सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
12 जनवरी 2022
इस्लाम में बीमारी खुद का हिसाब करने का मौक़ा और एक फ़िक्र का
लम्हा है
प्रमुख बिंदु:
हदीसें मर्दों को बीमारों की अयादत करने का आदेश देती हैं।
बीमार पड़ने पर नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुस्लिम और
गैर मुस्लिम दोनों की अयादत फरमाई।
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बीमार यहूदी औरत की अयादत
के लिए तशरीफ ले गए जो हर रोज़ आपके रास्ते में कूड़ा करकट फेंकती थी।
बिमारी इंसान को उसके शरीर की कमजोरी और नातवानी की याद दिलाती
है।
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हर इंसान बीमार पड़ता है
कुरआन पड़ोसियों, मुसाफिरों, बीमारों और जरुरतमंदों के साथ हमदर्दी और दस्तगीरी की शिक्षा देता है। बहुत सी हदीसें ऐसी हैं जो मुसलमानों को आदेश देती हैं कि वह बीमारों की अयादत करें और उनकी देख भाल करें चाहे बिमारी आम ही क्यों न हो। हदीसों में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने दुश्मनों की भी अयादत फरमाया करते। बीमार पड़ने पर नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुसलमानों और गैर मुस्लिमों दोनों की अयादत फरमाई है और बीमारों की अयादत की अहमियत पर ज़ोर दिया। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी का एक मशहूर घटना है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक यहूदी औरत के पास गए जो रोज़ाना नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रास्ते में कूड़ा करकट डाला करती थी। एक दिन जब उसने आपके रास्ते में कूड़ा करकट नहीं डाला तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खैरियत दरियाफ्त की तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बताया गया वह बीमार पड़ चुकी है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस औरत की अयादत फरमाई। इस्लाम के पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस अमल से प्रभावित हो कर वह मुसलमान हो गई।
बीमारों की अयादत की अहमियत पर सहीह बुखारी में एक हदीस है:
अबू मूसा अशअरी रज़ीअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:भूके को खाना खिलाओ और बीमार की अयादत करो चाहे बीमारी जैसी भी हो और गुलामों को आज़ाद करो। (सहीह बुखारी जिल्द 3, हदीस नंबर 374)
बीमार की अयादत की अहमियत पर एक और हदीस इस तरह है:
“हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि जब हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम किसी बीमार की अयादत फरमाते या कोई बीमार आपके सामने लाया जाता तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यह दुआ फरमाते: ऐ अल्लाह! लोगों की बीमारियाँ दूर फरमा और उन्हें सेहत अता फरमा, शिफा कोई और नहीं दे सकता। शिफा केवल तेरे हाथ में है। उन्हें इस तरह शिफा अता फरमा कि कोई बीमारी बाकी न रहे।“ (सहीह बुखारी, जिल्द 3, 634)
इस्लाम में बीमारी खुद का हिसाब करने का मौक़ा और एक फ़िक्र का लम्हा है। बीमारियाँ गंभीर और आम हो सकती हैं। इसलिए जब लोग बीमार होते हैं तो उन्हें मौत याद आती है। बिमारी लोगों को कुदरत की ताकत के सामने उनकी कमजोरी और तवानाई की याद दिलाती है। वह सेहत याब हो सकते हैं और अगर मर्ज़ की पहचान न हो सके या मौजूदा मेडीकल साइंस के मेयार के मुताबिक़ मर्ज़ ला इलाज हो जाए तो मरीज़ की मौत भी हो सकती है। इसलिए, बिमारी लोगों के लिए खुद का हिसाब करने का मौक़ा बन जाती है।
इस्लाम में कमजोरी या बीमारी गुनाहों के कफ्फारा का एक मौक़ा है जब मरीज़ मौत को याद करता है और खुदा से गुनाहों की मुआफी मांगता है।
एक हदीस के मुताबिक़ जब लोग बीमार होते हैं तो उनके गुनाह इस तरह धुल जाते हैं जैसे पतझड़ के मौसम में पत्ते झड़ जाते हैं। बीमारी के दौरान बुखार गुनाहों को मिटाने का कारण बनता है।
बीमार की अयादत करने में भी एक अलग हिकमत है। इससे अयादत करने वाले को इंसानी जिस्म की कमज़ोरी और उसके लिए बीमारियों और मौत के खतरे की भी याद दहानी हो जाती है। इसलिए आने वाला केवल मरीज़ को तसल्ली देता है और समाज के प्रति अपना फर्ज़ अदा करता है, साथ ही वह दूसरों की बीमारी से भी सबक सीखता है। वह सीखता है कि उसे अपनी सेहत का ख्याल रखना चाहिए और अपनी ज़िन्दगी को मामूली नहीं समझना चाहिए। उसे याद रखना चाहिए कि ज़िन्दगी फानी है और सेहत किसी भी समय गिर सकती है। कुरआन इंसान को उसकी कमजोरी भी याद दिलाता है।
“अल्लाह चाहता है कि तुम पर तख्फीफ़ करे और आदमी कमज़ोर बनाया गया।“ (अन निसा: 28)
इसलिए इसे अपनी सेहत गंवा कर ज़िन्दगी की आसाइशों में नहीं पड़ना चाहिए। आधुनिक जीवन शैली ने बहुत सी बीमारियों को जन्म दिया है। तनाव, बेचैनी और रूहानी खुला आधुनिक जीवन शैली के परिणाम हैं।
बीमार भी इंसान की सेहत और हिफ्जाने सेहत के उसूलों से ला परवाही का नतीजा है। खुदा कहता है कि इंसान को जो भी मुसीबतें आती हैं वह उसके अपने आमाल का नतीजा हैं। इसलिए, बीमारी और कमजोरी इंसानों के लिए एक याद दहानी है कि वह अपने आमाल को सहीह करें और दुरुस्त करें और दुरुस्त रोजमर्रा के मामूलात अपनाएं। सेहत मंद रहने के लिए एहतियात से खाना चाहिए और वक्त पर सोना चाहिए। इस्लाम इंसान को फिट रहने के लिए वर्जिश और चहल कदमी की भी तालीम देता है।
इसलिए बीमारियाँ इंसान को उसकी सेहत की कद्र और समाज में लोगों के लिए उसके फर्ज़ की याद दहानी का काम करती हैं। यह उसके उपर यह जिम्मेदारी भी डालता है कि वह बीमारियों और सेहत और हिफ्जाने सेहत के बारे में कवाएद व जवाबित के बारे में आगाही पैदा करे ताकि समाज का हर फर्द सेहत मंद ज़िन्दगी गुज़ार सके।
English Article: Visiting The Sick Is An Important Islamic Duty
Urdu Article: Visiting The Sick Is An Important Islamic Duty بیماروں کی عیادت ایک اہم
اسلامی فریضہ ہے
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