डॉक्टर शफाकत अली अल बगदादी अल अजहरी
उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम
२७ नवम्बर २०२०
अच्छे अख़लाक़ और खुबसुरत औसाफ का शुमार इंसानी समाज की मजबूती और बका की बुनयादी अक़दार में होता है। जिस समाज के लोग अच्छे अख़लाक़ के गुणों से सुसज्जित होते हैं वह समाज बेहतरीन माना जाता है। इस्लाम जिस अख़लाक़ के जाब्ते की बात करता है वह दुनिया के तमाम जाब्तों से बेहतरीन और मुकम्मल और अकमल है। इसके अलावा अच्छे अख़लाक़ दुनिया के तमाम धर्मों का साझा इल्हामी बाब है। यही वजह है कि तमाम नबियों और रसूलों ने समाज के सुधार के लिए अच्छे अख़लाक़ की तकमील पर जोर दिया और आखरी नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अख़लाक़ को कुरआन पाक ने खुल्के अजीम से ताबीर फरमाया। अल्लाह पाक का इरशाद है:
“और बेशक आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अजीमुश्शान खुल्क पर कायम हैं।“(अल कलम: ४)
उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा से किसी ने एक दिन पूछा कि हुजुर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अख़लाक़ कैसे थे? तो आप रज़ीअल्लाहु अन्हा ने जवाब दिया:
“क्या तुमने कुरआन पाक नहीं पढ़ा?” (मुस्लिम शरीफ की रिवायत)
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शिक्षाओं के प्रभाव सहाबा के मुकद्दस नुफूस पर जब ज़ाहिर हुए तो कोई सदाकत में इमाम बन गया. कोई अदल व इंसाफ का अलमबरदार ठहरा, किसी ने हुजुर की ज़ात से अक्से सखावत की खैरात पाई और कोई शुजाअत व बहादुरी की मिसाल बन कर सामने आया। हुजुर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अच्छे अख़लाक़ की शिक्षाओं के माध्यम से आने वाले जमाने तक फैलती चली गईं और तमाम ताबईन, इत्तेबाउल ताबईन, सल्फे सालेहीन, अइम्मा व मुजतहेदीन और औलिया ए कामेलीन ने अपने अपने जमाने में फैज़ हासिल किया। बाद में इसी अच्छे अख़लाक़ के फैज़ को आम करते हुए औलिया ए किराम ने लोगों की जिंदगियों में रूहानी, इल्मी, फिकरी, तरबियती व अखलाकी इंकलाब बरपा किया और समाज के अफराद के ज़ाहिरी व बातिनी अख़लाक़ को संवारने में अहम किरदार अदा किया। निम्न में हम तमाम औलिया के सरदार इमामुल औलिया हजरत अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह के अच्छे अख़लाक़ का उल्लेख करेंगे।
शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह का शुमार नामवर औलिया अल्लाह में होता है। आप रहमतुल्लाह अलैह का संबंध सादात घराने से है। आप रहमतुल्लाह अलैह हसनी व हुसैनी सैयद हैं। आप रहमतुल्लाह अलैह का नसब का सिलसिला वालिद माजिद की तरफ से हजरत सैयदना इमाम हसन मुजतबा रज़ीअल्लाहु अन्हु और वालिदा की तरफ से हजरत सैयदना इमाम हुसैन रजीअल्लाहु अन्हु से मिलता है।
आप आली मर्तबत, जलीलुल कद्र, वसीउल इल्म होने और शान व शौकत के बावजूद जईफों में बैठते, फकीरों के साथ तवाजो से पेश आते, बड़ों की इज्जत, छोटों पर शफकत फरमाते, सलाम करने में पहल करते और छात्रों और मेहमानों के साथ देर तक बैठते, बल्कि शिष्यों की लगजिशों और गुस्ताखियों से दरगुजर फरमाते, अपने मेहमान और हमनशीन से दूसरों की निस्बत बहुत खुश अखलाकी और खंदा पेशानी से पेश आते, आप कभी नाफरमानों, सरकशों, जालिमों और मालदारों के लिए खड़े न होते न कभी किसी वज़ीर व हाकिम के दरवाज़े पर जाते, यहाँ तक कि वक्त के मशाइख में से कोई भी हुस्ने खुल्क, वुसअते कल्ब, कर्मे नफ्स, मेहरबानी और वादे की निगाह्दाश्त में आपकी बराबरी नहीं कर सकता था। आप रहमतुल्लाह अलैह इल्म व इरफ़ान