मुजाहिद हुसैन, ब्यूरो चीफ, न्यू एज इस्लाम, ब्रसेल्स के साथ एक इंटरव्यू का
ट्रान्सक्रिप्ट:
२४ मई, २०१३
जहां तक आपके सवाल का संबंध है तो
इसमें अब कोई अस्पष्टता बाकी नहीं रही कि सारी दुनिया के मुसलामानों में जो एक
वर्ग तेज़ी के साथ उभरा है, जिसने अपने प्रभाव को आगे बढ़ाया है, अत्यंत सफलता के साथ, उनका सऊदी अरब के इस्लाम की अवधारणा के
साथ सीधा एक संबंध है और उसके पीछे जो सल्फियत है, उसका एक महत्वपूर्ण किरदार है। जब हम अल-कायदा को देखते हैं या
अलकायदा से जुड़ी संगठनों के बारे में छान बीन करते हैं तो यह बात स्पष्ट हो कर
हमारे सामने आती है कि उन देशों में, उन समाज में एक पारम्परिक शांतिपूर्ण
दृष्टिकोण था, इस्लामी संगठनों में, इस्लामी जमातों में, वह अब कायम नहीं रहा, बाकी नहीं रहा और तेज़ी के साथ इसमें परिवर्तन आ गया है। और इसका सबसे बड़ा शिकार
उपमहाद्वीप हुआ है। यहाँ पर पाकिस्तान में एक ख़ास तर्ज़ के साथ वहाबियत को बढ़ावा
दिया गया और विचारधारा में सख्ती लाइ गई है। अल्पसंख्यकों के बारे में, दुसरे मुस्लिम स्कूल ऑफ़ थाट्स के बारे
में,
मैं
आपको बाकायदा सबूत के साथ यह बता सकता हूँ कि पाकिस्तान में हर साल ऐसी
सैंकड़ों किताबें छपती हैं जिनका मक़सद यह होता है कि जो सल्फियत से हट कर
अकीदे हैं, या
तो वह हिन्दुवाना हैं या मुशरिकाना हैं और काफिराना हैं। और
यह सभी खतरनाक हैं एक पैदाइशी काफिर के मुकाबले, वह मुसलमान इस्लाम के दीन के सबसे अधिक
विरोधी हैं जो असल वहाबियत पर विश्वास नहीं रखता. असल वहाबी दृष्टिकोण और जो पूर्वजों
की पैरवी नहीं करता। यह एक नयी चीज सामने आई है।
दुर्भाग्य से, सबसे बड़े पीड़ित वे हैं जो मध्यम वर्ग
के थे या जिन्होंने शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिनके बच्चे आधुनिक शिक्षण संस्थानों
में पढ़ रहे हैं। और यह यहीं तक सीमित नहीं है। जब हम यूरोप को देखते हैं, तो हर देश में जहाँ अप्रवासी होते हैं, चाहे वे एशिया के हों या खाड़ी के
देशों के, उनमें
एक अजीब सी कठिनाई होती है। एक कठोरता हिजाब के रूप में आई है। जो लोग पहले हिजाब
नहीं पहनते थे, उन्होंने अब हिजाब को एक प्रतीक बना दिया है, जो दर्शाता है कि वे न केवल स्थानीय
सोच के खिलाफ हैं, वे स्थानीय दृष्टिकोण के खिलाफ हैं, वे स्थानीय संस्कृति को अस्वीकार करते
हैं,
वे
वहां रहना चाहते हैं, लेकिन उनको रद्द कर के रहना चाहते हैं।
यह हम 9/11 के बाद और विशेष रूप से लंदन बम
विस्फोटों के बाद देखते हैं, जब हम ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड, फ्रांस, स्पेन और विशेष रूप से युवा पीढ़ी में मुस्लिम वर्ग को देखते हैं।
यहां एक अजीब कठोरता है। वे हलाल और हराम की मूल बातों में उलझे हुए हैं। वे लोगों
को जिहाद का उपदेश देते हैं। वे उन सभी चीजों को अस्वीकार करते हैं जो मुस्लिम
फिकह द्वारा पहले अस्वीकार नहीं किए गए हैं, न ही मुस्लिम आलिमों द्वारा, न ही मुस्लिम समाज के अन्य सदस्यों
द्वारा। आज वे इसे खारिज कर रहे हैं। टेलीविजन खारिज कर दिया। फोटो निर्माण अस्वीकृत
और इसी तरह से कि संगीत के साथ क्या हुआ है और दूसरी सांस्कृतिक परंपराओं को
दृढ़ता से खारिज कर दिया गया है, इससे एक बात बहुत स्पष्ट है: एक नई तरह की हिंसा और अविश्वास और हर
