प्रोफेसर अख्तरुल वासे
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
1 मई, 2022
एक ऐसे देश में जहां दुनिया की लगभग तमाम धार्मिक परम्पराएं एकत्र हों, जिसको अनेकता में एकता के अपने किरदार पर गर्व हो, जहां संविधान के शेड्यूल-8 में 22 भाषाओं को स्वीकार किया गया हो, जहां कुछ मीलों की दूरी पर बानी और पानी दोनों बदल जाते हों, जहां न जाने कितने दरिया अलग अलग सोतों से फूटते हों, अलग अलग रास्तों से अपना सफर तय करते हुए अरब महासागर और बंगाल की खाड़ी में मिल जाते हों और फिर अरब महासागर और बंगाल की खाड़ी मिल कर एक महान हिंद महासगर को वजूद में लाते हैं। जिस तरह इन नदियों के बिना आप हिंद महासागर का कोई तसव्वुर नहीं कर सकते इसी तरह विभिन्न धार्मिक इकाइयों के बिना भारत का कोई तसव्वुर नहीं किया जा सकता।
लेकिन कुछ दिनों से इस रंगारंगी को एक रंगी में बदलने की बार बार आवाजें उठ रही हैं, कोशिशें हो रही हैं। अब एक ऐसी ही आवाज़ एक बार फिर भारत में गूंज रही है और वह है सामान नागरिक संहिता की मांग और जो लोग बरसों से समान नागरिक संहिता का मुतालबा करते हैं वह खुद यह नहीं बता सकते कि समान नागरिक संहिता से उनकी क्या मुराद है? शक्ल व सूरत क्या होगी? हिन्दू नागरिक संहिता या दुसरे धार्मिक इकाइयों के पर्सनल लॉ, इन सब की जड़ें धार्मिक अकीदों में पेवस्त हैं। क्या आप यह कल्पना कर सकते हैं कि कोई हिन्दू शादी ‘सनातन पम्परा’ के अनुसार सात फेरों के बिना हो सकता है? क्या सिख गुरु ग्रंथ साहब को साक्षी माने बिना एक दुसरे को रफीक ए हयात के तौर पर कुबूल कर सकते हैं? इसी तरह क्या कोई ईसाई चर्च में पादरी के जरिये दिलाए गए कसम के बिना मियाँ बीवी हो सकते हैं? इसी तरह क्या कोई मुसलमान चाहे सुन्नी या शिया, बिना क़ाज़ी और मुजतहेदीन के बिना शादी के रिश्ते में मुंसलिक हो सकते हैं? अगर नहीं तो फिर समान नागरिक संहिता की रट क्यों है?
क्या समान नागरिक संहिता का यह अर्थ है कि विवाहों का औपचारिक पंजीकरण होना चाहिए? जहां तक हम जानते हैं, मुसलमान भी शादी के पंजीकरण के खिलाफ नहीं हैं। ज्यादातर जगहों पर शादियों के रिकॉर्ड मस्जिदों में रखे जाते हैं। कुछ प्रांतों में, प्रांत भर में विवाह के रिकॉर्ड को वक्फ बोर्ड द्वारा संरक्षित किया जाता है और इसका एक जीवंत उदाहरण तेलंगाना राज्य में देखा जा सकता है जहां विवाह का रिकॉर्ड सैकड़ों वर्षों से संरक्षित है।
भारत का संविधान देश के सभी धार्मिक संप्रदायों को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता देता है और यह इस देश की धार्मिक विविधता के लिए लागू और फायदेमंद दोनों है। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, परिवार कानून को हर धर्म अपने धर्म के हिस्से के रूप में मानता है और संविधान के तहत वे अपने परिवार के कानून के संरक्षण में विश्वास करते हैं। समान नागरिक संहिता इस संवैधानिक स्वतंत्रता से वंचित करने की दिशा में एक कदम होगा और इसे भारत के संविधान और धार्मिक मान्यताओं का पालन करने वाले किसी भी संप्रदाय द्वारा स्वीकार नहीं किया जाएगा।
समान नागरिक संहिता का मुद्दा बार-बार उठाया गया है। जिन राज्यों में बीजेपी सत्ता में है, वहां एक बार फिर इस पर विचार किया जा रहा है और लागू करने का विषय बनाया जा रहा है, लेकिन हम मानते हैं कि समान नागरिक संहिता को लागू करना आसान नहीं है और न ही इसके समर्थन में नारेबाज़ी करने वालों का यह वास्तविक उद्देश्य है बल्कि ऐसा लगता है कि यह केवल मुसलमानों चिढ़ाने के लिए कहा और उठाया जाता है।
एक देश और एक कानून की बात करने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि एक देश में पारिवारिक कानून अलग नहीं होते और उनका अलगाव अप्राकृतिक नहीं होता। निजी जीवन और प्रवर्तन में दुनिया के अधिकांश देशों का अपना पारिवारिक कानून है, लेकिन अलग-अलग राजस्व कानून हमारे देश में ही पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, प्रत्येक भारतीय को समान कर लाभ नहीं मिलता है, लेकिन यदि कोई हिंदू अपना टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय एक हलफनामा देता है कि वह एक संयुक्त हिंदू परिवार प्रणाली का हिस्सा है, तो उसे पर्याप्त कर कटौती दी जाती है जबकि जो व्यक्ति हिन्दू होते हुए भी इस तरह का हलफनामा नहीं देता है वह इन रियायतों से वंचित रहता है। यह भी ध्यान रखना दिलचस्प है कि एक गैर-हिंदू संयुक्त परिवार का हिस्सा होने के लिए कितना भी जोर दे, उसे ये विशेषाधिकार नहीं दिए जाएंगे। अब जो एक देश एक कानून की बात करते हैं उनसे पूछा जाना चाहिए कि वे इस मामले में चुप क्यों हैं?
