डॉक्टर मुहम्मद नजीब क़ासमी , न्यू एज इस्लाम
20 जुलाई, 2021
ईदउल-अजहा की नमाज: ईद उल-अजहा के दिन दो रकाअत नमाज़ जमाअत के साथ अदा करना वाजिब है।ईदउल-अजहा की नमाज़ का वक़्त सूरज के निकलने के बाद से शुरू हो जाता है जो ज़वाल तक रहता है, लेकिन ज़ियादा देर करना उचित नहीं है।ईदुल फित्र और ईदउल-अजहा की नमाज़ में ज़ायद तकबीरें भी कहीं जाती हैं जिन की तादाद में फुक़हा का इख्तिलाफहै, अलबत्ता ज़ायद तकबीरों के कम या ज़्यादा होने की सूरत में उम्मते मुस्लिमा नमाज़ के सही होने पर मुत्तफिक़ है। हज़रत इमाम अबूहनीफाने 6 ज़ायदत कबीरों के क़ौल को इख्तियार किया है।जुमआ की नमाज के लिए आजान और इक़ामत दोनों होती हैं। ईद की नमाज के लिए आजान और इक़ामत दोनों नहीं होती हैं। जुमआ की नमाज के लिए जो शर्तें हैं वही ईद की नमाज के लिए भी हैं, अर्थात् जिन पर नमाजे जुमआ है उन्हीं पर ईद की नमाज भी है। जहाँ जुमआ की नमाज जायज है वहीं ईद की नमाज भी जायज है। जिस तरह जगह-जगह जुमआ की नमाज अदा की जा सकती है उसी तरह ईद की नमाज भी एक ही शहर में विभिन्न स्थानों में ईद की नमाज अदा कर सकते हैं।अगर कोई व्यक्ति ईद की नमाज अदा नहीं कर पा रहा है, तो वह दो दो करके चार रकअत चाशत की पढ़ले। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ीअल्लाहउनहु से रिवायत है कि जो कोई भी ईद की नमाज़ न पढ़ सके, वह चार रकअतें पढ़ले।
नमाजे ईद पढ़ने का तरीका:सबसे पहले नमाज की नीयत करें। नीयत असल में दिल के इरादे का नाम है, जबान से भी कहलें तो बेहतर है कि मैं दो रकाअत वाजिब नमाजे ईद छः जायद तकबीरों के साथ पढ़ता हूं, फिर अल्लाहु अकबर कहकर हाथ बांध लें और सुबहानका अल्लाहुम्मा...पढ़ें।इसके बाद तकबीरे तहरीमा की तरह दोनों हाथों को कानों तक उठाते हुए तीन बार अल्लाहु अकबर कहें। दो तकबीरों के बाद हाथ छोड़ दें और तीसरी तकबीर के बाद हाथ बांध लें। हाथ बांधने के बाद इमाम साहब सूरए फातिहा और सूरत पढ़ें, मुकतदी खामोश रहकर सुनें। इस के बाद पहली रकाअत आम नमाज की तरह पढ़ें।दूसरी रकाअत में इमाम साहब सबसे पहले सूरए फातिहा और सूरत पढ़ें मुकतदी खामोश रहकर सुनें। दूसरी रकाअतमें सूरत पढ़ने के बाद दोनों हाथों को कानों तक उठा कर तीन बार तकबीर कहेंऔर हाथ छोड़ दें। फिर अल्लाहु अकबर कहकर रुकूअ करें और बाकी नमाज आम नमाज की तरह पूरी करें। ईद की नमाज के बाद दुआ मांग सकते हैं लेकिन खुतबा के बाद दुआ मसनून नहीं है।
खुतबाए ईदउल-अजहा:ईदउल-अजहा की नमाज के बाद इमाम का खुतबा पढ़ना सुन्नत है, खुतबा आरम्भ हो जाये तो खामोश बैठकर उसको सुनना चाहिये। लॉकडाउनमें संक्षिप्त नमाज पढ़ाई जाये और खुतबा संक्षेप में दिया जाये। देखकर भी खुतबा पढ़ा जा सकता है। यदि किसी जगह कोई खुतबा नहीं पढ़ सकता है तो खुतबा के बगैर भी नमाज हो जायेगी क्योंकि ईद का खुतबा सुन्नत है फर्ज नहीं। कुरआन करीम की छोटी सूरतें भी खुतबे में पढ़ी जा सकती हैं। जुमआ की तरह दो खुतबे दिये जायें, दोनों खुतबों के बीच थोड़ी देर के लिए ईमाम साहब मिमबर या कुर्सी इत्यादि पर बैठ जायें।
