गुलाम रसूल देहलवी, न्यू एज इस्लाम
“देखिये! गजवा का शब्द इस्तेमाल हुआ है। यहाँ पढ़े लिखे लोग बैठे
हैं। गजवा का मतलब होता है कि रसूलुल्लाह का किसी जंग में शामिल होना। वह बड़ी लड़ाई
हो या छोटी लड़ाई हो। रसूलुल्लाह तो जिस्मानी तौर पर इस जंग में नहीं आएँगे। गजवा
क्यों कहा गया इसको, इसलिए कि मिशन रसूलुल्लाह का ही है।
रसूलुल्लाह के मिशन को लेकर ही आपको आगे चलना है। और यह एजाज़ पाकिस्तानियों को
अल्लाह ने दिया है। उसी दिन के लिए पाकिस्तान बनाया गया है, के
उन्होंने गजवा ए हिन्द लड़ना है, गजवा ए हिन्द की तैयारी करनी
है। यह हमारी बदकिस्मती है कि एक तो हमें यह इल्म दिया ही नहीं गया, हमारी बहुत बड़ी संख्या को यह मालुम ही नहीं कि गजवा ए हिन्द क्या चीज है?
कब आएगा? कैसे होगा? सबको
दुनिया की ऐश के पीछे ;लगा दिया गया है। कुछ थोड़ा सा सामान
होता है। थोड़ा सा मकान होता है, आराम की चीज़ें, छोटी छोटी चीजें, उनके पीछे लगा कर उन्हें हमारा गोल
बना दिया गया। और वह बड़ा गोल जिससे हम अल्लाह के रसूल के अव्वलीन के दर्जे को
पहुँच जाएं, वह हम से छीन लिया गया।“
पाकिस्तान के एक सरकरदा मज़हबी मुबल्लिग मौलाना
इरफ़ानुल हक़ की तकरीर का मजकुरा इक्तिबास क्या आपको किसी अम्र की याद दिलाता है? जी
हाँ! इससे भरतीय गैर मुस्लिमों, बुत परस्तों और औलिया के
मज़ारों पर हाजरी देने वाले मुसलमानों के खिलाफ एक मनगढ़त हदीस की याद ताज़ा हो जाती
है जिसे पाकिस्तान के मौलाना इरफानुल हक़ जैसे हिंसक उल्मा भारत के खिलाफ हथियार
उठाने और उस क्षेत्र से तमाम बुत परस्तों को मिटाने के लिए सादा लौह पाकिस्तानी
भाइयों को भड़काने की कोशिश में खुले आम नकल करते हैं। यह कहने की कुछ आवश्यकता
नहीं कि उनकी अतिवादी लुगत में शब्द “बुत परस्त” मुसलमानों के इस बहुसंख्यक वर्ग को भी शामिल है जो औलिया और सूफिया से
इसलिए अकीदत मन्दाना तौर पर जुड़े और उनके मज़ारों की हाजरी के दिलदादा हैं क्योंकि
उन्होंने दक्षिणी एशिया में इस्लाम की तबलीग व इशाअत की है। पाकिस्तान के विभिन्न
हिस्सों में मौलाना इरफानुल हक़ साहब की तरह ऐसे विभिन्न मौलवी हज़रात और हिंसक
राजनीतिक और धार्मिक नजरिया साज़ मौजूद हैं जो भारतीय नस्ल के खिलाफ साधारणतः और
हमारे गैर मुस्लिम भाइयों के खिलाफ विशेषतः नफरत, जब्र व
तशद्दुद, और असहिष्णुता के बीज बो रहे हैं और उनके खिलाफ
आतंकवाद का धार्मिक जवाज़ भी प्रदान कर रहे हैं।
तथापि, हम बहुत सारे भारतीय मुस्लिम व गैर
मुस्लिम हम वतनों को अब तक यह मालुम ही नहीं होगा कि गजवा ए हिन्द है क्या और इस
नजरिये की इशाअत के पीछे कौन से मोहरिकात व अवामिल कारफरमा हैं। हमारे बहुत सारे
मुस्लिम और गैर मुस्लिम हम वतन गजवा ए हिन्द के नाम पर रची जा रही एक खतरनाक और
योजनाबद्ध साज़िश से गाफिल या अज्ञान हैं। उनके लिए मैं सबसे पहले स्वयंभू
जिहादियों की इस साज़िश को बे नकाब करना चाहूँगा और इसके बाद पुख्ता, ठोस और इल्मी तथ्यों पर आधारित इस्लामी व शरई बुनियादों पर इसका रद्द
करूंगा।
गजवा ए हिन्द का नजरिया क्या है?
