न्यू एज इस्लाम स्टाफ राइटर
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
26 मई, 2022
लाउडस्पीकर पर अज़ान का मुद्दा पूरे देश में चर्चा में है और इसके समर्थन और विरोध में बहुत कुछ कहा और लिखा जा रहा है। लाउडस्पीकर न केवल मस्जिदों में अज़ान के लिए उपयोग किए जाते हैं बल्कि अब यह एक बहुउद्देश्यीय उपकरण बन गया है। इसका उपयोग हर धर्म के लोगों की सामूहिक और व्यक्तिगत जरूरतों के अनुसार किया जा रहा है। इसका उपयोग धार्मिक के साथ-साथ सामाजिक और मनोरंजक उद्देश्यों के लिए भी किया जा रहा है। इसके उपयोग की सीमा ने भी लोगों के लिए परेशानी खड़ी कर दी और मामला अदालतों में चला गया। नतीजतन, अदालतों को इसके उपयोग पर सीमाएं निर्धारित करनी पड़ीं।
मुसलमानों में माइक का प्रयोग अन्य धार्मिक समूहों की तुलना
में कम नहीं बल्कि अधिक इसलिए होता है क्योंकि मुस्लिम समाज में धार्मिक गतिविधियाँ
अन्य कौमों की तुलना में अधिक होती हैं। धार्मिक समारोह, जलसे और सम्मेलन मुस्लिम समाज का एक अभिन्न अंग हैं
और मुसलमानों का कोई भी धार्मिक या सामाजिक कार्य लाउडस्पीकर के बिना अधूरा माना जाता
है। शादी समारोह में लाउडस्पीकर पर फिल्मी गाने अब शादी समारोह का अभिन्न अंग बन गए
हैं। शादी समारोहों की वीडियोग्राफी भी जरूरी मानी जाती है। जब से डीजे का चलन आम हुआ
है तब से लरज़ा खेज़ संगीत से अवाम का जीना हराम हो गया है। अब शादी में डीजे बजाना अनिवार्य
हो गया है। इस तरह का भयानक संगीत आसपास के बीमारों और कमजोरों को बहुत दर्द देता है।
शिकायत करने पर मार पीट की नौबत आ जाती है। हाल ही में पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले
के बर्मन डीह गांव में एक शादी के दौरान लाउड माइक पर फिल्मी गाने बजाने के दौरान दो
परिवारों की पिटाई, पत्थरबाजी और उनके कपड़े फाड़े जाने की शर्मनाक घटना हुई। एक 80 वर्षीय महिला और उसकी बहू घायल
हो गए और मामले की सूचना पुलिस को दी गई।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मंगलवार को रजावल मलिक की बेटी की शादी थी जिसमें कई दिन पहले उनके रिश्तेदार आए थे। छत पर माइक भी लगा हुआ था, जहां फिल्म के गाने जोर-जोर से बज रहे थे। रविवार को हल्दी की रस्म हुई। उस दिन रजावल मलिक के परिवार ने माइक को छत से उतार दिया और अपने पड़ोसी अख्तर मलिक के घर की ओर मोड़ दिया और फिल्म के गाने जोर-जोर से बजने लगे। अख्तर मलिक कोई और नहीं बल्कि रजावल मलिक का भाई है। शायद दोनों भाइयों में अनबन है इसलिए उसकी फैमिली शादी की तकरीब में शामिल नहीं थी।
मतभेद यहीं तक सीमित नहीं थे कि भाई ने भाई की बेटी की शादी में भाग नहीं लिया, बल्कि माइक को छत से उतारकर अपने भाई को चिढ़ाने के लिए उसके घर की ओर रुख कर दिया गया। लाउड माइक बजने से अख्तर मलिक की 80 वर्षीय मां की तबीयत बिगड़ने लगी। अख्तर ने एक पड़ोसी को भेजा और माइक की आवाज को कम करने को कहा। इस पर माइक की आवाज़ कम करने की बजाए रज़ावल मालिक के घर वाले मात पीट पर उतर आए और शादी में आए रिश्तेदारों ने छत से अख्तर मलिक के परिवार पर पथराव कर दिया। जब अख्तर मलिक की पत्नी सलीमा मलिक रजावल के घर जाकर विरोध करने लगी तो उनके साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार किया गया और उनके कपड़े उतारने का प्रयास किया गया। उसके बाद दोनों परिवारों के बीच मारपीट हो गई जिसमें अस्सी साल की वृद्धा और उसकी बहू सलीमा घायल हो गईं। दोनों पक्षों ने स्थानीय थाने में शिकायत दर्ज कराई है।
