बिलाल अहमद परे, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
17 जनवरी 2022
अल्लाह पाक ने इंसान को सबसे अच्छा बनाया हुआ रूप प्रदान किया है। इंसान में अनेक गुणों को समाहित कर उसे अद्वितीय स्थान दिया है। अल्लाह पाक ने कई गुणों का उल्लेख किया है जो एक इंसान में पाए जाते हैं। सब्र उन गुणों में से एक है जिसका उल्लेख कई मुबारक आयतों में ताकीद के साथ आया है, लेकिन ज्यादातर मामलों में इंसान सब्र जैसे महत्वपूर्ण और महान विशेषता को खो देता है, उदाहरण के लिए, किसी ख़ास रिश्तेदार की आकस्मिक मृत्यु होने पर, विरासत के बटवारे के मौके पर, व्यापार में उतार-चढ़ाव आने पर, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में असफलता का सामना करने पर, किसी झगड़ालू व्यक्ति के प्रतिक्रिया पर, इत्यादि जैसे अवसरों पर अधीरता दिखाता है।
ऐसी स्थिति का सामना करने पर इंसान बेलगाम विद्रोह और क्रूर हिंसा करने पर उभर आता है, जो उसे तनिक भी शोभा नहीं देता, और न ही इस्लाम धर्म उसे ऐसा व्यवहार अपनाने की अनुमति देता है। यहाँ तक कि कभी कभी यह भी देखने को मिला है कि इंसान अपने असली मालिक को भी बुरा भला कहने लगता है और कुफ्रिया शब्दों से भरी गलत भाषा का प्रयोग करके, वह अनजाने में अल्लाह पाक के क्रोध को दावत देता है। जबकि वास्तविक सब्र वह है जो किसी भी गम व परेशानी, मुसीबत या सदमे की शुरुआत में ही अपनाया जाए (सहीह मुस्लिम)। हालांकि, इस कठिन समय के बाद, दर्द की गंभीरता धीरे-धीरे दूर हो जाती है और वही व्यक्ति अपने किए पर शर्मिंदा हो जाता है और उसके पास पश्चाताप करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है - मौलाना यूसुफ इस्लाही ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "आदाब ए जिंदगी" में ऐसे समय में मुसलमानों की प्रतिक्रिया के रूप में 'रंज व गम के आदाब' के उनवान से लिखा है।
देखा जाए तो सब्र एक महान गुण है जिसे नबियों और रसूलों के गुण में गिनवाया गया है। अल्लाह फ़रमाता है कि “और इस्माइल और इदरीस और ज़लकिफ्ल सब ही सब्र करने वालों में से थे, और हमने उन सबको अपनी रहमत में शामिल फरमाया कि वह नेक अमल करने वालों में थे।“ (अल अंबिया: 85)
यही कारण है कि इस महान व प्रसिद्ध कार्य के तुफैल अल्लाह ने अपने महबूब नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इसकी ताकीद फरमाई है कि “और आप भी सब्र फरमाइए जिस तरह का हौसला (आपसे पहले) हौसला मंद रसूलों ने फरमाया” (अल अह्क़ाफ 35)
कुरआन पाक के 700 से अधिक आयतों में प्रकृति की उत्कृष्ट कृतियों, जीवन के निर्माण, प्रकृति के नियमों और आकाश और पृथ्वी में मौजूद तखलीक पर गौर व फ़िक्र करने का निर्देश दिया गया है, क्योंकि कुरआन जिंदा मोजिज़ा 'उम्मुल इल्म’ अर्थात तमाम उलूम की मां है जो न केवल शरीअत की शिक्षाओं का रवादार है, बल्कि एक ऐसी किताब भी है जो प्रकृति के उलूम में भी पूर्णता पैदा करती है। अल्लाह पाक ने इंसान के मार्गदर्शन के लिए अपनी शक्ति के कुछ संकेतों का उल्लेख किया है ताकि इंसान को अपने पर्यावरण के अनुसार ध्यान करना आसान हो सके। क़ुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है: "तो क्या वे ऊँट को नहीं देखते कि वह कैसे पैदा किया गया?"