गजवा ए हिन्द की तहरीक चलाने वाले पाकिस्तानी
कट्टरवादी और जिहादी समूह यह दावा करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
ने यह पेशनगोई की है कि एक दिन ऐसा आएगा जब मुजाहेदीन भारत की धरती को फतह करेंगे
और तमाम बुत परस्त भारतीय हमेशा के लिए नेस्त व नाबूद कर दिए जाएंगे। और जो लोग
कुफ्फार के खिलाफ इस खुनी जंग में शिरकत करेंगे, उन्हें दुसरे
आम मुसलमानों के मुकाबले में जन्नत ज़्यादा जल्दी और मुफ्त में मिलेगी। गजवा ए
हिन्द के इस बे बुनियाद फसाने की तखलीक के पीछे बुनियादी नज़रिया यही है। संक्षिप्त
यह कि गजवा ए हिन्द जिसे गज्वतुल हिन्द भी कहा जाता है एक ऐसा खतरनाक नज़रिया है जो
एक विवादित हदीस पर आधारित है, जिसका प्रयोग आजके स्वयंभू
जिहादी, हिंसा वादी और आतंकवादी अपनी गैर इंसानी
कारस्तानियों को धार्मिक जवाज़ प्रदान करने के लिए करते हैं, और
इस तरह वह आम पाकिस्तानी भाइयों के दिलों में नफरत की बीज बोते हैं।
गजवा ए हिन्द की विवादित हदीस
शिद्दत पसंदों ने गजवा ए हिन्द के अपने अत्यंत खतरनाक
और गैर इस्लामी अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए चार हदीसें गढ़ी हैं, लेकिन
मज़े की बात है कि पाक्सितान में उलेमा की खामोश अक्सरियत ने अब तक इसे खुल्लम
खुल्ला चैलेंज नहीं किया। उन तमाम हदीसों में सबसे प्रसिद्ध हदीस वह है जिसके बारे
में यह उनका दावा है कि इसकी रिवायत सहाबी ए रसुल हज़रत अबू हुरैरा (रज़ीअल्लाहु अन्हु)
ने की है। यह वही हदीस है जिसे मौलाना इरफानुल हक़ साहब ने भी अपनी एक वलवला अंगेज़
तकरीर में पाकिस्तानी अवाम को गजवा ए हिन्द के नाम पर भारत के खिलाफ वार्ग्लाने और
उन्हें गुमराह करने के लिए नकल किया था। निम्न में आप भी देखें कि मौलवी इरफानुल
हक़ साहब पाकिस्तानी अवाम की नकारात्मक मानसिकता बनाने और भारतीयों के खिलाफ
दहशतगर्दी को बढ़ावा देने के लिए किस तरह इस हदीस का प्रयोग करते हैं1
“आप देखते हैं, अल्हम्दुलिल्लाह तमाम
खुतबा अर्ब से शिर्क और बुत परस्ती का खात्मा हुआ, मगर
अल्लाह ने अपने हबीब के लिए जितनी मोहलत मुकर्रर की थी, आपके
पर्दा फरमाने का वक्त आन पहुंचा, मगर काम अभी नामुकम्मल था।
अरब खित्ते से बाहर अभी शिर्क और बुत [परस्ती का खात्मा मकसूद था, तो आखरी ज़माने में मेरे आका ने एक हुक्म नाज़िल फरमाया। एक बात की। आपने
फरमाया कि “ हिन्द में गजवा ए हिन्द होगा। और इसके शुरका
मेरे अव्वलीन के बराबर होंगे। और वह लोग जो उस जिहाद में शामिल होगे, कुछ क़त्ल करेंगे कुछ को कैद करेंगे। फतह याब हो कर शाम में ईसा की फौजों
से जा मिलेंगे”
पाकिस्तानी तंजीम “इस्लाम के
सिपाही” के चेयरमैन ने “गजवा ए हिन्द
