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Hindi Section ( 7 Jul 2014, NewAgeIslam.Com)

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Final Shape of Qadri and Imran's Revolutions क़ादरी और इमरान के इंक़लाब का अंतिम रूप

 

 

 

 

मुजाहिद हुसैन, न्यु एज इस्लाम

6 जुलाई, 2014

राष्ट्रीय राजनीतिक क्षितिज पर कुछ ठहराव महसूस होने लगा है क्योंकि अल्लामा ताहिरुल क़ादरी और इमरान खान सरकार को कुछ हफ्तों की मोहलत देने पर तैयार हैं। ताहिरुल क़ादरी निश्चित रूप से रमज़ान की व्यस्तता और रमज़ान के सम्मान के मद्देनज़र किसी प्रकार के उलझाव से परहेज़ कर रहे हैं जबकि इमरान खान अपने अंतिम कदम के लिए स्वतंत्रता दिवस का चयन कर चुके हैं। ऐसी इच्छा रखने वालों के लिए जो इस्लामाबाद को मियां बंधुओं से खाली देखना चाहते हैं उन्हें अपरिहार्य रूप से कुछ दिन इंतेज़ार करना पड़ेगा। मियां बंधुओं भी रायवण्ड में जमा हैं और आज मुस्लिम लीग के अंदर पड़ जाने वाली दरार को ठीक करने के लिए गृहमंत्री चौधरी निसार अली खान के गिले शिकवे दूर करने में व्यस्त हैं।

उम्मीद है कि मियां बंधु चौधरी निसार अली को मना लेंगे और मुस्लिम लीग के भीतर जारी टूट फूट की प्रक्रिया को आगे बढ़ने से रोक देंगे। लेकिन इन सभी कोशिशों से ताहिरुल क़ादरी और इमरान खान के रूप में सरकार के सिर पर मँडराने वाले तूफ़ानों के तेवर बदलने में उन्हें कोई मदद नहीं मिलेगी। अभी से ये कहना मुश्किल है कि ताहिरुल क़ादरी और इमरान खान किस हद तक सरकार के लिए खतरनाक होंगे लेकिन ये तय है कि दोनों अपने अपने वार को यथासंभव असरदार बनाने के लिए भरपूर प्रयास कर रहे हैं।

ताहिरुल क़ादरी अपने ऐसे सभी साथियों को जो विदेशों में रहते हैं पाकिस्तान आने और इंक़लाब में भाग लेने का हुक्म दे चुके हैं जबकि इमरान खान देश में बड़े सम्मेलनों का सफल परीक्षण करने का अनुभव रखते हैं और उनसे उम्मीद की जा रही है कि वो इस्लामाबाद में एक बड़ा सम्मेलन कर लेने की पूरी क्षमता रखते हैं। मिसाल के तौर पर दोनों नेता अगर अपने अपने सम्मेलनों को एक निश्चित सीमा तक ले जाते हैं और उन्हें वो शक्ति हासिल हो जाती है जिसके लिए वो बेताब हैं तो इंक़लाब को लाना कैसे तय होगा, इसके बारे में अभी तक दोनों खामोश हैं।

इसमें कोई शक नहीं है कि दोनों लीडरों को विश्वास है कि जब उनके सम्मेलन सत्ता में मौजूद लोगों के परिवर्तन के लिए अपरिहार्य स्थिति पैदा कर देंगे तो देश की सेना हरकत में आएगी और इस्लामाबाद का नियंत्रण अपने हाथ में ले लेगी।  प्रधानमंत्री को सत्ता से हटा कर कहीं सुरक्षित स्थान पर नज़रबंद कर दिया जाएगा और सरकारी टेलीविज़न पर सेना प्रमुख के भाषण के लिए घोषणाएं शुरू हो जाएंगी। पूरे देश में इमरजेंसी लागू कर दी जाएगी आदि, इस तरह की स्थिति को अतीत में हम कई बार देख चुके हैं। ऐसे ही सपने हमारे अक्सर लीडर दिन रात देखते पाए जाते हैं और मज़े की बात ये है कि पाकिस्तान में ऐसा हो भी जाता है। लेकिन देखना ये है कि दोनों में से कोई एक लीडर भी ऐसा इंक़लाब लाने की क्षमता रखता है? क्या ऐसे किसी इंक़लाब का रास्ता रोकने के लिए कोई दूसरी शक्ति मौजूद है?

देखना ये है कि अल्लामा ताहिरुल क़ादरी किस हद तक 'इंक़लाब' के लिए आवश्यक शक्ति का प्रदर्शन कर पाते हैं। ताहिरुल क़ादरी साहब के इंक़लाब के लिए सबसे बड़ा खतरा पंजाब या संघीय सरकार से ज़्यादा बदले की आग में जलते हुए घायल आतंकवादी हैं जो वज़ीरिस्तान आपरेशन का बदला लेने के लिए किसी सार्वजनिक सभा को निशाना बना सकते हैं।  अल्लामा ताहिरुल क़ादरी ऐसे उग्रवादियों के बारे में सख्त रुख रखते हैं और कुछ समय पहले आत्मघाती हमलों के बारे में एक तार्किक फतवा जारी कर चुके हैं, जिसके बाद आतंकवादियों की उनके लिए किसी प्रकार की रिआयत बाक़ी नहीं। आतंकवादियों की अल्लामा ताहिरुल क़ादरी से नाराज़गी की दूसरी बड़ी वजह उनका पाकिस्तान की सेना की तरफ स्पष्ट झुकाव है और ताहिरुल क़ादरी की पार्टी पाकिस्तान अवामी तहरीक एकमात्र पार्टी है जिसने उत्तरी वज़ीरिस्तान में जारी आपरेशन ज़र्बे अज़्ब के पक्ष में बाकायदा रैलियां आयोजित की हैं।

