गुलाम गौस सिद्दीकी,
न्यू एज इस्लाम
५ दिसंबर २०२०
इस्लाम के नज़दीक किसी मुसलमान या गैर मुस्लिम को गाली देना या उनको अपमानित करना अच्छा कार्य नहीं है। क्योंकि अल्लाह पाक इस तरह के कार्य को बिलकुल पसंद नहीं करता। लेकिन हाँ इस्लाम किसी मज़लूम के ऊपर हो रहे ज़ुल्म व सितम को देख कर खामोश रहने का भी आदेश नहीं देता है। अगर कोई ज़ालिम किसी पर ज़ुल्म सितम ढा रहा है चाहे वह ज़ुल्म जिस्मानी, माली, मज़हबी तौर पर हो या किसी और शकल में ढाया जा रहा है तो उस सूरत में इस्लाम लोगों को इजाज़त देता है वह अत्याचार की निंदा करें और उन जालिमों को दुबारा इस तरह के अत्याचार व ज़्यादती करने से रोकने के लिए अपनी भरपूर कोशिश करें।
अल्लाह पाक ने कुरआन मजीद में इरशाद फरमाया “अल्लाह सिवाए मज़लूम के बुरे शब्दों को हरगिज़ पसंद नहीं करता है।“ (४:१४८)
कुरआन करीम की इस आयत से यह पता चलता है कि हर वह सारे नापसंदीदा उमूर मसलन गालियाँ देना, चुगली करना या किसी मुर्दा या जिंदा आदमी के लिए बुरे अलफ़ाज़ कहना हराम है। चूँकि यह आयत आम है इसलिए सारे इंसानों, चाहे वह मुस्लिम हों या गैर मुस्लिम हर एक के लिए उसकी पैरवी की जानी चाहिए।
मुहद्दीसीन उपरोक्त आयत की शाने नुज़ूल को बयान करने के लिए निम्नलिखित हदीसों का हवाला पेश करते हैं।
सईद बिन मुसैय्यिब रिवायत करते हैं कि एक मर्तबा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने कुछ साथियों (सहाबा रिज़वानुल्लाह अलैहिम अजमईन) के साथ तशरीफ फरमा थे इतने में एक शख्स ने हज़रत अबू बकर रज़ी अल्लाहु अन्हु को गाली दी और उनकी तौहीन की। लेकिन हज़रत अबुबकर खामोश रहे। उसने उनकी दो बार तौहीन की फिर भी हज़रत अबू बकर ने कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन जब उस शख्स ने तीसरी बार उनकी तौहीन की तो हज़रत अबू बकर सिद्दीक रज़ीअल्लाहु अन्हु ने जवाब में उसको कुछ कहा। जब अबू बकर सिद्दीक रज़ी अल्लाहु अन्हु ने उस शख्स का जवाब दिया तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उठ गए तो हज़रत अबुबकर रज़ीअल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया: या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क्या आप मुझसे नाराज़ हो गए? रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: एक फरिश्ता जन्नत से आया और वह इन तमाम बातों को रद्द कर रहा था जो कुछ उसने आपको कहा था। लेकिन जब आपने उसका जवाब दिया तो एक शैतान आकर खड़ा हो गया। जब (शैतान हाज़िर हो गया तो अब मैं नहीं बैठ सकता) । (सुनन अबू दाउद, हदीस ४८९६)
उपरोक्त हदीस को हज़रत अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहु अन्हु ने भी मुख्तलिफ रावियों की सनद से नक़ल किया है। (सुनन अबू दाउद, हदीस ४८९७)
मुफ़स्सेरीन ने इस बात की वजाहत करते हुए अपनी किताबों में कई रिवायतें नक़ल की हैं कि मज़लूम को इस बात की इजाज़त है कि वह अपने उपर ढाए जाने वाले जुल व सितम को बयान करें। और केवल इतना ही नहीं कुछ रिवायतों के अनुसार तो उन्हें ज़ालिम व जाबिरों पर लानत भेजने की भी इजाज़त है। फुकहा ने इन तमाम सबूतों की रौशनी में जो कुरआन और हदीस साबित हैं यह मसला निकाला है कि मज़लूम मज़ालिम का इन्किशाफ करके इंसाफ के तलब के लिए अदालतों का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं और इसी तरह दुसरे लोग भी इस तरीके को अपना सकते हैं। ताकि इस तरह के ज़ुल्म और सितम दुबारा ना दोहराई जा सकें।
इस तरह की अनेकों हदीसें गाली गलोच या चुगली करने जैसे कार्य को हराम करार देती हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
हज़रत अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहु अन्हु से रिवायत है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब दो लोग आपस में एक दुसरे को गाली गलोच देने में लगे हों तो उनमें से पहला शख्स गुनाहगार होगा (जिसने पहले गाली दी) जब तक कि मज़लूम (जिसको गाली दी गई) हद से आगे ना बढ़े (सहीह मुस्लिम, हदीस २५८७)
हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब तुम्हारा साथी मर जाए तो उसे छोड़ दो उस पर लान ताम मत करो (सुनन अबू दाउद; ४८९९)
सैयदना अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: अपने मरने वालों की खूबियाँ बयान करो और उनकी बुराइयों से बाज़ आओ (सुनन अबू दाउद ४९००)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहु अन्हु से रिवायत है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से किसी ने पूछा: या रसूलुल्लाह! चुगली क्या है? रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: यह तुम्हारे अपने भाई के बारे में कुछ कहना है जिसे वह पसंद ना करे। फिर दुबारा पूछा: या रसूलुल्लाह इसका क्या आदेश है अगर मैं अपने भाई के बारे में जो कुछ कहूँ वह सच है तो? रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: उसके बारे में जो कुछ तुम कहते हो अगर वह सच है तो तुमने उस पर बोहतान बांधा और अगर तुम उसके बारे में वह कहते हो जो सच नहीं है तो तुमने उसकी निंदा की। (सहीह मुस्लिम, २५८९, सुनन अबू दाउद, ४८७४)
हज़रत हुज़ैफा रज़ीअल्लाहु अन्हु से मर्वी है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि, कोई भी गीबत करने वाला जन्नत में नहीं जाएगा। (सुनन अबू दाउद ४८७२)
कलाम का खुलासा यह है कि इस्लाम गीबत, बोहतान या गाली गलोच इत्यादी जैसे कार्य को बिलकुल पसंद नहीं करता है। चाहे वह मुसलमान के लिए हों या गैर मुस्लिम के लिए हों।
अनुवाद, न्यू एज इस्लाम
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