डॉक्टर असरार अहमद
(ऑडियो तकरीर लेखनी के रूप में)
यह छः आयतें (सुरह तौबा की पहली छः आयतें) वह हैं जो आज पूरी दुनिया में लोगों को बहुत अधिक खटक रही है। सुरह तौबा की इन आयतों को पश्चिम तुला हुआ है कि उन्हें कुरआन से निकाल दिया जाए। पूरी ताकत के साथ। जहां तक जो निसाब में अगर कहीं आ गई हैं उनको तो निकलवा दिया है उन्होंने। क्योंकिइसमें बज़ाहिर ऐसा महसूस होता है कि मुसलमानों को हमेशा के लिए यह हुक्म दे दिया गया है कि काफिरों का, मुशरिकों का कत्ल ए आम करो, हालांकि यह बात गलत है। यह मुशरिकों के लिए ख़ास मामला था, अरब के मुशरेकीन के लिए, उम्मीईन ए अरब, हुजुर की बेअसत खुसूसी हुई थी उम्मीईन ए अरब के लिए, ھوالذیبعثفیالامیینمنھم, उन्हीं में से थे आप, उम्मीईन में से थे, बनी इस्माइल में से थे, तो आप की असल बेअसत, प्राइमरी बेअसत बनी इस्माइल की तरफ थी, अलबत्ता आप की बेअसत ए उमूमी पूरी दुनिया की तरफ थी, तो यह कायदा जो हमेशा से चला आ रहा था अल्लाह पाक का कि अगर किसी रसूल को भेज दिया जाए किसी कौम की तरफ और वह रसूल का इनकार कर दे, उनकी दावत पूरी सामने आने के बाद तो वह कौम पूरी हालाक कर दी जाती थी, कौम ए नूह हालाक की गई इसी कायदे की तहत, कौम ए सालेह, कौम ए हूद, कौम ए शुएब, आल फिरऔन गर्क किये गए इसी कायदे की गरज से, तो हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेअसत खुसूसी थी अहले अर्ब की तरफ, मुशरेकीन ए अरब की तरफ। इसलिए उनके बारे में यह कानून था कि अब अगर यह ईमान नहीं लाएंगे तो या तो अल्लाह पाक किसी और अज़ाब के ज़रिये से उन्हें ख़त्म करता, या दूसरी शकल यह की गई कि अहले ईमान से कह दिया गया कि उन्हें चार महीने की मोहलत दे दो, इस चार महीने के अंदर अंदर ईमान ले आए तो जान बख्शी है वरना चार महीने ख़त्म होंगे, तो फिर उनका क़त्ल ए आम करो, जहां चाहो, जहां पाओ, कत्ल ए आम करो, यह आयत कुरआन मजीद की सख्त तरीन आयतों में से है।
अल्लाह पाक फरमाता है (بَرَاءَةٌمِّنَاللَّـهِوَرَسُولِهِإِلَىالَّذِينَعَاهَدتُّممِّنَالْمُشْرِكِينَ) (सुरह तौबा १) अर्थात अल्लाह और उसका रसूल बरी है उन मुशरेकीन से जिनके साथ तुम ने समझौता किया है।
पिछले दर्स में जो बात आई थी वह यहाँ और खुल कर आ गई
है।فَسِيحُوافِيالْأَرْضِأَرْبَعَةَأَشْهُرٍ तोअब मुशरेकीन से कहा जा रहा है कि ज़मीन में घुमो फिरो
चार महीने। (وَاعْلَمُواأَنَّكُمْغَيْرُمُعْجِزِياللَّـهِ) जान लो कि तुम अल्लाह को आजिज़ नहीं कर सको गे, (وَأَنَّاللَّـهَمُخْزِيالْكَافِرِينَ) और अल्लाह पाक उन काफिरों को अवश्य रुसवा कर के रहेगा,
