गुलाम गौस सिद्दीकी, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
प्रमुख बिंदु:
1. इस्लाम में आत्मघाती हमले की पूरी तरह से मनाही है और
इस संबंध में कई फतवे जारी किए जा चुके हैं, लेकिन इनके बावजूद आत्मघाती हमले नहीं रुक रहे हैं।
2. 2005 में, पाकिस्तान में उलेमाओं ने सर्वसम्मत निर्णय में आत्मघाती
हमलों को हराम घोषित कर दिया।
3. मन्हज-उल-कुरआन आंदोलन के संस्थापक और संरक्षक डॉ मुहम्मद
ताहिर-उल-कादरी ने 150 पन्नों की किताब में आतंकवाद और आत्मघाती हमलों के खिलाफ फतवा जारी किया।
4. 2009 में रावलपिंडी में हुए आत्मघाती हमले के बाद,
पाकिस्तान की सेंट्रल
रूयत हिलाल कमेटी के अध्यक्ष मुफ्ती मुनीबुर रहमान ने कहा कि आत्मघाती हमलावर एक हराम
कार्य कर रहे थे और उनका इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं था।
5. आत्मघाती हमले के हराम होने पर जो दलीलें कुरआन और सुन्नत
में मौजूद हैं उन्हें जनता और लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए, और आतंकवाद विरोधी और आत्मघाती
हमले पर एक पाठ्यपुस्तक को स्कूलों, कॉलेजों और मदरसों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना
चाहिए।
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आत्मघाती हमले से दुनिया के ज्यादातर देश प्रभावित हैं। खासकर पाकिस्तान, सीरिया, इराक और अफगानिस्तान लगातार हो रहे आत्मघाती हमलों से नहीं बच पा रहे हैं। इस्लाम में आत्मघाती हमले की सख्त मनाही है और इस सिलसिले में कई फतवे जारी किए जा चुके हैं किया जा चुका है, लेकिन उसके बावजूद आत्मघाती हमला नहीं रुक रहा है। 2005 में, पाकिस्तान में उलमा ने एक सर्वसम्मत निर्णय में आत्मघाती हमलों को हराम घोषित किया, जिसमें विभिन्न विचारधाराओं के 58 उलमा ने फतवे का समर्थन किया। उलमा ने बताया कि फतवा जारी करने का मुख्य उद्देश्य धार्मिक दायित्वों को पूरा करना था क्योंकि यह आधिकारिक तौर पर कहा गया था कि धर्म के नाम पर लोगों को आतंकवाद और आत्मघाती हमलों के लिए तैयार किया जाता जिस पर कत्ले नाहक के नाम से यह फतवा जारी किया है कि आत्मघाती हमलों, बम विस्फोटों, रिमोट कंट्रोल बमों के माध्यम से निर्दोष लोगों की जान लेना हराम है।
मिन्हाज-उल-कुरआन आंदोलन के संस्थापक और संरक्षक डॉ. मुहम्मद ताहिर-उल-कादरी ने पुस्तक रूप में 150 पन्नों का फतवा जारी किया है, जिसमें कुरआन और हदीस के अनुसार जिहाद, फसाद और विद्रोह के बीच स्पष्ट अंतर बताया गया है। इस फतवे में उन्होंने साबित किया कि इस्लाम में आत्मघाती हमले और बम विस्फोट की अनुमति नहीं है। उन्होंने यहां तक कहा कि आत्मघाती हमला कुफ्र है। इस फतवे को लेकर उन्होंने एक बयान में कहा था कि फतवे में इस्लाम और आतंकवाद के बारे में कुरआन और सुन्नत की रोशनी में नजरिया बताया गया है। इस्लामिक स्टेट के खिलाफ किसी भी तरह का सशस्त्र संघर्ष विद्रोह की श्रेणी में आता है। उन्होंने यह भी व्यक्त किया कि किसी भी धर्म या देश से संबंधित लोगों की हत्या और आतंकवाद इस्लाम के सिद्धांतों से स्पष्ट इन्हेराफ है और मज़ीद यह कि आतंकवादी तत्व पाकिस्तान विरोधी ताकतों के हाथों में एक उपकरण बन गए हैं।
नवंबर 2009 में जब रावलपिंडी में आत्मघाती हमला हुआ तो सेंट्रल रुयत हिलाल कमेटी के अध्यक्ष मुफ्ती मुनीबुर रहमान ने इस त्रासदी के पीड़ितों के प्रति सहानुभूति और संवेदना व्यक्त करते हुए एक निजी टीवी से बात करते हुए कहा कि यह आत्मघाती हमला था और ये हराम कार्य वे जो कर रहे हैं उसका इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है।
पाकिस्तान में मस्जिदों पर कई आत्मघाती हमले हुए हैं हमले के बाद वक्त न्यूज से बात करते हुए मौलाना अजमल कादरी ने कहा कि युद्ध की स्थिति में भी मस्जिदों पर हमला करने की इजाजत नहीं है। आतंकवादी अज्ञानता के शिकार होते हुए भी स्वयं को उत्पीड़ित समझते हैं। इस्लाम किसी भी इंसान को मारने की इजाजत नहीं देता है। आतंकवादी अपनी बनाई हुई शरीअत लागू करना चाहते हैं। वे बाहरी आकाओं के निर्देशों का पालन कर रहे हैं, लेकिन जनता और उलमा मिलकर आतंकवादियों के नापाक मंसूबों को नाकाम कर देंगे।
