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Hindi Section ( 8 May 2021, NewAgeIslam.Com)

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Importance of Knowledge in Islam इस्लाम में इल्म की अहमियत

ऐमन रियाज़, न्यू एज इस्लाम

उर्दू से अनुवाद , न्यू एज इस्लाम

२८ सितंबर, २०१२

हर एक साल में एक महीने, दुनिया के प्रदुषण से दूर हो कर और अपने अहलो अयाल से किनारा कश हो कर एक गार में चिंतन में मुनहमिक (लीन) होने की उनकी मश्क थी। उनकी खलवत (अकेलापन) गारे हिरा थी, जो मक्का के करीब स्थित एक रेगिस्तान का पहाड़ है, और उनका चुना हुआ महीना रमज़ान था, जो कि तपिश का महीना था, तब वह उस समय एक ला अदरीया (नहीं जानने वाले) थे। जब उनकी आयु चालीस वर्ष हो गई तो, इस पुरसुकून महीने के आखीर में एक रात आप पर वही का नुज़ूल हुआ। आप गहरी नींद या वज्द के आलम में थे जब आप ने एक आवाज़ सुनी कि कोई कहने वाला यह कह रहा है: पढ़ो!आपने फरमाया: मैं नहीं पढ़ सकता। दुबारा आवाज़ आई: पढ़ो!आपने फरमाया: मैं नहीं पढ़ सकता तीसरी बार आवाज़ अधिक हौलनाक थी हुक्म हुआ पढ़ोआपने फरमाया: मैं क्या पढ़ सकता हूँ?” आवाज़ आई:

अपने परवरदिगार का नाम ले कर पढ़ो जिसने (आलम को) पैदा किया

जिसने इंसान को बस्ता खून से बनाया

पढ़ो और तुम्हारा परवरदिगार बड़ा करीम है

जिसने कलम के जरिये इल्म सिखाया

इंसान को वह बातें सिखाई जिसका उसे इल्म नहीं था

वह शख्स मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम थे जो दुनिया में सबसे अधिक प्रभावी और रोबदार हैं। वह ऐसे नबी थे जिन्होंने किसी इंसान से शिक्षा प्राप्त नहीं की मगर जो किताब उन पर उतरी उसका अर्थ पढ़नाहै। आयतों के संदर्भ हमें बताते हैं कि हमें उस समय तक कोशिश करनी चाहिए जब तक कि उद्देश्य हासिल नहीं हो जाए। यही वजह है कि बार बार असफल होने के बावजूद, मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पढ़नेकी कोशिश की और वह इसमें सफल हो गए। इस्लाम का सबसे पहला संदेश जो मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल हुआ, उसमें नमाज़ की अदायगी का आदेश नहीं दिया गया था, और ना ही रमज़ान के रोज़े रखने, ज़कात देने और हज करने का आदेश दिया गया था, बल्कि पढ़ने और इल्म हासिल करने का आदेश दिया गया था, केवल धार्मिक या इस्लामी उलूम हासिल करने का नहीं बल्कि उलूम व फुनुन हासिल करने का मुतलक आदेश दिया गया था। इस्लाम में सारे मर्द और औरतों पर इल्म हासिल करना आवश्यक है। ऐसा कहा जाता है कि कुरआन की एक आयत का इल्म सोने के पहाड़ के बराबर है!

कुरआन विभिन्न जगहों पर यह कहता है कि जिनके पास इल्म है वह जाहिलों के बराबर नहीं हो सकते ९:३९ में अल्लाह पाक मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इस बात का एलान करने का आदेश देता है कि:

भला जो लोग इल्म रखते हैं और जो नहीं रखते दोनों बराबर हो सकते हैं? (और) नसीहत तो वह कुबूल करते हैं जो अकलमंद हैं

२:२६९ में अल्लाह पाक इरशाद फरमाता है:

और जिसको दानाई (इल्म) मिली बेशक उनको बड़ी नेमत मिली।

शैतान इसलिए जन्नत से निकाल दिया गया क्योंकि वह इल्म की अहमियत नहीं समझता था। जब अल्लाह ने उसे आदम के सामने सजदा करने को कहा तो उसने सजदा नहीं किया, क्योंकि उसने यह दलील दी कि उसकी पैदाइश आग से हुई है, जिसकी खसूसियत उपर की तरफ जाना है, और आदम की पैदाइश मिटटी से हुई है जिसकी खसलत ज़मीन की तरफ आना है।

इस बिना पर उसने सोचा कि वह आदम से अफज़ल है। लेकिन चूँकि अल्लाह ने आदम को सारी चीजों के नाम सिखा कर आदम का मर्तबा बुलंद कर दिया था।