अपमानित कर के रहेगा। (सुरह तौबा २)
وَأَذَانٌمِّنَاللَّـهِوَرَسُولِهِإِلَىالنَّاسِيَوْمَالْحَجِّالْأَكْبَرِأَنَّاللَّـهَبَرِيءٌمِّنَالْمُشْرِكِينَ
ۙ وَرَسُولُهُ ۚ। और यह आम एलान है अल्लाह और
उसके रसूल की तरफ से तमाम लोगों को, “یومالحجالاکبر”
अर्थात बड़े अहज के दिन।बड़े हज से जो आम तौर पर लोग समझते हैं कि जो जुमे को हज है
वह बड़ा हज है। नहीं यह गलत है, कुरआन की रु से जो हज ए अकबर है वह हज है और जो हज
ए असगर है वह उमरा है। उमरा को हज ए असगर कहते हैं। हजए अकबर जो है वह हज है। तो
यह हज था जो सन ९ हिजरी में जब हो रहा है तो उसमें यह एलान करा दिया गया। यह आयतें
नाज़िल हुईं हैं जबकि हुजुर ने काफिला रवाना कर दिया था, आप खुद नहीं गए थे। हज़रात
अबुबकर की कयादत में और इबादत में हज का काफिला रवाना कर दिया था, आप खुद नहीं गए
थे। हज़रात अबूबकरकी कयादत में और इबारत में हज का काफिला रवाना हो चुका था।जब
काफिला जा चुका तो यह छः आयतें नाज़िल हो गईं। फिर हुजुर ने हज़रात अली को भेजा, कि
जाओ अली और जा कर यह एलान ए आम कर दो। जब मक्का में हज के मौके पर सभी अरब जमा
होंगे यह एलान ए आम कर दो। मेरी तरफ से तुम एलान कर दो। हज़रत अली मंजिल बार मंजिल
तेज़ी से दौड़ते हुए आ गए। अभी रास्ते में ही था काफिला।हज़रात अली पहुच गए। हज़रात
अबुबकर ने जब उनको देखा तो देखते ही एक सवाल किया।
ज़रा नोट किस कदर वहाँ डिसप्लीन की बात होती थी। हज़रात
अबू बकर पूछते हैं “अमीर” या“मामूर” अर्थात अली तुम अमीर की हैसियत से आए हो या
मामूर की हैसियत से? अर्थात क्या अल्लाह के रसूल ने मुझे माजूल करके तुम्हें अमीर
बना कर भेजा है आज? अगर ऐसा है तो ठीक है मैं तुम्हारे ताबेअ हूँ। तुमनशिस्त
संभालो। या यह कि तुम मामूर ही रहो गे तो यह जिम्मेदारी है अमीर ए हज की तो वह
मेरे ही पास रहेगी।हज़रत अली कहते है “मामूर” अर्थात मैं मामूर बना कर भेजा गया हूँ।
मैं अमीर बना कर नहीं भेजा गया हूँ।
लेकिन चूँकि अरब वालों का यह उसूल था कि किसी बड़े की
तरफ से कोई एलान ए आम हो तो उसका करीबी अज़ीज़ ही कर सकता है।इसलिए यह हज के मौके पर
यह आयतें पढ़ कर सुनाई है हज़रात अली ने।अल्लाह मुशरेकीन से बरी है।अल्लाह पाक का
कोई अहद, कोई मुआहेडा नहीं है, और“रसुलुह” अर्थात उसके रसूल भी बरी हैं तमाम
मुशरेकीन से। (فَإِنتُبْتُمْفَهُوَخَيْرٌلَّكُمْ) तो अब अगर तुम बाज़ आ जाओ, तौबा कर लो और ईमान ले आओ तो
तुम्हारे लिए खैर इसी में है।
(وَإِنتَوَلَّيْتُمْ)
अर्थात अगर तुम मुंह मोड़ो गे, तो (فَاعْلَمُواأَنَّكُمْغَيْرُمُعْجِزِياللَّـهِ) तो जान लो कि तुम अल्लाह को आजिज़ नहीं कर सकते।