चीज की उदासीनता। एक युवा और एक मुसलमान नज़र आता है जो अपनी बात के अनुसार सब कुछ
चित्रित करना चाहता है। यदि आप इसे रंग नहीं सकते, तो आप इसे बदल नहीं सकते, आपको इसे नष्ट करना होगा। और जब उनकी
तहकीक करते हैं, तो पाते हैं कि उनके पीछे एक पेट्रोडॉलर है। उनके पीछे वहाबीवाद का
प्रचार है, सलफिज़्म
का प्रचार है, इसके पीछे तो वह बल है।
इस्लामिक केंद्र स्थापित किए गए।
मस्जिद का निर्माण स्पष्ट रूप से एक मौलिक अधिकार है। यदि मस्जिद का निर्माण किया
जाता है, तो
इसका उद्देश्य इबादत का आयोजन करना है। लोगों की यह मानसिकता नहीं बनानी चाहिए कि
जिस देश में मस्जिद की अनुमति है, वहां उस समाज को नष्ट कर दें। क्या जिन देशों में ये लोग रह रहे हैं, वहां अल्पसंख्यक हैं, जिनमें उनका प्रभाव है या जहां वे रह
रहे हैं, अपने
ही देशों में समान स्वतंत्रता है? कोई इसके बारे में बात नहीं करेगा। मैं इसका कोई संदर्भ नहीं देना
चाहूंगा, क्योंकि
इस मामले में हमें जो जानकारी मिलती है, हमारे पास जो डेटा होता है, उसकी जो जानकारी होती है, उसे हम नकार देते हैं। मुझे नहीं लगता कि मुस्लिम देश में नया चर्च
बनाना आसान है। हां, लेकिन एक गैर-मुस्लिम देश में, यूरोप में, पश्चिमी देशों में, मस्जिद बनाना एक आसान काम है। यह आपका
अधिकार है, आप
इसे बनाते हैं, लेकिन जब आप इसका उपयोग यहां के समाज को दबाने के लिए करते हैं, तो यहां की सरकारों को और यहां के
समाजों को अपने रंग में रंगना चाहते हैं, यह एक हस्तक्षेप है और इसकी अनुमति कहीं भी नहीं है।
पाकिस्तान में यही हो रहा है, हमारे यूरोप में ऐसा हो रहा है, यह सब पश्चिमी देशों में हो रहा है, और इसके पीछे की ताकतें किसी भी तरह से
गुप्त नहीं हैं। आज जब हम बांग्लादेश के एक व्यक्ति को देखते हैं, वह आया और इंग्लैंड में रहने लगा, उसने वहां अपना समूह बनाया, उसने सभी स्थानीय सुविधाओं का उपयोग
किया और अब उसने एक संगठन शरिअत फॉर ब्रिटेन का गठन कर लिया। वह शरीअत का शासन
चाहता है ब्रिटेन में। और जो कोई भी उसकी अवज्ञा करता है, वह
उसके लिए सिर कलम करने योग्य है। पाकिस्तान में यही स्थिति है। ऐसी ही
स्थिति भारत में मौजूद है। अब भारत के लिए जहां हमें यह आभास होता है कि हमारे पास
जो समाज है वह एक धर्मनिरपेक्ष समाज है और वहां के मुसलमान उस समाज का हिस्सा हैं।
और समाज के साथ उसकी सोच बराबर है। लेकिन मैं सम्मानपूर्वक असहमत हूं कि यह भारत
में यह स्थिति नहीं है, और वहाँ पर जो खेप तैयार हो रही है, वह खेप पूरी तरह से हानिकारक है और
मानसिक रूप से सलफिज्म और वहाबिज्म के साथ है। उनके द्वारा इसी तरह का फतवा जारी
किया जा रहा है।
वहाँ पर अभी अगर इस समय जम्हूरियत की
मजबूती या निज़ाम की बज़ाहिर अनदेखी कर देने के तत्व के तहत अगर वहाँ पर हमें सुसाइड
बांबिंग नज़र नहीं आती लेकिन यह दूर की बात नहीं रही अब मैं आपको बताता
हूँ पाकिस्तान में जब देवबंदी हज़रात , जो साम्प्रदायिक संगठन हैं, वह शिया को क़त्ल करने के लिए सबसे पहला फतवा लखनऊ से मिलता है, उनको दारुल उलूम देवबंद से रहनुमाई
मिलती है, वहीँ
से फिर वह मौलाना मंज़ूर अहमद नोमानी की किताब पढ़ते हैं और यह तय कर लेते हैं शिया
