हिंदुस्तान टाईम्स की पेशकश
(Translated in Hindi by New Age Islam)
तसव्वुफ़ सूफी शायरी का एक महत्वपूर्ण मुकाम है। वेदान्त की तरह सूफियों का मानना है कि खुदा हर एक इंसान में मौजूद है लेकिन वह हमसे खुदी (अना) के जरिये पोशीदा है जिसे हिन्दू सहीफे में अहम कहते हैं।
इसलिए एक इंसान के लिये आवश्यक है कि वह खुदा के साथ होने से पहले खुदी को मार डाले। सूफियों नें जो रास्ता चुना है वह इश्के मजाज़ी से इश्के हक़ीक़ी है।
इश्के मजाज़ी में मोहब्बत करने वालों में खुशी, दर्द, तकलीफ और खुशी के आम ज़मीनी एहसासात हैं। इश्के हक़ीक़ी में मोहब्बत करने वाला इंसान होता है और महबूब खुदा होता है।
लेकिन वह दुनिया की ऐश व आराम की तलब नहीं करते हैं। वह जन्नत की आरज़ू नहीं करते और ना ही वह जहन्नम से डरते हैं। वह केवल खुदा की तजल्लियात के तालिब होते हैं।
इस जज़्बात का इज़हार मशहूर सूफी शायरा राबिया बसरी ने अपनी मशहूर मुनाजात में सुंदरता से किया है:
ऐ मेरे माबूद व मसजूद! अगर मैं तेरी इबादत जहन्नम के डर से करती हूं तो मुझे जहन्नम के आग का लुकमा बना दे। अगर मैं तेरी इबादत जन्नत के लालच से करती हूं तो मुझे हमेशा के लिए इससे महरूम कर दे।
अगर मैं केवल तुझसे और तेरी ज़ात से तेरे लिए मोहब्बत करती हूं तो ऐ मेरे मौला मुझे अपने “जमाल ए अजली” से महरूम मत करना!”
इश्के मजाज़ी के वसफ़ में सूफी पंजाबी शायरों नें ताकतवर कबीले स्याल की बेटी हीर और तख्त हज़ारा के चश्म व चराग रांझा की मोहब्बत की रचना का प्रयोग किया है।
इश्के हक़ीक़ी में हीर इंसान और रांझा खुदा की अलामत है। सुल्तान बाहु कहते हैं कि इश्के मजाज़ी फूल है और इश्के हक़ीक़ी इसका फल है।
बुल्ले शाह इस तरह हीर और रांझा की इस्तेराती इत्तेहाद की वजाहत करते हैं:
“कल मैं रांझा से अलग था/ आज मैं अपने रब के साथ हो गया हूँ। असहाब मुझे हीर नहीं कहते हैं/ मुझे रांझा कहते हैं।“
सूफिया अक्सर वज्द में लंबी स्कर्ट और बेलनाकार टोपी पहने हुए जैसे फ़िल्म जोधा अकबर में दिखाया गया है डांस करते हुए गाते हैं। ऐ मुआलिज/ आओ और मेरी नब्ज़ महसूस करो/ मैं मर रहा हूँ/ मेरे रब ने मुझे रक़्स में थका दिया है।
“शाह हुसैन ने यहां तक गाया:” मैं वृंदावन से संबंध रखने वाला गोपी हूं/ काले रंग वाला कृष्णा मेरा मुआविन व दोस्त है।
एक मौके पर वह कहते हैं: “उठो ऐ सुस्त इंसान राम की प्रशंसा का समय आ गया है।“
(स्रोत हिंदुस्तान टाईम्स, नई दिल्ली)
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