२:३१-३४ में अल्लाह पाक ने इरशाद फरमाया:

और उसने आदम को सब (चीजों के) नाम सिखाए फिर उनको फरिश्तों के सामने किया और फरमाया कि अगर तुम सच्चे हो तो मुझे इनके नाम बताओ। उन्होंने कहा, तू पाक है। जितना इल्म तूने हमें बख्शा है, उसके सिवा हमें कुछ मालुम नहीं। बेशक तू दाना (और) हिकमत वाला है। (तब) खुदा ने (आदम को) हुक्म दिया कि आदम! तुम इनको उन (चीजों) के नाम बताओ। जब उन्होंने (आदम को) आदेश दिया कि आदम! तुम उनको इन (चीजों) के नाम बताओ। जब उन्होंने उनको उनके नाम बताए तो (फरिश्तों से) फरमाया क्यों मैंने तुमसे नहीं कहा था कि मैं आसमानों और ज़मीन की (सब) पोशीदा बातें जानता हूँ और जो तुम ज़ाहिर करते हो और जो पोशीदा करते हो (सब) मुझ को पता है। और जब हमने फरिश्तों को आदेश दिया कि आदम के आगे सजदा करो तो वह सजदे में गिर पड़े मगर शैतान ने इनकार किया और अहंकार में आकर काफिर बन गया।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया तलबुल इल्मी फरिजतू अला कुल्ले मुस्लिमइस का अर्थ होता है कि इल्म हासिल करना तमाम मुसलमानों पर लाज़मी है चाहे वह मर्द हों या औरत

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमेशा यह तिलावत करते थे अल्लाहुम्मा रबीज्ज़िद्नी इल्माजिसका अर्थ यह होता है कि ऐ मेरे रब मेरे इल्म में इज़ाफा कर

एक ऐसे मज़हब में जिसने इल्म हासिल करने को लाजमी करार दिया है सबसे अफ़सोस नाक बात यह है कि, इसके कुछ मानने वाले औरतों को इस हक़ और जिम्मेदारी से लाभान्वित नहीं होने देना चाहते।

तालिबान ने उस स्कूल को बमों से उड़ा दिया जिसमें औरतों को शिक्षा दी जाती थी। अफगानिस्तान में जब तालिबान सत्ता में थे, औरतें अवाम में बुर्का पहनने पर मजबूर थीं, इसलिए कि तालिबान के एक प्रवक्ता के अनुसार औरतों का चेहरा फसाद की जड़ है।उन्हें काम करने की इजाज़त नहीं थी, आठ साल की उमर के बाद उन्हें शिक्षित होने की इजाज़त नहीं थी। तालिबान के आतिश जन नुमाइंदों के जरिये स्कूली लड़कियों, औरतों, उस्तादों और स्कूलों पर लगातार तेजाबी हमले किये जा रहे हैं। यूनीसेफ (UNICEF) की एक रिपोर्ट में यह उल्लेखित है कि साल २००७ में अफगानिस्तान के अन्दर स्कूल से संबंधित हमलों में २३६ लोग मारे गए। अगस्त २०१० में एक रिपोर्ट में खून की जांच के जरिये यह खुलासा किया गया था कि पिछले दो सालों में पुरे देश में रहस्यमई रूप से, लड़कियों के स्कूल में, ज़बरदस्त ज़हरीली गैस की वजह से बड़े पैमाने पर बीमारियाँ फैली हैं।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि: अगर कोई इल्म की तलाश में सफर करता है तो अल्लाह उसकी वजह से उसे जन्नत के रास्तों का मुसाफिर बना देता है।

इसलिए अगर हम वास्तव में जन्नत में दाखिल होना चाहते हैं तो हमें नेकी और बदी में अंतर करना होगा, और हम ऐसा उसी समय कर सकते हैं जब हमें नेकी और बदी का इल्म हो जब तक हम यह ना जानें कि क्या नेकी है और क्या बदी, उस समय तक हम सहीह फैसला नहीं ले सकते। जितना अधिक संभव हो सके हमें उतना इल्म अवश्य हासिल करना चाहिए, लेकिन हमें हमेशा खाकसारी को चुनना चाहिए। हम जितना अधिक इल्म बांटेंगे, उतना ही अधिक सीखेंगे, और हम जितना अधिक सीखेंगे हमें अपनी अज्ञानता का एहसास उतना ही होगा। इसलिए साहिबे नज़र बने और हमेशा तवाज़ो (झुकने) को चुनें।

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