में मुजाहेदीन की फतह होगी” के शीर्षक से अपने एक लेख में इस
तरह की तीन मन गढ़त हदीसों का ज़िक्र किया है:
(१) सौबान (रज़ीअल्लाहू अन्हु) ने रिवायत की कि नबी
सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि “अल्लाह ने मेरी उम्मत की दो जमातों को
जहन्नम की आग से सुरक्षित कर लिया है, एक वह है जो भारत को
फतह करेगी और दूसरी वह जो ईसा इब्ने मरियम (अलैहिस्सलाम) के साथ होगी”।
(२) अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि “नबी
सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमें भारत की फतह का यकीन दिलाया। अगर मैं इस घटना में
मौजूद होता तो मैं अपनी जान और दौलत लुटा देता। अगर मैं मारा जाता तो मेरा शुमार
अज़ीम शुहदा में होता। और अगर मैं सहीह व सालिम महफूज़ वापस लौट आता तो मैं वह अबू
हुरैरा होता जो जहन्नम की आग से आज़ाद हो”। (सुनन निसाई)
(३) नईम ने अल फितन में रिवायत की कि अबू हुरैरा
(रज़ीअल्लाहु अन्हु) ने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भारत का ज़िक्र किया
और फरमाया कि “तुम्हारी एक जमात भारत को फतह करेगी और अल्लाह भारत को उनके
लिए फतह कर देगा यहाँ तक कि वह उसके बादशाहों को जंजीरों में जकड़ कर ले आएँगे,
अल्लाह उनके गुनाहों को बख्श देगा। जब वह लौटेंगे तो वह ईसा इब्ने
मरियम (अलैहिस्सलाम) को शाम में पाएंगे”
स्रोत: http://islamkesipahi.wordpress.com/ghazwa-e-hind
आश्चर्य की बात है कि इन हदीसों को ज़िक्र करने के बाद
उल्लेखनीय लेख के लेखक ने यह नतीजा अख्ज़ किया है कि:
“भारत एक फितना है जिसे मुसलमानों को तबाह व बर्बाद करने के लिए
सह्युनियों की हिमायत हासिल हो रही है। अब यह एक प्राक्सी जंग हो चुकी है जिसमें
मुसलमानों को तबाह करने के लिए सहयुनी उन्हें फंड और हिमायत फराहम कर रहे हैं।
अंग्रेजों की मुदाखिलत से पहले भारत खुद एक मुस्लिम देश था, और
इससे पहले उन्होंने दस्त बरदारी कर ली और सारे इख्तियार हिन्दुओं को दे दिए और
मुसलमानों को ज़ेर करने के लिए उन्होंने अपनी पुरी कोशिश की। यह अल्लामा इकबाल,
मोहम्मद अली जिनाह और पाकिस्तान मोमेंट की कोशिशों की मेहरबानी है
कि मुसलमानों ने पाकिस्तान हासिल कर लिया”।
स्रोत: http://islamkesipahi.wordpress.com/ghazwa-e-hind
यह एक मिसाल है कि किस तरह अतिवादी मुस्लिम जमातें
भारत के खिलाफ इल्मी दहशतगर्दी और फिकरी शर अंगेजी कर के आम पाकिस्तानी मुस्लिम
भाइयों की मनफी ज़हन साज़ी करने पर तुले हुए हैं और इस मकरूह मिशन के लिए वह
अधोलिखित विवादित हदीसों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
रद्द:
