मोहम्मद नजीब कासमी संभली, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
13 जून 2022
بسم اﷲ الرحمن الرحیم
اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ رَبِّ الْعَالَمِیْن، وَالصَّلاۃُ وَالسَّلامُ عَلَی النَّبِیِّ الْکَرِیْم ِوَعَلیٰ آلِہِ وَاَصْحَابِہِ اَجْمَعِیْن۔
कुरआन पाक कयामत के दिन तक के लिए लोगों से मुखातिब है: ऐ ईमान वालों! तुम्हारे लिए हलाल नहीं है कि रसूल के बाद उनकी अज़वाज (नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियों) में से किसी से निकाह करो। (सुरह अहज़ाब 53) अर्थात अज़्वाजे मुतहरात तमाम ईमान वालों के लिए मां (उम्मुल मोमिनीन) का दर्जा रखती हैं। अज़्वाजे मुतहरात के बारे में अल्लाह पाक अपने कलाम पाक (सुरह अहज़ाब 32) में इरशाद फरमाता है: ऐ नबी की बीवियों! तुम आम औरतों की तरह नहीं हो। तुम बुलंद मकाम की हामिल हो।
कयामत तक आने वाले इंसान और जिन्नात के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुछ निकाह फरमाए। उनमें से केवल हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा कंवारी थीं, बाक़ी सब विधवा या तलाक शुदा थीं। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सबसे पहला निकाह 25 साल की उम्र में हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा से किया। हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा की उम्र निकाह के समय 40 साल थी। और नबी अकरम के साथ निकाह करने से पहले दो शादियाँ कर चुकी थीं और उनके पहले शौहर से बच्चे भी थे। जब नबी अकरम की उम्र 50 साल की हुई तो खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा का इन्तेकाल हो गया। इस तरह नबी अकरम ने अपनी पूरी जवानी (25 से 50 साल की उम्र) केवल एक बेवा औरत हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा के साथ गुजारी। दूसरी शादी भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बेवा औरत से की, इस तरह पुरी मक्की ज़िन्दगी में आपके निकाह में केवल एक ही बेवा औरत रही। 55 से 60 साल की उम्र में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुछ निकाह किये। यह निकाह किसी शहवत को पूरी करने के लिए नहीं किये कि शहवत 55 साल की उम्र के बाद अचानक ज़ाहिर हो गई। अगर शहवत पुरी करने के लिए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम निकाह फरमाते तो कंवारी लड़कियों से शादी करते। और हदीस में आता है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किसी औरत से शादी नहीं की और न किसी बेटी का निकाह कराया मगर अल्लाह की तरफ से हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम वही ले कर आए। बल्कि कुछ राजनीतिक और दीनी और सामूहिक कारणों को सामने रख कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह निकाह किये।
(1) जंगों में कुछ सहाबा शहीद हुए या कुफ्फार ने मुसलमान औरतों को तलाक देदी तो नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन बेवा या तलाकशुदा औरतों पर शफकत व करम का मामला फरमाया और उनसे निकाह कर लिया ताकि उन बेवा या तलाकशुदा औरतों को किसी हद तक दिली तस्कीन मिल सके। और इंसानियत को बेवा और तलाकशुदा औरतों से निकाह करने की तरगीब दी। (2) पहले खलीफा हज़रत अबुबकर सिद्दीक रज़ीअल्लाहु अन्हु की बेटी हज़रत आयशा और दुसरे खलीफा हज़रत उमर फारुक रज़ीअल्लाहु अन्हु की बेटी हज़रत हफ्सा रज़ीअल्लाहु अन्हा से आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने निकाह किये। तीसरे खलीफा हज़रत उस्मान और चौथे खलीफा हज़रत अली रज़ीअल्लाहु अन्हुम के साथ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी बेटियों का निकाह किया। गर्ज़ कि निकाह के जरिये आपकी वफात के बाद आने वाले चारों खुलेफा के साथ दामाद या सुसर का रिश्ता कायम हो गया, जिससे सहाबा के बीच संबंध मजबूत और मुस्तहकम हुआ और उम्मत में इत्तेहाद पैदा हुआ। (3) नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सारे निकाह बेवा या तलाकशुदा औरतों से किये। लेकिन केवल एक निकाह कंवारी लड़की हज़रत आयशा से किया, उन्होंने नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सोहबत में रह कर मसाइल से अच्छी वाकिफियत हासिल की। अरबी में मुहावरा है: (اَلْعِلْمُ فِی الصِّغَرِ کَالنَّقشِ عَلَی الْحَجَرِ) छोटी उम्र में इल्म हासिल करना पत्थर पर नक्श की तरह होता है। लगभग 12210 हदीसें हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा से मरवी हैं। