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Hindi Section ( 20 Sept 2022, NewAgeIslam.Com)

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Nationalism and Religiosity राष्ट्रवाद और धार्मिकता

इम्तेयाज़ खान, न्यू एज इस्लाम

20 सितंबर 2022

जब ऐसे किसी विषय पर बातें की जाती हैं तो हमें देश और धर्म का एहसास होता है अर्थात कोई देश के बारे में बाते करना चाहता है और साथ में धर्म के बारे में। ये एक अजीब विडंबना बन चुकी है कि भारत में लोगों से देश के बारे में बात करो तो उन्हें वहाँ धर्म का बोध होता है। हालाँकि भारत की आज़ादी के 75 सालो में ये फर्क कभी महसूस नहीं किया गया क्योंकि देश धर्म का प्रतीक कभी नहीं रहा। लेकिन आज कुछ राजनीतिक पार्टियों में ये कोशिश की जा रही है की देश को उसके बसने वाली बहुसंख्यक आबादी के धर्म विशेष के तौर पर जाना जाए।

हालाँकि ये कोई नया ट्रेंड नहीं है। मिडिल ईस्ट के देशों ने इसी सोच को कायम किया है। वैसे मैं आपको बताता चलूँ कि भारत को इन 75 सालों में जिस रूलर पार्टी ने देश का नेतृत्व किया उसने इस तरह तो नहीं किया लेकिन कहते हैं कि कान को उलटे तरीके से पकड़ना, बिलकुल सही समझे, जी हाँ उस पार्टी ने ऐसा ही किया अर्थात उसने देश को वोटों में विभाजित करके रखा अर्थात हिन्दू धर्म में वर्ण भेद शुरू से रहे हैं जिसका सहारा वोट बैंक राजनीती में खूब किया गया। भारत में हिन्दुओं को जाति के हिसाब से विभाजित कर दिया गया। ये बहुत ही बुरा तजुर्बा था जहां निम्न वर्ग को दलित या अनुसूचित जाती का समझा जाता था और उनके विकास के लिए Reservation का प्रावधान है। ताकि उनके वोट सीधे उस पार्टी को मिलें इसी तरह कुछ मध्य वर्ग की जातियों को अन्य पिछड़ी जाती (OBC) का दर्जा दिया गया। इस तरह धर्म के वर्ण के अनुसार उन्हें कई वर्गो में विभाजित कर उनके उत्थान के लिए सरकार काम करने लगी।

देखने से तो ऐसा लग रहा था की देश के विकास के लिए निचले तबके को ऊपर उठाने की कोशिश की जा रही है लेकिन हो कुछ और ही रहा था। मै इस तरह के प्रयोग का विरोध करता हूँ। ये सरासर गलत तरीके थे। पूरे भारत में इंसानों को उनके आय के साधन और योग्यता के अनुसार रिजर्वेशन मिलना चाहिए और ये बात बुद्धिजीवियों के बीच ज़्यादा तर्क संगत समझी जाती है चूँकि सरकार को आवाम से वोट उगाना था, जिसके चलते उन राजनीतिक पार्टियों ने देश का आंतरिक विभाजन अपने निजी फायदों के लिए किया।

समय समय पर अल्पसंख्यक समुदाय को जिसमे साक्षरता का अभाव था उनकी खानापूर्ति के लिए मदरसों और कब्रिस्तान के लिए जमीने मुहैया करा दी जाती थीं। वैसे उस समाज के लिए इतना बहुत था उन्हें वोट देने के लिए। इसी तरह समाज के विकास के नाम पर राजनीतिक फायदे हासिल कर सत्ता पर काबिज़ रहने की दूरदर्शी चाहत ने समाज में कई विकार पैदा कर दिए ।

जब दूसरी राजनीतिक पार्टिया सत्ता में आईं तो उसने सीधे ही इस काम को करना उचित समझा। उन्हें ये लगता है कि जहा 80 % आबादी एक धर्म विशेष से है तो हम उन अल्पसंख्यक समुदाय को या उनके वोट को क्यों महत्त्व दें। जब इस सोच ने पूरे मुल्क में पैर पसारना शुरू किया तो समाज में लोकतंत्र और धर्म निरपेक्ष सिर्फ शब्द बन कर रह गए। इस चिंता की एक घटना पेश करता हूँ। मेरे एक सहयोगी ने एशिया कप में पाकिस्तान को श्रीलंका द्वारा हराए जाने पर श्रीलंका की टीम को धन्यवाद अपने whatsapp स्टेटस के माध्यम से कहा और उस वाक्य के नीचे जय श्रीरामलिखा। मेरे सवाल पूछने पर कि आपने जय भारत की जगह जय श्रीराम क्यों लिखा? उन्होंने बहुत सरलता से जवाब दिया कि आप को क्यों मिर्ची लग रही है। मैंने कहा की आप राष्ट्रवाद को धर्म से चिन्हित नहीं कर सकते। ये लोकतंत्र की हत्या है लेकिन वो नहीं समझे और कहा की लोकतंत्र को हम अपने निजी जीवन में जीते हैं। ये बात सही है लोकतंत्र एक आज़ादी है जो हर इंसान को अपने तौर पर जो सही लगता है उसे करने और उसे कहने की। लेकिन क्या आप इसे सही समझते है कि जहां देश की विजय की ख़ुशी को धार्मिक संवेदनाओ से व्यक्त किया जाये।

देश की जीत को देश प्रेम की भावनाओ से ओत प्रोत होना चाहिए, वहाँ धर्म और राजनीती की संवेदनाओ ने जगह ले लिया है। ये एक ज़हर है जिसमे देश साँस ले रहा है। इस तरह की सोच नयी पीढ़ी को मज़हब और मुल्क में फर्क करने नहीं दे पाएगी। मज़हब एक निजी मामला या भावना है जिसका संबंध आपकी आस्था से होता है। आज देश में कुछ राजीनीतिक पार्टियों ने पिछली पार्टियों के नक़्शे कदम पर चलते हुए देश में आंतरिक विभाजन करा रही है जो 1947 में हुआ था वैसा ही कुछ अब हर गाँव, शहर और राज्यों में होने जा रहा है।

देश और देश के लोगों की सेवा धर्मो में सर्वोपरि तौर पर बताया गया लेकिन देश प्रेम की आड़ में देश में जहर के बीज बोए जा रहे हैं। देश प्रेम की भावना, जाति और धर्म से और धर्म की परिकल्पना से हमेशा ऊँची रही है और होना भी चाहिए। राजनीतिक पार्टियों का उद्देश्य देश और देश के लोगों के विकास के लिए बिना स्वार्थ के होना चाहिए और इस सोच से होना चाहिए की भगवान या खुदा उनके कामों को देख रहे हैं। जहां कोई रोड, स्कूल, अस्पताल या पुल बने तो वो दशकों तक देश का गौरव बने। आज हमें ऐसी सरकार चाहिए जो भगवान से डरे और अपने कर्तव्यों को पूजा की तरह करे।

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