इस भ्रांति को दूर करना भी महत्वपूर्ण है कि समान नागरिक संहिता न केवल मुसलमानों को अस्वीकार्य होगी, बल्कि यह भी कि देश में हिंदू बहुसंख्यक इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं होंगे। मुसलमानों के पास मामूली मतभेदों के साथ एक पारिवारिक कानून है, जबकि हिंदुओं में पारिवारिक कानून और विवाह, तलाक और विरासत के मुद्दों में कई मतभेद हैं। उत्तर और दक्षिण के बीच महत्वपूर्ण अंतर हैं। सवाल यह उठता है कि क्या ये सभी हिंदू एक मत पर एकजुट हुए हैं और क्या ये सभी एक समान नागरिक संहिता पर सहमत हैं। यदि हां, तो आपको यह जानना होगा कि कोड क्या है। सच तो यह है कि इस तरह का कोई भी प्रयास स्वयं हिंदुओं के विभिन्न वर्गों में अशांति पैदा करेगा और वे इसका विरोध करने के लिए मजबूर होंगे। यह उनके धार्मिक अधिकार या धर्म गुरु की हैसियत, स्थिति और अधिकार के लिए एक खुली चुनौती होगी।
जहां तक मुसलमानों की बात है तो उनकी स्थिति बहुत स्पष्ट है। उनका अपना पूरा धर्म है और उनके पारिवारिक कानून का मुख्य स्रोत कुरआन और हदीस और इज्माअ (आम सहमति) और कयास (अनुमान) है और यह स्पष्ट होना चाहिए कि इज्माअ और कयास भी तभी स्वीकार्य है जब यह कुरआन और हदीस के खिलाफ न हों और या उनसे टकराने वाले न हों। देश के संविधान के तहत उन्हें अपने धर्म और धार्मिक कानूनों का पालन करने की पूरी आजादी है। जैसा कि हमने ऊपर कहा है, भारत में विभिन्न धर्मों के लोग हैं जिनके अपने धार्मिक और पारिवारिक कानून हैं और प्रत्येक धार्मिक इकाई अपने परिवार के कानून से प्यार करती है और किसी भी कीमत पर अपने परिवार के कानून को छोड़ने को तैयार नहीं होगी। यदि उन पर समान नागरिक संहिता जबरन थोपी गई तो इससे उनमें अशांति पैदा होगी और यह किसी भी देश के स्वस्थ विकास के लिए अनुकूल नहीं होगा।
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और अन्य भाजपा शासित राज्यों में, जिस तरह समान नागरिक संहिता लाने की बात की जा रही है, हम वहां के शासक वर्ग और पार्टी के नेताओं से कहेंगे कि वे पहले एक समान नागरिक संहिता का कोई मॉडल या रूपरेखा भारत जैसे धार्मिक रूप से बहुसंख्यक देश के लोगों के सामने पेश करें और एक लोकतांत्रिक देश में इस पर वास्तविक और निष्पक्ष रूप से विचार करने का मौका दें। हम जानते हैं कि ऐसा कुछ लोगों को भावनात्मक रूप से खुश करने और अल्पसंख्यकों को डराने के लिए ही किया जा रहा है। हमें औरों का तो पता नहीं लेकिन एक आम भारतीय के रूप में हम सोचते हैं कि अगर शासक वर्ग या पार्टी वास्तव में ऐसा खेल खेलती है तो यह एक अंधी गली में प्रवेश करने जैसा होगा जहां से वापस जाने का कोई रास्ता नहीं है।
मेरी मुसलमानों से इस मरहले पर एक आवश्यक अपील है कि इस मरहले पर अकारण चीख पुकार न करें और यूनीफॉर्म सिविल कोड के तथाकथित समर्थकों को हराने का एक तरीका यह है कि हमें इसका कोई नोटिस नहीं लेना चाहिए। और अगर खुदा न ख्वास्ता हमारे वर्तमान शासक ऐसी गलती करते हैं, तो इस देश का भारी बहुमत उनसे बहुत अच्छी तरह से समझ लेगा क्योंकि हमारे यहां लोग धार्मिक रूप से निष्क्रिय हो सकते हैं लेकिन धर्म से विचलित नहीं हो सकते।
English Article: Uniform Civil Code – 'A Riddle Wrapped In a Mystery
inside an Enigma, ' As Churchill Would Have Put It
Urdu Article: Uniform Civil Code: It Is an Unfolded Mystery یونیفارم سول کوڈ: ایک معمہ ہے
سمجھنے کا نہ سمجھانے کا
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