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इन्तेकाल के 42 साल बाद हज़रत आयशा का इन्तेकाल हुआ। अर्थात नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात के बाद 42 साल तक नबूवत के इल्म को उम्मते मोहम्मदिया तक पहुंचाती रहीं। (4) यहूद व नसारा में से जो हज़रात मुसलमान हुए, उनके साथ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शफकत व रहमत का मामला फरमाया। इसलिए हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा मुसलमान हुईं तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको आज़ाद किया, और उनकी रज़ामंदी पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे शादी की। इसी तरह हज़रत मारिया रज़ीअल्लाहु अन्हा जो ईसाई थीं, ईमान लाईं तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको इज्जत दे कर उन्हें अपने साथ रखा। आपके बेटे इब्राहीम रज़ीअल्लाहु अन्हु हज़रत मारिया रज़ीअल्लाहु अन्हा से ही पैदा हुए। (5) हज़रत जवैरिया रज़ीअल्लाहु अन्हा के साथ निकाह करने की वजह से कबीला बनू मुस्तलक की एक बड़ी जमात ने इस्लाम कुबूल कर लिया। और जब लश्कर ने यह सूना कि सारे कैदी नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रिश्तेदार बन गए तो सहाबा ने सब कैदियों को आज़ाद कर दिया। इस तरह नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इस तदबीर ने 100 से अधिक इंसानों को लौंडी व गुलाम बनाए जाने से बचा दिया। याद रखें कि इस्लाम ने ही अरबों में जाहिलियत के ज़माने से जारी इंसानों को गुलाम व लौंडी बनाने का रिवाज धीरे धीरे ख़त्म किया है। गर्ज़ नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मर्द होने की हैसियत से सिर्फ एक निकाह किया, और वह हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा से किया। और पूरी जवानी उन्ही बेवा औरत के साथ गुजार दी। अलबत्ता बाकी निकाह रसूल होने की हैसियत से किये।
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पाक बीवियों का संक्षिप्त
परिचय:
(1) उम्मुल मोमिनीन हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा: यह नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पहली बीवी हैं। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दयानत, कमाल और बरकत को देख कर उन्होंने खुद शादी की दरख्वास्त की थी। निकाह के समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 25 साल और हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा की उम्र 40 साल थी। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की चारों बेटियाँ (ज़ैनब, रुकय्या, उम्मे कुलसूम और फातमा रज़ीअल्लाहु अन्हुमा) और इब्राहीम रज़ीअल्लाहु अन्हु के अलावा दोनों बेटे (कासिम और अब्दुल्लाह रज़ीअल्लाहु अन्हुम) हज़रत खदीजा से पैदा हुए। हज़रत खदीजा के इन्तेकाल के समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 50 साल थी। हज़रत खदीजा का इन्तेकाल नबूवत के दसवें साल हुआ, उस वक्त हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा की उम्र 65 साल थी। हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा की सच्चाई गमगुसारी को नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनकी वफात के बाद भी हमेशा याद फरमाते थे।
(2) उम्मुल मोमिनीन हज़रत सौदा रज़ीअल्लाहु अन्हा: यह अपने शौहर (सुकरान बिन उमर) के साथ मुसलमान हुई थीं, उनकी मां भी मुसलमान हो गई थीं, मां और शौहर के साथ हिजरत कर के हबशा चली गई थीं। वहाँ उनके शौहर का इन्तेकाल हो गया। जब उनका कोई बज़ाहिर दुनयावी सहारा रहा तो नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा की वफात के बाद नबूवत के दसवें साल उनसे निकाह कर लिया। उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 50 साल और हज़रत सौदा रज़ीअल्लाहु अन्हा की उम्र 55 साल थी। और यह इस्लाम में सबसे पहली बेवा औरत थीं। हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा के इन्तेकाल के बाद लगभग चार साल तक केवल हज़रत सौदा रज़ीअल्लाहु अन्हा ही आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ रहीं, क्योंकि हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा की रुखसती निकाह के तीन या चार साल बाद मदीना मुनव्वरा में हुई। गर्ज़ लगभग 55 साल की उम्र तक आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ केवल एक ही औरत रही वह भी बेवा। हज़रत सौदा रज़ीअल्लाहु अन्हा का इन्तेकाल 54 हिजरी में हुआ।