और(وَبَشِّرِالَّذِينَكَفَرُوابِعَذَابٍأَلِيمٍ) अर्थात ऐ नबी उन लोगों को जिन्होंने कुफ्र की रविश
अखत्यार की है उन्हें दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी दे दीजिये। सुरह तौबा-३। (إِلَّاالَّذِينَعَاهَدتُّممِّنَالْمُشْرِكِينَثُمَّلَمْيَنقُصُوكُمْشَيْئًاوَلَمْيُظَاهِرُواعَلَيْكُمْأَحَدًافَأَتِمُّواإِلَيْهِمْعَهْدَهُمْإِلَىٰمُدَّتِهِمْ) सुरह तौबा ४। अर्थात सिवाए उन मुशरेकीन के जिनसे तुम
ने अहद किया था तो फिर उन्होंने कोई कमी नहीं की है तुम्हारे अहद में। और ना
तुम्हारे खिलाफ किसी की मदद की है। ना किसी और का साथ दिया है। तो पूरी कर दो उनकी
मुद्दत ए अहद उनके लिए।अगर वह पांच साल है तो ठीक है, दो साल का है तो ठीक है।
जिसके साथ मुआहेदा है, मवक्त है अर्थात वक्त का निर्धारण है और उन्होंने कोई
खिलाफवर्जी नहीं की है। तो मुआहेडा पूरा किया जाएगा। (إِنَّاللَّـهَيُحِبُّالْمُتَّقِينَ) अर्थात अल्लाह पाक मुत्तकियों को पसंद करता है (सुरह
तौबा ४)।
बहर हाल जिनके साथ गैर मवक्त था चार महीने दे दिए गए।
यह ना हो कि अचानक कह दिया कि हमारा सारा मामला तुमने खराब कर दिया। Four Months
चार महीने की मोहलत है। लेकिन इसके बाद जो यह सख्त तरीन आयतें हैं जिस पर खून
खुलता है पूरा दुनिया का (فَإِذَاانسَلَخَالْأَشْهُرُالْحُرُمُ) अर्थात जब यह अशहुर ए हरम ख़त्म हो जाएंगे अर्थात चार
महीने जिसमें मोहलत दी गई है (فَاقْتُلُواالْمُشْرِكِينَحَيْثُوَجَدتُّمُوهُمْ) तो कत्ल करो उन मुशरिकों को जहां भी तुम पाओ (وَخُذُوهُمْ) और उन्हें पकड़ो (وَاحْصُرُوهُمْ)
और उनका घेराव करो (وَاقْعُدُوالَهُمْكُلَّمَرْصَ) और उनके लिए हर जगह घाट लगा कर बैठो, पूरी पकड़ करो उनको
मारने के लिए। (فَإِنتَابُواوَأَقَامُواالصَّلَاةَوَآتَوُاالزَّكَاةَفَخَلُّواسَبِيلَهُمْ) पस! अगर वह तौबा कर के नमाज़ कायम करें और ज़कात अदा
करें तो उनका रास्ता छोड़ दो क्योंकि फिर वह तुम्हारी तरह मुसलमान हैं तुम्हारे
शरीक हैं इस्लामी रियासत में बराबर के शहरी हैं (إِنَّاللَّهَغَفُورٌرَّحِيمٌ बेशक अल्लाह पाक गफूरुर्रहीम है وَإِنْأَحَدٌمِّنَالْمُشْرِكِينَاسْتَجَارَكَ और ऐ नबी मुशरेकीन में से अगर कोई शख्स तुम्हारा पड़ोस
चाहे तुम्हारे पास आना चाहे (أَجِرْهُ) तो आप उसे
अमन दीजिये पनाह दीजिये (حَتَّىٰيَسْمَعَكَلَامَاللَّ)
यहाँ तक कि वह अल्लाह का कलाम सुन ले। जब यह वार्निंग दे दी गई तो ज़ाहिर सी बात है
इससे पहले तो बहुत से लोगों ने परवाह ही नहीं किया होगा कि मोहम्मद (सल्लल्लाहु