कुछ ऐसी सूचनाएं भी हैं कि आतंकवादी अल्लामा ताहिरुल क़ादरी के केंद्रीय कार्यालय को कई बार धमकियाँ दे चुके हैं और ताहिरुल क़ादरी आतंकवादियों का एक बड़ा लक्ष्य हैं। ताहिरुल क़ादरी से आतंकियों की दुश्मनी की एक और वजह जो थोड़ा गंभीर है और भविष्य में इसका रूप और भी घातक हो सकता है, वो है अल्लामा ताहिरुल क़ादरी से स्पष्ट रूप से मसलकी (पंथीय) मतभेद। इस मतभेद की एक दूसरी घातक और काफी हद तक वैसा रूप देखने के लिए कराची में सुन्नी तहरीक के साथ किया जाने वाले व्यवहार को देखा जा सकता है कि किस तरह उग्रवादियों ने सुन्नी तहरीक के नेतृत्व को चुन चुन कर खत्म किया है और आज भी उनके लिए किस तरह के खतरे मौजूद हैं।

अगर पंथीय मतभेद की ये स्थिति अल्लामा ताहिरुल क़ादरी और उनकी पार्टी की ओर रुख कर लेती है तो कहा जा सकता है कि राज्य को और अधिक खतरनाक स्थिति का सामना करना पड़ेगा। कहा जा सकता है कि ताहिरुल क़ादरी और उनकी पार्टी के लिए पाकिस्तान के सशस्त्र उग्रवादियों में कोई रिआयत नहीं है और विशेष रूप से उस वक्त जब ताहिरुल क़ादरी किसी तरह की राजनीतिक शक्ति हासिल कर लेते हैं तो ये दुश्मनी और ज्यादा खतरनाक और घातक साबित हो सकती है।  इसलिए ये कहना आसान है कि ताहिरुल क़ादरी को किसी प्रकार के सफल इंक़लाब से पहले कठिन परिस्थितियों का सामना भी करना पड़ सकता है, जिसकी सभी बारीकियाँ हमारे सामने हैं।

बाक़ी रहे हज़रत इमरान खान और चौदह अगस्त को इस्लामाबाद के दरो दीवार को हिला देने वाली उनकी संभावित सुनामी तो इसके बारे में कई अंदाज़े लगाए जा रहे हैं। अगर सरकार इमरान खान के सामने घुटने टेकते हुए चार चिन्हित निर्वाचन क्षेत्रों के मतों की पारदर्शी तरीके से जांच करवाने पर सहमत हो जाती है तो इमरान खान कह चुके हैं कि वो चौदह अगस्त की सुनामी की कॉल को वापस ले लेंगे। ज़ाहिर है सरकार किसी भी बड़े नुकसान से बचने के लिए इन क्षेत्रों की फिर से पारदर्शी गिनती और दिये गये वोटों पर अंगूठे के निशान आदि की जाँच का आयोजन कर सकती है और अगर इमरान खान के इन चार क्षेत्रों के बारे में लगाए गए आरोप सच साबित होते हैं तो निश्चित रूप से सत्तारूढ़ दल की चार सीटें खत्म हो जाएंगी और इमरान खान को सरकार पर नैतिक बढ़त हासिल हो जायेगी।

लेकिन इसके बाद क्या होगा? खुद अभी तक इमरान खान के पास इस सवाल का जवाब नहीं है। ज़ाहिर है इस तरह की  स्थिति के बाद इमरान खान बहुत शरीफों वाली मांग करेंगे कि सरकार इस्तीफा दे और मध्यावधि चुनावों की घोषणा की जाए। क्या सरकार ऐसी किसी शर्मिंदगी के बाद इस्तीफा दे देगी? एक आम धारणा ये है कि ऐसा नहीं होगा और इमरान खान नई तैयारी के साथ अगला वार करने का इरादा ज़ाहिर करेंगे। उनका अगला वार कितना प्रभावी होगा और वो सुनामी की ही कॉल देंगे या ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह की सरकार को गिरा देंगे, इमरान खान एक स्थायी संकट की स्थिति में केंद्र सरकार के सिर पर सवार रहेंगे। ये एक ऐसी स्थिति है, जिसके बारे में कोई अंतिम निष्कर्ष निकालना आसान नहीं है, लेकिन इतना ज़रूर है कि राज्य के नुकसान के विवरण में वृद्धि होती रहेगी और मामले पहले से कहीं अधिक बिगड़ जाएंगे।

मुजाहिद हुसैन ब्रसेल्स (Brussels) में न्यु एज इस्लाम के ब्युरो चीफ हैं। वो हाल ही में लिखी "पंजाबी तालिबान" सहित नौ पुस्तकों के लेखक हैं। वो लगभग दो दशकों से इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट के तौर पर मशहूर अखबारों में लिख रहे हैं। उनके लेख पाकिस्तान के राजनीतिक और सामाजिक अस्तित्व, और इसके अपने गठन के फौरन बाद से ही मुश्किल दौर से गुजरने से सम्बंधित क्षेत्रों को व्यापक रुप से शामिल करते हैं। हाल के वर्षों में स्थानीय,क्षेत्रीय और वैश्विक आतंकवाद और सुरक्षा से संबंधित मुद्दे इनके अध्ययन के विशेष क्षेत्र रहे है। मुजाहिद हुसैन के पाकिस्तान और विदेशों के संजीदा हल्कों में काफी पाठक हैं। स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग की सोच में विश्वास रखने वाले लेखक मुजाहिद हुसैन, बड़े पैमाने पर तब्कों, देशों और इंसानियत को पेश चुनौतियों का ईमानदाराना तौर पर विश्लेषण पेश करते हैं।

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