(3) उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा: यह पहले खलीफा हज़रत अबुबकर सिद्दीक रज़ीअल्लाहु अन्हु की बेटी हैं। हज़रत अबू बकर सिद्दीक रज़ीअल्लाहु अन्हु की आरजू थी कि मेरी बेटी नबी के घर में हो। इसलिए हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा का निकाह नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ मक्का ही में हो गया था। मगर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घर (मदीना मुनव्वरा) में 2 हिजरी को आईं। अर्थात 3,4 साल बाद रुखसती हुई। उस वक्त नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 55 साल थी। जैसे बाप ने इस्लाम की बड़ी बड़ी खिदमात अंजाम दी थीं , बेटी भी ऐसी ही आलमा व फाज़िला हुईं कि बड़े बड़े सहाबा उनसे मसाइल दरियाफ्त फरमाया करते थे। हज़रत अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहु अन्हु और हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहु अन्हु के बाद सबसे अधिक हदीसें हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा से ही मरवी हैं। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बहुत अधिक मोहब्बत करते थे। हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा के हुजरे में ही आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात हुई और उसी में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दफ़न किये गए हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा का 57 या 58 हिजरी में इन्तेकाल हुआ।
(4) उम्मुल मोमिनीन हज़रत हफ्सा बिन्ते उमर: यह दुसरे खलीफा हज़रत उमर फारुक की बेटी हैं। उन्होंने अपने पहले शौहर के साथ हबशा और फिर मदीना की तरफ हिजरत की थी। उनके शौहर गजवा ए उहद में ज़ख्मी हो गए थे और उन्ही ज़ख्मों की ताब न ला कर इन्तेकाल फरमा गए थे। इस तरह हज़रत हफ्सा रज़ीअल्लाहु अन्हा बेवा हो गईं तो नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे 3 हिजरी में निकाह फरमा लिया। उस समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 56 साल की थी। हज़रत हफ्सा रज़ीअल्लाहु अन्हा बहुत अधिक इबादत गुज़ार थीं। हज़रत हफ्सा रज़ीअल्लाहु अन्हा का इन्तेकाल 41 या 45 हिजरी में हुआ।
(5) उम्मुल मोमिनीन हज़रत ज़ैनब बिन्ते खुजैमा: इनका पहला निकाह तुफैल बिन हारिस से, फिर उबैदा बिन हारिस से हुआ था। यह दोनों नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हकीकी चचेरे भाई थे। तीसरा निकाह हज़रत अब्दुल्लाह बिन जहश रज़ीअल्लाहु अन्हु से हुआ था, यह नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फूफी ज़ाद भाई थे, वह जंगे उहद में शहीद हुए। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत जैनब रज़ीअल्लाहु अन्हु के तीसरे शौहर के इन्तेकाल के बाद उनसे 3 हिजरी में निकाह कर लिया। उस समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 56 साल की थी। वह निकाह के बाद केवल तीन महीने जिंदा रहीं। यह गरीबों की इतनी मदद और परवरिश किया करती थी कि उनका लकब उम्मुल मसाकीन (मिसकीनों की मां) पड़ गया था।