अलैहि वसल्लम) क्या कह रहे हैं क्या नहीं कह रहे हैं।लेकिन जब चैलेंज आगयाnow you have only four months to decide this way or that
wayइसलिए अब उनमें से कुछ लोग चाहें गे कि आखिर समझें तो कि बात क्या है आप क्या
मनवाना चाह रहे हैं? आपका दीन क्या है? तो फरमाया कि ऐ नबी (وَإِنْأَحَدٌمِّنَالْمُشْرِكِينَاسْتَجَارَكَ) अर्थात ऐ नबी! मुशरेकीन में से अगर कोई शख्स, तुम्हारा
पड़ोस चाहे तो आप उसे पनाह दीजिये (حَتَّىٰیسمعکلاماللہ)
अर्थात यहाँ तक कि वह अल्लाह का कलाम सुन ले। समझ जाए कि दावत क्या है। (ثُمَّأَبْلِغْهُمَأْمَنَهُ) अर्थात फिर उसे उसकी अमन की जगह तक पहुंचा दीजिये। ऐसा
नहीं कहा गया कि अब तुमने सुन लिया है तो इस्मान लाओ वरना तुम्हारा गला उड़ा दिया
जाएगा। नहीं बल्कि यह फरमाया कि उसे उसकी अमन की जगह तक पहुंचा दो।जिस कबीले सेवह
चल कर आया था, आप ने अमान दी आप के पास वह ठहरा आपने दीन की दावत दी अब उसे फैसला
करने के लिए आज़ाद छोड़ दो और उसे वापस जाने दो अपने अमन की जगह तक पहुंचा दो (ذَٰلِكَبِأَنَّهُمْقَوْمٌلَّايَعْلَمُونَ) (सुरह तौबा ६) यह इसलिए कि यह लोग जानते नहीं हैं,
इसलिए उनके साथ रिआयत कीजिये।
यह आयतें कुरआन की सख्त तरीन आयतों में से हैं। और इन
सुरह की आयतों के आगाज़ में आयत बिस्मिल्लाह नहीं है। एक सौ चौदा सूरतों के अंदर
केवल यही एक सूरत मिलेगी जिसमें आयत बिस्मिल्लाह नहीं है। इसमें बहुत सी राय हैं।
एक कॉल के मुताबिक़ हज़रात अली रज़ीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि यह सूरत तो तलवार हाथ
में ले कर नाज़िल हुई है और बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्रहीम में अल्लाह पाक के रहमान
और रहीम के नाम हैं इसी मुनासिबत से अल्लाह का इन्तेकाम अल्लाह का गज़ब वह जो कि
नुमाया है, इसलिए इस सूरत से पहले आयत बिस्मिल्लाह नहीं लिखी गई। लेकिन फिर वही
बात नोट कर लीजिये कि यह एक ख़ास हालात के अन्दर यह आयत थी। इसलिए यह आयत भविष्य
नहीं है। दायमी नहीं है। हमेशा के लिए नहीं है, बल्कि इसकी application हुज़ूर की
ज़ाहिरी ज़िन्दगी में ही थी बाद में ख़त्म हो गई।लेकिन इसके बाद हमेशा का कायदा यह है
कि मुसलमान अगर ताकत में हैं और वह किसी देश में जा कर हमला करते हैं तो वह तीन
आप्शन देंगे।पहला यह कि अगर तुम ईमान ले आओ तो तुम हमारे भाई हो। तुम बराबर के हो।
फिर हम यह नहीं कहेंगे कि हम सीनियर हैं तुम जूनियर हो। नहीं बल्कि you are equal
to us इख्वानुकुम फिद्दीन अर्थात तुम दीन में हमारे भाई हो। और इसकी अलामत क्या है?