ईद की नमाज के बाद ईद मिलना: ईद की नमाज से फरागत के बाद गले मिलना या मुसाफहा करना ईद की सुन्नत नहीं है और इन दिनों कोरोना वबाई मर्ज भी फैला हुआ है, इसलिए ईद की नमाज से फरागत के बाद गले मिलने या मुसाफहा करने से बचें क्योंकि एहतियाती तदाबीर का एख्तियार करना शरीयते इस्लामिया के मुखालिफ नहीं है।
तकबीरे तशरीक: पहली जिलहिज्जा से प्रत्येक व्यक्ति को तकबीरे तशरीक पढ़ने का विशेष एहतिमाम करना चाहिए। तकबीरे तशरीक के कलमात यह हैं :
اَللہُ اَکْبَر،اَللہُ اَکْبَر،لَااِلہَ اِلَّااللہُ،وَاللہُ اَکْبَر،اَللہُ اَکْبَر،وَلِلہِ الْحَمْد।
9 वीं जिलहिज्जा की फजर से 13 वीं जिलहिज्जा की अस्र तक 23 नमाजों में प्रत्येक फर्ज नमाज के बाद यह तकबीर अवश्य पढ़ें। 9 वीं जिलहिज्जा को रोजा रखने की विशेष फजीलत हदीसों में आई है।
ईद की सुन्नतें: ईद के दिन गुस्ल करना, मिसवाक करना, हसबेइस्तिताअत उमदा कपड़े पहनना, खुशबूलगाना, एक रास्ता से ईदगाह जाना और दूसरे रास्ते से वापस आना और नमाज़ के लिए जाते हुए तकबीर कहना यह सब ईद की सुन्नतों में से हैं।
ईदुज्जुहा की कुर्बानी: कुरआन और हदीस की रौशनी में उलेमाए कराम ने लिखा है कि प्रत्येक इस्तताअत वाले व्यक्ति पर कुर्बानी वाजिब है। एक घर के सभी सदस्यों की ओर से एक कुर्बानी काफी नहीं है बल्कि प्रत्येक इस्तताअत वाले व्यक्ति (जिसके पास तकरीबन 35 हजार रुपये हों) को अपनी ओर से कुर्बानी करनी चाहिए।कोई व्यक्ति एक से अधिक कुर्बानी (नफली) करे तो बेहतर है क्योंकि हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के फरमान के अनुसार कुर्बानी के दिनों में कोई नेक अमल अल्लाह तआला के नजदीक कुर्बानी का खून बहाने से बढ़ कर महबूब और पसंदीदा नहीं। बकरा, बकरी, दुम्बा और भेड़ में एक हिस्सा, जबकि गाय, बैल, भैंस, भैंसा और ऊंट ऊंटनी में 7 व्यक्ति शरीक हो सकते हैं।बकरा या बकरी एक साल जबकि गाय और भैंस 2 साल और ऊंट 5 साल का होना जरूरी है। जिन स्थानों पर सरकार की ओर से गाय की कुर्बानी पर पाबंदी है वहां गाय की कुर्बानी से बचें। 10 जिलहिज्जा से 12 जिलहिज्जा के सुर्यास्त तक दिन-रात में किसी भी समय कुर्बानी की जा सकती है, लेकिन दिन में और पहले दिन करना बेहतर है। हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के घर में खाद्यान्न की अनुपलब्धता के कारण कई कई महीने तक चूल्हा नहीं जलता था, फिर भी आप स० एहतमाम से प्रत्येक वर्ष कुर्बानी किया करते थे। और यह भी कि कुर्बानी के इस्लामिक शआर और वाजिब होने के कारण यथासम्भव प्रयास होनी चाहिये कि कुर्बानी के दिनों में जानवर जबह किया जाये। यदि किसी कारण स्वयं कुर्बानी नहीं कर सकते तो किसी दूसरी जगह करवा दें। और यदि प्रयास के बावजूद कुर्बानी के दिनों में कुर्बानी नहीं की जा सकी तो फिर कुर्बानी की कीमत कुर्बानी की अवधि गुज़रने(व्यतीत होने) के बाद गरीबों में वितरित कर