का मीनार थे जिसका एतिराफ आपके समकालीन और बाद के उलमा ने किया। इज्ज़ व इन्केसारी आपका गुण और हक़ बोलना आपका खास्सा और अच्छाई की तरफ बुलाना और बुराई से रोकना आप का शेवा था। बिस्यार गोई से परहेज़ करते थे। गरीबों से शफकत और मरीजों की इयादत आपका वतीरा था। आप रहमतुल्लाह अलैह सखावत का मुजस्समा और अफव व करम के पैकर थे। बहुत नर्म दिल और शर्म व ह्या में अपनी मिसाल आप थे। वसीउल कल्ब, करीमुन्नफ्स, मेहरबान, वादों के पासदार, खुश गुफ्तार और खुश अतवार थे। आप बहुत गरीब परवर और मसाकीन की मदद करने वाले थे।
आपने अच्छे अख़लाक़ के बारे में अपने बेटे को मुखातब करते हुए नसीहत फरमाई और फरमाया ऐ बेटे मैं तुम्हें वसीअत करता हूँ इसे हमेशा याद रखना:
“अमीरों के साथ तुम भी बतौर एक अमीर और पुरवकार बन कर रहना जबकि फकीरों के साथ आज्ज़ी और तवाजों से रहना। मखलूक में से खुदा पाक के सबसे ज़्यादा करीब वह शख्स है जो अख़लाक़ में सबसे अधिक उम्दा अख़लाक़ का मालिक है। फकीरों की खिदमत के हवाले से फरमाते हैं कि फकीरों के मामले में तीन चीजों की पाबंदी लाजमी है: तवाजो व इन्केसारी, हुस्ने आदाब और सखावाते नफ्स। अपनी हाजतों को किसी शख्स के सामने न रखना, चाहे उसके और तुम्हारे बीच मोहब्बत, मुवद्दत और कराबत व दोस्ती का संबंध ही क्यों न हो।“
तमाम आमाल में सबसे अधिक अफज़ल अमल ऐसी चीज में इल्तिफात से बचना है जो खुदा पाक को तकलीफ दे अर्थात उसकी नाराजगी का सबब बने।
मुआफ करना और दरगुजर करना: हजरत शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह दरगुजर और मुहब्बत में अपनी मिसाल आप थे। आपकी मजलिस में हाज़िर होने वाला यही समझता कि आपकी बारगाह में सबसे अधिक मेरी इज्जत अफजाई की जाती है। आप अपने दोस्तों की खताओं से दरगुजर फरमाते और जो शख्स कसम खा कर कुछ अर्ज़ करता उसकी बात स्वीकार कर लेते और अपने इल्म का इज़हार न फरमाते।
जिस जमाने में आप मदरसा निज़ामिया में पढ़ाते थे उस दौर में विशेष रूप से आपने छात्रों की गलतियों को दरगुजर फरमाया, किसी पर ज़ुल्म होता देखते तो आपको जलाल आ जाता मगर अपने मामले में कभी गुस्सा न आता, अगर इंसान होने के तकाज़े के तहत गुस्सा आ जाता तो खुदा तुम पर रहम करे से ज़्यादा कुछ न फरमाते। आप फरमाया करते थे अगर बुराई का बदला बुराई से दिया जाए तो यह दुनिया खूंख्वार दरिंदों का घर बन जाए।
गरीब परवरी: अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अच्छे अख़लाक़ का फैज़ था कि सैय्यदुल औलिया हजरत शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह हमेशा हाजत रवाओं की हाजत रवाई फरमाते थे। आप बहुत नर्म दिल और गरीबों, मिसकीनों के लिए सरापा रहमत थे, फकीरों से बेहद मुहब्बत फरमाते थे, उन्हें अपने साथ बिठाते, खाना खिलाते और उनकी जो भी खिदमत बन आती करते। किसी शख्स को तकलीफ और दुःख में मुब्तिला नहीं देख सकते थे।
खिदमते खल्क: सखी अल्लाह का दोस्त और सखावत मोमिनीन की अलामत है। वली अल्लाह कभी बखील व कंजूस नहीं होता। आप रहमतुल्लाह अलैह ने मखलूक ए खुदा की भलाई की, अपने पास आने वालों की राहे हिदायत की तरफ रहनुमाई फरमाते, अनगिनत अल्लाह की मखलूक को दुआओं के जरिये निजात के रास्ते पर गामज़न किया, अगर कोई परेशान हाल आया तो उसकी बात सुन कर हर संभव मदद की।
रिवायत है कि आप रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में एक व्यवसाई ने आकर अर्ज़ किया कि मेरे पास ऐसा माल है जो ज़कात का नहीं और मैं उसे फकीरों और मिसकीनों पर खर्च करना चाहता हूँ लेकिन हकदार और गैर हकदार को नहीं पहचानता, आप जिसको हकदार समझें अता फरमा दें। आपने जवाब दिया कि हकदार और गैर हकदार में से जिसको चाहो दे दो ताकि अल्लाह पाक तुम्हें वह चीज दे जिसके तुम हकदार हो और वह चीज भी अता करे जिसके तुम हकदार नहीं हो।