तो इस्लाम, नमाज़, ज़कात, तो कम से कम यही तीन बातें हैं। अच्छा अगर यह तुम्हें
मंजूर नहीं तो तुम नीचे हो कर रहो और जज़िया दो इसलिए कि सबसे बालादस्त उंचा निज़ाम
अल्लाह का होगा (يُعْطُواالْجِزْيَةَعَنيَدٍوَهُمْصَاغِرُونَ)
यहूदियों से मजुसियों से हिन्दुओं से, ईरानियों से,
नसरानियों से। हर एक से यही मामला किया जाएगा। लेकिन अगर तुम ताबे हो कर रहना
मंजूर करोगे तो फिर तुम हिन्दू, यहूदी, मजूसी, जो चाहो बन कर रहो, लेकिन निज़ाम
अल्लाह का होगा। अल्लाह पाक की हुकूमत होगी। पूरी कायनात का हाकिम वह है और यहाँ
भी हुकूमत उसी की रहे गी। मैदान के अन्दर वहाँ यह नहीं था कि जबरदस्ती ईमान लाओ
वरना तुम्हें कत्ल कर दिया जाएगा। यह केवल अरब के मुशरेकीन के लिए था। जिनमें
हुज़ूर की असल और अव्वलीन बेसत थी। और इसमें भी एक च्वाइस था कि अगर तुम ईमान नहीं
लाना चाहते और कत्ल से भी बचना चाहते हो तो तुम यहाँ से हिजरत कर जाओ।चले जाओ।
चुनान्चा अबू जेहल का बेटा अकरमा वह भी बहुत सारे लोगों के साथ अब हिजरत करने जा
रहा था। हबशा की तरफ, और रात का वक्त था तूफ़ान आगया। और तूफ़ान में जितने भी
मुशरेकीन थे सब ने अल्लाह को पुकारना शुरू कर दिया। किसी ने ना लात को पुकारा ना
उज्ज़ा को पुकारा, ना मनात को पुकारा, ना हबल को पुकारा। तो इस पर सबने कहा कि जब
हमारी फितरत में यही है तो फिर हम कहाँ जा रहे हैं। मोहम्मद(सल्लल्लाहु अलैहि
वसल्लम) तो हमें इसी की दावत दे रहे हैं। वह वापस आ कर ईमान ले आए और बड़े कारहाए
नुमाया अंजाम दिए हैं। और जो नए झूटे नबी उठ खड़े हुए थे वह जंग यमामा में शहीद हुए
हैं। और उन्होंने बहुत बहादुरी का सबूत दिया है इस्लाम की दफाअ में।
तो यह आयतें एक ख़ास, मखसूस पस मंजर की आयतें हैं। इसे
उन लोगों तक स्पष्ट करना चाहिए।यह दायमी नहीं है,
हमेशा के लिए नहीं है, यह अबदी कानून नहीं है, यह केवल मुशरेकीन ए अरब के लिए था,
जिन पर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से इत्माम हुज्जत आखरी दर्जे में
हो चुकी थी। अब या तो उन्हें किसी आसमानी आफत से ख़त्म किया जाता, या यह है कि उनके उपर
ज़लज़ला आता, कुछ और आता। अल्लाह पाक ने इसकी शकल या अखत्यार की। और वकिया यह है कि
एक भी मुशरिक का खून नहीं बहा। सब ईमान ले आए। (ورایتالناسیدخلونفیدیناللہافواجا،سورہنصرآیت۲) अर्थात तुमने लोगों को देखा कि वह फ़ौज डॉ फ़ौज ईमान ले
आए। जो कुछ लोग जिनकी गर्दनें अकड़ी रहीं तो वह देश छोड़ कर चले गए।
URL for Urdu Article: https://www.newageislam.com/urdu-section/six-most-misunderstood-verses-quran/d/122781
URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/six-most-misunderstood-verses-quran/d/123820
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