लाउडस्पीकरों से उत्पन्न सामाजिक अशांति और फितना फसाद की यह अकेली घटना नहीं है। मुस्लिम समाज में लाउडस्पीकर नैतिक बुराई का कारण बन गए हैं। बंगाल के कुछ हिस्सों में युवा लोग शादियों में जाते हैं और शादियों में डीजे पर फिल्मी गानों पर डांस करते हैं और इस वजह से बारात देर से पहुंचते हैं क्योंकि युवाओं की मनोकामना भी पूरी होनी चाहिए। आखिर शादियां रोज नहीं होतीं। कुछ मुस्लिम समाजों में तो ट्रांसजेंडर लोगों को युवा लड़कों के साथ नृत्य करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। उनके अश्लील डांस को मोहल्ले की तमाम लड़कियां और महिलाएं देखते हैं। इस मौके पर मुस्लिम लड़के भांग गांजा और शराब के नशे में धुत होते हैं। वहां मौजूद पढ़े-लिखे और बुजुर्ग और दीनदार लोग मूकदर्शक बने होते हैं। इस बुराई के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाता क्योंकि यह बुराई इतनी बढ़ गई है कि इसका सुधार एक व्यक्ति और एक दिन का काम नहीं है।
मुस्लिम समाजों में जुआ, शराब, भांग, गांजा और यहां तक कि अफीम का व्यापार भी बड़े पैमाने पर होता है। नतीजतन, युवा नशे के आदी हो जाते हैं। अश्लीलता, अनैतिकता तो आम बात है, समाज में छोटे-बड़े का की तमीज़ नहीं है इसलिए कोई किसी को डांट नहीं सकता।
समाज के सुधार का कार्य बुद्धिजीवियों और धर्मगुरुओं का दायित्व था, लेकिन वे या तो अपने उत्तरदायित्वों की उपेक्षा करते हैं या मसलेहत के तहत चुप रहते हैं। राष्ट्रीय संगठन और व्यक्ति सामाजिक सुधार के लिए उतने उत्साह और जोश के साथ प्रचार नहीं करते जितना वे मसलकी मामलों में शोला बयानी करते हैं।
लेकिन कभी-कभी कुछ कौम का दर्द रखने वाले लोग अपनी बिसात भर सामाजिक सुधार के लिए हर संभव कोशिश करते हैं लेकिन उनके प्रयासों को वह समर्थन नहीं मिलता जो पूरे समाज से मिलना चाहिए। इसका नुकसान यह है कि उनके प्रयास औपचारिक आंदोलन का रूप नहीं लेते हैं। पिछले दिसंबर में पश्चिम बंगाल के एक शहर कमरहटी की एक मस्जिद के इमाम मौलाना सैफुल्लाह अलीमी ने इलाके के मुस्लिम समाज में शादी की तकरीबात के बीच होने वाले फिजूलखर्ची और इसराफ के खिलाफ शुक्रवार के खुतबे में आवाज उठाई और बरात में फ़िल्मी गानों पर हिजड़ों के अश्लील नृत्य, अनैतिक कृत्यों और बुलंद आवाज़ से गाना बजाने के चलन को समाप्त करने का आह्वान किया और इलाके के जिम्मेदार लोगों से इस बुराई के खात्मे के लिए ठोस कदम उठाने की अपील की। उनकी अपील पर लब्बैक कहते हुए क्षेत्र के प्रसिद्ध मैरिज हॉल, जनता मैरिज हॉल के अधिकारियों ने दरवाजे पर एक नोटिस चिपका दिया, जिसमें कहा गया था कि डीजे, हिजड़ों का डांस और अन्य खुराफात को मैरिज हॉल में अनुमति नहीं दी जाएगी और इस तरह की बरात लाने वालों की तकरीब में क़ाज़ी निकाह नहीं पढ़ाएंगे। इस कदम का कुछ असर हुआ है, लेकिन इस तरह के सुधार के लिए सामूहिक कार्रवाई और एक स्थायी सुधार की आवश्यकता होती है। साथ ही, यह जिम्मेदारी केवल इमामों की ही नहीं बल्कि समाज के सभी वर्गों के लोगों की है जो कानून के क्षेत्र में शामिल हैं वे कानूनी रूप से जो लोग नगर पालिका संस्थाओं से जुड़े हैं वह इन्तेजामी स्तर पर जो सामाजिक कार्यकर्ता हैं और सामाजिक संस्थाओंसे जुड़े हैं वह अपने अधिकार क्षेत्र में रहते हुए सामाज सुधार का काम करें। मस्जिदों को सामाजिक सुधार और निर्माण का केंद्र बनाया जाना चाहिए। स्थानीय निकायों से जुड़े लोगों को भी क्षेत्र से शराब के जुए के और नशे के ठिकाने को खत्म करने के लिए कदम उठाने चाहिए। उनका काम सिर्फ नालों की सफाई और विवादों को निपटाना नहीं होना चाहिए। इस मुद्दे को लॉ एंड ऑर्डर का मसला बता कर नज़रअंदाज करना अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से भागने के समान है। यह केवल कानून व्यवस्था का मामला नहीं है, यह देश के युवाओं के भविष्य और राष्ट्र के कल्याण का मामला है। मुसलमानों के मिल्ली, सामाजिक और राजनीतिक नेता कौम में आने वाली बुराइयों के लिए जिम्मेदार हैं और उन्हें ही कौम की भलाई के लिए आगे आना होगा और आम मुसलमानों को कल्याण और विकास का रास्ता दिखाना होगा।
Urdu Article: Who Is Responsible For The Moral Degradation In
Muslim Society? مسلم
معاشرے میں اخلاقی پستی کا ذمہ دار کون ؟
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