दी जाये। कुर्बानी एक सदका है, जिस प्रकार दूसरे सदके मृतकों की ओर से किये जा सकते हैं उसी प्रकार मृतकों की ओर से नफली कुर्बानी की जा सकती है। हुजूरे अकरम सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम के चचाजाद भाई और दामाद हजरत अली रजी० आप स० की मृत्यु के बाद से पूरी जिंदगी आप स० की ओर से प्रत्येक वर्ष कुर्बानी किया करते थे। कुर्बानी का जानवर बेऐब और तंदुरुस्त होना चाहिये। शहरों में ईद की नमाज के बाद ही कुर्बानी करें, अलबत्ता देहात जहां ईद की नमाज नहीं होती है वहां कुर्बानी सुबह होने के बाद कभी भी की जा सकती है। कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से करना जरूरी नहीं है, लेकिन करलें तो बेहतर है: एक अपने घर के लिए, दूसरा संबंधियों और तीसरा गरीबों के लिए। इस्लाम धर्म में सफाई और तहारत की खास शिक्षा दी गई हैं, लिहाजा इस अवसर पर सफाई सुथराई का मुकम्मल एहतमाम करें और कुर्बानी के बचे हुए फुज़्लात(चीजों) को ऐसी जगह ना डालें जिस से किसी को तकलीफ हो।
कुर्बानी का तरीका: जानवर को अच्छे तरीके से बायें पहलू पर किबला रुख़ लिटा कर "बिस्मिल्लाह, अल्लाहु अकबर" कहते हुए तेज़ छुरी से जानवर को इस तरह ज़बह करें कि चार रगें कट जायें। "हुलकूम":सांस की नली, "मरई": भोजन की नली, "वदजैन": रक्त की दो रगें, जिनको शहरग कहा जाता है। इन चार रगों में से यदि तीन रगें भी कट गईं तब भी ज़बीहा हलाल हो जायेगा। ज़बहके समय गर्दन को पूरा काट कर अलग ना किया जाये।जानवर को ज़बहकरने के बाद थोड़ी देर छोड़ दें ताकि सारा खून बाहर निकल जाये, फिर खाल उतारें। जबह करने के पहले यह दुआ पढ़ लें:
إِنِّیْ وَجَّهْتُ وَجْهِیَ لِلَّذِیْ فَطَرَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ حَنِیْفاً وَمَا أَنَاْ مِنَ الْمُشْرِکِیْنَ۔ إِنَّ صَلاَتِیْ وَنُسُکِیْ وَمَحْیَایَ وَمَمَاتِیْ لِلہِ رَبِّ الْعَالَمِیْنَ۔ لاَ شَرِیْکَ لَہُ وَبِذَلِکَ أُمِرْتُ وَأَنَا أَوَّلُ الْمُسْلِمِیْنَ
ज़बहकरने के बाद यह दुआ पढ़ें:
اَللّٰهُمَّ تَقَبَّلْ مِنِّیْ کَمَا تَقَبَّلْتَ مِنْ خَلِيْلِکَ اِبْرَاهِيْمَ عَلَيْہِ السَّلَام وَحَبِيْبِکَ مُحَمَّد صَلَّی اللہُ عَلَيْہِ وَسَلَّم
यदि कुर्बानी किसी दूसरे की ओर से करें तो "मिन्नी" की बजाय "मिन" कहकर उनका नाम लें। और यदि कुर्बानी के जानवर में 7 शरीक हों तो उन सातों के नाम लिये जायें।
अनुवादक - जैनुल आबेदीन, कटिहार
-------
English Article: How To Offer Eid Prayer And Make Sacrifice
Urdu Article: How to Offer Eid Prayer and Make Sacrifice نمازِ عیدالاضحی پڑھنے اور
قربانی کرنے کا طریقہ
URL:
New Age Islam, Islam Online, Islamic
Website, African
Muslim News, Arab
World News, South
Asia News, Indian
Muslim News, World
Muslim News, Women
in Islam, Islamic
Feminism, Arab
Women, Women
In Arab, Islamophobia
in America, Muslim
Women in West, Islam
Women and Feminism