दीनी व इल्मी बिंदु से अगर हम उन हिंसावादियों की
व्याख्या या किसी मन गढ़त हदीस का दन्दां शिकन जवाब देना चाहते हैं तो हमें उसूले
हदीस और जम्हूर मुहद्देसीन व उलेमा ए इस्लाम के मनहज ए इल्मी को बरुए कार लाते हुए
उन हिंसात्मक विचारों का रद्द करना होगा। इसीलिए मैं गजवा ए हिन्द के हिंसावादी
नजरिये को उसूले हदीस की कदीम व जदीद दोनों कसौटियों पर परखना चाहूँगा:
१- क्लासिकल इल्मे हदीस किसी भी हदीस को उस वक्त तक
सहीह नहीं करार दिया जा सकता जब तक कि मतने हदीस की बखूबी जांच परख और अस्नादे
हदीस की अच्छी तरह बहस व तम्हीस और तहकीक व तफ्तीश ना कर ली जाए। जिसका एक मेयार
हदीस का सिहाह सित्ता में से किसी एक में मजकूर होना है। “तहरीक
गजवा ए हिन्द” के लिए वजा की गई कोई भी हदीस सिहाह सित्ता
में से किसी मने भी नहीं है। तथापि इस तरह के दो हदीसें इमाम निसाई की हदीसों के
एक गैर मुस्द्देका मजमुआ में पाई जाती हैं, लेकिन सुनन अल
निसाई अल सुगरा में नहीं पाई जातीं, जो कि सिहाह सित्ता में
से एक है। जबकि दूसरी दोनों हदीसें अलल इतलाक हदीसों के किसी भी मजमुआ में नहीं
पाई जातीं।
जहां तक इमाम निसाई रहमतुल्लाह अलैह के मजमुआ में
मजकुर उन दो रिवायतों का संबंध है, यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि इमाम
निसाई रहमतुल्लाह अलैह की वफात दुसरे असहाबे सिहाह सित्ता के बहुत सालों बाद
अर्थात ९१५ ई० में हुई। यहाँ सवाल यह पैदा होता है कि इमाम निसाई रहमतुल्लाह अलैह
ने ऐसी हदीस का तजकिरा क्यों कर किया जिसकी तरफ उनके पेशतर व और अकाबिर मुहद्देसीन
ने इशारा तक नहीं किया। यह वाकई हैरान कुन है कि कुछ लोग केवल एक ऐसी हदीस पर यकीन
रखने का दावा करें जिसे सिर्फ इमाम निसाई ने रिवायत की है, और
सिहाह सित्ता के दुसरे असहाब की तो बात दरकिनार, किसी और
मुहद्दिस ने सिरे से इस हदीस की रिवायत की ही नहीं। ऐसा कैसे हो सकता है कि तमाम
मुहद्देसीन एक ऐसी हदीस को नज़र अंदाज़ कर दें जिसमें एक ऐसी जंग (गजवा ए हिन्द) का
ज़िक्र हो जिसमें शिरकत करने वालों को बिलावास्ता जन्नत का परवाना हासिल हो यही
नहीं बल्कि उन्हें उन अव्वलीन सहाबा किराम के बराबर रूतबा मिले जिनकी नेकी और
तकद्दुस का ज़िक्र कुरआन करीम में भी है? जी हाँ! पाकिस्तान
के मजनून जिहादियों और मज़हबी गुंडों का यही एतिकाद है।
दुसरे यह कि इस हदीस के मुताबिक़ गजवा ए हिन्द में
शरीक होने वाले मुजाहेदीन के लिए अत्यंत अज़ीम इनाम व इकराम और गैर मामूली अजर व
सवाब का वादा है, इसलिए अगर वाकई ऐसा होता तो इस हदीस की रिवायत दुसरे बहुत से
सहाबा किराम ने की होती सिर्फ इमाम निसाई के मजमुआ में ही नहीं बल्कि और उसकी
