होते हैं जब अचानक खबर
आती है कि आतंकवादियों ने काबुल विश्वविद्यालय में घुसपैठ की और दो दर्जन से अधिक
मारे गए
उनकी
क्या गलती थी? क्या बस यही कि वह
सिर्फ अपने माता-पिता के सपनों को साकार करने के लिए परिसर में दाखिल हुए थे? हमें समझ में नहीं आता है कि आत्मघाती बम विस्फोट के समय
आत्मघाती हमलावर की मनःस्थिति कैसी रही होगी। हम यह भी नहीं समझ सकते हैं कि
इस्लाम जैसी शांतिप्रिय धर्म का रिश्ता भ्रष्टाचार, हिंसा और हत्या से जोड़ने वालों का समर्थन कौन कर रहा है
काफिरों और मुशरिकों के साथ युद्ध के नाम पर मुसलमानों का सबसे अधिक खून बहाने
वाले भेड़ियों से इस्लामिक दुनिया कब छुटकारा पायेगी?
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Urdu Article: The Real Enemies Of Islam Are Terrorists اسلام کے اصل دشمن دہشت گرد ہیں
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