अहमद फौजान अदीब
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
7 अप्रैल, 2022
अब्बासी दौरे हुकूमत के आखरी दौर में एक वक्त ऐसा आया कि मुसलमानों की दारुल खिलाफा (मुस्लिम दौरे हुकूमत का दारुल खिलाफा) बगदाद में हर दुसरे दिन मुनाजरा (बहस) करने लगे। जल्द ही वह वक्त भी आया जब एक ही दिन बगदाद के चार अलग अलग जगहों पर अलग अलग जलसे होने लगे। पहला तबसरा इस अहम बात पर था कि एक समय में कितने फरिश्ते सुई के नोक पर बैठ सकते हैं? दूसरा मुनाज़रा इस अहम बिंदु पर था कि शाएरी हलाल है या हराम? तीसरे फरीक में यह झगड़ा चल रहा था कि मिस्वाक का शरई साइज़ क्या होना चाहिए? एक गिरोह कहता था कि बालिश्त से कम नहीं होना चाहिए और दूसरे गिरोह का ख्याल था कि बालिश्त से छोटी मिस्वाक भी जायज़ है। यह बहस उस वक्त जारी थी जब हलाकू खान की तातारी फ़ौज बगदाद की गलियों में घुस आई और सब को तबाह कर दिया। मिस्वाक वाले मिस्वाक की लम्बाई नापते रह गए, सुई के नोक पर फरिश्तों की गिनती करने वालों की खोपड़ियों के मीनार बन गए, जिनका शुमार भी संभव नहीं था। कव्वे के गी=गोश्त पर बहस करने वालों की लाशें कव्वे खा रहे थे। आज हलाकू खान को बगदाद को तबाह किये सैंकड़ों साल हो गए हैं, लेकिन मुसलमानों ने उस इतिहास से थोड़ा सा सबक भी नहीं सीखा है। आज हम हालिया मुसलमान सोशल मिडिया पर या फिर अपनी मजलिसों, जुलूसों और मस्जिदों के मेम्बरों से वही काम कर रहे हैं कि दाढ़ी की लम्बाई कितनी होनी चाहिए या पाजामा की लम्बाई टखनों से नीचे या उसके ऊपर कितनी होनी चाहिए। क़व्वाली और मुशाएरे करना हमारे मज़हबी फरोग का हिस्सा बनना शुरू हो गया है। हमारे फिरका और मस्लकों के अलमबरदार सिर्फ और सिर्फ अपने अपने फिरकों को जन्नत में ले जाने का दावा कर रहे हैं। दूसरी तरफ मौजूदा दौर का हलाकू खान एक एक कर के मुस्लिम देशों को तबाह करता हुआ आगे बढ़ रहा है। अफगानिस्तान, लीबिया, ईराक के बाद शामी बच्चों की मस्ख शुदा लाशें गिनने वाला कोई नहीं। कव्वे आदम की नस्ल के जवान और बूढ़े लोगों की लाशें खा रहे हैं और हव्वा की बेटियाँ अपने ईमान को छिपाने के लिए उम्मत की चादर का गोशा ढूंढ रही हैं। हाँ, और हम खामोशी से अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं। इल्म हासिल करो, इतिहास से सबक लो वरना भूली हुई तारीख बन जाओगे।
Urdu
Article: The Muslims Must Learn the Lessons from the History
of Baghdad مسلمان
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