यहाँ ऊँट की रचना को इंसान के चिंतन का साधन बताया गया है, जिसका प्रारंभिक अर्थ सब्र है। इसके अलावा, ऊँट की रचना अभी भी बुद्धिमानों के लिए कई तरह से सोचने का एक जीवंत प्रतीक है।
सब्र के शाब्दिक अर्थ बर्दाश्त से काम लेने या किसी चीज से खुद को रोकने के हैं। शरीअत की इस्तेलाह के अनुसार, सब्र का अर्थ है नफ्स की इच्छाओं को बुद्धि पर हावी होने से रोकना और शरीअत की सीमा से बाहर न निकल पाने के हैं। उद्देश्य सुख-दुख, परेशानी और संकट जैसे अवसरों पर खुद को नियंत्रण से बाहर न होने दें। सब्र के लिए दृढ़ संकल्प होने की आवश्यकता होती है। यहाँ सब्र के लिए ऊँट की ओर इशारा करते हुए बताया गया है कि ऊँट एक ऐसा जानवर है जो कई दिनों तक बिना खाए-पिये रह सकता है। मिस्कीन तबीअत ऐसा कि एक छोटा सा बच्चा भी आसानी से उसकी महार पकड़ कर जहां चाहे ले जा सकता है। सहरा व बयाबानों में से चलने पर इनकार नहीं करता। दुसरे जानवरों की तरह बुरी आवाज़ भी नहीं निकालता। इन्ही जैसे कई गुण के आधार पर और सब्र जैसी आला खूबी को हासिल करने के लिए ऊंट की संरचना की ओर गौर व फ़िक्र करने के लिए इरशाद फरमाया गया है। ताकि एक मुसलमान भी बेनियाज़ी व तंगदस्ती, गम व ख़ुशी, जवानी व जईफी, स्वास्थ्य व बिमारी यहाँ तक कि हर हाल में साबिर व साबित हो जाए। इसी लिए सब्र जैसी आला सिफत की अहमियत, फजीलत व फायदे को उजागर करने पर कुरआन करीम में अनगिनत आयतें नाज़िल हुई हैं
कुरआन ने कहीं ‘अल्लाह सब्र करने वालों के साथ’ फरमाया तो कहीं ‘अल्लाह सब्र करने वालों को पसंद फरमाता है’ तो कहीं उन्हें खसारे से बचने वाले, ‘सिवाए हक़ पर और सब्र पर डटे रहने वालों’ को करार दिया गया है। कहीं सब्र करने वालों से दोहरे अज्र का वादा फरमाया गया है तो कहीं दुसरे नेकोकारों से सब्र करने वालों को बेहिसाब अंदाज़ में अज्र मिलने का वादा फरमाया गया है। सुरह अल अहज़ाब के अनुसार सब्र करने वाले मर्द और सब्र करने वाली औरतों के लिए अल्लाह पाक ने मगफिरत और अजरे अज़ीम का वादा फरमाया हुआ है। अल्लाह पाक का इरशाद है कि “यह वह लोग हैं जिन्हें उनका अज्र दो बार दिया जाएगा, इस वजह से कि उन्होंने सब्र किया और बुराई को भलाई से दफा करते हैं और उस अता में से जो हमने उन्हें बख्शी, खर्च करते हैं”। (अल कसस: 54:28)
सब्र करने वालों को कुरआन में जन्नत की बशारत (अल हूद:11) दी गई है। और कुरआन हमें तकलीफ व कठिनाई की घड़ी में बर्दाश्त करने का असल गुर सिखाता है। अल्लाह पाक का इरशाद है “और रहमान के बंदे तो वह हैं जो जमीन पर अहिस्तागी के साथ चलते हैं और जब उनसे जाहिल लोग पसंद न आने वाली बात करते हैं तो वह सलाम कहते हुए अलग हो जाते हैं।“ (अल फुरकान:63)
कुरआन में अल्लाह पाक ने सब्र करने वालों की तारीफ़ एक अलग और गैर मामूली अंदाज़ में यूँ फरमाया है कि “और वह अपने गुस्से को ज़ब्त करते हैं और लोगों को मुआफ कर देते हैं”। (आले इमरान: 134)