काफिर हैं, वह
वाजिबुल कत्ल हैं, उनका सामाजिक बाईकाट करना वाजिब है, तो मैं यह अपील करना चाहता हूँ यह अगर इस तरह भारत में, या खाड़ी देशों में, बांग्लादेश में, अगर इस बात को हम त्वरित रूप से अनदेखा
कर रहे हैं कि वहाँ पर समाज और निज़ाम इस तरह का है कि ना तो वहाँ इस तरह की हिंसा
सर उठा सकता है, तो यह एक गलतफहमी है और इसको एड्रेस किया जाना चाहिए। मैं समझता हूँ
कि राज्यों को इन मामलों को उठाना चाहिए कि वह अरब देशों, वह खलीजी राज्य जो अपने सख्त और
हिंसात्मक दृष्टिकोण को परवान चढ़ाने के लिए मुस्लिम संगठनों की सहायता रुक रही
हैं। और ऐसी संगठनों के लिए उन्होंने अपने पैसों के अम्बार लगा दिए हैं, तो यह कोई सादा बात नहीं है। यह एक
हस्तक्षेप है, क्योंकि यह जो मुसलमान हैं यह उप महाद्वीप में शताब्दियों से रहते आ रहे हैं। और यह
अल्पसंख्यकों के साथ रहे हैं, रहते हैं और उनके यहाँ इस प्रकार की
बेज़ारी नहीं थी जैसी बेज़ारी आज हम देख रहे हैं।
और यूरोप में स्थिति समान है। यूरोप
में भी, मैंने
विस्तार से वर्णन किया है, जब यूरोप में पैदा हुआ मुसलमान, चाहे उसके माता-पिता भारत से हों या
पाकिस्तान से, जब वह यहां मेट्रो ट्रेन के नीचे बम लेकर घुसता है और उससे पहले वह
वीडियो रिकॉर्ड करता है और कहता है कि उसका पिछला जीवन बहुत बुरा था। वह अब सही
रास्ते पर आ गया है। तो इसका मतलब है कि असली तरीका खुद को मारना है, दूसरों को मारना है और देश और समाज को
नष्ट करना है। इस्लाम को कैसे बढ़ावा दिया जाए जो कहीं भी प्रचलित नहीं है। वे एक
नया सिद्धांत लागू करना चाहते हैं। नया इस्लाम लागू करना चाहते हैं यह उन देशों के
लिए एक अवसर है जो अभी भी सोचते हैं कि हम किसी विशेष कारण से यहां किसी भी प्रकार
की सख्ती नहीं देखते हैं, जिन देशों में, जिन समाजों में, दस साल पहले, इस तरह की कठोरता को नहीं देखा गया था, लेकिन इसके परिणाम कौमें भुगत रही हैं।
मैं समझता हूँ कि यह एक मौक़ा है और
मुस्लिम उम्मत में बहुत पोटेंशियल है, मुसलमानों की जो अक्सरियत है वह निश्चित रूप से ना ऐसा सोचती है और
ना ऐसा चाहती है, उनको ना केवल आगे आना चाहिए बल्कि उनको ऐसे तत्वों को रोकना चाहिए।
इल्मी सतह पर उनको रोकना चाहिए और उनको बताना चाहिए कि जिस प्रकार का हिंसक इस्लाम
जिस प्रकार की गर्दन काटने की नफ्सियात को आप हमारे यहाँ लागू
करना चाहते हैं, जिस प्रकार की नफरत और बेज़ारी का आप सबक दे रहे हैं, ना ऐसी बेज़ारी और नफरत इस्लाम में कहीं
नज़र आती है और ना ही इसका कोई वजूद था। यह एक नया तत्व है जो पैदा हो गया है, जिसको रोक देना ना केवल विभिन्न देशों
के लिए बल्कि पूरी दुनिया के कौमों के लिए भी यह एक बहुत ही अपरिहार्य चीज है ताकि
अमन को, भाईचारा को और जो धर्मों के बीच सामंजस्य है
उनको कायम रखा जा सके।
URL for English transcript: http://www.newageislam.com/multimedia/mujahid-hussain,-new-age-islam/newageislam-tv-petrodollar-islam,-salafi-islam,-wahhabi-islam-in-pakistani-society/d/11714
URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/newageislam-tv-petrodollar-islam-salafi/d/124218
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