सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
28 फरवरी 2022
यदि धार्मिक आधार पर नग्नता स्वीकार्य है तो भारत जैसे बहुसांस्कृतिक
समाज में पर्दा भी स्वीकार किया जाना चाहिए
प्रमुख बिंदु:
भारत में, हिंदू महिलाएं भी अपने चेहरे को घूंघट से ढकती हैं
चेहरे को ढकने को लेकर मुसलमानों में असहमति है जैसा कि जैन
धर्म के अनुयायियों में पोशाक को लेकर असहमति है।
मुसलमानों और सरकार दोनों को इस मुद्दे पर कुछ लचीलापन दिखाना
चाहिए
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तरुण सागर का पीएम मोदी, हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर और राजस्थान की सीएम
वसुंधरा राजे सहित विभिन्न राजनीतिज्ञों की नज़र में बहुत सम्मान था। (फोटो: डीएनए)
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अक्टूबर 2016 में, दिगंबर जैन संत तरुण सागर को हरियाणा के शिक्षा मंत्री रामविलास शर्मा ने हरियाणा विधानसभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया था। उन्होंने निमंत्रण स्वीकार किया और सभा में आए और चालीस मिनट तक उपदेश दिया। उनके धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार वे पूरी तरह नग्न थे, हालांकि विधानसभा में कुछ महिला विधायक मौजूद थीं।
घटना की वैधता को लेकर सोशल मीडिया पर सवाल उठे थे। सवाल उठाया गया कि कैसे एक साधु या संत को पूरी तरह से नग्न अवस्था में महिलाओं की एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है। इस घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, एक महिला स्तंभकार संजकता बसु ने एक लेख लिखा जो फर्स्ट पोस्ट में छपा। उन्होंने भारतीय अश्लीलता कानूनों और एक धार्मिक गुरु को नग्न हालत में सभा को संबोधित करने की अनुमति देने की वैधता के बारे में लिखा। उन्होंने लिखा:
भारतीय दंड संहिता की धारा 294 अश्लीलता के अपराध को परिभाषित करती है: "कोई भी व्यक्ति जो दूसरों को नाराज़ करता है या
1) सार्वजनिक स्थान पर कोई अश्लील कृत्य करता है या
2) किसी भी सार्वजनिक स्थान पर या उसके आसपास कोई भी अश्लील गाना या कोई अश्लील बात करता है।"
उन्होंने आगे कहा: "बेशक कानून बहुत अस्पष्ट है। मुख्य कारण नाराज़गी का है। अदालतों ने कहा है कि कोई भी कार्य अश्लील या बेहूदा नहीं है जब तक कि वह नाराज़गी का कारण न हो" (2005 (3) एएलडी 220)। लेकिन नाराजगी क्या है? दुसरे कौन हैं? सार्वजनिक स्थान का क्या मतलब है? जब एक औपचारिक समारोह एक कार्यस्थल पर आयोजित किया जाता है जहां महिलाएं अपने सामान्य कर्तव्यों के हिस्से के रूप में भाग लेती हैं, तो उस स्थिति में स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। कुछ महिलाएं। लेकिन यह हरियाणा विधानसभा में सिर्फ एक दिन या सिर्फ कुछ महिलाएं की बात नहीं है। क्या मिसाल कायम की जा रही है? कल यह कोई स्कूल या कॉलेज भी हो सकता है। नंगे जिस्म को किसी भी तरह से किसी औरत की नज़रों पर थोपना नहीं चाहिए। कार्यस्थल में नग्नता यौन उत्पीड़न के समान होगी, लेकिन धार्मिक नग्नता को ऐसा क्यों नहीं माना जाता है? क्या इसका कारण यह है कि धार्मिक पुरुष का इरादा अहम है न कि गैर धार्मिक महिला की नज़र का नंगे शरीर पर पड़ना?"