अल्लाह के आखरी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी पुरी मुबारक ज़िन्दगी में अपने उपर हुए ज़ुल्म व जब्र और किसी ज़्यादती का बदला लिए बिना हमेशा सब्र व तहम्मुल और अफ्व व दरगुजर का मामला फरमाया है। जबकि अल्लाह पाक का भी यही हुक्म था कि “और आप सब्र कीजिये और आपका सब्र सिवाए अल्लाह की दी हुई तौफीक के हो नहीं सकता और आप उन लोगों के लिए गमज़दा मत हों और न उन लोगों की मक्कारियों की वजह से तंगी में हों”। (अल नहल: 127)
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का के शुरूआती तेरह साल की ज़िन्दगी में हर तरह की तकलीफें बर्दाश्त कीं। यह सब सब्र की सलाहियतों का समरा ही था।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि “ताकतवर वह नहीं जो किसी दुसरे को पछाड़ दे, बल्कि असल ताकतवर वह है जो गुस्से के समय खुद पर काबू रखे।“ (सहीह मुस्लिम)
इसी तरह अल्लाह पाक ने सब्र जैसे अज़ीम अमल को अल्लाह पाक की मदद के हासिल करने का ज़रिया करार दिया है। अल्लाह पाक का इरशाद है कि “(ऐ ईमान वालों) सब्र और नमाज़ के जरिये अल्लाह से मदद तलब करो” (अल बकरा: 45)
इस तरह सब्र करने वालों के लिए कुरआन करीम के अंदर कई आयतों में अल्लाह पाक की तरफ से बशारत दी गई है। हज़रत मुगय्यरा बिन आमिर रज़ीअल्लाहु अन्हु से मरवी है कि हुजुर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया “सब्र आधा ईमान और शुक्र आधा ईमान है और यकीन, कामिल ईमान है” (शोअबुल ईमान: 4448)
हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम ने भी अपने लख्ते जिगर हज़रत यूसुफ और बिन्यामीन को खोने के बाद उस रंज व गम और बेकरार घड़ी में सब्र का दामन ही थामे रखा। हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम का बीमारी की हालत में बहुत अधिक सब्र ‘सब्र ए अय्यूब’ के नाम से कयामत तक के लिए मिसाल बन कर रह गया है, जिसकी बार बार मिसाल हमें अपनी ज़िन्दगी में भी सुनने को मिलती है। हज़रत लुकमान अलैहिस्सलाम का अपने बेटे से नसीहत करना दौरे जदीद के शिद्दत पसंद इंसान के लिए रहनुमा उसूल हैं, जिस पर अमल पैरा होने से इंसान बुलंदी का मकाम हासिल कर सकता है और अल्लाह पाक का मुकर्रब बंदा बन सकता है, अल्लाह पाक का इरशाद है:
“और तुझ पर जो मुसीबत वाकेअ हो उस पर सब्र किया कर, यह हिम्मत के कामों में से है”। (लुकमान:17)
तो सब्र से बढ़ कर कोई दूसरी चीज नहीं जिस पर अल्लाह पाक की तरफ से अनेकों नेअमत, अज़मत, रहमत व मगफिरत हासिल होने के वादे हैं। हमें चाहिए कि ज़िन्दगी के विभिन्न मुश्किलों, गम व मुसीबत जदा हालात और तंगदस्त लमहात में सब्र करना सीखें। किसी भी तरह की गैर शरई हरकत अंजाम देने से परहेज़ करना चाहिए। अल्लाह पाक से मुसलसल दुआ करना चाहिए जो हमें हर तरह के मुश्किल हालात में यकीनी हिफाज़त बनाएगा और उनसे निजात देगा। इंशाअल्लाह।
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जनाब बिलाल अहमद परे न्यू एज इस्लाम के नियमित स्तंभकार हैं। आप जम्मू और कश्मीर राज्य के त्राल के दक्षिणी क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने कश्मीर यूनिवर्सिटी से इस्लामिक स्टडीज में मास्टर्स किया है। इस्लामी सामाजिक मुद्दों पर आपके अधिकांश लेख विभिन्न राज्य के दैनिक समाचार पत्रों में अंग्रेजी और उर्दू में प्रकाशित होते हैं।
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