पुतिन इस क्षेत्र में नाटो के बढ़ते प्रभाव को सुरक्षा खतरे
के रूप में देखते हैं।
प्रमुख बिंदु:
1. अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो ने इराक, लीबिया और अफगानिस्तान को तबाह
कर दिया
2. यह सीरिया को भी नष्ट करना चाहता था
3. अब पुतिन अपने मध्य पूर्व पड़ोस में गृहयुद्ध का दोबारा
आगाज़ देख रहे हैं
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न्यू एज इस्लाम स्टाफ राइटर
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
28 फरवरी, 2022
Protesters
at a peace march for Ukraine in Boston on Sunday. Credit...Vanessa Leroy for
The New York Times
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पूर्व सोवियत संघ के एक प्रांत यूक्रेन पर रूसी आक्रमण इस्लामी दुनिया के लिए एक सबक है। रूस ने यूक्रेन पर हमला किया क्योंकि उसे डर था कि यूक्रेन 30-सदस्यीय नाटो सैन्य गठबंधन में शामिल हो जाएगा, जिससे उसकी सुरक्षा को खतरा हो सकता है। औपचारिक रूप से नाटो का सदस्य बनने से पहले रूस यूक्रेनी सरकार को उखाड़ फेंकने को विवेकपूर्ण मानता है। इसलिए, यह एक प्रारंभिक चेतावनी थी। जब वास्तविक युद्ध छिड़ गया, तो संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य नाटो सहयोगियों ने यूक्रेन को अकेला छोड़ दिया। दिलचस्प बात यह है कि जब रूस ने रोमानियाई जहाजों को निशाना बनाया, तब भी नाटो ने कोई जवाब नहीं दिया। जो नाटो का सदस्य है और जापान जिसका नाटो के साथ घनिष्ठ संबंध है।
नाटो 30 देशों का एक सैन्य गठबंधन है, जिनमें से केवल दो, तुर्की और अल्बानिया, मुस्लिम बहुल देश हैं, और इनमें से केवल तुर्की का ही कुछ राजनीतिक प्रभाव है।
युद्ध से पहले, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य नाटो सदस्यों ने रूस के खिलाफ यूक्रेन को उकसाया, लेकिन जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, तो संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य शक्तिशाली नाटो सदस्य पीछे हट गए और केवल रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए क्योंकि रूस जैसा शक्तिशाली देश उनके लिए एक चुनौती था। जब संयुक्त राज्य अमेरिका यूक्रेन के बचाव में इस आधार पर नहीं आया कि वह नाटो का सदस्य नहीं है तो रूस ने रोमानिया और जापान को निशाना बनाया और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक और चुनौती पेश की। फिर भी संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूस पर हमला करने की हिम्मत नहीं की। यह वही संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो हैं जिसने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के नाम पर तीन मुस्लिम बहुल देशों को तबाह कर दिया है।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने पहले इराक को नष्ट कर दिया क्योंकि सद्दाम हुसैन इस क्षेत्र में अमेरिकी व्यापार और सैन्य हितों के लिए एक बड़ी बाधा थे। संयुक्त राज्य अमेरिका ने कुवैत को मुक्त कराने के बहाने इराक पर आक्रमण किया लेकिन एक ईसाई बहुल देश यूक्रेन को मुक्त कराने या उसकी रक्षा करने पर चुप है। संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो ने इराक को पूरी तरह से नष्ट कर दिया और इराक को सामूहिक विनाश के हथियारों से बचाने के बहाने इराकी सरकार का तख्ता पलट किया। संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन ने यह झूट फैलाया कि सद्दाम हुसैन ने बड़े पैमाने पर तबाही फैलाने वाले हथियारों का ढेर लगाया है और वह दहशतगर्दी की हिमायत कर रहा है, हालांकि संयुक्त राष्ट्र संगठन की एक मुआयना करने वाली टीम ने एलान किया था कि हमले के आगाज़ से ठीक पहले उसे डब्ल्यू एम ज़ेड की मौजूदगी का कोई सुबूत नहीं मिला। इराक को एक झूट के आधार पर पुरी तरह से तबाह कर दिया गया।
इसके बाद अफगानिस्तान का नंबर था। 9/11 के हमलों के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो ने अफगानिस्तान पर हमला किया, और नाटो के नेतृत्व वाले संयुक्त राष्ट्र-अनिवार्य अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा बलों (आईएसएएफ) को अफगानिस्तान में तैनात किया गया ताकि ऐसी स्थिति पैदा हो सके जिसके तहत अफगान सरकार पुरे देश में अपने अधिकार का प्रयोग करने में सक्षम हो सके। और अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बल अपनी सलाहियतों को बढ़ा सके, अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाई सहित।
लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, अफगानिस्तान में दो दशकों के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य शक्तिशाली राष्ट्र तालिबान से लड़ने के लिए अफगान सुरक्षा बलों की सैन्य क्षमता में वृद्धि नहीं कर पाए हैं। दरअसल, वह तालिबान को खुद खत्म नहीं कर सका और उसके साथ 2020 में शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने अशरफ गनी की सरकार को असहाय छोड़ दिया जब तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा कर लिया इसी तरह उन्होंने यूक्रेन को तनहा छोड़ दिया था जब पुतिन ने आक्रमण किया। संयुक्त राज्य अमेरिका अब तालिबान सरकार के साथ सहयोग कर रहा है, जिसे वह पहले आतंकवादी मानता था।