रिवायत हदीसों की मुख्तलिफ व मशहूर किताबों में जरूर होती। दिलचस्प बात यह है कि
इस हदीस के रावी सिर्फ एक ही सहाबी ए रसूल हैं। केवल यही कमी इस हदीस को स्पष्ट
तौर पर रद्द करने के लिए काफी है।
२- हमें इस्लामी इतिहास में ऐसी कोई रिवायत नहीं
मिलती जिससे यह पता चले कि अतीत में कभी भी शब्द “गजवा ए हिन्द”
का इस्तेमाल किया गया हो, यहाँ तक कि उन
मुस्लिम शासकों की रिवायत में भी ऐसा कोई शब्द नहीं मिलता है जिन्होंने भारत पर
हमला किया और उसे फतह किया। अगर गजवा ए हिन्द के संबंध से हदीस वाकई मुसतनद होती,
या कम से कम ज़ईफ़ भी होती तो वह जरुर इसका सहारा लेते और आज हमारे
पास या मुसलमानों की तारीख में ऐसी रिवायतें जरूर होतीं।
३- चूँकि यह हदीसें हदीस की ऐसी किताबों में बिलकुल
ही नहीं पाई जातीं जिन्हें शिया मकतबे फ़िक्र के लोग प्रमाणिक समझते हों, इसलिए
इस बात के भी इमकानात हैं कि इन हदीसों को उमवी हुक्मरानों ने अपने तौसीअ पसंदाना
अज़ाएम के मुताबिक़ घड़ा हो। यह बात काबिले ज़िक्र है कि उमवी हुक्मरानों ने सिंध तक
अपनी फुतुहात का सिलसिला बधा दिया था, जो कि उस ज़माने में
भारत का एक हिस्सा था।
४- हदीस की अहमियत फिकह इस्लामी में दूसरी और
बुनियादी मसदर की है। इसीलिए हदीसों की प्रमाणिकता को यकीनी बनाने के लिए लगभग
तमाम कुतुबे अहादीस व मजमुआत व सुनन का इंतेहाई अर्क रेज़ी और बारीक बीनी के साथ
जायज़ा लिया गया है। लेकिन तौसीक व तस्दीक का यह अमल अभी जारी है। तरक्की पसंद
उएल्मा इस्लाम के मुताबिक़ हदीस की प्रमाणिकता को जांचने के लिए केवल प्रमाण (रावियों
का सिलसिला) ही काफी नहीं हैं, बल्कि मतन (इबारते हदीस) पर भी बराबर
ध्यान दी जानी चाहिए। अब जबकी मतून हदीस की गलत व्याख्या और उनके गधे जाने के
इमकानात अधिक हैं हमें सेहत ए हदीस की तौसीक व तस्दीक करने के लिए एक ऐसे मेयार के
बारे में सोचने की जरूरत है जो आलमी साथ पर काबिले कुबूल हो। इसका मतलब यह है कि
हदीसों की तौसीक व तस्दीक करते समय हमें इन पांच अत्यंत अहम मेयार को मलहूज़ रखना
चाहिए: (१) कुरआन करीम (२) मुस्तनद व सहीह हदीसें व रिवायतें (३) माकूल तौजीहात
(४) तारीख़ी हकाएक (५) फिकरी एतेदाल पसंदी। मतने हदीस को जांचने और परखने के इन
पांच बुनियादी मेयारों को बरुए कार लाने के बाद शरअ इस्लामी में गजवा ए हिन्द जैसे
काबिले एतिराज़ और शर अंगेज़ नज़रियात के लिए कोई जगह नहीं रह जाती है।
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न्यू एज इस्लाम के स्थाई स्तंभकार, गुलाम
रसूल देहलवी एक आलिम और फ़ाज़िल (इस्लामी स्कॉलर) हैं।
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