(6) उम्मुल मोमिनीन हज़रत उम्मे सलमा रज़ीअल्लाहु अन्हा: इनका पहला निकाह हज़रत अबू सलमा रज़ीअल्लाहु अन्हु से हुआ था, जो नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फूफी ज़ाद भाई थे। उन्होंने अपने शौहर के साथ हबशा और फिर मदीना की तरफ हिजरत की थी। उनके शौहर हज़रत अबू सलमा रज़ीअल्लाहु अन्हु की जंगे उहद के ज़ख्मों से वफात हो गई थी। चार बच्चे यतीम छोड़े। जब बज़ाहिर कोई दुनयावी सहारा न रहा तो नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बेकस बच्चों और उनकी हालत पर रहम खा कर उनसे 3 हिजरी में निकाह कर लिया। निकाह के वक्त आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 56 साल और हज़रत उम्मे सलमा रज़ीअल्लाहु अन्हा की उम्र 65 साल थी। 58 या 61 हिजरी में हज़रत उम्मे सलमा रज़ीअल्लाहु अन्हा का इन्तेकाल हो गया। उम्महातुल मोमिनीन में सबसे आखिर में उन्हीं का इन्तेकाल हुआ। गर्ज़ कि हज़रत हफ्सा रज़ीअल्लाहु अन्हा, हज़रत जैनब बिन्ते खुजैमा रज़ीअल्लाहु अन्हा और हज़रत उम्मे सलमा रज़ीअल्लाहु अन्हा के शौहर गजवा ए उहद (3 हिजरी) में शहीद हुए या ज़ख्मों की ताब न ला सके और इन्तेकाल फरमा गए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन बेवा औरतों से उनके लिए दुनयावी सहारे के तौर पर निकाह फरमा लिया।
(7) उम्मुल मोमिनीन हज़रत ज़ैनब बिन्ते जहश रज़ीअल्लाहु अन्हा: यह नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सगी फूफी ज़ाद बहन थीं। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनका निकाह कोशिश कर के अपने मुंह बोले बेटे (आज़ाद किये हुए गुलाम) हज़रत ज़ैद रज़ीअल्लाहु अन्हु से करा दिया था। लेकिन शौहर की हज़रत जैनब के साथ नहीं बनी और बीवी को छोड़ दिया। हालांकि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़ैद रज़ीअल्लाहु अन्हु को बहुत समझाया मगर दोनों का मिलाप नहीं हो सका। हज़रत ज़ैनब रज़ीअल्लाहु अन्हा की इस मुसीबत का बदला अल्लाह ने यह दिया कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ उनका निकाह 5 हिजरी में हो गया, अर्थात उस समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 58 साल थी। जाहिलियत के जमाने में मुंह बोले बेटे को हकीकी बेटे की तरह समझ कर उसकी तलाकशुदा या बेवा औरत से निकाह करना जायज़ नहीं समझते थे। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत ज़ैद रज़ीअल्लाहु अन्हु की तलाकशुदा औरत से निकाह कर के मुस्लिम उम्मत को यह शिक्षा दी कि मुंह बोले बेटे का हुक्म हकीकी बेटे की तरह नहीं है, अर्थात मुंह बोले बेटे की तलाकशुदा या बेवा औरत से शादी की जा सकती है। याद रखें कि बाप अपने हकीकी बेटे की तलाकशुदा औरत से कभी भी शादी नहीं कर सकता। हज़रत ज़ैनब रज़ीअल्लाहु अन्हा का इन्तेकाल 20 हिजरी में हज़रत उमर फारुक के खिलाफत के जमाने में हुआ
(8) उम्मुल मोमिनीन हज़रत जवैरिया रज़ीअल्लाहु अन्हा: लड़ाई में पकड़ी गई थी और हज़रत साबित बिन कैस रज़ीअल्लाहु अन्हु 20 साल के नौजवान थे। हज़रत साबित बिन कैस रज़ीअल्लाहु अन्हु ने हज़रत जवैरिया रज़ीअल्लाहु अन्हा से उनको आज़ाद करने के लिए कुछ पैसा माँगा। हज़रत जवैरिया रज़ीअल्लाहु अन्हा माली मदद के लिए नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुईं और यह भी ज़ाहिर किया कि मैं मुसलमान हो चुकी हूँ। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने साड़ी रकम अदा कर के उनको आज़ाद करा दिया। फिर फरमाया कि बेहतर है कि मैं तुम्हारे साथ निकाह कर लूँ। इसलिए नहीं करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ उनका निकाह 5 हिजरी में हो गया, अर्थात उस समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 58 साल की थी। जब लश्कर ने यह सूना कि सारे कैदी नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रिश्तेदार बन गए तो सहाबा ने सब कैदियों को आज़ाद कर दिया। इस तरह नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इस छोटी सी तदबीर ने 100 से अधिक इंसानों को लौंडी व गुलाम बनाए जाने से बचा लिया। हज़रत जवैरिया रज़ीअल्लाहु अन्हा का इन्तेकाल 50 हिजरी में हुआ।
(9) उम्मुल मोमिनीन हज़रत साफिया बिन्ते हई बिन अख्तब रज़ीअल्लाहु अन्हा: इनका संबंध यहूदियों के कबीला बनू नसीर से है। हज़रत हारून अलैहिस्सलाम की औलाद में हैं। उनके बाप, भाई और शौहर को जंग में क़त्ल कर दिया गया था। यह कैद हो कर आईं। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको इख्तियार दिया कि चाहें इस्लाम ले आएं या अपने धर्म पर बाकी रहें। अगर इस्लाम लाती हैं तो मैं निकाह करने के लिए तैयार हूँ। वरना उनको आज़ाद कर दिया जाएगा ताकि अपने खानदान के साथ जा मिलें। हज़रत सफिया रज़ीअल्लाहु अन्हा अपने खानदान के लोगों में वापसी के बजाए इस्लाम कुबूल कर के नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से निकाह करने के लिए तैयार हो गईं। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको आज़ाद कर दिया, फिर 7 हिजरी में उनसे निकाह कर लिया। निकाह के समय नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 60 साल थी। हज़रत सफिया का इन्तेकाल 50 हिजरी में हुआ।