जब परेड लेन की मस्जिद में आतंकवाद की घटना हुई तो सेंट्रल जमीयत उलमा पाकिस्तान के अध्यक्ष और प्रमुख धार्मिक आलिम साहबजादा फजल करीम ने इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की और कहा कि कुरआन और सुन्नत की रोशनी में आत्मघाती हमले हराम हैं। इस्लाम ने राज्य के लिए किसी भी व्यक्ति के जीवन और संपत्ति, सम्मान की रक्षा करना अनिवार्य कर दिया है। आत्मघाती हमलावर मुसलमान नहीं हैं। पवित्र क़ुरआन में कहा गया है कि अल्लाह उन लोगों को पसन्द नहीं करता जो धरती पर बिगाड़ पैदा करते हैं और जो धरती पर बिगाड़ पैदा करता है वह अल्लाह के हुक्म से मुँह फेर लेता है। उन्होंने यह भी कहा था कि आतंकवाद के खिलाफ जनता, उलमा, राजनेता, धर्मगुरु मिलकर ऐसी कार्ययोजना तय करें, जो आतंकवादियों को हतोत्साहित करे।
इसी तरह जब रावलपिंडी की मस्जिद में आतंकवाद की घटना हुई तो विभिन्न विचारधाराओं के उलमा ने इस घटना की कड़ी निंदा की और कहा कि कोई भी मुसलमान सजदे में नमाजियों पर हमला नहीं कर सकता। इन आतंकवादियों के पीछे यकीनन इस्लाम दुश्मन ताकतें हैं जो मुसलमानों को आपस में लड़ा कर तबाह करना चाहती हैं। जमीयत उलमा पाकिस्तान के केंद्रीय उपाध्यक्ष मुफ्ती हिदायतुल्लाह पिसरौरी ने कहा कि इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए कम है।
पिछले एक दशक के दौरान पाकिस्तान में कई उलमा ने आत्मघाती हमलों के खिलाफ फतवा जारी किया, लेकिन इसके बावजूद आत्मघाती हमले नहीं रुके और आज भी ये हमले लगातार जारी हैं और पिछले महीने पेशावर की एक मस्जिद पर आत्मघाती हमला हुआ था। जिसने पूरे पाकिस्तान को हिला कर रख दिया। जामिया अजहर मिस्र के शेखों और अहल ए इफ्ता ने भी आत्मघाती हमलों पर हराम होने के कई फतवे जारी किए, लेकिन वे आत्मघाती हमलों को रोकने में नाकाम रहे। भारत से भी, लगभग सभी विचारधाराओं ने आत्मघाती हमले के फतवे जारी किए, लेकिन भारत के बाहर हमें हर दिन एक या दूसरे आत्मघाती हमले के बारे में देखने या सुनने को मिलता है।
शेख यूसुफ करजावी और कई अरब उलमा ने आत्मघाती हमले के खिलाफ एक फतवा जारी किया, लेकिन उन्होंने इसे फिलिस्तीन के मुसलमानों के प्रतिरोध के रूप में उचित ठहराया। पाकिस्तान के मुफ्ती मुनीबुर रहमान ने भी आत्मघाती हमले के खिलाफ एक फतवे में कहा कि यह कार्य हराम है। हालाँकि, फ़िलिस्तीन और कश्मीर का संघर्ष इस फतवे के अंतर्गत नहीं आता क्योंकि आज़ादी के आंदोलनों को पूरी सभ्य दुनिया में जायज माना जाता है। कुरआन और सुन्नत के अनुसार यह फतवा सही नहीं था क्योंकि इस्लाम युद्ध की स्थिति में भी आत्मघाती हमलों की अनुमति नहीं देता है, इसलिए कश्मीर या किसी अन्य देश में इसकी अनुमति नहीं है।
न्यू एज इस्लाम वेबसाइट पर प्रकाशित एक उर्दू लेख में आलिमा कनीज़ फ़ातमा साहिबा ने इसी बात की ओर इशारा करते हुए लिखा है कि ''आतंकवाद और आत्मघाती हमलों के ख़िलाफ़ उलमा द्वारा समय-समय पर फतवे प्रकाशित किए जाते हैं, लेकिन इन सबके बावजूद आतंकवादी हमले रुकने का नाम नहीं लेते। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि इस संबंध में एक बड़े मोर्चे पर एक विशेष आंदोलन चलाया जाए, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से चरमपंथी विचारों को रोकना है, ताकि शांति और सुरक्षा का नारा कायम रहे और आतंकवाद का पूरी तरह से सफाया हो जाए। मैं कनीज़ फ़ातमा के कथन का समर्थन करता हूँ और आगे यह कहना चाहता हूँ कि कुरआन और सुन्नत में आत्महत्या के हराम होने के मौजूद सभी तर्कों को एक साथ दुनिया के हर व्यक्ति लाया जाना चाहिए और साथ ही स्कूलों, कॉलेजों और मदरसों में आतंकवाद और आत्महत्या के खिलाफ एक पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए, मस्जिदों और खानकाहों में इस अमल के सख्त हराम होने के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचारित किया जाना चाहिए ताकि यह दुनिया में हर किसी तक पहुंच सके की वाकई इस्लाम आतंकवाद और आत्मघाती हमला को हराम करार देता है।लेकिन फिर भी अगर आत्मघाती हमला नहीं रुका तो आगे क्या किया जा सकता है?! यह बुद्धिजीवियों के लिए चिंता का समय है।
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English
Article: Numerous Ulama Issued Fatwas against Suicide
Bombings, yet They Still Happen: A Great Matter of Concern
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