इसार व सखावत: आप रहमतुल्लाह अलैह का दिल हर किस्म की दुनयावी लालच से बेनियाज़ था। फय्याज़ी का जज्बा आपमें कूट कूट कर भरा हुआ था। आपने तिजारत का पेशा अपना रखा था और इससे जो आमदनी होती थी उससे अल्लाह के गरीब बन्दों की सहायता करते थे। आप के जलीलुल कद्र समकालीन हजरत शैख़ मुअम्मर जरारह फरमाते हैं: शैख़ अब्दुल कादिर रहमतुल्लाह अलैह जैसा फराख दिल, वादे का पाबन्द, बा वफ़ा और बा मुरव्वत इंसान मेरी नज़रों से नहीं गुजरा। वह अपनी अज़मते रूहानी और फजीलते इल्मी के बावजूद बहुत ही मुतवाजेअ थे।
कहने और करने में समानता: कथनी और करनी में समानता और मुताबिकत इंसान के दयानतदार और सच्चा होने की पायदार अलामत है। एक दाई और मुरब्बी के लिए जरूरी है कि उसके कहने और करने में विरोधाभास न हो वरना इरादत मंदों में शैख़ की बात का उसकी हक़ के मुताबिक़ असर नहीं होता। आप रहमतुल्लाह अलैह के कहने और करने में इतनी समानता थी कि एक बार मदरसा निज़ामिया में क़ज़ा और क़दर के मसले पर गुफ्तगू फरमा रहे थे, इतने में छत से एक बड़ा सांप आपकी गोद में गिरा और आप के कपड़ों में दाखिल हो कर गर्दन के गिर्द लिपट गया। हाज़रीन दम बखुद रह गए, खौफ के आसार सबके चेहरों पर नुमाया थे मगर आप पुर सुकून रहे। आप रहमतुल्लाह अलैह ने न तो बात करने का सिलिसला रोका और न ही पहलु बदला। सांप अचानक आपसे अलग हो गया और दुम के बल खड़ा हो कर कुछ बात की और चला गया। मजलिस में उपस्थित लोगों ने पूछा हजरत यह क्या माजरा था। तो आप रहमतुल्लाह अलैह ने फरमाया उसने मुझसे कहा:
मैंने कई बार औलिया ए किराम को इस तरह आजमाया मगर कोई भी आपकी तरह साबित कदम न रहा। तो मैं ने जवाब दिया कि मैं कज़ा व कदर के विषय पर तकरीर कर रहा था और तू एक मामूली कीड़ा है जिसे कज़ा व कदर हरकत व सुकून में लाती है। मैं नहीं चाहता था कि मेरे कहने और करने में विरोधाभास पाया जाए।
अब्दुल कादिर जीलानी मशाइख की नजर में:
कुछ मशाइख ने इस तरह वस्फ़ बयान फरमाया है कि आप कसरत से रोने वाले और अल्लाह से बहुत अधिक डरने वाले थे। नेक अख़लाक़ थे, बदगोई से दूर भागने वाले और हक़ के सबसे अधिक करीब थे, अल्लाह के अहकाम की नाफरमानी के ताल्लुक से बड़े सख्त गीर थे लेकिन अपने और गैरुल्लाह के लिए कभी गुस्सा न फरमाते, तौफीके खुदावंदी आपकी रहनुमा और ताईदे इज्दी आपकी सहायक थी, इल्म ने आपको सभ्य बनाया, कुर्ब ने आपको मुअद्द्ब बनाया, खिताबे इलाही आपका मुशीर और मुलाहेज़ा ए खुदावंदी आपका सफीर था। उन्सियत आपकी साथी और खंदा रुई आपकी सिफत थी। सच्चाई आपका वजीफा, फुतुहात आपका सरमाया, बुर्दबारी आपका फन, यादे इलाही आपका वज़ीर, गौर व फ़िक्र आप का मूनिस, मुकाश्फा आपकी गिज़ा और मुशाहेदा आपकी शिफा थे। आदाबे शरीअत आपका ज़ाहिर और औसाफे हकीकत आपका बातिन था। अल्लाह पाक से दुआ है कि हमें आपके तरीक पर चलने की तौफीक अता फरमाए और अच्छे अखलाक से हमारे दामन को मुज़य्यन फरमाए। आमीन
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह ने आप रहमतुल्लाह अलैह के हुजूर यूँ अकीदत का नज़राना पेश किया:
वाह क्या मर्तबा ऐ गौस है बाला तेरा
ऊँचे ऊँचों के सरों से कदम है आला तेरा
क्यों न कासिम हो कि तू इब्ने अबिल कासिम है
क्यों न कादिर हो कि मुख्तार है बाबा तेरा
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