(10) उम्मुल मोमिनीन हज़रत उम्मे हबीबा रज़ीअल्लाहु अन्हा: हज़रत अबू सुफियान उमवी रज़ीअल्लाहु अन्हु की बेटी हैं। जिन दिनों उनके वालिद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ लड़ाई लड़ रहे थे, यह मुसलमान हुई थीं, इस्लाम के लिए बड़ी बड़ी तकलीफें उठाई। फिर शौहर को ले कर हबशा की तरफ हिजरत की, वहाँ जा कर उनका शौहर मुर्तद हो गया। ऐसी सच्ची और ईमान में पक्की औरत के लिए यह कितनी मुसीबत थी कि इस्लाम के वास्ते बाप, भाई, खानदान, कबीला और अपना वतन छोड़ा था, परदेश में खाविंद का सहारा था। उसकी बेदीनी से वह भी जाता रहा। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसी साबिर औरत के साथ हबशा ही में 7 हिजरी में निकाह किया, अर्थात उस समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 60 साल थी। 44 हिजरी में हज़रत उम्मे हबीबा रज़ीअल्लाहु अन्हा का इन्तेकाल हो गया।
(11) उम्मुल मोमिनीन हज़रत मैमूना रज़ीअल्लाहू अन्हा: उनके दो निकाह हो चुके थे। उनकी बहन हज़रत अब्बास रज़ीअल्लाहु अन्हु के, एक बहन हज़रत हमज़ा रज़ीअल्लाहु अन्हु के, एक बहन हज़रत जाफर तैयार रज़ीअल्लाहु अन्हु के घर में थीं। एक बहन हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ीअल्लाहु अन्हु की मां थीं। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने चचा हज़रत अब्बास रज़ीअल्लाहु अन्हु के कहने पर 7 हिजरी में हज़रत मैमूना रज़ीअल्लाहु अन्हा से निकाह कर लिया। उस समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 60 साल थी। 51 हिजरी में हज़रत मैमुना रज़ीअल्लाहु अन्हा की वफात हुई।
इन पाक बीवियों में से हज़रत खदीजा रज़ीअल्लाहु अन्हा और हजरत ज़ैनब रज़ीअल्लाहु अन्हा बिन्ते खुजैमा का इन्तेकाल आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी में हो गया था, बाकी सबका इन्तेकाल आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात के बाद हुआ। यह सब निकाह उस आयत से पहले हो चुके थे, जिसमें एक मुसलमान के वास्ते बीवियों की संख्या अधिक से अधिक (न्याय के शतर के साथ) चार निर्धारित की गई है। यह भी याद रखें कि अल्लाह पाक ने नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियों को दूसरों के लिए हराम करार दिया, जैसा कि लेख के शुरू में गुज़र चुका है। नीज सुरह अहज़ाब 52 में अल्लाह पाक फरमाता है: इसके बाद और औरतें आपके लिए हलाल नहीं हैं। और न यह सहीह है कि उनके बदले और औरतों से निकाह करो। अर्थात आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उन पाक बीवियों के अलावा (जिनकी संख्या इस आयत के नुज़ूल के समय 9 थी) दुसरे औरतों से निकाह करने या उनमें से किसी को तलाक दे कर उसकी जगह किसी और से निकाह करने से मना फरमा दिया। इस आयत के नाज़िल होने के बाद नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कोई दूसरा निकाह नहीं किया। याद रखें कि हदीस में है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तमाम निकाह अल्लाह के हुक्म से ही किये। और अरबों में एक से अधिक शादी करने का आम रिवाज था। और सहीह बुखारी की हदीस में है कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को चालीस मर्द की ताकत दी गई थी। गौर फरमाएं कि चालीस मर्द की ताकत रखने के बावजूद नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पुरी जवानी उस बेवा औरत के साथ गुज़ार दी जो पहले दो शादियाँ कर चुकी थीं, और उनके पहले शौहर से बच्चे भी थे। इसके बाद तीन चार साल एक दूसरी बेवा हज़रत सौदा रज़ीअल्लाहु अन्हा के साथ गुज़ार दिए। इस तरह 55 साल की उम्र तक आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ केवल एक ही बेवा औरत रही।
Urdu Article: Why Did Prophet Mohammad (Peace Be Upon Him) Marry
Widows? محسن
انسانیت نبی اکرم ﷺ نے بیوہ عورتوں سے ہی کیوں شادیاں کیں؟
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