अमेरिका का अगला शिकार लीबिया का मुअम्मर गद्दाफी था, जो अमेरिकी साम्राज्यवाद के पक्ष में कांटा था। संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो ने 2011 में लीबिया में सरकार बदलने के अवसर के रूप में अरब स्प्रिंग का इस्तेमाल किया। मिस्र और ट्यूनीशिया के बाद, जब विद्रोह लीबिया पहुंचा, तो गद्दाफी ने बल द्वारा विद्रोह को कुचलने की कोशिश की। एक बयान में, उन्होंने विद्रोहियों को धमकी दी कि वह प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल प्रयोग करेंगे। उन्होंने कथित तौर पर अपने समर्थकों से बिनगाजी को साफ करने के लिए भी कहा था। इसने संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो को लीबिया पर आक्रमण करने और अपनी सरकार बदलने का बहाना प्रदान किया। संयुक्त राज्य अमेरिका लीबिया के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1973 पारित करने में सफल रहा, और इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए, 19 मार्च, 2011 को बहुराष्ट्रीय नाटो के नेतृत्व वाले गठबंधन ने लीबिया के "अवाम की सुरक्षा" और गद्दाफी को ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ की सज़ा के लिए लीबिया में सैन्य हस्तक्षेप शुरू किया। हालांकि व्यवहार में अमेरिकी रक्षा सचिव के पास नागरिकों पर वास्तविक हमलों की कोई पुष्टि नहीं थी।
नाटो का यह दावा कि उसने नागरिकों की रक्षा के लिए लीबिया पर आक्रमण किया, गलत साबित हुआ क्योंकि विद्रोहियों ने अश्वेत लीबियाई लोगों को मार डाला और अश्वेत लीबियाई लोगों के पूरे गाँवों को नष्ट कर दिया और शरणार्थी शिविरों में अश्वेत महिलाओं का बलात्कार किया। विद्रोहियों को नाटो का समर्थन था क्योंकि वे दोनों गद्दाफी को बाहर करना चाहते थे। यह ऑपरेशन लीबिया के पूर्ण विनाश और अक्टूबर में गद्दाफी की मौत के साथ समाप्त हुआ।
संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में नाटो भी सीरिया को नष्ट करना चाहता था क्योंकि बशर अल-असद के रूस के साथ घनिष्ठ व्यापार और सैन्य संबंध थे, जो संयुक्त राज्य अमेरिका का लंबे समय से दुश्मन था, और मजबूत रूसी समर्थन के कारण सीरिया बच गया। संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन ने यह साबित करने की भी कोशिश की है कि सीरिया ने विद्रोहियों के खिलाफ रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया है, और सऊदी अरब के इंटेलिजेंस मंत्री बंदर बिन सुल्तान ने तटस्थ रहने के लिए पुतिन से मुलाकात की है लेकिन पुतिन ने धमकी दी थी कि अगर संयुक्त राज्य अमेरिका ने सीरिया पर आक्रमण किया तो मैं सऊदी अरब पर हमला कर दूंगा। उसने एक निवारक के रूप में कार्य किया और सीरिया को विनाश से बचाया।
मार्च 2003 में इराक पर नाटो के आक्रमण से पहले, 3 मिलियन लोगों ने फरवरी में युद्ध का विरोध किया, और दुनिया भर में 36 मिलियन लोगों ने अमेरिकी युद्ध उन्माद के खिलाफ 3,000 विरोध प्रदर्शन किए, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक की भी नहीं सुनी और इराक को तबाह करके सद्दाम को मार डाला।
अब जबकि विश्व मीडिया पश्चिम के हाथों की कठपुतली है, वह पुतिन पर चौतरफा हमला करेगा, उन्हें ड्रैकुला, द डेविल कहेगा और मशहूर हस्तियां, अभिनेताओं, खिलाड़ी, राजनेता जो मध्य पूर्व में नाटो के मौत और तबाही के खेल पर खामोश थे, अब रुसी बर्बरता की निंदा करेंगे। और संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो के सदस्यों को शांति कार्यकर्ताओं के रूप में पेश किया जाए, जिन्होंने अफगानिस्तान, इराक और लीबिया में लाखों निर्दोष लोगों को मार डाला है, और आतंकवादी संगठन आईएसआईएस का समर्थन किया है, जिसे पुतिन ने उस समय "जिगर खाने वाले" कहा था जब ओबामा ने बशर अल-असद के खिलाफ उनका समर्थन मांगने के लिए पुतिन से मुलाकात की थी।
युद्ध का समर्थन नहीं किया जा सकता है और यूक्रेन में पुतिन के फौजी मुहिम जुई को उचित नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि इसके परिणामस्वरूप मृत्यु और विनाश होगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या पुतिन को अमेरिका और नाटो को यूरेशिया में भी मौत और तबाही का वही खेल खेलने दिया जाना चाहिए जो उन्होंने मध्य पूर्व, अफगानिस्तान और अफ्रीका में खेला है?
English Article: Russian Invasion of Ukraine Has Lessons for Muslim
Countries
Urdu Article: Russian Invasion of Ukraine Has Lessons for Muslim
Countries یوکرین
پر روسی حملہ مسلم ممالک کے لیے سبق آموز ہے
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