बहुत से लोग हिजाब के मुद्दे के साथ इस सादृश्य को पसंद नहीं करते हैं लेकिन भारत जैसे बहुसांस्कृतिक समाज में यह अजीब लगता है कि धार्मिक पर्दा या हिजाब कई लोगों के लिए परेशान करने वाला है लेकिन धार्मिक नग्नता नहीं है। भारत फ्रांस की तरह सांस्कृतिक रूप से एकजुट समाज नहीं है जहां शक्ल व सूरत और पोशाक में एकरूपता की उम्मीद की जाती है और अगर वहां हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है तो इसे दूसरों की सांस्कृतिक संवेदनशीलता से अनभिज्ञ माना जाता है। लेकिन भारत में पर्दा और नग्नता दोनों धर्म और संस्कृति का हिस्सा हैं और विभिन्न क्षेत्रों के लोग अलग-अलग कपड़े पहनते हैं।
Images
by Abhishek | This photograph was taken during the Naga sadhus procession while
the crowd looks on
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ऐसे नागा साधु भी होते हैं जिनकी नग्नता किसी को परेशान नहीं करती कि अश्लीलता की ज़द में न आ जाए। जब बलात्कार होता है, तो कहा जाता है कि जो महिलाएं कम कपड़े पहनती हैं, वे बलात्कार को आमंत्रित करती हैं।
मुस्लिम कॉलेज की लड़कियों को कॉलेज जाने से रोक दिया गया क्योंकि इससे एक विशेष विचारधारा से संबंधित लड़कों को तकलीफ थी। लड़कियों ने तर्क दिया कि हिजाब या पर्दा उनकी आवश्यक धार्मिक प्रथाओं में से है, क्योंकि जैन राहिब ने कहा था कि नग्नता उनकी आवश्यक धार्मिक प्रथा है।
भारत में, मुस्लिम महिलाएं न केवल नकाब पहनती हैं या अपना चेहरा ढकती हैं, बल्कि सदियों से हिंदू महिलाएं अपने चेहरे को ढंकने के लिए साड़ी के एक टुकड़े को घूंघट के रूप में इस्तेमाल करती रही हैं। संयुक्त परिवार में, दुल्हन या बहू पूरे दिन अपने चेहरे पर घूँघट डाल कर रखती थी क्योंकि उसे परिवार के बड़े पुरुष सदस्यों से अपना चेहरा छुपाना पड़ता था।
आधुनिक समाज में भी, युवा हिंदू लड़कियां सुरक्षा कारणों से अपने चेहरे को स्कार्फ या स्टॉल से ढक लेती हैं। देश में बलात्कार की कुछ हाई प्रोफाइल घटनाओं ने लड़कियों में भय और असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है। अपना चेहरा ढककर, वह अवांछित नज़रों से बचती है और पर्दे का आनंद लेती हैं। समाज के आवारा तत्वों द्वारा सोशल मीडिया पर लड़कियों की तस्वीरें पोस्ट करने की घटनाओं ने भी गैर-मुस्लिम लड़कियों को अपना चेहरा ढंकने के लिए मजबूर किया है। तथापि चूँकि हिंदू धर्म में चेहरा ढंकने की कोई धार्मिक आवश्यकता नहीं है, इसलिए हिंदू लड़कियां चेहरा ढंकने में बहुत सख्त नहीं होती हैं, इसलिए यदि आवश्यक हो तो वे दुपट्टा उतार देती हैं। चूंकि पर्दा या हिजाब को मुस्लिम लड़कियों पर एक धार्मिक प्रथा माना जाता है, इसलिए हिजाब या पर्दा उनके लिए एक धार्मिक पहचान बन जाता है। इसलिए इस पर सख्ती से अमल किया जाता है।
जो लड़कियां पर्दे या हिजाब के लिए अपना करियर छोड़ने को तैयार हैं, उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि कई मुस्लिम देशों में नकाब पर प्रतिबंध है। 2009 में, मिस्र के अल-अजहर विश्वविद्यालय ने अपने सभी संबद्ध कॉलेजों और शैक्षणिक संस्थानों में सभी महिला कक्षाओं और छात्रावास में नकाब या हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया। हिजाब या नकाब को अनिवार्य करने के लिए सऊदी अरब में कभी भी स्पष्ट कानून नहीं रहा है। काला अबाया धार्मिक वर्ग के दबाव के कारण प्रचलित किया गया। मौजूदा सरकार ने हिजाब उठा लिया है। यह अब आवश्यक नहीं है।
भारत में भी, महिलाओं और लड़कियों का एक वर्ग हिजाब या पर्दा पहनता है जबकि दूसरा वर्ग हिजाब या नकाब नहीं पहनता है। फैसला पूरी तरह उनका है। कर्नाटक में, हिजाब पहनने के लिए मुसलमानों द्वारा मुस्कान खान की प्रशंसा की गई, जबकि एक कश्मीरी लड़की जो 12 वीं कक्षा में टॉपर थी, की हिजाब न पहनने के लिए आलोचना की गई थी।
एक ऐसे समाज में जहां लड़कियों को सोशल मीडिया पर हरासमेंट, कैट कॉल या उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, उन्होंने अपने धार्मिक संबद्धता की परवाह किए बिना हिजाब या चेहरे के पर्दे को हिफाजती तदबीर पाया है। भारत सरकार ने हिजाब या नकाब पर प्रतिबंध नहीं लगाया है, इसलिए शैक्षणिक संस्थान इस मुद्दे की संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए कुछ नरमी इख्तियार कर सकते हैं। कुरआन या हदीस में नकाब या पर्दा का संदर्भ है या नहीं, यह एक बहस का मुद्दा है क्योंकि विभिन्न उलमा ने कुरआन और हदीस की अलग-अलग व्याख्याएं पेश की हैं। कुछ का कहना है कि कुरआन में पर्दे का जिक्र है, जबकि कुछ का कहना है कि ऐसा नहीं है जिस तरह दिगम्बर जैन और श्वेताम्बर जैन का लिबास के बारे में मतभेद है। संक्षेप में, जिस तरह भारत जैसे बहुसांस्कृतिक समाज में धार्मिक नग्नता की अनुमति है और उसे स्वीकार किया जाता है, उसी तरह धार्मिक पर्दा भी स्वीकार्य होना चाहिए। हालांकि, मुसलमानों और सरकार दोनों को इस मुद्दे पर कुछ लचीलापन दिखाने की जरूरत है।
English Article: Religious Nudity vs. Religious Veiling
Urdu Article: Religious Nudity vs. Religious Veiling مذہبی عریانیت بمقابلہ مذہبی
پردہ
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